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दृष्टि आईएएस ब्लॉग

इंटरनेट के दौर में रेडियो की प्रासंगिकता

डिजिटलीकरण के इस दौर में इंटरनेट संचार एवं सूचना प्राप्ति का एक अत्यंत महत्वपूर्ण जरिया बन गया है। इस क्रम में ऐसा प्रतीत होने लगा कि रेडियो की आवाज दबकर रह जायेगी। लेकिन रेडियो अपनी अंतर्निहित विशिष्टताओं के कारण निरंतर जन-जन तक सूचना, शिक्षा और मनोरंजन पहुंचाने के क्रम में एक प्रासंगिक माध्यम के रूप में हमारे समक्ष मौजूद है।

शहरों में निश्चित रूप से लोग टेलीविजन तथा अन्य आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स की ओर आकर्षित हुए हैं लेकिन कस्बों व गांवों में अभी भी रेडियो सुना जाता है। जहां सड़क नहीं है, बिजली नहीं है, यातायात के साधन नहीं हैं वहां भी रेडियो उपस्थित है, सस्ता, सुलभ और सुविधाजनक।

जिनके पास अक्षर ज्ञान नहीं है वे अखबार नहीं पढ़ सकते लेकिन रेडियो सुन सकते हैं। जो लोग अपनी दृष्टिहीनता के कारण न तो अखबार पढ़ सकते हैं न टेलीविजन देख सकते हैं, रेडियो उनका भी साथी है और पथप्रदर्शक भी। तीसरी दुनिया के देशों में रेडियो ही एक ऐसा माध्यम है जिसे वास्तव में जनमाध्यम कहा जा सकता है।

रेडियो श्रोताओं को साथ लेकर चलता है और वह उनकी बुद्धि, सोच, और कल्पनाशक्ति पर भरोसा करता है और उन्हें विस्तार तथा सोचने की खुराक भी देता है। कई बार हम सभी के मन के ताने-बाने के अनुरूप हमारे मिजाज में एक ऐसा एकाकीपन जरूर आता है, जब हम 'गजलों' की मखमली आवाज को सुनकर उसे गुनगुना कर उस वक्त को बिताना चाहते हैं, ऐसे में रेडियो हमारा साथ निभाता है। चाहे किचन में काम करती हुई महिलाएं, रातों में पहरा देते चौकीदार, सीमा पर देश की रखवाली करते हुए जवान या दफ्तर से घर आने-जाने के दौरान ट्रैफिक में फँसे लोगों का रेडियो एक हमजोली की तरह साथ निभाता है।

13 फरवरी को विश्व रेडियो दिवस के रूप में मनाया जाता है और इस वर्ष (2023) का विषय ' रेडियो और शांति' रखा गया है। बदलते दौर के साथ रेडियो ने भी अब 'मर्फी' की जगह 'सारेगामा कारवां' की शक्ल ले ली है। लोगों की जरूरतों के हिसाब से रेडियो उस कदर अपने आप में तब्दीली लाने में कामयाब रहा है, जितनी उससे अपेक्षा की जा सकती थी।

इस प्रकार वर्तमान समय में रेडियो की प्रासंगिकता को निम्नलिखित बिंदुओं के आधार पर भी समझा जा सकता है। जैसे-

  • भारत के संदर्भ में बहुभाषी, बहुसांस्कृतिक एवं बहुस्तरीय जनता की अपनी विशिष्ट आवश्यकता है। यहां स्थानीय रेडियो केंद्रों में अपार वृद्धि होनें से स्थानीय लोग अपनी भाषा, रुचि, आवश्यकताओं एवं समय के अनुरूप कार्यक्रम में भागीदार होते हैं। रेडियो अपनी इसी विशिष्टता के कारण जन-साधारण तक पहुंचने में सफल रहा है। और यह तत्व भारत जैसे लोकतांत्रिक देश को सुदृढ़ता प्रदान करता है।
  • रेडियो द्वारा श्रोताओं को अपने कार्यस्थल से लेकर विश्व के किसी भी हिस्से में घट रही घटनाओं और हो रहे परिवर्तनों की जानकारी रखने का त्वरित अवसर प्राप्त होता है।
  • रेडियो में परिस्थितियों के अनुकूल परिवर्तन की क्षमता होती है। उसे किसी भी स्थान, किसी भी समय तथा श्रोताओं के किसी भी वर्ग की आवश्यकतानुसार प्रयोग में लाया जा सकता है।
  • रेडियो एक ध्वन्यात्मक माध्यम होते हुए भी सरकारी नीतियों व सेवाओं की जानकारी लक्षित वर्ग तक पहुंचाता है। जैसे- बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, सुकन्या समृद्धि योजना आदि तथा स्थानीय सामाजिक समस्याओं, जैसे- दहेज प्रथा, कन्या भ्रूण हत्या, जनसंख्या नियंत्रण आदि के विषय में जानकारी प्रदान कर सहभागिता को बढ़ावा देता है साथ ही साथ उन्हें प्रगति के पथ पर चलने हेतु आह्वान भी करता है।
  • सरकार की लोन सुविधा मुद्रा योजना, सिडबी बैंक, नाबार्ड, स्टार्ट-अप-इंडिया आदि जैसे कार्यक्रमों की जानकारी का विश्लेषणात्मक आयाम प्रस्तुत कर अर्थव्यवस्था में सामुदायिक हिस्सेदारी को बढ़ाता है।
  • रेडियो दृश्यहीन माध्यम होनेे के कारण ही लोगों की कल्पना शक्ति को संपन्न करता है। यह अपने ध्वनि प्रभाव के माध्यम से मानव की मानसिक क्षमता को जागरूक कर दृश्यों के निर्माण को संभव करता है। इसीलिए रेडियो को कल्पनाशक्ति कौशल की संज्ञा दी गई है।
  • रेडियो कार्यक्रम अपने लक्ष्य समूहों में जीवन संबंधी महत्वपूर्ण बातों जैसे- रोजगार, स्वास्थ्य, शिक्षा, व्यवसाय तथा अनेक ज्ञानवर्धक सूचनाओं को शामिल करता है।
  • रेडियो में मात्र ध्वनि के कारण इसका कार्यक्रम निर्माण एवं प्रसारण सरल होता है। इस कारण यह एक काम खर्चीला मध्यम है।
  • आपदाओं/संकटपूर्ण परिस्थितियों में जब संचार के अन्य साधन ठप हो जाते हैं, रेडियो संचार तब भी प्रभावी रहता है।

इस प्रकार रेडियो के संदर्भ में किसी ने सच ही कहा है कि -

'रेडियो कोई तकनीकी संदूक नहीं अपितु जीवंत व प्रगतिशील सूचना एवं मनोरंजन के खजाने का भंडार है।'

इंटरनेट के बढ़ते प्रसार तथा वक्त बदलने के साथ-साथ लोगों के संचार व मनोरंजन के साधन में भी बदलाव हुआ है, मगर आज तक जो चीज नही बदली वह रेडियो के प्रसारण और एक ट्रांजिस्टर के माध्यम से आती आवाज के जरिए घंटो चिपके रहनें की वह बेकरारी।

आज के दौर में भले ही इंटरनेट का स्तर व प्रसार काफी बढ़ गया है लेकिन कई घरों से वह पारंपरिक रेडियो के बजने की आवाज आज भी सुनाई देती है। भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में रेडियो ऐसा माध्यम है जो जनमाध्यम का वृहद रूप ग्रहण किए हुए है और यह अपनी व्यापक पहुंच के कारण ही लोकतंत्र की अवधारणा को साकार करता है। समाज का सबसे अंतिम व्यक्ति भी इसके द्वारा उच्चरित शब्दों को सुनकर अपनी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की अनुभूति करता है और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता न केवल लोगों के व्यक्तित्व के विकास के लिए आवश्यक है बल्कि राष्ट्र के विकास के लिए भी अनिवार्य है। कहा भी गया है कि - "आवाज का जादू सर चढ़कर बोलता है" और उसके इस जादू का उपयोग सामाजिक व राष्ट्रीय उत्थान के लिए किया जाना उचित ही है जो रेडियो की प्रासंगिकता को भविष्य में भी बनाए रखेगा।

अंकित सिंह

अंकित सिंह उत्तर प्रदेश के अयोध्या जिले से हैं। उन्होंने UPTU से इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्युनिकेशन में  स्नातक तथा हिंदी साहित्य व अर्थशास्त्र  में परास्नातक किया है। वर्तमान में वे दिल्ली स्कूल ऑफ सोशल वर्क  (DU) से सोशल वर्क में परास्नातक कर रहे हैं तथा सिविल सर्विसेज की तैयारी करने के साथ ही विभिन्न वेबसाइटों के लिए ब्लॉग लिखते हैं।


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