आर. के. नारायण- शब्दों के चित्रकार
- 11 Oct, 2022 | संकर्षण शुक्ला
अंग्रेज़ भारत छोड़ने वाले थे, हिंदी साहित्य की विषयवस्तु उस दरमियाँ यथार्थवादी हो चुकी थी और यह अपनी कथावस्तु व कथन के माध्यम से तो देश के युवाओं को अंग्रेज़ों के खिलाफ़ चेता ही रहा था साथ ही साथ देश में व्याप्त आर्थिक, वर्गीय और सामाजिक असमानताओं के बारे में भी बता रहा था; ठीक इसी दौर में एक भारतीय लेखक, अंग्रेज़ी भाषा को लेखन की भाषा चुनता है और उसकी कीर्ति पूरे भारत मे फैल जाती है। यह लेखक एक काल्पनिक शहर मालगुडी की कल्पना करता है और इसके इर्द-गिर्द ही कहानियों का तानाबाना बुनता है। बाद में मालगुडी की इन्हीं कहानियों पर 'मालगुडी डेज' नाम से एक धारावाहिक दूरदर्शन में प्रसारित होता है जो अपने प्रसार और प्रभाव के स्तर पर इतिहास रच देता है।
यह रचनाकार है रासीपुरम कृष्णस्वामी अय्यर नारायणस्वामी जिन्हें हम सभी आर. के. नारायण नाम से जानते हैं। 10 अक्तूबर 1906 को आर. के. नारायण का जन्म मद्रास (आधुनिक चेन्नई) में होता है मगर उनका पालन-पोषण अपनी नानी के यहाँ मैसूर में होता है। दरअसल उनके पिता एक सरकारी अध्यापक थे; इस कारण उनका अलग-अलग शहरों में तबादला होता था। इसलिए आर. के नारायण का बचपन अपनी नानी के घर में ही बीता। बचपन में उनकी नानी उन्हें ख़ूब कहानियाँ सुनाती। इन्हीं कहानियों ने उनमें कहानी की सृजनात्मकता का विकास भी किया।
इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि आर.के.नारायण कॉलेज की प्रवेश परीक्षा में जिस अंग्रेज़ी विषय में फेल हो जाते हैं बाद में उसी विषय में वो देश के शीर्ष उपन्यासकार बनते हैं। इतना ही नहीं वे प्रतिष्ठित मैसूर विश्वविद्यालय से अंग्रेज़ी में स्नातक की उपाधि भी प्राप्त करते हैं। कॉलेज से निकलने के बाद उन्होंने ‘द हिन्दू’ अख़बार के लिए लघु कथाएँ भी लिखी। इसी बीच वो अपने पहले उपन्यास पर भी काम करने लगे जिसका शीर्षक था- स्वामी एंड फ्रेंड्स।
स्वामी एंड फ्रेंड्स को छपवाने के लिए वो जिस भी प्रकाशक के पास जाते वहाँ से उन्हें निराशा ही मिलती। इसी बीच उनकी बात अपने एक दोस्त से होती है जो ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय में पढ़ाई कर रहा था। उनका दोस्त उनकी इस कृति को 20वीं सदी के महान उपन्यासकार ग्राहम ग्रीन को दिखाता है। ग्राहम ग्रीन इस रचना के कथन से अत्यंत प्रभावित होते है और वे इसे ऑक्सफ़ोर्ड प्रकाशन से छपने के लिए अनुशंसित कर देते है।
स्वामी एंड फ्रेंड्स में आर. के. नारायण ने कल्पना और उत्साह का अद्भुत समन्वय दिखाया है। इस कहानी के मुख्य पात्र स्वामीनाथन को स्कूल जाना जरा भी पसंद नहीं है लेकिन वो अपने पिता के भय से स्कूल जाना स्वीकार कर लेता है। इस उपन्यास में बाल मनोविज्ञान का इतना सूक्ष्म चित्रण किया है कि इसे पढ़ते-पढ़ते आप स्वयं ही स्वामीनाथन हो जाते है। बालक स्वामी स्कूल में अपने दोस्तों का चुनाव भी अपनी बालसुलभ जरूरतों के हिसाब से करता है। मसलन उसका दोस्त मणि दबंग है जिससे बाकी के बच्चे डरते है। इसके अलावा उसका दोस्त राजम है जिसके पिता पुलिस अफसर है और उनके रूआब की वजह से राजम को मास्टर ज्यादा कुछ न कहते है। इस पुस्तक का एक अंश प्रस्तुत है-
"सोमवार की सुबह थी। स्वामीनाथन को आँखें खोलने की इच्छा नहीं हो रही थी। सोमवार उसे कैलेंडर का सबसे मनहूस दिन लगता था। शनिवार और रविवार की मज़ेदार आज़ादी के बाद सोमवार को काम और अनुशासन के मूड में आना बहुत मुश्किल होता था। स्कूल के विचार से ही उसे झुरझुरी आ गई- वह पीली मनहूस बिल्डिंग, जलती आँखों वाला कक्षा-अध्यापक वेदनायकम और पतली, लंबी छड़ी हाथ मे लिए हैडमास्टर।"
दरअसल आर.के. नारायण अपनी रचनाओं की विषयवस्तु की प्रेरणा अपने निजी जीवन से ही लेते है। ‘स्वामी एंड फ्रेंड्स’ में वो जहाँ अपने स्कूली दिनों को याद करते है तो वही ‘द बैचलर ऑफ आर्ट्स’ में वो अपने कॉलेज के दिनों की संक्षिप्त झाँकी दिखाते है। इस उपन्यास का पात्र चंदन बेहद संवेदनशील नवयुवक है जो पश्चिमी विचारों और भारतीय परंपरा के द्वंद्व में उलझा हुआ है।
वर्ष 1938 में प्रकाशित उनका उपन्यास ‘द डार्क रूम’ एक आम महिला के रोज़मर्रा के जीवन की छोटी-छोटी बातों और घटनाओं की कहानियाँ कहता है। इस उपन्यास की पात्र सावित्री एक परंपरागत स्त्री है जो कष्टों को सहकर भी मौन रहती है। दरअसल उसका पति दूसरी कामकाजी महिलाओं को देखकर आकर्षित होता है और उन्हीं के विषय मे सोचता रहता है। यह बात जानते हुए भी सावित्री आहत न होती है और वो इन परिस्थितियों से सामंजस्य बिठाने का प्रयास करती है। इस रचना में भावनाओं के बिम्ब को बेहद कुशलता के साथ चित्रित किया गया है।
द डार्क रूम के सात वर्ष बाद प्रकाशित उपन्यास ‘द इंग्लिश टीचर’ उनके उस क्षोभ की कहानी है जो उनकी पत्नी के असामयिक निधन से उत्पन्न हुआ है। आर. के. नारायण की पत्नी राजम टायफायड से बुरी तरह बीमार हो जाती है और अंततः उनकी मृत्यु हो जाती है। राजम से उनका प्रेम विवाह हुआ था और यह प्रेम कहानी एक सामान्य प्रेम कहानी न थी। राजम से विवाह करने के लिए आर. के. नारायण ने कड़ी मशक़्क़त की थी और उनकी शादी के महज़ 6 वर्ष बाद ही राजम का निधन हो जाता है। राजम के जाने से उत्पन्न हुए शून्य को ही उन्होंने द इंग्लिश टीचर में भरने की कोशिश की है।
आर. के. नारायण और उनकी पत्नी राजम
अगर आर. के. नारायण के लेखन को देखें तो इसे स्वतंत्रता पूर्व और स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद के स्तरों में बाँटा जा सकता है। जहाँ स्वतंत्रता पूर्व के लेखन में वो ज़्यादातर अपनी और अपने इर्द-गिर्द स्थित लोगों की कहानियाँ कहते हुए पाएं जाते है वही स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद वो समाज के अन्य पात्रों को कहानियों की विषयवस्तु बनाते है। वर्ष 1952 से वर्ष 1962 का दशक उनकी रचनाधर्मिता का स्वर्ण काल है।
इस कालखंड में प्रकाशित हुई उनकी पहली रचना है- ‘द फाइनेंसियल एक्सपर्ट’। इसके बाद उन्होंने कालजयी रचना ‘द मैन ईटर ऑफ मालगुडी’ लिखी। द मैन ईटर ऑफ मालगुडी में उन्होंने समाज मे प्रचलित पाखंडों और ढकोसलों का मज़ाक उड़ाया है। वर्ष 1960 मे प्रकाशित उनका उपन्यास ‘द गाइड’ उनकी रचनात्मकता का शिखर है। इस उपन्यास में जहाँ मनोरंजन है वही व्यंग्य का पुट भी इसमें दिखता है। इन सभी अवयवों के साथ ही यह रचना नैतिक सरोकार को भी समाहित किये हुए है। इसी उपन्यास पर वर्ष 1965 मे विजय आनंद ने द गाइड नाम से ही एक फ़िल्म भी बनाई। इस फ़िल्म का अंत देव आनंद ने किताब की बजाय अपने हिसाब से रखा। इस बात से आर.के.नारायण नाराज हो गए और उन्होंने इस बाबत देव आनंद को चिट्ठी भी लिखी।
इसी दरमियाँ उन्होंने महात्मा गांधी और गांधीवाद को समर्पित रचनाओं की भी रचना की। ‘वेटिंग फ़ॉर द महात्मा’ नामक रचना में उन्होंने मालगुडी नामक काल्पनिक शहर की पृष्ठभूमि में गांधीवादी संघर्ष को दिखाया है। इस रचना में उन्होंने महात्मा गांधी को न तो एक संत के रूप में चित्रित किया है और न ही उन्हें नायक दिखाया है बल्कि उन्होंने महात्मा गांधी का चित्रण एक बुद्धिमान-रणनीतिकार के रूप में किया है।
आर. के. नारायण ने अपने बचपन के उस उधार को भी अपनी रचनाओं के माध्यम से चुकता कर दिया जो उन्होंने अपनी नानी से कहानी सुनने के दौरान सृजनात्मकता के प्रेरणार्थ लिया था। उन्होंने इसी विषय पर ‘द ग्रैंडमदर्स टेल’ नामक रचना की। उनकी रचनाएं सहज और सरल भाषा में कोमल व्यंग्य का चित्रण तो करती ही है साथ ही साथ मानवीय मनोविज्ञान पर भी सूक्ष्म प्रकाश डालती है। उन्होंने मानस के दो श्रेष्ठ महाकाव्यों रामायण और महाभारत पर भी संक्षिप्त आधुनिक गद्य लिखा है। उनकी कहानियाँ जहाँ आधुनिकता और परंपरा का समावेश है तो वहीं उनके कथन कहने का असाधारण शिल्प साधारण से दिखने वाले पात्रों को भी जीवंत बना देता है।
यह उनके कथन का जादू ही था कि उनके लघु कथा संग्रह मालगुडी की कहानियों पर वर्ष 1986 मे दूरदर्शन पर मालगुडी डेज नामक धारावाहिक प्रसारित होता है और देखते ही देखते पूरा भारत इसका दीवाना हो जाता है। आज भी जब कभी इसकी धुन बजने लगती है तो लोग एक पल को ठहर कर इसकी स्मृत्तियों में खो जाते है। इस धारावाहिक का पहला एपिसोड उनकी रचना स्वामी एंड फ्रेंड्स से प्रेरित था। इसमें स्वामीनाथन का किरदार मंजूनाथ नामक बाल किरदार ने निभाया था जो आज भी लोगों के जेहन में ताजा है। इस धारावाहिक का एक एपिसोड इनकी एक रचना ‘वेंडर एंड स्वीट्स’ से प्रेरित है जो मिठाई बेचने वाले एक युवक जगन कि कहानी है जो विदेश से वापिस आएं अपने बेटे जगन के साथ तालमेल बिठाने की कोशिश करता है।
आर. के. नारायण अंग्रेज़ी उपन्यासकारों की उस वृहतत्रयी का भी हिस्सा है जिसके अन्य सदस्य महान उपन्यासकार मुल्कराज आनंद और राजा राव है। वर्ष 1958 में उनके उपन्यास ‘द काइट’ के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया जाता है। वर्ष 1964 मे उन्हें पदम् भूषण तो वर्ष 2000 में उन्हें पदम् विभूषण भी दिया जाता है। इसके साथ ही वर्ष 1989 में उन्हें राज्यसभा के लिए नामित किया जाता है। यहाँ पर वो शिक्षा व्यवस्था को सुदृढ़ करने हेतु अनेक मुद्दे उठाते है। मैसूर के यादवगिरि में करीब दो दशक रहने के उपरांत वो चेन्नई में रहने लगते है। यही पर 13 मई 2001 को 94 वर्ष की आयु में उनका देहावसान हो जाता है।
संकर्षण शुक्लासंकर्षण शुक्ला उत्तर प्रदेश के रायबरेली जिले से हैं। इन्होने स्नातक की पढ़ाई अपने गृह जनपद से ही की है। इसके बाद बीबीएयू लखनऊ से जनसंचार एवं पत्रकारिता में परास्नातक किया है। आजकल वे सिविल सर्विसेज की तैयारी करने के साथ ही विभिन्न वेबसाइटों के लिए ब्लॉग और पत्र-पत्रिकाओं में किताब की समीक्षा लिखते हैं। |
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स्रोत1. https://amp.bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%86%E0%A4%B0._%E0%A4%95%E0%A5%87._%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%A3 |