अंतर्राष्ट्रीय नेताओं की उपस्थिति और अनुपस्थिति: शपथ ग्रहण समारोह में आमंत्रण की राजनीति (अमेरिका में ट्रंप के शपथ ग्रहण के संदर्भ में)
- 29 Jan, 2025
संयुक्त राज्य अमेरिका में राष्ट्रपति का शपथ ग्रहण समारोह एक महत्त्वपूर्ण घरेलू आयोजन होता है, लेकिन इसका वैश्विक स्तर पर भी व्यापक महत्त्व होता है। यह समारोह लोकतंत्र की निरंतरता का प्रतीक है और साथ ही अमेरिका के राजनीतिक, कूटनीतिक एवं सामाजिक दृष्टिकोण को प्रकट करने का एक अवसर भी होता है। इस समारोह में पारंपरिक रूप से अंतर्राष्ट्रीय नेताओं को आमंत्रित नहीं किया जाता है, लेकिन वर्ष 2025 में डोनाल्ड ट्रंप की सत्ता में वापसी के साथ इस परंपरा को तोड़ दिया गया।
ट्रंप के दूसरे कार्यकाल के इस शपथ ग्रहण समारोह में चुनिंदा अंतर्राष्ट्रीय नेताओं को आमंत्रित किया गया, जो उनकी कूटनीतिक प्राथमिकताओं और वैश्विक दृष्टिकोण के बारे में एक अनुमान का अवसर प्रदान करता है। यह कदम न केवल अमेरिका की नई अंतर्राष्ट्रीय नीति के एक संकेत के रूप में देखा गया, बल्कि ट्रंप के व्यक्तिगत और राजनीतिक रुचियों की भी एक झलक मिली। इन आमंत्रणों और अंतर्राष्ट्रीय नेताओं की उपस्थिति-अनुपस्थिति से ऐसे अनुमान प्रकट किये गए कि ट्रंप प्रशासन द्वारा किन देशों एवं नेताओं को प्राथमिकता दी जाएगी।
ट्रंप की वापसी और वैश्विक परिप्रेक्ष्य
- ट्रंप की राजनीतिक विरासत
- डोनाल्ड ट्रंप का ‘अमेरिका फर्स्ट’ का दृष्टिकोण उनके पहले कार्यकाल की सबसे प्रमुख नीति रही। यह नीति अमेरिका के पारंपरिक सहयोगियों और प्रतिद्वंद्वियों दोनों के साथ संबंधों में गहरा बदलाव लेकर आई। ट्रंप प्रशासन ने ‘नाटो’ जैसे पारंपरिक सहयोगियों के साथ मतभेद बढ़ाए, यूरोपीय संघ के साथ व्यापार युद्ध छेड़ा और चीन के साथ व्यापारिक एवं राजनीतिक तनाव को बढ़ावा दिया। पहले कार्यकाल में जलवायु समझौतों से अलग होना, अप्रवासन नीतियों को कठोर करना और वैश्विक संस्थानों पर संदेह जताना आदि उनकी 'अलगाववादी' नीति का अंग था। इसने विश्व के नेताओं के बीच ट्रंप को एक विवादित नेता के रूप में स्थापित किया, लेकिन साथ ही उन्हें एक ‘असामान्य किंतु दृढ़’ अमेरिकी नेता के रूप में भी देखा गया।
- वर्ष 2025 का वैश्विक परिदृश्य
- वर्ष 2025 में जब ट्रंप ने दूसरी बार राष्ट्रपति पद ग्रहण किया है, तब दुनिया कई नई चुनौतियों का सामना कर रही थी। चीन एवं रूस की बढ़ती शक्ति, यूरोपीय देशों के अंदरूनी मतभेद और दक्षिण एशिया में अस्थिरता जैसे मुद्दे वैश्विक राजनीति के केंद्र में हैं। चीन और अमेरिका के बीच व्यापारिक एवं सैन्य प्रतिस्पर्द्धा बढ़ रही थी, वहीं रूस तथा यूक्रेन के बीच का युद्ध वैश्विक कूटनीति में एक बड़ा संकट बना हुआ था। यूरोप में ‘फ्रिंज पॉलिटिक्स’ के उभार और जलवायु परिवर्तन पर नीतिगत मतभेद ने पारंपरिक गठबंधनों को क्षीण कर दिया है।
- इन परिदृश्यों के बीच ट्रंप के शपथ ग्रहण समारोह में अंतर्राष्ट्रीय नेताओं की उपस्थिति-अनुपस्थिति से अनुमान लगाया गया कि अमेरिका किस तरह इन चुनौतियों से निपटेगा। माना गया कि ट्रंप द्वारा अपने वैचारिक सहयोगियों और व्यावसायिक साझेदारों को प्राथमिकता देने के रूप में उनकी ‘अमेरिका फर्स्ट’ की नीति अब ‘चुनिंदा सहयोग’ की रणनीति में परिवर्तित हो रही है।
- वैश्विक प्रतिक्रिया और महत्त्व
- ट्रंप की वापसी को उनके समर्थकों ने जहाँ एक नई उम्मीद के रूप में देखा है, वहीं उनके आलोचकों ने इसे अमेरिकी लोकतंत्र और वैश्विक कूटनीति के लिये एक चुनौती के रूप में देखा है। उनकी नीतियाँ न केवल अमेरिका के भीतर बल्कि वैश्विक स्तर पर गहन प्रभाव उत्पन्न करेंगी। इस संदर्भ में शपथ ग्रहण समारोह और विदेशी नेताओं को आमंत्रण की राजनीति को ट्रंप प्रशासन की प्राथमिकताओं एवं दृष्टिकोण को समझने के लिये एक महत्त्वपूर्ण संकेतक के रूप में देखा गया।
शपथ ग्रहण समारोह में आमंत्रण की राजनीति
- प्रमुख आमंत्रित नेता
- शपथ ग्रहण समारोह में कुछ चुनिंदा अंतर्राष्ट्रीय नेताओं को आमंत्रित किया गया, जिससे नवनिर्वाचित राष्ट्रपति के कूटनीतिक उद्देश्यों और गठबंधनों के बारे में कुछ संकेत मिले।
- लैटिन अमेरिकी नेता: अर्जेंटीना के राष्ट्रपति जेवियर मीलै, जो ट्रंप के वैचारिक साथी माने जाते हैं, ने इस समारोह में प्रमुखता से भाग लिया। मीलै दक्षिण अमेरिका में ट्रंप की नीतियों का समर्थन करने वाले प्रमुख नेता हैं। इसी प्रकार, इक्वाडोर के राष्ट्रपति डैनियल नोबोआ, जो एक व्यवसायी हैं और ट्रंप के विचारों से सहमति रखते हैं, भी इस अवसर पर मौजूद रहे। वेनेजुएला के एडमंडो गोंज़ालेज़ उर्रुटिया, जिन्हें ट्रंप प्रशासन ने वैध राष्ट्रपति के रूप में मान्यता दी है, ने भी इस कार्यक्रम में भाग लिया।
- यूरोपीय अतिथि: यूरोप से केवल इटली की प्रधानमंत्री जॉर्जिया मेलोनी को उच्च स्तर पर आमंत्रित किया गया। मेलोनी का ट्रंप के साथ वैचारिक साम्य और दक्षिणपंथी नीतियों का समर्थन उनकी उपस्थिति को विशिष्ट बनाता है। इसके अतिरिक्त, स्पेन के सैंटियागो अबास्कल (वोक्स पार्टी), फ्राँस के एरिक ज़ेमूर, जर्मनी की एएलडी पार्टी की नेता ऐलिस वाइडल और पोलैंड के मातेउज़ मोराविएकी जैसे दक्षिणपंथी नेता भी समारोह में उपस्थित थे।
- एशियाई नेता: ट्रंप द्वारा चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग को आमंत्रित किया गया था जिस पर मीडिया में व्यापक चर्चा हुई। इसे अप्रत्याशित माना गया और ट्रंप की मंशा के प्रति अटकलें लगाई गईं। हालाँकि जिनपिंग का आगमन नहीं हुआ और चीन के प्रतिनिधित्व के लिये उपराष्ट्रपति हान झेंग को भेजा गया। मीडिया में इस बात पर भी व्यापक चर्चा हुई कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ट्रंप द्वारा आमंत्रित नहीं किया गया था। हालाँकि इसकी पुष्टि नहीं हुई लेकिन इसे भारत-अमेरिका संबंध में ठंडक, मोदी से ट्रंप की नाराज़गी आदि के रूप में व्याख्यायित किया गया। शपथ ग्रहण समारोह में भारत के प्रतिनिधि के रूप में विदेश मंत्री सुब्रह्मण्यम जयशंकर प्रमुखता से उपस्थित थे।
- जापान और ऑस्ट्रेलिया ने भी अपने विदेश मंत्रियों को प्रतिनिधित्व के लिये भेजा था।
- प्रमुख अनामंत्रित नेता
- आमंत्रण सूची में कुछ उल्लेखनीय नामों की अनुपस्थिति ने दुनिया भर में चर्चा को जन्म दिया। यूरोपीय संघ की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयेन और जर्मनी, फ्राँस एवं स्पेन के राष्ट्र प्रमुखों को आमंत्रित नहीं किया गया। इस बात की भी व्यापक चर्चा हुई कि अमेरिका के घनिष्ठ सहयोगी यूनाइटेड किंगडम के लेबर प्रधानमंत्री कीर स्टारमर को आमंत्रित नहीं किया गया। संयुक्त राज्य अमेरिका के पड़ोसी और मुख्य व्यापारिक साझेदार कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो तथा मैक्सिको की राष्ट्रपति क्लाउडिया शीनबाम की भी उपेक्षा की गई।
- संदेश और रणनीति
- इन आमंत्रणों ने ट्रंप प्रशासन की नई कूटनीतिक प्राथमिकताओं को स्पष्ट किया। ट्रंप ने अपने वैचारिक और राजनीतिक सहयोगियों को प्राथमिकता दी, जबकि पारंपरिक सहयोगियों एवं बहुपक्षीय संगठनों को दूर रखा। इसे उनके ‘अमेरिका फर्स्ट’ से ‘चुनिंदा सहयोग’ की ओर आगे बढ़ने की रणनीति के रूप में व्याख्यायित किया गया।
उपस्थिति-अनुपस्थिति और उनके निहितार्थ
- ट्रंप के शपथ ग्रहण समारोह में कुछ प्रमुख दक्षिणपंथी नेताओं की उपस्थिति और विभिन्न प्रमुख राष्ट्राध्यक्षों की अनुपस्थिति ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मिश्रित संदेश दिया। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग को व्यक्तिगत रूप से आमंत्रित किया गया था, लेकिन उन्होंने उपराष्ट्रपति हान झेंग को भेजा। ट्रंप के पहले कार्यकाल में घनिष्ठ सहयोगी रहे भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी व्यक्तिगत रूप से उपस्थित नहीं हो सके और विदेश मंत्री जयशंकर ने उनका प्रतिनिधित्व किया। ‘क्वाड’ के दो अन्य सदस्यों जापान और ऑस्ट्रेलिया ने भी अपने विदेश मंत्रियों को प्रतिनिधित्व के लिये भेजा जो उनके तटस्थ रुख को प्रकट करता है।
- ब्राज़ील के पूर्व राष्ट्रपति जैर बोल्सोनारो कानूनी अड़चन के कारण उपस्थित नहीं हो सके और उनका प्रतिनिधित्व उनकी पत्नी द्वारा किया गया। हंगरी के प्रधानमंत्री विक्टर ऑर्बन ने कार्यक्रम में शामिल होने का निमंत्रण अस्वीकार कर दिया, लेकिन यह संकेत दिया कि वह रूस और अमेरिका के बीच मध्यस्थता में अपनी भूमिका निभा सकते हैं।
- प्रमुख नेताओं की अनुपस्थिति ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कई सवाल खड़े किये। शी जिनपिंग की अनुपस्थिति से यह अनुमान लगाया गया कि चीन और अमेरिका के बीच तनाव बना हुआ है एवं संवाद की प्रक्रिया अभी भी जटिल है। कुछ विश्लेषकों द्वारा मोदी की अनुपस्थिति को भारत-अमेरिका संबंधों में ठहराव के रूप में देखा गया। यूरोपीय संघ और प्रमुख यूरोपीय देशों के नेताओं की अनुपस्थिति से यह प्रकट हुआ कि ट्रंप की नीतियाँ यूरोप के साथ संबंधों को कमज़ोर कर रही हैं।
- इन अनुपस्थितियों को एक ओर अमेरिका की वैश्विक भूमिका के कमज़ोर होने के रूप में देखा गया तो दूसरी ओर इसे नई रणनीतियों के अवसर के रूप में भी देखा गया। माना गया कि ट्रंप उन नेताओं और संगठनों के साथ नए संबंध बनाने का प्रयास कर सकते हैं, जो उनकी नीतियों का समर्थन करते हैं। इससे यह निष्कर्ष निकाला गया कि ट्रंप प्रशासन की प्राथमिकता अब पारंपरिक सहयोगियों के बजाय उन नेताओं और देशों पर केंद्रित हैं, जो उनके वैचारिक दृष्टिकोण के साथ संगत हैं।
ट्रंप प्रशासन के विदेशी नीति रुझान और वैश्विक प्रभाव
- ‘अलगाववाद’ से ‘चुनिंदा सहयोग’ की ओर
- ट्रंप के दूसरे कार्यकाल के शपथ ग्रहण समारोह से यह संकेत मिलता है कि उनके नेतृत्व में अमेरिका की विदेश नीति में एक बड़ा बदलाव आ रहा है। पहले कार्यकाल में ट्रंप ने अमेरिका को वैश्विक मामलों से अलग करने की कोशिश की थी और वह ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीति के तहत अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं से बाहर निकलने, व्यापारिक संघर्षों को बढ़ाने एवं विश्वव्यापी समझौतों से दूर रहने के पक्षधर थे। प्रतीत होता है कि ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में अमेरिका उन देशों और नेताओं के साथ संबंध निर्माण की दिशा में कार्य करेगा, जो उनकी नीतियों तथा विचारों को साझा करते हैं। यह नीति अमेरिका के लिये एक नई कूटनीतिक प्राथमिकता का प्रतीक हो सकता है, जहाँ अमेरिका दुनिया के विभिन्न हिस्सों में अपनी प्रभावशाली भूमिका बनाए रखने के साथ-साथ अपने कठोर रुख को भी बनाए रखना चाहता है।
- ट्रंप की विदेशी नीति की संभावनाएँ और वैश्विक प्रतिक्रिया
- ट्रंप की यह आमंत्रण की राजनीति ऐसे समय प्रकट हुई है जब वैश्विक राजनीति एवं कूटनीति में बदलाव की दर तीव्र है। यूरोपीय संघ और प्रमुख पश्चिमी देशों के साथ अमेरिका का अलगाव बढ़ सकता है तथा इसका असर वैश्विक व्यापार एवं कूटनीति पर पड़ेगा। माना जा रहा है कि चीन के साथ अमेरिका के संबंधों में अनिश्चितता बनी रहेगी, जबकि रूस के साथ संबंध सुधार के प्रयास मध्य-पूर्व में शांति प्रक्रिया को प्रभावित कर सकते हैं। यह भी माना जा रहा है कि अमेरिका द्वारा अपने कूटनीतिक गठबंधनों को फिर से परिभाषित करने की प्रक्रिया में दक्षिण अमेरिका, अफ्रीका और एशिया के विभिन्न देशों के साथ नए संबंध विकसित हो सकते हैं। यह वैश्विक राजनीति में नए समीकरणों और चुनौतियों को जन्म दे सकता है, जो अमेरिका एवं उसके नए सहयोगियों के लिये लाभ का सौदा हो सकता है।
- ट्रंप के नेतृत्व में अमेरिका की आगे की राह
- ट्रंप के दूसरे कार्यकाल के दौरान अमेरिका की विदेश नीति में एक नया रुख देखने को मिलेगा, जहाँ उनका ध्यान वैश्विक शक्तियों और प्रमुख गठबंधनों से अधिक उन देशों पर होगा जो उनके विचारों के साथ मेल खाते हैं। यह एक युगांतकारी बदलाव का प्रतीक हो सकता है, जहाँ अमेरिका अपनी कूटनीतिक भूमिका को पुनर्परिभाषित कर सकता है। इसके साथ ही, ट्रंप के विशिष्ट व्यक्तित्व और कार्यशैली के कारण वैश्विक राजनीति एवं कूटनीति में अनिश्चितता भी बनी रहेगी।
अंत में, डोनाल्ड ट्रंप के वर्ष 2025 के शपथ ग्रहण समारोह के माध्यम से वैश्विक कूटनीति और अमेरिका की विदेश नीति में एक नए अध्याय की शुरुआत हुई है। इस समारोह में अंतर्राष्ट्रीय नेताओं की उपस्थिति और अनुपस्थिति, दोनों ही बातों ने अमेरिका के अंतर्राष्ट्रीय संबंधों तथा भविष्य की कूटनीतिक दिशा का एक संकेत दिया है। ट्रंप ने अपने दूसरे कार्यकाल के लिये विशेष रूप से उन देशों और नेताओं को प्राथमिकता दी, जो उनके विचारों एवं नीतियों के साथ मेल खाते हैं, जबकि पारंपरिक सहयोगियों की उपेक्षा की गई। यह एक स्पष्ट संकेत हो सकता है कि अमेरिका के ऐतिहासिक संबंधों और गठबंधनों में बदलाव आ सकता है। यह नई दिशा वैश्विक राजनीति में विभिन्न प्रतिक्रियाएँ उत्पन्न कर सकती है। यूरोपीय देशों और पारंपरिक पश्चिमी सहयोगियों के साथ तनाव बढ़ सकता है, जबकि दक्षिणपंथी तथा राष्ट्रवादी नेताओं के साथ सुदृढ़ संबंध अमेरिका की नई कूटनीतिक दिशा को प्रदर्शित करेंगे। चीन, रूस, भारत और अन्य प्रमुख देशों के साथ संबंधों में संभावित बदलाव वैश्विक व्यापार, सुरक्षा एवं कूटनीति को प्रभावित कर सकते हैं।
ट्रंप की विदेश नीति का यह नया संभावित दृष्टिकोण अमेरिका के लिये एक अवसर और चुनौती दोनों प्रस्तुत करता है। जहाँ एक ओर यह समान दृष्टिकोण रखने वाले देशों के साथ नए गठबंधन की संभावना के द्वार खोल सकता है, वहीं पारंपरिक वैश्विक साझेदारों से दूरी बनाने से अमेरिका के लिये वैश्विक शक्ति के रूप में अपनी स्थिति बनाए रखना चुनौतीपूर्ण सिद्ध हो सकता है। समग्र रूप से, शपथ ग्रहण समारोह में आमंत्रण की राजनीति वैश्विक कूटनीति के क्षेत्र में एक महत्त्वपूर्ण मोड़ का प्रतीक हो सकती है, जो आने वाले वर्षों में अंतर्राष्ट्रीय संबंधों को नए आयाम प्रदान कर सकती है।