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आख़िर कितना खतरनाक है ‘मंकीपॉक्स’?

कुछ समय पहले तक लाशों से पटे श्मशानों, सामने होते हुए भी अंतिम समय में अपनों को छू न पाने का गम, मीलों की दूरी पैदल चलकर अपने गांवों व घरों को लौटते प्रवासी मज़दूरों की छवि अभी धूमिल भी नहीं पड़ी थी कि साल 2022 में दबे पांव दस्तक देने वाली एक नई बीमारी अब सर उठा चुकी है। जी हां, आपने बिल्कुल सही पढ़ा है। इस बीमारी का नाम है मंकीपॉक्स। कोरोना के खौफ के साये में जी रही दुनिया अब इस नई बीमारी को लेकर भी बहुत डरी व सहमी हुई है। मध्य और पूर्वी अफ्रीका में इसके मामले तेजी से बढ़ रहे हैं जिसके चलते विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने मंकीपॉक्स को ग्लोबल हेल्थ इमरजेंसी यानी वैश्विक स्वास्थ्य आपातकाल घोषित कर दिया है। मंकीपॉक्स का ये नया वैरियंट पिछली बार से ज़्यादा खतरनाक है। वैसे तो यह वायरस जानवरों से इंसानों में फैलता है, लेकिन अब यह भय इसलिए पैदा कर रहा है क्योंकि ये इंसानों से इंसानों में भी फैल रहा है। विशेषज्ञों के मुताबिक, ये नया स्ट्रेन पहले से ज़्यादा आसानी से फैल सकता है। ऐसे में बच्चों और वयस्कों में अधिक मौतें होने की संभावना है। ऐसे में यह बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है कि इसकी चपेट में आने से बचने के लिये हम इसके लक्षणों व उस दौरान बरती जाने वाली सावधानियों समेत उससे जुड़ी सभी महत्वपूर्ण बातों से वाकिफ़ हों। तो चलिये आपको बताते हैं मंकीपॉक्स से संबंधित सभी ज़रूरी बातों के बारे में-

क्या है ये मंकीपॉक्स?

मंकीपॉक्स एक दुर्लभ संक्रामक रोग है जो मंकीपॉक्स वायरस (MPXV) के कारण फैलता है। ये वायरस स्मॉलपाक्स की फैमिली का ही एक हिस्सा है। यूं तो पहली बार इसकी पहचान 1958 में डेनमार्क के कोपेनहेगन में बंदरों में की गई थी, जिसके चलते इसका नाम मंकीपॉक्स पड़ा किंतु पिछले कुछ समय से यह वायरस इंसानों में भी फैलने के चलते सुर्खियों में है। मुख्य तौर पर इस वायरस के तीन स्ट्रेन फैल रहे हैं।

क्लेड 1: इस स्ट्रेन का प्रकोप सबसे अधिक मध्य अफ्रीका में देखने को मिला है। इसकी भयावहता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस स्ट्रेन से पीड़ित 10 फीसदी लोगों की मौत हुई है।

क्लेड II: ये क्लेड 1 की तुलना में कम हानिकारक है। क्योंकि इसमें मृत्युदर कम है। ये स्ट्रेन कई देशों में फैला है। इससे पीड़ित 99.9 फीसदी लोग बचाए जा सके जबकि 0.01 प्रतिशत लोगों की ही मौत हुई।

'क्लेड 1b: इस बार फैले मंकीपॉक्स का नया स्ट्रेन क्लेड 1b है जो अधिक घातक है। ये आसानी से फैल सकता है। आसानी से फैलने के कारण ही सरकारों व स्वास्थ्य संगठनों द्वारा सुरक्षा को लेकर सतर्कता बरती जा रही है।

मंकीपॉक्स के शुरुआती लक्षण कुछ इस प्रकार हैं:-

  • बुखार
  • सिरदर्द
  • पीठ दर्द
  • मांसपेशियों में दर्द
  • ठंड लगना
  • लिम्फ नोड्स में सूजन का आना

बुखार के साथ-साथ मरीज को खांसी और उल्टी भी हो सकती है। साथ ही, त्वचा पर फफोले जैसे दाने उभर आते हैं। आमतौर पर ये दाने चेहरे से शुरू होते हैं और पूरे शरीर में फैल जाते हैं। इन चकत्तों में खुजली या दर्द हो सकता है। ये संक्रमण आमतौर पर 14 से 21 दिनों के बीच रहता है और अपने आप ठीक हो जाता है। किंतु कमज़ोर प्रतिरक्षा प्रणाली वाले व्यक्ति में ये लक्षण लंबे समय तक रह सकते हैं। गंभीर मामलों में ये घाव पूरे शरीर (खासतौर पर आंख, मुंह और गुप्तांगों) पर हो जाते हैं। साथ ही, मलाशय में दर्दनाक सूजन (प्रोक्टाइटिस) या पेशाब करते समय (डिसुरिया) या निगलते समय दर्द या कठिनाई हो सकती है। आमतौर पर लोग इसे सीज़नल फ्लू समझकर नजरअंदाज कर देते हैं, जो कि समय के साथ और गंभीर हो सकता है।

कैसे फैलता है मंकीपॉक्स?

मंकीपॉक्स से बचाव हम तभी कर सकते हैं जब हमें यह पता हो कि आखिर हम किस प्रकार से मंकीपॉक्स की चपेट में आ सकते हैं। तो सबसे पहले आपको यह ध्यान रखना चाहिए कि यह एक संक्रामक रोग है, इसलिए संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने से बचें। ये रोग उन व्यक्तियों में होने का जोखिम अधिक होता है जिसके एक से अधिक सेक्सुअल पार्टनर हों। इसके अलावा, संक्रमित व्यक्ति के करीब से बात करना, उसके द्वारा उपयोग में लाई गई वस्तुओं को इस्तेमाल करने से भी यह संक्रमण फैलता है। साथ ही, इस वायरस से संक्रमित जानवर जैसे कि बंदर, चूहे और गिलहरी (कुतरने वाले जानवरों) के संपर्क में आने से भी यह हो सकता है। ये वायरस छिली हुई त्वचा, आंख, नाक या मुंह के जरिये शरीर में प्रवेश करता है।

बचाव के लिये क्या करें?

मंकीपॉक्स पर काबू पाने के लिये सबसे ज़रूरी है कि सावधानियां बरतने के साथ-साथ ज़ागरूकता बढ़ाई जाए। यदि आपके आस-पड़ोस में ये वायरस फैला हो तो साबुन से हाथ धोते रहें। संक्रमित व्यक्ति को तब तक क्वारंटीन कर देना चाहिए जब तक कि उसके शरीर में उभरी हुई सभी गांठें पूरी तरह से ठीक न हो जाएं और त्वचा की एक नई परत न बन जाए। पीड़ित को त्वचा पर उभरी फुंसियों व चकत्तों पर खुजली करने से बचना चाहिए। साथ ही, मंकीपॉक्स से संक्रमित लोगों को ठीक होने के 12 हफ्तों तक किसी भी तरह से शारीरिक संबंध बनाने से परहेज अथवा सुरक्षित तरीके की सलाह दी जाती है ताकि पीड़ित और उसका पार्टनर यौन संचरित रोग की चपेट में आने से बच सकें।

वहीं, स्वास्थ्य कर्मियों को एमपॉक्स से पीड़ित रोगियों की देखभाल करते समय स्वयं की सुरक्षा के लिये संक्रमण की रोकथाम और नियंत्रण उपायों का पालन करना चाहिए, जैसे कि उपयुक्त व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (पीपीई) (जैसे दस्ताने, गाउन, आंखों की सुरक्षा और श्वासयंत्र) पहनना और पीड़ित के घावों को सुरक्षित रूप से साफ करने के प्रोटोकॉल का पालन करना और सुई जैसी नुकीली वस्तुओं को संभालकर इस्तेमाल करना चाहिए।

इसके अलावा, चेचक के निदान के लिये विकसित जेनेओस (JYNNEOS) एकमात्र वैक्सीन है जिसे मंकीपॉक्स की रोकथाम के लिये एफडीए (FDA) द्वारा अनुमोदित किया गया है लेकिन अधिकतर देशों में अभी यह उपलब्ध नहीं है। जिसके चलते विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने दवा निर्माताओं से कहा है कि वैक्सीन के इमरजेंसी इस्तेमाल के लिये वो सभी आगे आएं और जिन देशों में ज़रूरत है किंतु औपचारिक रूप से मंजूरी अभी नहीं मिली है, वहां भी इस वैक्सीन को लेकर जाएं।

क्या कोरोना जितना खतरनाक है मंकीपॉक्स?

इतना सब कुछ जानने के बाद मन में यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि क्या मंकीपॉक्स का संक्रमण भी कोरोना की तरह ही भयावह है? तो जवाब सुनकर आपके दिल को राहत मिलेगी, इसका सीधा सा जवाब है- नहीं, डब्ल्यूएचओ के अनुसार यह बाकी दूसरे संक्रमणों जितना खतरनाक नहीं है, न ही ये कोरोना की तरह लोगों के बीच आसानी से फैलता है।

मंकीपॉक्स के लिये करवाएं ये जांच

जिस तरह से कोरोना की पुष्टि के लिये व्यक्ति के गले या नाक का स्वैब लिया जाता है, उसी तरह मंकीपॉक्स की पुष्टि के लिये पीड़ित के शरीर पर उभरे चकत्तों के अंदर भरे पानी की जांच की जाती है। इसे आरटीपीसीआर टेस्ट कहा जाता है।

किन देशों में हैं मंकीपॉक्स के सबसे अधिक मामले?

मंकीपॉक्स पश्चिमी और मध्य अफ्रीका में स्थानिक है, जिसके अधिकांश मामले कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य (डीआरसी) में पाए गए हैं। साल 2022 की तरह इस बार भी डीआर कांगो में मंकीपॉक्स के फैलने का कारण ज़्यादातर यौन संपर्क है। इन क्षेत्रों में हर साल हज़ारों मामले सामने आते हैं और सैकड़ों लोगों की जिंदगी खत्म हो जाती है। चिंता की बात यह है कि ये बीमारी अब वहीं तक सीमित न रहकर पड़ोसी देशों जैसे:- केन्या, रवांडा, युगांडा और बुरुंडी जैसे देशों में भी फैल गई है जहां ये आम तौर पर स्थानिक नहीं है। वहीं, बीते वर्ष भारत में भी इसके कुछ मामले सामने आ चुके हैं।

इन सबके बावजूद, राहत की बात यह है कि अगर समय पर मंकीपॉक्स की पहचान करके सावधानी बरती जाए; मरीज तला-भुना व गरिष्ठ भोजन की बजाय पौष्टिक खाना खाए, पर्याप्त मात्रा में पानी पिए और पर्याप्त नींद ले तो ज़्यादातर मामलों में उपचार की ज़रूरत ही नहीं पड़ती। सभी लक्षण अपने आप ही धीरे-धीरे खत्म हो जाते हैं। बहुत ज़रूरत हुई तो बुखार और दर्द के लिये दवाएं ली जा सकती हैं। हालांकि, इस बात को नकारा नहीं जा सकता है कि मंकीपॉक्स पर काबू पाने के लिये प्रयास किए जा रहे हैं लेकिन हमारे विशेषज्ञ आगाह करते हैं कि अगर फिर से टालमटोल वाला रवैया अपनाया गया तो दुनिया को आगे और भी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। कहा जाता है, “प्रिकॉशन इज़ बेटर दैन क्यॉर” यानी, “उपचार से सावधानी भली”। इसलिए ऐसे में समस्या के समाधान के लिये ज़रूरी है कि सभी देश एकजुट होकर प्रयास करें।

  शालिनी बाजपेयी  

(शालिनी बाजपेयी यूपी के रायबरेली जिले से हैं। इन्होंने IIMC, नई दिल्ली से हिंदी पत्रकारिता में पीजी डिप्लोमा करने के बाद जनसंचार एवं पत्रकारिता में एम.ए. किया। वर्तमान में ये हिंदी साहित्य की पढ़ाई के साथ-साथ विभिन्न मंचों के लिए लेखन कार्य कर रही हैं। )

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