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‘सुख कवच के रूप में नवीन FDI नीति’

विकासशील देशों में संसाधनों एवं तकनीक की कमी आर्थिक संवृद्धि के रास्ते में एक बड़ी बाधा है ऐसे में विदेशी निवेश के रूप में FDI, ऋण मुक्त वित्त प्रबंधन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसी को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार ने FDI को आकर्षित करने के लिये देश में विनियमनों को और सरल एवं उदार बनाया तथा वर्ष 2019 में कोयला खनन से जुड़ी गतिविधियों एवं अनुबंध विनिर्माण में स्वचालित मार्ग से शत-प्रतिशत FDI की अनुमति प्रदान की।

परंतु कुछ महीनों में नोवल कोरोना वायरस महामारी ने विश्व अर्थव्यवस्था में औद्योगिक इकाईयों की स्थिति डांवाडोल कर दी है और भारत की औद्योगिक इकाईयाँ भी इससे अछूती नहीं रहीं। औद्योगिक इकाईयों में विदेशी निवेश के पश्चात् इन पर निवेशकों का अधिग्रहण अथवा नियंत्रण मज़बूत होता है जिससे निपटने के लिये ‘उद्योग संवर्धन और आंतरिक व्यापार विभाग (DPIIT) ने FDI नियमों में कुछ परिवर्तन करते हुए भारतीय कंपनियों के अधिग्रहण अथवा उस पर नियंत्रण के किसी प्रयास को सीमित संदर्भों में अंकुश लगाने का प्रयास किया है।

नवीन FDI नीतियों में भारत के साथ स्थल सीमा साझा करने वाले देशों जैसे- चीन, पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, भूटान और अफगानिस्तान से होने वाले निवेश स्वचालित मार्ग से न होकर इन देश से होने वाले निवेश को भारत सरकार की सहमति के पश्चात् ही भारत में निवेश की अनुमति प्रदान होगी जिसका सीधा अर्थ है कि अब इन देशों से होने वाले निवेश की भारत सरकार निगरानी करेगी, हालाँकि आर्थिक विशेषज्ञों का मानना है कि FDI नियमों में बदलाव केवल चीन से होने वाले विदेशी निवेश की निगरानी के उद्देश्य से किया गया है परंतु भारत ने किसी प्रकार के विवाद से बचने के लिये इन नवीन बदलावों में अपने सभी पड़ोसी देशों को शामिल किया है।

हालाँकि चीन द्वारा FDI नीति में किये गए परिवर्तन को विभेदकारी बताते हुए इसे WTO के दिशा निर्देशों का उल्लंघन बताया गया है, साथ ही इन बदलावों पर पुनर्विचार करने का अनुरोध किया है। इस संदर्भ में चीन के अलावा भारत के किसी अन्य पड़ोसी ने अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है परंतु कहा जा रहा है कि चीन भारत के पड़ोसियों के मध्य आम सहमति बनाने का प्रयास कर रहा है जिससे कि वह इस मुद्दे को WTO के समक्ष प्रभावशाली ढंग से उठा सके।

हाल ही में Housing Development Finance Corp. Ltd (HDFC) ने यह जानकारी दी है कि पीपुल्स बैंक ऑफ चाइना (PPOC) ने HDFC में अपनी हिस्सेदारी को 0.8% से बढ़ाकर 0.1% कर लिया है। नोवल कोरोना वायरस महामारी के अधिक प्रभाव स्वरूप भारतीय बाजार में शीर्ष हिस्सेदारी रखने वाली अधिकांश कंपनियों के कुल पूँजी मूल्य में 20% से 40% तक की कमी आयी है ऐसे में चीन द्वारा किये जा रहे निवेश को भारत एक अवसरवादी कदम के रूप में देख रहा है। जिसने भारतीय कंपनियों पर चीन के नियंत्रण की आशंका को बढ़ा दिया है परिणाम स्वरूप हालिया नियमों में बदलाव किया गया है।

Think Tank Gate House द्वारा फरवरी 2020 में जारी रिपोर्ट के अनुसार, चीनी निवेशकों ने भारतीय र्स्टाटअप कंपनियों में लगभग 4 बिलियन डॉलर का निवेश किया है और पिछले कुछ दिनों में चीन आक्रमक रुख अपनाकर भारतीय कंपनियों में निवेश कर रहा है और अगर हम वर्तमान में कुछ भारतीय कंपनियों को देखें जिनमें चीनी निवेशकों द्वारा निवेश किया गया है तो उसके प्रमुख रूप से Paytm ओला, बिग वास्केट, Byjus, ड्रीम-11 और मेक माइ ट्रिप हैं। हालाँकि हालिया बदलावों से इन औद्योगिक इकाईयों में नवीन निवेश के लिये वर्तमान निवेशकों को भी अनुमति लेनी होगी। 

 यहाँ पर यह समझना आवश्यक हो जाता है कि अन्य यूरोपीय देशों अथवा अमेरिकी देशों से भी वर्तमान स्थिति का लाभ उठाकर भारतीय औद्योगिक इकाईयों का अधिग्रहण कर इन पर नियंत्रण स्थापित किया जा सकता है फिर केवल चीन को केंद्र में रखकर विदेशी निवेश नीति में परिवर्तन क्यों किया गया। 

समझने वाली बात है कि पिछले कुछ दशकों से चीन वैश्विक व्यापार में अधिशेष की  स्थिति में है जैसा कि वर्तमान में चीन दावा कर रहा है कि वह कोरोना महामारी से निपट चुका है और वहाँ पर आर्थिक गतिविधियाँ सामान्य हो चुकी है, उसके उलट पहले से ही आर्थिक संकट से जूझ रहे यूरोप और अमेरिका में वर्तमान संकट ने वहाँ की आर्थिक व्यवस्था पर गहरी चोट पहुँचाई है।

चीन के पास पर्याप्त पूंजी है वहीं वर्तमान आर्थिक संकट के परिणामस्वरूप भारतीय औद्योगिक इकाईयों का अवमूल्यन तेज़ी से हुआ है ऐसे में चीन निवेशक शीर्ष औद्योगिक इकाईयों एवं स्टार्ट अप में निवेश कर इन पर नियंत्रण स्थापित कर सकते है, साथ में भारतीय अर्थव्यवस्था पर भी चीन अपना प्रभाव बढ़ा सकता है। उदाहरण के रूप में हम कई अफ्रीकी देशों को देख सकते हैं जहाँ पर बेतहाशा निवेश किया है जिससे चीन न केवल वहाँ की अर्थव्यवस्था को ड्राइव कर रहा बल्कि वहाँ की विदेश नीति को भी नियंत्रित कर रहा है।

इथोपिया में चीन के विशाल निवेश के कारण ही WHO के इथोपियन डायरेक्टर ‘टेडरास’ पर कोरोना महामारी के संदर्भ में चीन का पक्ष लेने का आरोप लगा है।

ऐसा नहीं है की केवल भारत ने अपने आर्थिक हितों को सुरक्षित करने के लिये इस प्रकार के कदम उठाए है। आस्ट्रेलिया सहित कई यूरोपियन देशों द्वारा भी इसी प्रकार के कदम उठाए जा रहें हैं। जिससे गृह औद्योगिक इकाईयों के अधिग्रहण एवं नियंत्रण के किसी भी विदेशी प्रयासों को रोका जा सके। चूँकि वर्तमान में वैश्विक अर्थव्यवस्था एक अत्यंत गंभीर संकट से जूझ रही है ऐसे में विभिन्न देशों से वैश्विकरण के आदर्श मानकों के पालन की अपेक्षा करना बेमानी होगी और आपदा में अपवाद को चीन द्वारा भेदभाव पूर्ण कहना तार्किक प्रतीत नहीं होता।

[अरविंद सिंह]

(लेखक समसामयिक, अंतर्राष्ट्रीय संबंधों एवं आर्थिक विषयों पर स्वतंत्र लेखन के साथ आर्थिक इकाई के रूप में मानव व्यवहार के अध्ययन में गहरी रुचि रखते हैं।)

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