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दृष्टि आईएएस ब्लॉग

महिलाओं के लिए राष्ट्रीय नीति - 2016

कोई भी समाज अपने स्वरूप में विविधता लिए हुए होता है। समाज के वैविध्य से ही सामाजिक व्यवहार भी तय होता है। इन्हीं सामाजिक व्यवहारों व प्रतिक्रियाओं से फिर राजनीतिक व आर्थिक नीतियों की राह खुलती है। महिलाएँ आज के समाज में पुरुषों की तुलना में कमजोर कड़ी हैं। सदियों से चली आ रही पितृसत्तात्मक सोच इसका कारण है। इसलिए दुनिया भर के अलग-अलग समाजों में महिला उत्थान के लिए लगातार प्रयत्न होते रहे हैं। भारत भी इसी कड़ी में शामिल है जहाँ पर महिलाओं को समाज की मुख्यधारा में लाने के लिए लगातार प्रयत्न किया जाता है। भारत में इस हेतु समय-समय पर महिलाओं के लिए नीतियों को लाया गया और समय के अनुसार उसमें अपेक्षित बदलाव किए गए। महिलाओं के लिए अभी सबसे नई नीति राष्ट्रीय नीति 2016 में आई। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के सौजन्य से आई इस नीति को एक दूरदर्शी नीति के रूप में देखा जा रहा है। इसमें महिला विकास के लिए एक दृष्टि है, जिसे मिशन के रूप में लेकर कार्य करना है और दिए गए उद्देश्य को प्राप्त करना है।

महिला का सशक्त होना एक सामाजिक-राजनीतिक आदर्श भी है जिसे हमें प्राप्त करने के लिए प्रयास करना है और यह नीति उसका दस्तावेज है। भारत का संविधान समाज के वंचित-शोषित लोगों के हित के लिए सकारात्मक हस्तक्षेप की बात करता है। यह नीति इसी दिशा में बढ़ा हुआ एक कदम है।पिछले दशकों में महिला सशक्तिकरण को लेकर जागरूकता बढ़ी है। इस जागरूकता के बढ़ने के असल मायने तभी हैं जब समाज के हर वर्ग की महिलाएँ सशक्त होने की दिशा में आगे आएँ। महिला शिक्षा उसका एक बड़ा माध्यम है जिसपर अब समाज बड़ी ईमानदारी से प्रयत्न करता हुआ दिखाई दे रहा है। पिछली बार यह नीति 2001 में आई थी, 2016 में आई इस नीति का वृहद् उद्देश्य है। महिलाओं के लिए किन-किन क्षेत्रों में विशेष कार्य किया जाना चाहिए, इस पर बात किया गया है। इसे कई भागों में विभक्त कर स्पष्ट रूप से नीति में उल्लिखित किया गया है।

स्वास्थ्य

स्वास्थ्य महिलाओं के लिए बड़ा विषय रहा है और चुनौतीपूर्ण भी, इसलिए इस क्षेत्र पर सार्थक प्रयास की रूपरेखा खींची गयी है। पहली बात तो बहुत सी महिलाओं के लिए उनका स्वास्थ्य एक आवश्यक मुद्दा ही नहीं है। दूसरा, बहुत सी महिलाएँ अकुशल स्वास्थ्य कर्मियों, स्वास्थ्य के बारे में ग़लत व भ्रामक अवधारणाओं की वजह से, ख़ासकर ग्रामीण क्षेत्रों में उचित उपचार से दूर रह जाती हैं। इन सबके बारे में जागरूक करने के लिए आशा, आंगनबाड़ी व कुशल स्वास्थ्य कर्मियों की संख्या को बढ़ाए जाने पर जोर है। गर्भवती महिलाओं के लिए उचित देख रेख व पोषण का अभाव अभी भी चुनौती बना हुआ है। जहाँ आज भी देश के लगभग 80 करोड़ लोगों को मुफ़्त में राशन देने की स्थिति हो, वहाँ सभी गर्भवती महिलाएँ पोषण युक्त भोजन ग्रहण कर पाएँ, यह एक चुनौती तो है। एनीमिया महिलाओं में सामान्य समस्या है, कुपोषण तो मानो समस्या ही न हो, इन सभी पर इस नीति में विशेष ध्यान देने की बात है। राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य नीति 2014 के अनुसार घरेलू हिंसा व अन्य दुर्व्यवहार के कारण महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य पर ज़्यादा नकारात्मक प्रभाव पड़ता है जिसे प्राथमिक स्तर पर पहचान कर उसे दूर करने की कोशिश की जाएगी। महिलाओं के स्वास्थ्य को शारीरिक व मानसिक दोनों रूपों से दृढ़ करने की बात है। पारंपरिक ज्ञान जिनसे अभी तक महिला स्वास्थ्य को बेहतर करने में भूमिका निभाई है, उसे पिछड़े क्षेत्रों में बढ़ाए जाने पर ज़ोर दिया गया है। इन सब पर ध्यान देने के लिए आँकड़े भी चाहिए जो सरकारी व ग़ैर सरकारी संगठनों के माध्यम से सम्भव हो सकेगा, पर ध्यान दिया जाएगा। ज़िलेवार लैंगिक आधार पर पोषण व जन्म के समय वजन के आधार पर भी आँकड़े एकत्रित कर उस पर कार्य किए जाएँगे। जन वितरण प्रणाली के अंतर्गत राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम 2013 के तहत अच्छे पोषक तत्वों वाले खाद्य वितरण को सुनिश्चित किया जाएगा।

शिक्षा

महिला उत्थान हेतु उनकी शिक्षा को बेहतर करना बेहद आवश्यक है। इसकी शुरुआत होती है प्राथमिक शिक्षा से, आंगनबाड़ी केंद्रों पर स्कूल से पूर्व शिक्षा हेतु लड़कियों की संख्या बढ़ाए जाने पर बल दिया गया है। जहाँ माँ-बाप लड़कियों को पढ़ने नहीं भेजना चाहते, उस स्थिति में उन्हें समझा कर इसके लिए प्रोत्साहित किया जाएगा। पिछड़े और जनजातीय क्षेत्रों में भी ‘राइट टू एजुकेशन 2009’ को लागू करने की कोशिश की जाएगी। महिलाओं के लिए आज भी कई जगह शिक्षा को बहुत पारंपरिक रूप में इसलिए दिलाया जाता है ताकि विवाह के अवसर पर यह कहा जा सके कि लड़की इतनी शिक्षित है। इसलिए कौशल विकास, वोकेशनल कोर्स और अन्य शिक्षा पर माध्यमिक स्तर पर ही जोर दिया जाएगा। महिलाओं को केवल पारम्परिक विषय न पढ़ाकर उन्हें तकनीकी व अन्य रोज़गार परक विषय पढ़ाने के लिए आर्थिक आदि सहायता देकर प्रोत्साहित किया जाएगा। कई बार स्कूल और कॉलेज में महिलाओं का शोषण होता है, इसके बाद वे संस्थान छोड़ ही देती हैं।स्कूल और कॉलेज में शोषण को रोकने के लिए सहयोगात्मक रवैये को विकसित किया जाएगा, ताकि उनकी शिकायतों को तुरंत दूर किया जा सके। शैक्षणिक स्तर पर लैंगिक भेदभाव को दूर करने के सार्थक प्रयास किए जाने का प्रावधान है। प्रवासी परिवारों में काम करने वाले क्षेत्रों में, जैसे जहाँ बड़े पैमाने पर निर्माण कार्य हो रहा है या नमक बनाने वाले क्षेत्र अथवा चाय बागान आदि में अधिकांश महिलाएँ कार्यरत हैं लेकिन शिक्षा से नदारद हैं, उनके लिए भी शिक्षा का प्रावधान हो सके। पिछड़े क्षेत्रों में खासकर माध्यमिक शिक्षा के लिए विद्यालयों का दूर होना एक व्यावहारिक समस्या है।इसे दूर करने के लिए परिवहन में सुधार के प्रयास क्लस्टर बस आदि योजनाओं से अपेक्षित हैं।दूरस्थ शिक्षा का व ऑनलाइन मोड पर जोर है ताकि जिनकी पढ़ाई छूट गयी, उसे पुनः जोड़ा जा सके। सभी योजनाओं का नियमित रूप से लगातार मूल्यांकन किया जाएगा, ताकि नए प्रयासों के परिणाम को भी देखा व तुरंत सुधारा जा सके।

आर्थिक स्थिति

आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर न होने के कारण महिलाएँ लगातार गरीबी में रहने के लिए अभिशप्त हैं। उनका सकल घरेलू उत्पाद में योगदान बढ़ाने के लिए कार्य किया जाना है। शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि से सम्बंधित व गैर कृषि कार्यों में इनकी भागीदारी बढ़ाए जाने पर जोर है। महिलाएँ बहुत सा गैर वैतनिक कार्य करती हैं जिनकी कोई आर्थिक पहचान नहीं होती, इस कारण उन्हें अन्य कार्य जो आर्थिक लाभ के हो सकते थे, नहीं कर पातीं, इसलिए भी वे सशक्त नहीं, इस पर कार्य किया जाएगा।

कृषि क्षेत्र- कृषि क्षेत्र में महिला भूमिका बढ़ाई जाए ताकि उन्हें भी कृषकों के रूप में पहचान मिल सके। ‘कृषि सखी योजना’ का विस्तार पर ज़ोर ताकि उन्हें कृषि के विविध क्षेत्रों की ट्रेनिंग दी जा सके। महिलाएँ भी पारम्परिक रूप से बहुत कुछ जानती हैं जिसका उपयोग करना जरुरी है।

औद्योगिक क्षेत्र- अर्थव्यवस्था का द्वितीयक क्षेत्र जिस तरह बढ़ता है, उसमें महिलाओं की भागीदारी भी उसी तरह बढ़नी चाहिए। इस हेतु महिलाओं की कार्यों में भागीदारी, कार्य का प्रकार और उनका सकल घरेलू उत्पाद में योगदान को लगातार देखा जाएगा। इन क्षेत्रों में महिलाओं को समान अवसर मिल सके, यह सुनिश्चित किया जाएगा। पारम्परिक, नए और उभरते हुए क्षेत्रों में महिलाओं की ट्रेनिंग, कौशल विकास आदि को बढ़ावा दिया जाएगा। मातृत्व अवकाश, यौन शोषण, चाइल्ड केयर लीव आदि को और बेहतर तरीके से लागू किया जाएगा। इसी तरह सेवा क्षेत्र में भी ऐसे ही प्रावधान किए गए हैं।

प्रशासन और नीति निर्माण

विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका में महिलाओं की उपस्थिति बढ़ाए जाने, स्थानीय प्रशासन में 50 प्रतिशत व विधानसभा व लोकसभा में 33 प्रतिशत किए जाने की ओर जोर है। संसद में 33 प्रतिशत आरक्षण वाला विधेयक अब पारित हो ही गया है। सिविल सेवा, न्याय प्रणाली में इनकी भागीदारी को बढ़ाया जाए, ट्रेड यूनियन, राजनीतिक दलों, कारपोरेट क्षेत्रों में हिस्सेदारी का बढ़ना सुनिश्चित हो सके, इस दिशा में प्रयास किया जाएगा।

महिलाओं के विरुद्ध हिंसा

महिलाओं के खिलाफ सभी तरह के हिंसा को कम करने के लिए व उसके त्वरित निस्तारण के प्रयास को बढ़ावा दिया जाएगा। महिला भ्रूण हत्या एक सामाजिक कुरीति है जिसे जागरूकता के माध्यम से दूर किए जाने हेतु प्रयास कर लिंगानुपात को बेहतर करने पर जोर के साथ-साथ महिलाओं व बच्चों की ट्रैफिकिंग रोकने पर बल है। दिव्यांग महिलाओं के शोषण को रोकने हेतु प्रावधान हैं। महिलाओं के साथ दहेज को लेकर तमाम समस्याएं होती रहती हैं, इसलिए दहेज निषेध अधिनियम 1961 कार्यरत है। इसके अतिरिक्त घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 उन्हें शारीरिक, यौन शोषण, भावनात्मक व आर्थिक हिंसा से संरक्षण की बात करता है। नई नीति कुल मिलाकर उन्हें और सशक्त ही करेगी।

इसी तरह अन्य क्षेत्रों पर भी ध्यान दिया गया है। स्वच्छ जल व शौचालय के उपयोग की महत्ता, जल हेतु अकेले महिला निर्भरता न हो, इसके लिए अन्य उपायों पर जोर दिया गया है। मीडिया क्षेत्र में महिलाओं की उपस्थिति बढ़ सके इस हेतु प्रयास करने की बात है चाहे वह प्रिंट, इलेक्ट्रोनिक या सोशल मीडिया हो। खेलों में उनकी उपस्थिति सुदृढ़ हुई है, उसे और बढ़ाया जाएगा। महिला की सामाजिक सुरक्षा पर जोर खासकर उन महिलाओं को जो पिछड़ी, प्रवासी या सिंगल विमन हैं। जीवन बीमा, पेंशन, यात्रा में छूट, सब्सिडी, वर्किंग हॉस्टल, शेल्टर आदि बनाकर इसे मजबूत किया जाएगा। महिलाओं के लिए बेहतर परिवहन सुविधा के विस्तार पर जोर है ताकि आवाजाही सुलभ हो सके।

इन सभी को क्रियान्वित करने के लिए केंद्र व राज्य स्तर पर एक वर्ष, 1-5 वर्ष व 5 वर्ष से अधिक की कार्य योजना 3 क्षेत्रों में विभाजित है। इसके लिए कार्य के लिए क्षेत्रों को देखा जाना, परिणामों की चर्चा, उत्तरदायी संस्था, संसाधनों की पहचान आदि पर ध्यान दिया जाएगा। ये सभी कार्य इंटर मिनिस्टेरियल कमिटी (अंतर मंत्रालय समिति) की मदद से होगा जिसके प्रमुख महिला एवं बाल विकास मंत्री होंगे, ऐसे ही यह कार्य राज्य स्तर पर किया जाएगा जिसके प्रमुख मुख्यमंत्री होंगे। क्षेत्र के अनुसार इनकी सह समितियाँ बनायी जाएँगी। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय नोडल एजेंसी के रूप में कार्य करेगा। महिला सम्बन्धी संस्थाओं को और मजबूत किया जाएगा। राष्ट्रीय महिला आयोग व राज्य महिला आयोग को समय-समय पर पुनर्निरीक्षित किया जाएगा। मंत्रालय, प्रशासन, निजी क्षेत्रों में प्रशासनिक ढाँचे को पुनर्परीक्षित जाएगा। सिविल सोसाइटी व अन्य सहायता समूहों के माध्यम से महिलाओं के लिए प्रावधानों का क्रियान्वयन सुनिश्चित होगा। ट्रेनिंग, जागरूकता व अभियान के माध्यम से महिलाओं के लिए मानसिकता में बदलाव कार्यक्रम की मदद से सामाजिक संस्थाएँ जैसे परिवार या समुदाय को पितृसत्ता जैसी अवधारणाओं से दूर करने के प्रयत्न होंगे। महिला संगठनों को मजबूत करने के भी प्रयास होंगे।

कुल मिलाकर देखें तो इस नीति से 15 वर्ष पूर्व आई नीति से यह कई मायनों में अलग है। नीति बना देना अपेक्षाकृत आसान कार्य है। नीतियाँ पहले भी बनीं लेकिन उनके उचित क्रियान्वयन न होने से अभी भी भारत में महिलाओं की स्थिति बहुत बेहतर हो गयी है, ऐसा नहीं कहा जा सकता है। यह नीति भविष्य के भारत और उसमें महिलाओं की बेहतर स्थिति के लिए बड़ी उम्मीद जगाती है, बस जरूरत है तो ऊँचे प्रशासनिक ढाँचे से लेकर निचले स्तर के व्यावहारिक जगत में सुदूर खड़ी स्त्री तक ये नीतियाँ क्रियान्वित होकर पहुँचे तभी शायद विकसित भारत की दिशा में यह नीति एक बेहतर कदम सिद्ध हो सकेगी।

  श्रुति गौतम  

श्रुति गौतम दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग की पीएच.डी में शोधछात्रा रही हैं। इन्हें विश्वविद्यालय में नाटक, निबंध व साहित्यिक प्रतियोगिताओं के लिए पुरस्कृत किया जा चुका है। इन्होंने जामिया मिल्लिया इस्लामिया से ‘डिप्लोमा इन हिंदी पत्रकारिता’ प्राप्त कर प्रिंट मीडिया क्षेत्र में जनसत्ता व हरिभूमि में कार्य किया है। ये दैनिक जागरण, जनसत्ता, डेली न्यूज़ तथा ई-मैगजीन्स में लगातार लेखन के अलावा प्रकाशन समूहों एवं ई-पोर्टल्स पर सक्रिय रही हैं। साहित्य में रुचि के साथ फिल्म जगत से भी ख़ास जुड़ाव रहा है। ये 2018 से दिल्ली के इंद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय में हिंदी के असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर कार्यरत हैं।


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