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राष्ट्रीय शिक्षा दिवस: अबुल कलाम आज़ाद का स्मृति पर्व

“स्कूल प्रयोगशालाएं हैं जो देश के भावी नागरिक तैयार करती हैं।”

उपरोक्त दूरदर्शी कथन भारत के प्रथम शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आज़ाद का है। आज़ाद, स्वतंत्र भारत के सिर्फ प्रथम शिक्षा मंत्री ही नहीं थे। बल्कि वे भारत में शिक्षा की बुनियाद रखने वाली उच्च कोटि की संस्थाओं के ‛शिल्पकार’ भी थे। आज़ाद के व्यक्तित्व के कई पक्ष हैं जिनमें असीमित विस्तार है। आज़ाद भारतीय स्वाधीनता संग्राम के महान स्वतंत्रता सेनानी के साथ-साथ उच्च कोटि के विद्वान, साहित्यकार और पत्रकार भी रहे हैं।

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राष्ट्रीय शिक्षा दिवस

11 नवंबर का दिन विशेष है। शिक्षा के क्षेत्र में योगदान को देखते हुए प्रतिवर्ष मौलाना अबुल कलाम आज़ाद के जन्मदिन (11 नवंबर) की स्मृति में ही 'राष्ट्रीय शिक्षा दिवस' मनाया जाता है। वैधानिक रूप से 'राष्ट्रीय शिक्षा दिवस' का प्रारंभ 11 नवंबर, 2008 से किया गया। प्रत्येक वर्ष शिक्षा मंत्रालय की ओर से राष्ट्रीय शिक्षा दिवस की थीम तय की जाती है। इस वर्ष (2022) की थीम है -“चेंजिंग कोर्स, ट्रांसफॉर्मिंग एजुकेशन” है। जो कि बदलते समकालीन परिवेश के अनुसार शिक्षा व्यवस्था को अद्यतन करने से संबंधित है।

मौलाना अबुल कलाम आज़ाद के व्यक्तित्व और कृतित्व को याद करने के साथ-साथ इस दिन संस्थानों में भारतीय शिक्षा व्यवस्था के ऐतिहासिक विकास और वर्तमान में शिक्षा व्यवस्था के मूल प्रश्नों पर चर्चा की जाती है। शिक्षाविद, शिक्षक और छात्र साक्षरता के महत्त्व तथा शिक्षा के विविध पहलुओं के प्रति अपने विचार प्रकट करते हैं। संगोष्ठियों, वर्कशॉप, पुस्तक प्रदर्शनी और व्याख्यान का आयोजन किया जाता है। स्कूलों में निबंध, क्विज, भाषण, पोस्टर मेकिंग जैसी प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाता है।

यहाँ पर यह भी ध्यान देने योग्य तथ्य है कि विश्व शांति और विकास के लिये शिक्षा की भूमिका को बढ़ावा देने के मकसद से प्रत्येक वर्ष 24 जनवरी को अंतर्राष्ट्रीय शिक्षा दिवस (International Day of Education) के रूप में भी मनाया जाता है। 3 दिसंबर 2018 को संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) द्वारा एक प्रस्ताव पारित कर 24 जनवरी को “अंतर्राष्ट्रीय शिक्षा दिवस घोषित” किया गया।

अबुल कलाम आज़ाद: व्यक्तित्व और कृतित्व

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राष्ट्रीय शिक्षा दिवस मौलाना अबुल कलाम आज़ाद को याद करने का दिन है क्योंकि भारत में शिक्षा के विकास में मौलाना आज़ाद की उल्लेखनीय भूमिका रही है।

अबुल कलाम आज़ाद का जन्म 11 नवंबर, 1888 को मक्का शहर (सऊदी अरब) में हुआ। उनका वास्तविक नाम मुहिउद्दीन अहमद था। अपने पिता से आरंभिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद आज़ाद मिश्र के प्रसिद्ध शिक्षा संस्थान जामिया अज़हर चले गए जहाँ उन्होंने प्राच्य शिक्षा प्राप्त की। आज़ाद को उर्दू, फ़ारसी, हिंदी, अरबी तथा अंग्रेज़ी भाषाओं में महारथ हासिल हुई।

आज़ाद अरब से प्रवास करके हिंदुस्तान आए तो कलकत्ता को अपनी कर्मभूमि बनाया। यहीं से उन्होंने अपनी पत्रकारिता और राजनीतिक जीवन का आरंभ किया। आज़ाद ने 1905 में बंगाल विभाजन का विरोध किया और ऑल इंडिया मुस्लिम लीग की अलगाववादी विचारधारा को खारिज़ कर दिया। कलकत्ता से 1912 में ‘अलहिलाल’ नाम से एक साप्ताहिक निकाला। यह पहला सचित्र राजनैतिक साप्ताहिक था और इसकी मुद्रित प्रतियों की संख्या लगभग 52 हज़ार थी। इस साप्ताहिक में अंग्रेज़ों की नीतियों के विरुद्ध लेख प्रकाशित होते थे, इसलिये अंग्रेज़ी सरकार ने 1914 में इस साप्ताहिक पर प्रतिबंध लगा दिया। इसके बाद मौलाना ने ‘अलबलाग़’ नाम से दूसरा अख़बार प्रकाशित किया। यह अख़बार भी आज़ाद की अंग्रेज़ विरुद्ध नीति पर अग्रसर रहा।

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मौलाना अबुल कलाम आज़ाद मियाँ इफ्तिखारुद्दीन, पंडित जवाहरलाल नेहरू और अब्दुल गफ्फार खान के साथ

मौलाना आज़ाद ने अख़बारों के द्वारा राष्ट्रीय, स्वदेशीय भावनाओं को जागृत करने की कोशिश की। मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ने ‘पैग़ाम’ और ‘लिसान-उल-सिद्क़’ जैसी पत्र-पत्रिकाएँ भी प्रकाशित की और विभिन्न अख़बारों से भी संबद्ध रहे जिनमें ‘वकील’ और ‘अमृतसर’ प्रमुख हैं।

मौलाना अबुल कलाम आज़ाद राजनीतिक क्षेत्र में सक्रिय रहे। उन्होंने ‘असहयोग आंदोलन’, ‘ख़िलाफ़त आंदोलन’ और ‘भारत छोड़ो’ में भी हिस्सा लिया। गाँधी जी के अहिंसा के दर्शन से वह बहुत प्रभावित थे। गांधी के चिंतन और सिद्धांतों के प्रसार के लिये उन्होंने पूरे देश का भ्रमण किया। महात्मा गांधी के विचारों से प्रभावित होकर भारत के स्वाधीनता संग्राम में शामिल होने वाले मौलाना अबुल कलाम आज़ाद भारत के विभाजन के घोर विरोधी और हिन्दू-मुस्लिम एकता के सबसे बड़े पैरोकारों में से थे।

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मौलाना आज़ाद एक महत्त्वपूर्ण राष्ट्रीय नेता के रूप में उभरे। 1923 में वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सबसे कम उम्र के अध्यक्ष बने। 1940 और 1945 के बीच भी वे कांग्रेस के अध्यक्ष रहे। स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान उन्होंने जेल की यातनाएं भी सही। एक सहयात्री के रूप में स्वाधीनता संग्राम में उनकी धर्मपत्नी ज़ुलेख़ा बेगम का योगदान भी अविस्मरणीय है।

आज़ाद ने देश की शिक्षा प्रणाली को आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई और उच्च शिक्षा और वैज्ञानिक अनुसंधान की नींव रखी। मौलाना आज़ाद 15 अगस्त 1947 से 2 फरवरी 1958 तक भारत के शिक्षा मंत्री रहे। आज़ाद उर्दू के बेहद काबिल साहित्यकार और पत्रकार थे, लेकिन शिक्षामंत्री बनने के बाद उन्होंने उर्दू की जगह अंग्रेज़ी को तरजीह दी, ताकि भारत पश्चिम से पीछे न रह जाये। ‛इंडिया विंस फ्रीडम’(आज़ादी की कहानी) मौलाना आज़ाद की एक महत्त्वपूर्ण कृति है। जिसमें उन्होंने बेहद बेबाकी से स्वाधीनता आंदोलन के दौरान घटित हो रही घटनाओं का उल्लेख किया है।

मौलाना आज़ाद की अगुवाई में 1950 के शुरुआती दशक में 'संगीत नाटक अकादमी'(1953), 'साहित्य अकादमी'(1954) और 'ललित कला अकादमी' (1954) का गठन हुआ। इससे पहले वह 1950 में ही 'भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद' का गठन कर चुके थे। आज़ाद भारत के 'केंद्रीय शिक्षा बोर्ड' के चेयरमैन थे, जिसका काम केंद्र और राज्य दोनों स्तरों पर शिक्षा का प्रसार करना था। उन्होंने इस बात का सख्ती से समर्थन किया कि भारत में धर्म, जाति और लिंग से ऊपर उठ कर 14 साल तक सभी बच्चों को प्राथमिक शिक्षा दी जानी चाहिये।

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आज़ाद एक दूरदर्शी विद्वान थे, उन्होंने 1950 के दशक में ही सूचना और तकनीक के क्षेत्र में शिक्षा पर ध्यान देना शुरू कर दिया। उन्होंने देश में आधुनिक शिक्षा पद्धति के लिये उल्लेखनीय कदम उठाए। शिक्षामंत्री के तौर पर उनके कार्यकाल में ही भारत में तकनीकी के महत्त्वपूर्ण शिक्षण संस्थान 'इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी' का गठन किया गया। अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (एआईसीटीई) और सेकेंडरी एजुकेशन कमीशन भी उन्हीं के कार्यकाल में स्थापित किया गया। जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय की स्थापना में भी उनका अहम योगदान रहा। मौलाना आज़ाद महिलाओं और वंचित वर्ग की शिक्षा के ख़ास हिमायती थे। उनकी पहल पर ही भारत में 1956 में 'विश्वविद्यालय अनुदान आयोग’ की स्थापना की गई।

2 फ़रवरी, 1958 को राष्ट्रीय एकता के पैगम्बर और आज़ादी के इस महानायक ने दिल्ली में अंतिम सांस ली। स्वाधीनता आंदोलन और सार्वजनिक जीवन में अविस्मरणीय योगदान के लिये 1992 में उन्हें ‘भारत रत्न’(मरणोपरांत) से सम्मानित किया गया।

  विमल कुमार  

विमल कुमार, राजनीति विज्ञान के असिस्टेंट प्रोफेसर हैं। अध्ययन-अध्यापन के साथ विमल विभिन्न अखबारों और पत्रिकाओं में समसामयिक सामाजिक और राजनीतिक विषयों पर स्वतंत्र लेखन और व्याख्यान के लिए चर्चित हैं। इनकी अभिरुचियाँ पढ़ना, लिखना और यात्राएं करना है।

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