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दृष्टि आईएएस ब्लॉग

मीडिया और समाज

वर्तमान वैश्वीकरण के युग में मीडिया में जहाँ असंख्य विमर्शों को जगह मिलती है वहीं मीडिया की भूमिका भी विमर्श का एक विषय है। आज मीडिया एक बड़े विश्वव्यापी उद्योग का रूप ले रहा है। अगर कोई उद्योग विश्वव्यापी होता है तो निश्चित ही उसके सरोकार और हित भी विश्वव्यापी हो जाते हैं। इसमें लगी उपग्रह, उच्च प्रौद्योगिकी इतनी महंगी है कि उस पर लगने वाली पूंजी की कल्पना सामान्य आदमी के लिए संभव नहीं है। इसलिए मात्र अभिव्यक्ति का माध्यम आदि एकआयामी बातों से इसे समझा नहीं जा सकता। दूसरे अर्थों में आज मीडिया पर बिना उसकी सामाजिक पृष्ठभूमि के बात संभव नहीं है। आज मीडिया मात्र सूचना देने और घटनाओं का विश्लेषण ही नहीं बल्कि समझ और रुचि को दिशा देने और बदलने के गंभीर काम में भी लगा है। यह मात्र राजनीतिक विचारधाराओं के प्रचार तक सीमित नहीं रह गया है। संस्कृतियों और सभ्यताओं को नए अर्थ और दिशा देने, उनके मूल्यों और परंपराओं को बदलकर उन पर नए या कहना चाहिए नवसाम्राज्यवादी मूल्यों को थोपने के सर्वाधिक सब्वर्सिव (विनाशक) काम में लगा है। माध्यमों के इस बढ़ते महत्व के कारण ही आज समाज विज्ञान, राजनीति विज्ञान तथा मनोविज्ञान में इसे अलग से समझने और व्याख्यायित करने की कोशिशें हो रही हैं।

मीडिया नाम की बहुरंगी छतरी के नीचे संचार के तमाम मीडिया रूपों को साथ रखते आने का रिवाज है। भौतिक अवस्थाओं द्वारा जनित आवश्यकताओं व चुनौतियों को वांछित परिणाम देने के लिए मनुष्य संप्रेषण के उपयुक्त माध्यमों का अविष्कार करता आया है। यही वजह है कि कृषि युगीन समाज और औद्योगिक समाज के संचार माध्यमों में फर्क है। कृषि समाजों की पूंजी निर्माण स्थिति, उत्पादन पद्धति और गति के सांचे में कठपुतली नृत्य, रासलीला-रामलीला नौटंकी जैसे माध्यम समाहित हैं। वहीं तेज रफ्तारी व हाईटेक समाजों का प्रतिनिधित्व प्रेस, रेडियो, टेलीविजन, फिल्म, कंप्यूटर, इंटरनेट जैसे जनसंचार माध्यम करते हैं। हम सरलता से जटिलता की ओर बढ़े हैं और चौपाल से मल्टीप्लेक्स के युग में पहुंचे हैं।

प्रेस से लेकर जनसंचार के डिजिटल औजारों तक के उत्पादन और इस्तेमाल की प्रकृति में भारी अंतर है। यह अंतर हमारे मन पर उनसे पड़ने वाले असर से तो होता ही है माध्यमों पर कब्जे या नियंत्रण से भी फर्क पड़ता है। इससे लोगों की विचारधारा भी प्रभावित होती है। इसलिए विचारकों का मानना है कि मीडिया को आलोचक और सच्चे मार्गदर्शक की भूमिका में भी उपस्थित होना चाहिये जिससे समाज और सरकार सही राह पर चले। मीडिया की महत्ता को स्वीकार करते हुए ही इसे “चतुर्थ स्तंभ” कहा जाता है। छापाखाना पूँजीवादी तकनीक थी जिसमें आम जन का हस्तक्षेप नहीं के बराबर था। सरकारी सेंसरशिप, मनोरंजन कर और अनुदान वाले हिस्से को छोड़ दें तो सिनेमा आमतौर पर निजी व्यवसायिक माध्यम रहा और एफएम से पहले तक रेडियो अंग्रेजों की फिर देसी लोकतांत्रिक सरकार की निगरानी में वयस्क हुआ। जबकि टेलीविजन उपग्रह और उदारवादी दौर में निजी व्यवसाय के लिए खुला। इंटरनेट अब तक अपेक्षाकृत आजाद है यहाँ लिखने और बोलने की पूरी छूट है।

सभी प्रकार के मीडिया की समाज निर्माण में अलग तरह की भूमिका होती है। समाज की अनेक समस्याएं हैं जैसे- बच्चों, बुजुर्गों, महिलाओं की समस्याएं, युवाओं की दिशाहीनता की समस्या आदि। जिनमें मीडिया महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। मीडिया के कई प्रकार हैं जैसे पारंपरिक मीडिया, सिनेमा, समाचार पत्र, रेडियो, टेलीविजन, न्यू मीडिया। पारम्परिक मीडिया का अस्तित्व बचा हुआ है बहुत सी ऐसी जगहों पर इसका प्रयोग होता है। नुक्कड़ नाटक, कठपुतली नृत्य, मुनादी का प्रयोग आम जनमानस में जागरुकता फैलाने के लिए आज भी होता है। दिल्ली की बड़ी-बड़ी कॉलोनियों में आज भी पुलिस लाउडस्पीकर या मुनादि के माध्यम से लोगों को जरूरी सूचना देती है। दिल्ली के एमसीडी चुनाव में भी लोग ढोल जैसे पारम्परिक माध्यम के साथ प्रचार करते नजर आये।

समाचार पत्र का कार्य सामाजिक विकास में सक्रिय भूमिका निभाना है। यह लोगों को सूचना, शिक्षा, मनोरंजन करने के साथ साक्षर बनाता है। समाचार-पत्र निस्संदेह संवेदनाओं एवं सूचनाओं के आदान-प्रदान का एक प्रमुख स्त्रोत है। तथ्य पूर्ण खबरों के नाते समाचार-पत्र की अपनी एक अलग विशेषता है। अखबार पर प्रकाशित खबरों पर लोग आंख बंद करके भरोसा करते हैं। वे मानते हैं कि अखबार में प्रकाशित हुई हर खबर सच है। इसलिए यहाँ प्रिंट मीडियाकर्मी की जिम्मेदारी महत्वपूर्ण हो जाती है।

देश में आज भी बहुत सारे लोग रेडियो सुनते हैं, भले ही माध्यम इंटरनेट क्यों न हो गया हो। रेडियो की अपनी अलग खासियत है। वैसे ट्रांजिस्टर के रूप में यह सस्ता है, इसका इस्तेमाल करना बेहद आसान भी है। यह युवा, बूढ़े, गरीब और अमीर सभी को एक साथ लाता है। टेलीफोनी कार्यक्रमों में हर कोई अपनी राय साझा कर सकता है। रेडियो पर बच्चों के लिए अलग कार्यक्रम, महिलाओं, बुजुर्गों, किसानों, युवाओं के लिए अलग-अलग कार्यक्रम प्रसारित होता रहता है। इसके माध्यम से समुदायों और व्यक्तियों के बीच समझ और सहिष्णुता पैदा होती है।

टेलीविज़न माध्यम का प्रारंभ से ही समाज पर कई तरह का प्रभाव रहा, भारत में जब टेलीविजन आया तो इसे "इडियट बॉक्स" कहा गया। लोगों का मानना था कि यह दर्शकों को आलसी बना देगा। टेलीविजन महिलाओं, बच्चों, युवाओं आदि के लिए अलग-अलग तरह के मनोरंजन, खेल, समाचार, जागरूकता भरे कार्यक्रम प्रस्तुत करता है। अभी हाल ही में उत्तर प्रदेश के लखनऊ में भूकंप के दौरान गिरी बिल्डिंग में एक छोटे बच्चे ने खुद की जान बचाई बाद में उसने बताया कि टेलीविजन पर 'डोरेमोन कार्टून' देख कर उसने यह सीखा था। न्यू मीडिया जादुई भरा अविष्कार है न्यू मीडिया पर अखबार, रेडियो, टेलीविजन आदि का इस्तेमाल कर सकते हैं।

न्यू मीडिया के अंतर्गत ही सोशल मीडिया है जिसमें व्हाट्सएप, फेसबुक, टि्वटर, इंस्टाग्राम आदि जैसे रियल टाइम मैसेजिंग के एप्लीकेशन हैं जो इंटरएक्टिव हैं जहाँ देश-विदेश के किसी भी कोने से तत्काल संवाद स्थापित किया जा सकता है। न्यू मीडिया ने समाज में काफी बदलाव किया है इसके जरिये डेटा सेकंड्स में ट्रांसफर होता है। किसी भी सूचना को दुनिया के किसी भी कोने से आने में बेहद कम समय लगता है।

सभी माध्यमों की तरह इसके भी नकारात्मक पहलू जरूर हैं लेकिन अगर सकारात्मक पक्षों पर ध्यान दें तो इसने दुनिया को काफी करीब ला दिया है। वर्ष 1950 में मार्शल मैक्लुहान ने अपनी पुस्तक "मीडियम इज द मैसेज" में कहा था आने वाले समय में संचार तकनीकों के कारण दुनिया बहुत ही छोटी हो जाएगी और इसे "ग्लोबल विलेज" की संकल्पना दी जाएगी। कोरोना महामारी के दौरान न्यू मीडिया की भूमिका सभी क्षेत्रों में महत्वपूर्ण रही चाहे वह स्वास्थ्य हो, शिक्षा, कृषि, व्यापार, रोजगार आदि सभी न्यू मीडिया पर शिफ्ट हो गए। वर्तमान समय में सोशल मीडिया के सामने कई चुनौतियां भी हैं। खासकर उसकी विश्वसनीयता को लेकर चुनौती। सोशल मीडिया पर फॉरवर्ड हो रही खबरों के आधार पर लोग माइंड सेट कर लेते हैं और उसे सच मानकर व्यवहार करते हैं। जिससे कभी-कभी बड़ी घटनाएं देखने को मिलती है। अभी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और चैट जीपीटी में हो रहे विकास से सूचना और समाज के क्षेत्र में क्रांति आने की पूरी संभावना है। यह भी अनुमान लगाया जा रहा है कि चैट जीपीटी गूगल की जगह ले लेगा, आगे आने वाला समय और भी प्रगतिशील और चुनौती भरा होने वाला है। जिसका समाज पर वृहद प्रभाव पड़ेगा।

  सचिन समर  

सचिन समर ने बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी वाराणसी से 'हिंदी पत्रकारिता' में स्नातकोत्तर किया है। वर्तमान में भारतीय जन संचार संस्थान नई दिल्ली में 'विज्ञापन एवं जनसंपर्क' पाठ्यक्रम में अध्ययनरत है साथ ही स्वतंत्र पत्रकारिता एवं लेखन कर रहे हैं।

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