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भारत की प्रमुख संधियाँ एवं समझौते

पाकिस्तान की एक महिला पत्रकार ने अटल बिहारी वाजपेई जी से कहा, “आप कुंवारे हैं, मैं आपसे शादी करने के लिए तैयार हूं। लेकिन मुझे मुंह दिखाई में कश्मीर चाहिए।” इस पर अटल जी बोले, “मैं भी शादी के लिए तैयार लेकिन मुझे दहेज में पूरा पाकिस्तान चाहिए…..!” इस प्रस्ताव को बहुत ही चुटकुले अंदाज में हमारे तत्कालीन प्रधानमंत्री ने प्रतिउत्तर दिया। खैर, सहयोग को बढ़ावा देने और कभी-कभी विवादों को सुलझाने हेतु दो या दो से अधिक समूह, राष्ट्र ,राज्य अथवा देश के मध्य संधि या समझौता किये जाते रहे हैं। चाहे कोई भी देश कितना भी संपन्न क्यों ना हो, वैश्वीक परिवेश में उन्हें अपने राष्ट्रीय हितों के लिए संधियां एवं समझौतों का मार्ग चुनना पडता है। कभी-कभी आपसी मतभेद इस हद तक बढ़ने लगते हैं, जिससे किसी राष्ट्र विशेष पर सुरक्षा की स्थिति उत्पन्न हो जाती है वह राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, सामरिक मूल्यों को नुकसान पहुँचने लगते हैं। इस अवस्था में विवाद को सुलझाने के लिए संधि अथवा समझौते आवश्यक हो जाते हैं। जो वैश्विक शांति और भाईचारे को बनाए रखने के लिए आवश्यक होते हैं।   

भारत-पाकिस्तान 

भारत और पाकिस्तान के बीच संबंध ऐतिहासिक रूप से जटिल और संवेदनशील रहे हैं। विभाजन के बाद से ही दोनों देशों के बीच विभिन्न मुद्दों पर विवाद होते रहे हैं। इन संबंधों को प्रबंधित करने और शांति स्थापित करने के उद्देश्य से कई प्रमुख संधियाँ और समझौते किए गए हैं। सिंधु जल संधि (1960) के तहत सिंधु नदी प्रणाली की छह प्रमुख नदियों का जल बंटवारा किया गया। इसमें तीन नदियों (सिंधु, झेलम, चेनाब) का पानी पाकिस्तान को और अन्य तीन नदियों (रावी, ब्यास, सतलुज) का पानी भारत को दिया गया। 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद ताशकंद समझौता हुआ। इसमें दोनों देशों ने युद्ध विराम के बाद अपने कब्जे वाले क्षेत्रों को वापस करने और द्विपक्षीय संबंधों को सामान्य करने का संकल्प लिया। 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद शिमला समझौता हुआ। इसमें दोनों देशों ने विवादों को द्विपक्षीय वार्ता के माध्यम से हल करने और नियंत्रण रेखा (LoC) का सम्मान करने का वादा किया। कारगिल युद्ध के बाद संघर्ष विराम 1999 में दोनों देशों ने नियंत्रण रेखा पर युद्ध विराम का पालन करने का निर्णय लिया और संघर्ष को समाप्त किया। परंतु आज भी सीमा विवाद के चलते इन दोनों देशों के मध्य तनाव की स्थिति बनी रहती है। इन संधियों के माध्यम से शांति और वार्ता की संभावनाएं बनी हुई हैं।

बांग्लादेश-भारत 

भारत और बांग्लादेश के बीच द्विपक्षीय संबंध हमेशा से ही महत्वपूर्ण रहे हैं। इन संबंधों को मजबूत बनाने और विभिन्न मुद्दों को सुलझाने के लिए कई महत्वपूर्ण संधियाँ और समझौते हुए हैं। ये संधियाँ दोनों देशों के आपसी सहयोग और विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। इनमें 1971 का मैत्री सहयोग और शांति संधि एक महत्वपूर्ण संधि है। इस संधि के अनुसार दोनों देशों द्वारा एक-दूसरे की संप्रभुता और अखंडता का सम्मान किया जाएगा साथ ही बाह्य आक्रमण से एक दूसरे के प्रति सहयोगात्मक रवैया अपनाया जाएगा। गंगाजल बँटवारा संधि,1966 दोनों देशों के मध्य जल संसाधनों के न्यायसंगत और सतत उपयोग को सुनिश्चित करती है, जिससे दोनों देशों के बीच जल विवाद सुलझाने में मदद मिली। इससे किसानों और स्थानीय समुदायों को स्थिर जल आपूर्ति सुनिश्चित हुई। चटगांव हिल ट्रैक्ट्स समझौता (1997) से क्षेत्रीय स्थिरता और सुरक्षा में सुधार हुआ, जिससे भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र में भी शांति स्थापित करने में मदद मिली। यह समझौता आदिवासी समुदायों के अधिकारों और विकास को प्रोत्साहित करता है। वहीं भूमि सीमा समझौता 2015 के तहत भारत और बांग्लादेश ने अपनी-अपनी सीमाओं में स्थित एनक्लेव्स का आदान-प्रदान किया। बांग्लादेश-भारत पावर ट्रेडिंग समझौता (2010) से बांग्लादेश की ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने में मदद मिली, जिससे देश के आर्थिक विकास को बढ़ावा मिला। यह समझौता ऊर्जा क्षेत्र में सहयोग का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। भारत और बांग्लादेश के मध्य सांस्कृतिक और ऐतिहासिक परिपेक्ष में भारतीयों से बहुत ही समानता और गहरे भावनात्मक जुड़ाव हैं। व्यापारिक लिहाज से बात करें तो भारत अधिशेष की स्थिति में है।  

भारत-भूटान 

भारत और भूटान के मध्य संबंध आज से ही नहीं वरन नेहरू जी के कार्यकाल से ही घनिष्ट और प्रकार रहे हैं, फिर भी रिश्ते में गर्मजोशी बने रहे उसके लिए भारत का नेबरहुड फर्स्ट पॉलिसी के तहत सहयोगात्मक संबंध है। 1949 के भारत-भूटान मित्रता संधि के तहत दोनों देशों ने एक-दूसरे की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करने का संकल्प लिया। इसके साथ ही, भूटान ने अपनी विदेशी संबंधों को भारत की सलाह के तहत संचालित करने पर सहमति दी। इससे दोनों देशों के बीच आपसी सहयोग और समर्थन को बढ़ावा मिला और क्षेत्रीय स्थिरता को सुनिश्चित किया गया। 1949 की संधि ने भूटान को अधिक स्वतंत्रता दी और द्विपक्षीय संबंधों को अधिक समानता के आधार पर पुनः स्थापित किया। इससे दोनों देशों के बीच राजनीतिक और आर्थिक सहयोगों को मजबूती मिली। भारत और भूटान ने कई जलविद्युत परियोजनाओं पर समझौते किए हैं, जिनमें चुक्खा, खोलोंगछु जलविद्युत परियोजना और मांगदेछू जैसी परियोजनाएँ प्रमुख हैं। भूटान अपने जलविद्युत उत्पादन को भारत को निर्यात करता है, जिससे उसकी आय में भी वृद्धि होती है। इससे दोनों देशों के बीच ऊर्जा सहयोग और आर्थिक संबंध भी मजबूत हुए हैं।

चीन-भारत 

सीमा विवाद के चलते भारत और चीन के मध्य स्थिति और रिश्ते नाजुक रहते हैं। फिर भी दोनों देशों के बीच कई प्रमुख संधियाँ और समझौते हुए हैं, जिन्होंने द्विपक्षीय संबंधों को प्रबंधित करने और विभिन्न मुद्दों को सुलझाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। ऐतिहासिक पंचशील समझौते (1954) के तहत भारत और चीन ने एक-दूसरे की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करने, आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने, और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व को बनाए रखने का संकल्प लिया है। इस समझौते ने भारत और चीन के बीच शांति और आपसी सम्मान के आधार पर संबंधों की नींव रखी। हालांकि, बाद में 1962 के युद्ध ने इस समझौते की प्रभावशीलता पर प्रश्नचिह्न लगा दिया। भारत-चीन शांति और ट्रैंक्विलिटी संधि (1993) ने सीमा पर स्थिरता बनाए रखने में मदद की और दोनों देशों के बीच सैन्य संपर्क को बढ़ावा दिया। इससे सीमा पर तनाव को कम करने और विवादों को बातचीत के माध्यम से सुलझाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाया गया। भारत-चीन सीमा रक्षा सहयोग समझौते (2013) ने सीमा पर तनाव को कम करने और विवादों को शांतिपूर्ण ढंग से सुलझाने में मदद की। इससे दोनों देशों के बीच सैन्य और राजनयिक संबंधों में सुधार हुआ। हालांकि इन तमाम संधियों के बावजूद गलवान घाटी की घटना संघर्ष समझौते के उल्लंघन का ताजा उदाहरण है।  

भारत-रूस 

भारत और रूस के बीच लंबे समय से घनिष्ठ और मैत्रीपूर्ण संबंध रहे हैं। इन संबंधों को मजबूत बनाने के क्रम में कई महत्वपूर्ण संधियाँ और समझौते हुए हैं। 1971 का भारत-सोवियत मित्रता और सहयोग संधि, जिसमें दोनों देशों ने एक-दूसरे के साथ रक्षा, विज्ञान, प्रौद्योगिकी और आर्थिक क्षेत्रों में सहयोग का संकल्प लिया था। यह संधि 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान भारत के लिए महत्वपूर्ण साबित हुई। इसी तरह से भारत-रूस रणनीतिक साझेदारी समझौते (2000) ने 21वीं सदी में भारत-रूस संबंधों को नई ऊंचाई पर पहुंचाया। इससे दोनों देशों के बीच रक्षा और प्रौद्योगिकी सहयोग को बढ़ावा मिला और आर्थिक संबंध मजबूत हुए। और रक्षा, व्यापार, विज्ञान, प्रौद्योगिकी और अंतरिक्ष के क्षेत्रों में सहयोग को बढ़ावा दिया। सैन्य और तकनीकी सहयोग पर समझौते ने भारत की रक्षा क्षमताओं को मजबूत किया और दोनों देशों के बीच रक्षा सहयोग को बढ़ावा दिया। इससे भारत की आत्मनिर्भरता और सुरक्षा में सुधार हुआ। ये न केवल रक्षा और आर्थिक सहयोग को प्रोत्साहित करते हैं, बल्कि सांस्कृतिक और वैज्ञानिक क्षेत्रों में भी संबंधों को सुदृढ़ करते हैं। दोनों देशों के बीच विश्वास और भाईचारे को देखते हुए कहा जा सकता है कि भविष्य में भी इन संधियों के माध्यम से दोनों देशों के बीच संबंध और प्रगाढ़ होते रहेंगे, जिससे क्षेत्रीय और वैश्विक स्थिरता को प्रोत्साहन मिलेगा। 9 जुलाई 2024 को भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को रूस के सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'ऑर्डर ऑफ सेंट एंड्रयू द एपोस्टल द फर्स्ट-कॉल' से सम्मानित किया गया। 

अमेरिका-भारत 

दोनों देशों के मध्य समय के साथ-साथ संबंधों में निकटता आई है। यूँ कहना गलत नहीं होगा कि दोनों देशों के मध्य रिश्ते में सुधार और विश्वास बढ़ रहा है। 2005 के भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु समझौते ने भारत के साथ असैन्य परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में सहयोग करने का निर्णय लिया। यह समझौता भारत को परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (NSG) के दिशानिर्देशों से छूट प्रदान करता है। इससे भारत को ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने और पर्यावरणीय दृष्टि से स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों को अपनाने में मदद मिली। रक्षा सहयोग और व्यापार समझौते (2016) ने रक्षा उपकरणों और प्रौद्योगिकी के आदान-प्रदान को भी बढ़ावा दिया। इसमें लॉजिस्टिक्स एक्सचेंज मेमोरैंडम ऑफ एग्रीमेंट (LEMOA) और अन्य रक्षा सहयोग समझौते शामिल हैं। इससे क्षेत्रीय सुरक्षा और स्थिरता को भी बढ़ावा मिला। भारत और अमेरिका ने व्यापार और निवेश के विभिन्न क्षेत्रों में कई समझौते किए हैं, जिनमें से यूएस-इंडिया ट्रेड पॉलिसी फोरम (TPF) और यूएस-इंडिया CEO फोरम प्रमुख हैं। इसने दोनों देशों के बीच व्यापार और निवेश के अवसरों को बढ़ावा दिया और आर्थिक सहयोग को मजबूत किया। इससे दोनों देशों की अर्थव्यवस्थाओं को लाभ हुआ और द्विपक्षीय व्यापारिक संबंधों में भी वृद्धि हुई। ये न केवल रक्षा और आर्थिक सहयोग को प्रोत्साहित करते हैं, बल्कि विज्ञान, प्रौद्योगिकी, और सांस्कृतिक क्षेत्रों में भी संबंधों को सुदृढ़ करते हैं।  

भारत-यूरोपीय संघ 

भारत और यूरोपीय संघ (EU) के बीच संबंध व्यापार, विज्ञान, प्रौद्योगिकी, और सांस्कृतिक क्षेत्रों में विविध और व्यापक हैं। दोनों के बीच कई महत्वपूर्ण संधियाँ और समझौते हुए हैं, जिन्होंने द्विपक्षीय सहयोग को मजबूत किया है। 1994 के सहयोग समझौते ने द्विपक्षीय आर्थिक संबंधो को प्रोत्साहित किया और विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग के लिए एक ढांचा तैयार किया। इससे व्यापार और निवेश में वृद्धि हुई और दोनों पक्षों के बीच आपसी समझ बढ़ी। भारत-यूरोपीय संघ रणनीतिक साझेदारी (2004) व्यापार और निवेश समझौते (FTA) के तहत दोनों पक्षों के मध्य व्यापार और निवेश के अवसरों को बढ़ाना है। भारत और यूरोपीय संघ ने जलवायु परिवर्तन से निपटने और सतत विकास के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए कई समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं। इन समझौतों ने पर्यावरण संरक्षण, नवीकरणीय ऊर्जा के विकास, और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने में सहयोग को बढ़ावा दिया। इससे वैश्विक पर्यावरणीय लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद मिली। ये न केवल आर्थिक और व्यापारिक सहयोग को प्रोत्साहित करते हैं, बल्कि विज्ञान, प्रौद्योगिकी, और पर्यावरणीय क्षेत्रों में भी संबंधों को सुदृढ़ करते हैं। भविष्य में भी इन संधियों के माध्यम से दोनों पक्षों के बीच संबंध और प्रगाढ़ होते रहेंगे, जिससे वैश्विक शांति, स्थिरता, और विकास को प्रोत्साहन मिलेगा। 21वीं सदी के इस परिवेश में ,भारत के अन्य राष्ट्रों और समूहों के साथ रिश्ते काफी हद तक मैत्रीपूर्ण हैं। भारत का खाड़ी देशों के साथ भी रिश्ता मधुर है। भारत की छविअपनी पड़ोसी देशों के साथ ही नहीं अपितु  विभिन्न देशों के साथ बहुत ही सहयोगपूर्ण और विकासात्मक है।

  गरिमा दुबे  

(गरिमा दुबे उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले से हैं। इन्होंने दीनदयाल उपाध्याय विश्वविद्यालय, गोरखपुर से गणित और रसायन विज्ञान में जबकि राजर्षि टंडन मुक्त विश्वविद्यालय प्रयागराज से 'लाइब्रेरी एंड इन्फॉर्मेशन साइंस' में स्नातक किया है। पढ़ाई के दौरान ही गरिमा ने कॉलेज के 'नव चेतना' नामक पत्रिका में लेखन कार्य शुरू कर दिया। वर्तमान में ये प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रही हैं।)


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