लॉस एंजिल्स में वनाग्नि की घटना: जलवायु परिवर्तन और बढ़ते वनाग्नि संकट का एक गंभीर संकेत
- 22 Jan, 2025
अमेरिका के कैलिफोर्निया के जंगल और वनाग्नि, एक दूसरे से अपरिचित नहीं हैं। इस क्षेत्र के लोग और पारिस्थितिकी तंत्र प्राय: इस समस्या का सामना करता आया है। किंतु इस वर्ष के प्रथम सप्ताह के आस-पास यहाँ की वनाग्नि ने इतना प्रचंड रूप धारण कर लिया कि इसने विशेषज्ञों को इसकी उत्पत्ति एवं नियंत्रण पर नए सिरे से विचार करने पर विवश कर दिया। इस बार की यह घटना, इतिहास के पन्नों में सर्वाधिक विनाशकारी दावानल के रूप में उल्लेखित की गई है। इस भयावह आपदा का तात्कालिक कारण लंबे समय तक चली शुष्क हवा के अत्यधिक बहाव और मानव-प्रेरित कारकों का संयोजन माना गया है, वहीं इसके मूल कारण के रूप में जलवायु परिवर्तन की समस्या की एक बार फिर से पहचान हुई है।
इस घटना का तथ्यसार यह है कि लॉस एंजिल्स और आस-पास के क्षेत्रों में वनाग्नि की घटनाएँ जनवरी महीने की शुरुआत में सामने आईं एवं पैलिसेड्स तथा ईटन क्षेत्र में आग की घटनाएँ दर्ज की जाने लगीं। यहाँ पर आग की लपटें इतनी विकराल और भयावह थीं कि इन पर नियंत्रण पाने में सर्वशक्तिशाली देश अमेरिका को भी अत्यधिक प्रयास करने पड़े। इसके बावजूद जनवरी के मध्य तक, तेज़ हवाओं और शुष्क परिस्थितियों ने हालात को और भी बदतर बना दिया। ये शुष्क परिस्थितियाँ इतनी अत्प्रत्याशित थीं कि इससे पहले कभी भी इनका अनुभव नहीं किया गया था। यह आग इसलिये भी असाधारण मानी गई क्योंकि आमतौर पर जनवरी माह यहाँ वनाग्नि वाला मौसम नहीं होता। दावा किया गया कि जलवायु परिवर्तन, उच्च तापमान और शुष्क मौसम ने ऐसे हालात उत्पन्न किये तथा तेज़ हवाओं ने इनमें घी डालने का काम किया। ऐसा नहीं था कि वनाग्नि पर निगरानी रखने वाले विशेषज्ञ इससे अनभिज्ञ थे। उन्होंने वनाग्नि के बारे में चेतावनी भरी भविष्यवाणियाँ की थीं। उनका कहना था कि लॉस एंजिल्स में बारिश के मौसम की शुष्क शुरुआत इन स्थितियों को और खराब कर सकती है। इस क्षेत्र में सामान्य बारिश का केवल दो प्रतिशत ही रिकार्ड किया गया, जिससे इस क्षेत्र में नमी का स्तर काफी कम हो गया। परिणामस्वरूप यह क्षेत्र वनाग्नि के लिये और अधिक संवेदनशील हो गया। इसके अलावा ‘सांताएना’ नामक पवनों की गति पहले से कहीं अधिक रही थी जिसके कारण अग्नि की चिंगारियों ने अत्प्रत्याशित तौर पर लंबी दूरी तय की तथा नए क्षेत्रों में आग के लिये मार्ग प्रशस्त कर दिया।
अमेरिका के ‘नेशनल ओसियानिक एंड एटमास्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन’ के अनुसार पिछले दो दशकों में पश्चिमी अमेरिका में जलवायु परिवर्तन के कारकों की अनदेखी की गई है और इसने जो परिस्थितियाँ उत्पन्न की हैं, वे ही इस अग्निकांड के लिये मुख्यत: उत्तरदायी हैं। वहाँ प्राय: मई-जून से लेकर अक्तूबर के मध्य, वनाग्नि की कुछ घटनाएँ प्रत्येल वर्ष होती रही हैं, लेकिन यह अनुभव किया गया है कि इस आग की समयावधि बढ़ रही है। कैलिफोर्निया की यह वनाग्नि वास्तव में विभिन्न प्राकृतिक और मानवीय कारकों का एक जटिल अंतर्संबंध का परिणाम है। इनमें प्रमुख तथ्य यह है कि जलवायु परिवर्तन, ऐसी घटनाओं की आवृत्ति और तीव्रता दोनों को बढ़ाता रहता है किंतु तात्कालिक तौर पर दो प्रमुख कारकों को इस विनाशकारी आग के लिये उत्तररदायी के रूप में देखा गया है। ये हैं - ईंधन और हवाएँ। ईंधन का आशय घास, सूखी झाड़ियों और पेड़-पौधों से है तथा इनकी पहचान आग जलाने वाली सामग्री के रूप में की गई है। हाल के वर्षों में, गहन सूखे की स्थिति ने यहाँ की वनस्पति को सुखा दिया, जिससे यह क्षेत्र वनाग्नि की लपटों के लिये उपयुक्त ईंधन बन कर उभरा। दूसरा महत्त्वपूर्ण कारक वायु का प्रभाव है, विशेष रूप से दक्षिणी कैलिफोर्निया की सांताएना हवाएँ, जो कि रेगिस्तान से शुष्कता एवं उष्णता लाती हैं, जिससे आग का फैलाव और विस्तृत हो जाता है।
वैज्ञानिकों ने बताया है कि अमेरिका ही नहीं अपितु दुनिया के कई हिस्सों में "आग के मौसम" वाले दिनों की संख्या में वृद्धि हो रही है। जलवायु परिवर्तन के कारण इससे संबंधित स्थितियाँ और भी गंभीर हो रही है तथा दुनिया के कई हिस्सों में आग के मौसम की अवधि बढ़ रही है। विशेषज्ञों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन वैश्विक मौसम के स्वरूप को बदल रहा है, जिससे इस तरह की चरम घटनाएँ अधिक संभावित हो गई हैं। विगत नवंबर में संपन्न कोप-29 सम्मेलन में विश्व मौसम विज्ञान संगठन ने जलवायु की वर्तमान स्थिति पर गंभीर चिंता व्यक्त की और एक बार फिर जलवायु परिवर्तन की गति को लेकर रेड अलर्ट जारी किया। इसमें कहा गया है कि औसत वैश्विक तापमान को कम करने की कार्ययोजना पर अमल में कई देशों की रुचि कम दिख रही है जबकि यह दुनिया भर के समुदायों एवं अर्थव्यवस्थाओं को नुकसान पहुँचा रहा है।
वैज्ञानिकों के एक नए अध्ययन में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन ने 20वीं सदी के मध्य से लेकर अब तक वैश्विक स्तर पर जटिल स्थितियों को और अधिक बढ़ा दिया है। इन शोधकर्त्ताओं का कहना है कि तापमान में प्रत्येक डिग्री की वृद्धि के साथ वायुमंडल सात प्रतिशत से अधिक पानी को वाष्पित, अवशोषित और मुक्त करने में सक्षम हो जाता है। यह बारिश के समय बाढ़ लाता है और शुष्क परिस्थितियों में यह पौधों तथा मृदा से अतिरिक्त नमी को सोख लेता है। हमारे देश के उत्तराखंड, हिमाचल और जम्मू-कश्मीर के जंगलों की आग के पीछे भी कुछ ऐसे ही कारण हैं। इन क्षेत्रों के जंगलों में चीड़ के पेड़ की संख्या बहुत अधिक है। जब चीड़ की सूखी पत्तियों के ढेर ज्यादा लग जाते हैं, तो जंगलों में जरा-सी चिंगारी विशाल रूप ले लेती है। हाल ही में उत्तराखंड के जंगलों में लगी आग के पीछे यही तथ्य सामने आया है कि वहाँ हर साल लाखों टन चीड़ की सूखी पत्तियाँ जमा हो जाती हैं। सूखे मौसम में चीड़ की पत्तियों के ढेर किसी कारण आग पकड़ते हैं, तो यह वनाग्नि प्राय: अनियंत्रित हो जाती है।
उत्तराखंड की तरह अपने विशिष्ट कारणों से भी कैलिफोर्निया में लंबे समय तक वनाग्नि की स्थितियाँ बन रही हैं इसलिये इन तथ्यों से स्पष्ट होता है कि हमें जलवायु के अनुकूल वाली रणनीतियों को विकसित करना होगा। साधारण तौर पर जंगल में आग लगना पारिस्थितिकी तंत्र का एक स्वाभाविक हिस्सा माना जाता है, लेकिन जलवायु परिवर्तन के कारण हाल के वर्षों में वनाग्नि की तीव्रता और आवृत्ति में वृद्धि हुई है। इसलिये हमें तत्काल प्रतिक्रिया देने वाले प्रयासों के अलावा, कई दीर्घकालिक अनुकूलन रणनीतियों को लागू करने की आवश्यकता है। जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करना हमारा प्राथमिक उद्देश्य होना चाहिये ताकि ऐसी स्थितियों को रोका जा सके, जो वनाग्नि को इतना भयावह बनाती हैं। सूखे और बढ़ते तापमान के मूल कारणों को संबोधित करने से आग की तीव्रता तथा आवृत्ति को कम करने में मदद मिल सकती है। कार्बन न्यूनीकरण और जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करना सर्वोपरि है। महत्त्वाकांक्षी कार्बन कटौती लक्ष्य को अपनाने के साथ जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये देशों को परिवहन, कृषि और विनिर्माण सहित उद्योगों में उत्सर्जन को कम करने के प्रयासों में तेज़ी लानी चाहिये। जो क्षेत्र जलवायु परिवर्तन के विनाशकारी प्रभावों से जूझ रहे हैं, वहाँ खासकर वनाग्नि के बढ़ते खतरे से लोगों और पर्यावरण दोनों की रक्षा के लिये अनुकूलन तथा शमन के दृष्टिकोण को विकसित करना होगा।
वनाग्नि बुझाने के लिये विशेषज्ञ तीन प्रत्यक्ष तरीके सुझाते हैं। पहला, मशीनों से जंगलों की नियमित सफाई की जाए और सूखी पत्तियों एवं झाड़ियों को समय रहते हटा दिया जाए। किंतु यह उपाय अत्यंत कठिन एवं खर्चीला है। दूसरा विकल्प यह सुझाया जाता है कि मानव आबादी के नज़दीकी जंगलों में नियंत्रित तरीके से आग लगाई जाए, ताकि शुष्क मौसम में वहाँ स्वतः कोई आग न लगे। अमेरिका और दक्षिण अफ्रीका समेत कई देशों में ऐसा किया जा रहा है, लेकिन इसके लिये भी काफी संसाधन चाहियें। तीसरा यह है कि पर्वतीय क्षेत्रों में पलायन रोक कर जंगलों पर आश्रित व्यवस्था को बढ़ावा दिया जाए। इससे जंगलों की साफ-सफाई होगी और आग के खतरे भी कम होंगे।
किंतु केवल प्रत्यक्ष उपाय पर्याप्त नहीं हैं। इन उपायों के साथ दीर्घावधि के लिये कई तरह के अप्रत्यक्ष उपाय भी अपनाने होंगे। जैसे हमें अपने शहरी नियोजन और अग्निरोधी अवसंरचना पर विशेष ध्यान देना होगा। लॉस एंजिल्स और उत्तराखंड के जंगलों में आग की आशंका को कम करने के लिये शहरी नियोजन एवं भवन निर्माण संबंधी संहिताओं का पुनर्मूल्यांकन करने की आवश्यकता है। घरों में अग्निरोधी सामग्रियों का उपयोग और संपत्तियों के आसपास बचाव योग्य स्थानों का निर्माण आग के प्रसार को कम कर सकता है। इसके अलावा, स्थानीय प्रशासनिक तंत्र को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि आग के प्रसार को धीमा करने के लिये वनस्पतियों में उचित अंतराल बनाए रखा जाए।
हमारे देश में तथा विश्व स्तर पर भी विभागों, आयोगों और निगमों को पुनर्वनीकरण तथा वनाग्नि प्रबंधन को लेकर नए उपाय करने होंगे। जान-माल के नुकसान को कम करने एवं वनाग्नि के जोखिम से निपटने के लिये समुचित प्रबंधन होना आवश्यक है। इसमें नियंत्रित जलावन और मृत या अत्यधिक सूखी वनस्पति को हटाना शामिल है। उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में समुदायों को वनाग्नि की रोकथाम और आपातकालीन प्रतिक्रिया प्रोटोकॉल के बारे में हमें लोगों को शिक्षित करने की आवश्यकता है। यह स्पष्ट है कि जंगल की आग में पर्याप्त मानवीय गतिविधियाँ शामिल हैं, इसलिये आकस्मिक आग को रोकना महत्त्वपूर्ण है। अग्नि सुरक्षा शिक्षा, बेहतर अग्नि निगरानी और उच्च जोखिम वाली स्थितियों के समय कतिपय प्रतिबंध जैसी पहलों का विस्तार किया जाना चाहिये। विशेषकर सूखा-ग्रस्त क्षेत्रों में, आग प्रतिरोधी प्रजातियों को लगाने पर केंद्रित पुनर्वनीकरण कार्यक्रम आग के प्रसार को रोकने के लिये एक बफर जोन प्रदान कर सकते हैं।
हमें नवीकरणीय ऊर्जा को अपनाने में तीव्रता लानी होगी। विशेष रूप से बिजली की लाइनों की पहचान वनाग्नि के लिये एक केंद्र बिंदु के रूप में भी देखी गई हैं। बिजली उपकरणों से आग लगने के जोखिम को कम करने के लिये, ऊर्जा ग्रिड को अधिक लचीले, नवीकरणीय स्रोतों, जैसे कि सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा में बदलने के लिये पर्याप्त निवेश करना होगा। इसके अलावा, उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में बिजली लाइनों को भूमिगत करने से जंगल में आग लगने से बचा जा सकता है। इसके अतिरिक्त उन्नत सूखा प्रबंधन के उपायों को अपनाना होगा। जल संरक्षण और सूखा प्रबंधन के लिये हमें अधिक प्रभावी नीतियों को अपनाने की आवश्यकता है। जल भंडारण क्षमता का विस्तार, सिंचाई पद्धतियों में सुधार और अलवणीकरण प्रौद्योगिकियों में निवेश से सूखे के दौरान जल आपूर्ति पर पड़ने वाले दबाव को कम करने में मदद मिल सकती है।
वृहद स्तर पर हमें व्यापक अग्नि प्रबंधन की आवश्यकता है। अग्नि जोखिम को कम करने के लिये तत्काल अग्निशमन प्रयासों को प्रभावी करने की आवश्यकता है। इस कार्य में ईंधन प्रबंधन, शहरी नियोजन, सामुदायिक तैयारी और दीर्घकालिक रणनीतियाँ भविष्य की आग के प्रभाव को कम करने के लिये आवश्यक हैं। इसके अलावा स्वच्छ, अधिक लचीले ऊर्जा अवसंरचना की ओर स्थानांतरण, भविष्य में आग लगने की घटनाओं को रोकने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा, साथ ही देशों के समग्र कार्बन उत्सर्जन को भी कम करेगा।