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दृष्टि आईएएस ब्लॉग

लाल बहादुर शास्त्री जी - एक अनोखे व्यक्तित्व

सरलता और सादगी की मिसाल भारत के दूसरे प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री जी का जन्म 2 अक्टूबर, 1904 को उत्तर प्रदेश के मुग़लसराय के रामनगर में एक साधारण परिवार में हुआ। वे इतने मेधावी थे कि मात्र दस साल की उम्र में उन्होंने छठी कक्षा उत्तीर्ण कर ली थी। आगे की पढ़ाई के लिए वे बनारस आ गए। विद्यार्थी जीवन में ही राष्ट्रभक्तों और शहीदों के बारे में पढ़ते हुए इन्होंने स्वतंत्रता संग्राम के विषय में विस्तार से जाना। इन्ही दिनों जलियांवाला बाग की घटना के पश्चात ‘छात्र आन्दोलन’ ने गति पकड़ ली और शास्त्री जी इसका हिस्सा बन गए।

शास्त्री जी महात्मा गांधी से अत्यधिक प्रभावित थे। गांधी जी के नेतृत्व में चल रहे असहयोग आंदोलन में शमिल होने के लिए देशवासियों से आह्वान किया, इस समय इनकी आयु मात्र 16 थी। उन्होंने गांधी जी के आह्वान पर अपनी पढ़ाई छोड़ देने का निर्णय किया और आंदोलन में हिस्सा लिया। जिसके चलते उन्हें 1921 में जेल भी जाना पड़ा। देश को स्वतंत्र कराने के क्रम में उन्हें अपने जीवन के 7 वर्ष कारावास (जेल) में गुज़ारने पड़े। आज़ादी के इन संघर्षों ने इन्हें पूर्णत: परिपक्व बना दिया।

शास्त्री जी ने राजनीति में प्रेवश के माध्यम से देश की दिशा एवं दशा को बदलने का प्रयास किया। वस्तुतः वर्ष 1937 में प्रांतीय विधानसभाओं के चुनावों में उन्होंने उत्तर प्रदेश विधानसभा की सदस्यता प्राप्त की। इसी क्रम में आजादी के पश्चात सत्ता में आई कांग्रेस ने राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम के नेता लाल बहादुर शास्त्री का महत्व समझ लिया। परिणामस्वरूप वर्ष 1947 में उन्हें उत्तर प्रदेश मंत्रिमंडल में मंत्री के रूप में शमिल कर लिया गया। वर्ष 1951 में वह पार्टी महासचिव बनें। तद्पश्चात शास्त्री जी को रेलवे एवं यातायात के केंद्रीय मंत्री के रूप में चुना गया। किंतु, इसी समय वर्ष 1955 में दक्षिण भारत के ‘अरियल’ के समीप रेल दुर्घटना में कई लोग हताहत हुए जिसके लिए स्वयंम को जिम्मेदार मानते हुए उन्होंने रेल मंत्री के पद से इस्तीफ़ा दे दिया। रेल दुर्घटना पर लंबी बहस का जवाब देते हुए उन्होंने कहा-

“शायद मेरे लंबाई में छोटे एवं विनम्र होने के कारण लोगों को लगता है कि मैं बहुत दृढ़ नहीं हो पा रहा हूँ यद्यपि शारीरिक रूप से मैं मजबूत नहीं हूँ लेकिन मुझे लगता है कि मैं आतंरिक रूप से इतना कमजोर भी नहीं हूँ।”

गौरतलब हैं कि 1957 में वह इलाहाबाद संसदीय क्षेत्र से चुने गए। उन्हें पुनः यातायात विभाग दिया गया और साथ ही साथ उद्योग और वाणिज्य विभागों का मंत्री भी बनाया गया। वर्ष 1961 में उन्हें भारत के गृहमंत्री के रूप में और ‘भ्रष्टाचार निरोधक समिति’ के लिए नियुक्त किया गया। इसी समय भारत-चीन युद्ध से सकते में आये नेहरू जी का साथ देने के लिए शास्त्री जी को बिना विभाग के मंत्री के रूप में मंत्रिमंडल में शामिल कर लिया गया। यहाँ शास्त्री जी ने भारत की जनता से अपील करते हुए कहा -

“ जब हमारी स्वतंत्रता और अखंडता खतरे में हो तो पूरी शक्ति से उस चुनौती का मुकाबला करना ही “एकमात्र कर्तव्य” होता है। हमें एकजुट होकर किसी भी प्रकार के अपेक्षित बलिदान के दृढ़तापूर्वक तत्पर रहना चाहिए ताकि उस चुनौती का हम बेहतर तरीके से मुकाबला कर सके”

शास्त्री जी ने समाज के वंचित वर्गों के लिए भी उल्लेखनीय कार्य किया। वे लालालाजपतराय द्वारा स्थापित “सर्वेन्ट्स ऑफ इंडिया सोसायटी” (लोक सेवा मंडल) के आजीवन सदस्य बने। जहाँ उन्होंने पिछड़े वर्गों के उत्थान के लिए कार्य करना शुरू किया और बाद में वे उस सोसायटी के अध्यक्ष भी बने। इसी तरह उन्होंने किसान एवं युवा वर्ग को देश की आर्थिक एवं सैनिक शक्ति के तौर पर देखा। श्री लाल बहादुर शास्त्री ने “जय जवान जय किसान” का नारा भी दिया, जो आगे चलकर देशभक्ति का प्रतीक बन गया। शास्त्री जी के इस नारे का मुख्य उद्देश्य एक ओर जहाँ देश की सैनिक शक्ति में वृद्धि करने का था वही दूसरी ओर देश की आर्थिक स्थिति को मजबूत करने का रहा।

शास्त्री जी ने आनंद (गुजरात) के ‘अमूल दूध सहकारी समिति’ का समर्थन और राष्ट्रीय डेयरी विकास (National Dairy Development Board) का निर्माण करके श्वेत क्रांति को बढ़ावा दिया। जिससे भारत दुग्ध उत्पादन के क्षेत्र में अग्रणी बनकर उभरा।
भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान (वर्ष 1965) भारत खाद्य संकट के दौर से गुजर रहा था। इस समस्या का समाधान “हरित क्रांति” के माध्यम से किया गया। नतीजन भारत खाद्यान्न निर्यात करने वाले देशों में शुमार हो गया।

शास्त्री जी, भारत के पड़ोसी देशों के साथ अपने संबंधो में हमेशा शांति एवं संतुलन बनाये रखने का प्रयास करते थे। इसी क्रम में भारत-पकिस्तान युद्ध (1965) के संबंध में ताश्कंद (तत्कालीन सोवियत संघ) में सोवियत राष्टपति की मध्यस्थता से भारत तथा पाकिस्तान में सुलह हुई। जिसके तहत 10 जनवरी, 1966 पाकिस्तान के राष्टपति मोहम्मद अयूब खान के साथ युद्ध को समाप्त करने हेतु “ताशकंद घोषणापत्र” पर हस्ताक्षर किये गये। 11 जनवरी 1966 को ताशकंद में ही उनका निधन हो गया।शास्त्री जी, ने कई वर्षों तक अपनी निस्वार्थ सेवा भावना, कर्तव्यनिष्ठा, ईमानदारी एवं करुणा जैसे गुणों के चलते जनता के बीच अपनी अलग पहचान बनायी। विनम्र, दृढ़ इच्छाशक्ति, सहिष्णु एवं जबरदस्त आतंरिक शक्ति के धनी शास्त्री जी लोगों के बीच ऐसे शख्स बनकर उभरे, जिन्होंने लोगों की भावनाओं को समझा। इन्होंने अपने दूरदर्शी दृष्टिकोण के माध्यम से भारत को विश्व पटल पर अलग पहचान दिलवायी।

गांधी जी की राजनीतिक शिक्षाओं से प्रेरणा लेते हुए गांधी जी के लहज़े में ही एक बार उन्होंने कहा था- “मेहनत प्रार्थना करने के समान है।” महात्मा गांधी के समान विचार रखने वाले श्री लाल बहादुर शास्त्री भारतीय संस्कृति की ‘श्रेष्ठ पहचान’ हैं।

शिवानी सिंह

शिवानी ने हरियाणा के सिरसा से स्नातक किया है। अभी वह राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर करने के साथ ही यूपीएससी और राज्य लोक सेवा आयोग की तैयारी कर रही हैं। इन सब के साथ ही आज कल वे अपने लेखन कला का प्रयोग कर दृष्टि संसथान के लिए ब्लॉग लिखती हैं।

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