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लेटरल एंट्री: नौकरशाही में विशेषज्ञता लाने का माध्यम या पारदर्शिता में कमी?

  • 14 Feb, 2025

भारतीय लोकतंत्र की सफलता का एक महत्त्वपूर्ण स्तंभ इसकी नौकरशाही है, जो न केवल प्रशासनिक कार्यों का संचालन करती है, बल्कि नीतिगत निर्णयों को भी प्रभावी ढंग से लागू करती है। समय के साथ अनुभव किया जा रहा है कि नौकरशाही में न केवल सुधार की आवश्यकता है, बल्कि इसमें विशिष्ट विशेषज्ञता के समावेशन की आवश्यकता भी बढ़ती जा रही है। इसी परिप्रेक्ष्य में ‘लेटरल एंट्री’ की अवधारणा को बढ़ावा दिया गया, जिसके तहत बाह्य विशेषज्ञों को प्रशासन के उच्च पदों पर नियुक्त किया जाता है। हालाँकि इस नीति की जितनी प्रशंसा हुई है, उतनी ही आलोचनाओं का भी सामना करना पड़ा है। इस परिप्रेक्ष्य में, लेटरल एंट्री की अवधारणा पर विचार करना प्रासंगिक होगा ताकि यह समझा जा सके कि यह नीति भारतीय नौकरशाही में विशेषज्ञता लाने का एक माध्यम सिद्ध होगा या यह नियुक्ति में पारदर्शिता की कमी की आशंका को पुष्ट करेगा।

नौकरशाही में लेटरल एंट्री की अवधारणा और आवश्यकता 

लेटरल एंट्री क्या है?

लेटरल एंट्री (Lateral Entry) एक ऐसी भर्ती प्रक्रिया है, जिसके तहत बाह्य विशेषज्ञों को प्रत्यक्षतः सरकारी नौकरशाही के उच्च पदों पर नियुक्त किया जाता है। पारंपरिक रूप से, भारतीय नौकरशाही में नियुक्तियाँ UPSC सिविल सेवा परीक्षा के माध्यम से होती हैं, लेकिन लेटरल एंट्री इस स्थापित प्रक्रिया को आंशिक रूप से रूपांतरित कर देती है। इस प्रणाली के अंतर्गत, निजी क्षेत्र, शिक्षा क्षेत्र, थिंक टैंक और शोध संस्थानों के अनुभवी विशेषज्ञों को प्रत्यक्ष रूप से नीति-निर्माण से जुड़े अधिकारी पदों पर नियुक्त किया जाता है।

भारत में लेटरल एंट्री की अवधारणा नई नहीं है। 1960 और 1970 के दशक में कुछ वैज्ञानिक एवं प्रौद्योगिकी विशेषज्ञों को विभिन्न मंत्रालयों में नियुक्त किया गया था। आधुनिक संदर्भ में इसकी औपचारिक शुरुआत वर्ष 2018 में हुई, जब संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) के माध्यम से 9 संयुक्त सचिवों की नियुक्ति की गई। उसके बाद पुनः वर्ष 2021 में 31 निदेशक और उप सचिव स्तर के पदों के लिये भी लेटरल एंट्री की गई।

लेटरल एंट्री की आवश्यकता क्यों पड़ी?

  • वर्तमान प्रशासनिक चुनौतियाँ और विशेषज्ञता की माँग
    भारतीय शासन प्रणाली को 21वीं सदी में कई जटिल समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है, जिनमें शामिल हैं:
    • डिजिटल गवर्नेंस और साइबर सुरक्षा
    • स्वास्थ्य और महामारी प्रबंधन
    • जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय संकट
    • अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और आर्थिक सुधार
    • कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और नई प्रौद्यिगिकियों का समावेश

पारंपरिक सिविल सेवकों को इन क्षेत्रों में गहन विशेषज्ञता प्राप्त करने में समय लगता है। लेटरल एंट्री इस समस्या का एक समाधान सिद्ध हो सकता है, क्योंकि इससे प्रत्यक्ष रूप से अनुभवी विशेषज्ञों की सेवाएँ प्रशासन को मिल जाती हैं।

  • सिविल सेवाओं की जड़ता और धीमी निर्णय-प्रक्रिया: भारतीय नौकरशाही की एक गंभीर आलोचना यह रही है कि इसमें नवाचार और संव्यावसायिक (या पेशेवर) दृष्टिकोण की कमी है। इसकी तुलना में निजी क्षेत्र अधिक दक्षता, जवाबदेही और परिणामोन्मुखी कार्यशैली के लिये जाना जाता है। लेटरल एंट्री से सरकारी तंत्र में कार्य-शीघ्रता, संव्यावसायिकता और प्रतिस्पर्द्धा लाई जा सकती है।
  • विकसित देशों की नीतियों से प्रेरणा: संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन, फ्राँस और सिंगापुर जैसे कई देशों में लेटरल एंट्री एक आम अभ्यास है। उदाहरण के लिये, अमेरिका में सीनियर एग्ज़ीक्यूटिव सर्विस (SES) के तहत विशेषज्ञों को सरकारी एजेंसियों में शामिल किया जाता है। इसी तरह, ब्रिटेन का ‘Fast Stream’ कार्यक्रम बाह्य विशेषज्ञों को सरकारी विभागों में शामिल करने का अवसर प्रदान करता है।
  • प्रशासन में विविधता और नई सोच का समावेश: पारंपरिक नौकरशाही में अधिकारी लंबे प्रशिक्षण और पदोन्नति-आधारित प्रणाली से आगे बढ़ते हैं, जहाँ प्रायः नए दृष्टिकोणों तथा नवाचारों की कमी देखी जाती है। यदि प्रशासन में अर्थशास्त्र, पर्यावरण विज्ञान, तकनीकी प्रबंधन, डाटा विश्लेषण एवं अन्य क्षेत्रों के विशेषज्ञों को स्थान दिया जाए तो नीति-निर्माण अधिक प्रभावी और समकालीन आवश्यकताओं के अनुकूल हो सकता है।
  • संभावित लागत और दक्षता में सुधार: पारंपरिक सिविल सेवा तंत्र में विद्यमान सुदीर्घ प्रशिक्षण अवधि, पदोन्नति प्रक्रिया और वरिष्ठता-आधारित संरचना दक्षता में बाधा उत्पन्न कर सकती है। इसके विपरीत, लेटरल एंट्री के तहत नियुक्त विशेषज्ञों का उनके विशिष्ट कार्यों और परिणामों के आधार पर मूल्यांकन किया जा सकता है, जिससे प्रशासन अधिक परिणामोन्मुखी तथा जवाबदेह बन सकता है।

लेटरल एंट्री के संभावित लाभ 

  • विशेषज्ञता का समावेश: लेटरल एंट्री का सबसे बड़ा लाभ यह है कि यह प्रशासन में विशेषज्ञता और तकनीकी दक्षता का प्रवेश कराता है। सरकारी विभागों में ऐसे विशेषज्ञों की आवश्यकता होती है जो जटिल समस्याओं को समझ सकें और उन्हें प्रभावी ढंग से हल कर सकें। ये विशेषज्ञ अपने-अपने क्षेत्रों से विशिष्ट ज्ञान एवं व्यावहारिक अनुभव लेकर आते हैं, जो सरकारी निर्णयों को अधिक व्यावहारिक तथा प्रभावी बना सकता है।
  • सरकारी कार्यों की दक्षता में वृद्धि: नौकरशाही की आलोचना प्रायः इसकी धीमी गति और जड़ता के लिये की जाती है। लेटरल एंट्री के माध्यम से प्रशासन में नवाचार और अनुकूलन आ सकता है। निजी क्षेत्र के विशेषज्ञ सरकार के कार्यों में गति ला सकते हैं, जो जटिल नीतिगत निर्णयों को त्वरित गति से और प्रभावी ढंग से लागू करने में मदद करेगा। जब सरकारी तंत्र में निजी क्षेत्र का अनुभव और कौशल जुड़ता है तो निर्णय-निर्माण प्रक्रिया भी अधिक प्रभावी, कार्यकुशल एवं उत्तरदायी बन सकती है।
  • प्रतिस्पर्द्धात्मक माहौल और कार्यसंस्कृति में सुधार: नौकरशाही में लेटरल एंट्री से प्रतिस्पर्द्धात्मक माहौल उत्पन्न होता है, जो न केवल बाहरी विशेषज्ञों के लिये, बल्कि पारंपरिक सिविल सेवकों के लिये भी लाभप्रद है। जब दोनों वर्गों के बीच एक स्वस्थ प्रतिस्पर्द्धा होगी तो यह सरकारी कार्यों में नई सोच, नवाचार और सुधारों को प्रोत्साहित करेगा। यह सरकार के भीतर नौकरशाही संस्कृति को अधिक ज़िम्मेदार और परिणामोन्मुखी बनाने में भी मदद करेगा।
  • संस्थागत ज्ञान के साथ संव्यावसायिक दृष्टिकोण का मेल: पारंपरिक प्रशासन में एक विशेष प्रकार का संस्थागत ज्ञान होता है, जो समय के साथ विकसित होता है। बाह्य विशेषज्ञ अपने संव्यावसायिक दृष्टिकोण के कारण समस्याओं को एक नई रोशनी में देख सकते हैं। यह भारत की सरकारी नीतियों को और अधिक आधुनिक एवं कुशल बना सकता है। 
  • भ्रष्टाचार पर नियंत्रण: बाह्य विशेषज्ञों की नियुक्ति से नौकरशाही के पारंपरिक भ्रष्टाचार और पक्षपातपूर्ण दृष्टिकोण से मुक्ति मिल सकती है। बाह्य विशेषज्ञों की नियुक्ति सरकारी कार्यों में अधिक पारदर्शिता और जवाबदेही भी ला सकती है, क्योंकि वे प्रायः एक नया दृष्टिकोण तथा अनुशासन लेकर आते हैं।
  • सरकारी सेवाओं में सुधार और वैकल्पिक दृष्टिकोण: लेटरल एंट्री से सरकारी सेवाओं में सुधार की संभावना बढ़ जाती है, क्योंकि इसमें नए दृष्टिकोण और कार्यविधियों का समावेश होता है। 

लेटरल एंट्री की आलोचना और संभावित चुनौतियाँ 

  • पारदर्शिता और निष्पक्षता की कमी: लेटरल एंट्री की सबसे प्रमुख आलोचना यह है कि यह पारदर्शिता एवं निष्पक्षता को क्षति पहुँचा सकती है। पारंपरिक सिविल सेवा परीक्षा में चयन प्रक्रिया अधिक स्पष्ट एवं प्रतिस्पर्द्धी होती है, जहाँ प्रत्येक उम्मीदवार को समान अवसर मिलता है। इसके विपरीत, लेटरल एंट्री में चयन प्रक्रिया के बारे में अधिक जानकारी नहीं होती, जिससे यह आशंका उत्पन्न होती है कि यह सत्ताधारी दल के पक्ष में नियुक्तियों का साधन बन सकता है। 
  • प्रशासनिक समन्वय की समस्या: एक अन्य महत्त्वपूर्ण चुनौती समन्वय की है। पारंपरिक नौकरशाही में जटिल संरचनाएँ एवं प्रक्रियाएँ मौजूद होती हैं, जिनसे बाह्य विशेषज्ञ प्रायः परिचित नहीं होते। उनका प्रशासनिक अनुभव सीमित हो सकता है और वे संस्थागत संरचनाओं के भीतर कार्य करने में असहज महसूस कर सकते हैं। इससे प्रशासनिक कार्यों में संघर्ष उत्पन्न हो सकता है, जो प्रभावी और लचीले निर्णय-निर्माण को प्रभावित कर सकता है।
  • हितों का टकराव: बाहरी विशेषज्ञों का प्रशासन में समावेश कभी-कभी हितों के टकराव को जन्म दे सकता है। उदाहरण के तौर पर, एक विशेषज्ञ जिसने निजी क्षेत्र के किसी उद्योग में कार्य किया हो, वह सरकारी नीति के निर्माण में उस उद्योग के पक्ष में निर्णय ले सकता है। इस प्रकार के हितों के टकराव को नियंत्रित करना चुनौतीपूर्ण सिद्ध हो सकता है।
  • अनुभव और नौकरशाही संरचना का अभाव: लेटरल एंट्री से आए बाहरी विशेषज्ञों को नौकरशाही की संस्थागत संरचनाओं और अंतर-प्रशासनिक प्रक्रियाओं का पर्याप्त अनुभव नहीं होता। वे सरकारी कार्यों को लागू करने की प्रक्रिया, नियमों और आचार संहिता से पूरी तरह परिचित नहीं होते। यह अनुभवहीनता कभी-कभी उन्हें दूरदर्शिता और दीर्घकालिक निर्णयों की अपेक्षाओं के अनुरूप कार्य करने में विफल बना सकती है।
  • संस्थागत ज्ञान की कमी: पारंपरिक नौकरशाहों के पास प्रशासनिक प्रक्रिया, जनतांत्रिक सिद्धांत और सरकारी कार्यों का गहरा संस्थागत ज्ञान होता है, जो वर्षों के अनुभव के साथ विकसित होता है। लेटरल एंट्री के तहत आए बाहरी विशेषज्ञ इस संस्थागत ज्ञान का पालन करने में कठिनाई महसूस कर सकते हैं। इससे उनके निर्णयों में अस्थिरता और संज्ञानात्मक असंगति उत्पन्न हो सकती है।
  • प्रभावी कार्य-संस्कृति की चुनौती: पारंपरिक नौकरशाही में एक सुदृढ़ कार्य-संस्कृति विकसित होती है। जब बाहरी विशेषज्ञों को अल्पकालिक नियुक्तियों पर लाया जाता है तो यह प्रभावी कार्य-संस्कृति की स्थापना में व्यवधान उत्पन्न कर सकता है। इसके साथ ही, निजी क्षेत्र के अनुभव को सरकारी तंत्र के स्थायित्व और दीर्घकालिक दृष्टिकोण से संगत करने में समस्या उत्पन्न हो सकती है।

लेटरल एंट्री की प्रक्रिया और सुधार के सुझाव 

लेटरल एंट्री का मुख्य उद्देश्य प्रशासन में विशेषज्ञता और नवाचार लाना है, लेकिन इसे सफलतापूर्वक लागू करने के लिये कुछ प्रमुख सुधारों की आवश्यकता है। इसके लाभ तभी साकार हो सकते हैं जब इसमें पारदर्शिता, दक्षता और समन्वय को प्राथमिकता दी जाए। 

  • पारदर्शिता और निष्पक्ष चयन प्रक्रिया: लेटरल एंट्री की सफलता का सबसे महत्त्वपूर्ण पहलू इसकी पारदर्शिता है। यदि इसे राजनीति या पक्षपातपूर्ण नियुक्तियों का माध्यम बना दिया जाए तो यह पूरी प्रणाली की विश्वसनीयता को नुकसान पहुँचा सकता है। इस प्रक्रिया को स्पष्ट और निष्पक्ष बनाने के लिये चयन प्रक्रिया को सार्वजनिक किया जाना चाहिये। इसके लिये एक स्वतंत्र चयन बोर्ड का गठन किया जा सकता है, जिसमें पूर्व प्रशासनिक अधिकारी, विद्वान और अन्य प्रतिष्ठित व्यक्तियों को शामिल किया जाए। 
  • स्पष्ट भूमिका विवरण और कार्यक्षेत्र: बाह्य विशेषज्ञों को नियुक्त करने से पहले यह आवश्यक है कि उनकी भूमिकाएँ और ज़िम्मेदारियाँ स्पष्ट रूप से परिभाषित की जाएँ। इससे न केवल चयन प्रक्रिया में पारदर्शिता बढ़ेगी, बल्कि इन विशेषज्ञों के कार्य को भी बेहतर तरीके से समझा जा सकेगा। पारंपरिक नौकरशाही के अधिकारियों और बाह्य विशेषज्ञों के बीच भूमिकाओं की स्पष्टता होनी चाहिये, ताकि दोनों पक्ष अपने कार्यों में बेहतर समन्वय बना सकें।
  • प्रशिक्षण और अभ्यस्तता: लेटरल एंट्री के तहत नियुक्त बाह्य विशेषज्ञों को सरकारी तंत्र के साथ कार्य करने की प्रक्रिया के बारे में गहन प्रशिक्षण देना अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। यह प्रशिक्षण उनके स्थानीय संदर्भ, सरकारी नियमों और सार्वजनिक हितों की समझ बढ़ाने में मदद करेगा, जिससे वे अधिक प्रभावी ढंग से कार्य कर सकेंगे।
  • सामूहिक निर्णय-निर्माण प्रक्रिया में योगदान: एक सामूहिक निर्णय-निर्माण प्रक्रिया, जिसमें पारंपरिक नौकरशाही और बाह्य विशेषज्ञों दोनों का अनुभव समाहित हो, अधिक प्रभावी सिद्ध हो सकती है। इससे न केवल निर्णयों की गुणवत्ता में सुधार होगा, बल्कि यह समन्वय और सूचना के आदान-प्रदान को भी बढ़ावा देगा। 
  • निगरानी और मूल्यांकन तंत्र: लेटरल एंट्री की प्रक्रिया को निगरानी और मूल्यांकन तंत्र के साथ संबद्ध करना आवश्यक है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि नियुक्त विशेषज्ञ अपने कार्यों को ईमानदारी और पारदर्शिता के साथ पूरा कर रहे हैं। इसके लिये एक स्वतंत्र मूल्यांकन समिति का गठन किया जा सकता है, जो नियमित रूप से बाह्य विशेषज्ञों की कार्यप्रणाली की समीक्षा करे। यदि किसी विशेषज्ञ के कार्य में कोई कमी पाई जाती है तो उसे समय रहते सुधारने के उपाय किये जा सकते हैं। यह प्रणाली पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा देगी।
  • दीर्घकालिक दृष्टिकोण पर ध्यान केंद्रित करना: लेटरल एंट्री के माध्यम से केवल तात्कालिक सुधारों की अपेक्षा नहीं करनी चाहिये, बल्कि इसे एक दीर्घकालिक दृष्टिकोण के साथ लागू किया जाना चाहिये। विशेषज्ञों को नियुक्त करते समय यह ध्यान रखना चाहिये कि उनका योगदान स्थिर और दूरगामी हो। इस दीर्घकालिक दृष्टिकोण से सरकारी नीतियों का सतत् सुधार और पुनर्निर्माण संभव हो सकेगा जो भारत की विकसित तथा समृद्ध शासन प्रणाली की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम साबित हो सकता है।

लेटरल एंट्री प्रशासन में विशेषज्ञता और नवाचार लाने का प्रयास है, लेकिन इसके प्रभावी क्रियान्वयन के लिये पारदर्शिता, निष्पक्षता एवं दक्षता आवश्यक हैं। चयन प्रक्रिया को सार्वजनिक और निष्पक्ष बनाया जाना चाहिये ताकि नियुक्ति में पारदर्शिता संबंधी आशंकाओं को संबोधित किया जा सके। बाह्य विशेषज्ञों के लिये स्पष्ट भूमिका निर्धारण, सरकारी प्रक्रियाओं का प्रशिक्षण और नौकरशाहों के साथ समन्वय अनिवार्य है। इसके साथ ही, निगरानी और मूल्यांकन तंत्र लागू कर जवाबदेही सुनिश्चित करनी होगी। यदि इन सुधारों को अपनाया जाए तो लेटरल एंट्री प्रशासनिक दक्षता बढ़ाने और नीति-निर्माण में नवाचार लाने का एक प्रभावी माध्यम बन सकती है, साथ ही इससे संबद्ध चिंताओं को दूर किया जा सकती है।


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