प्रवासी भारतीयों के माध्यम से भारत की वैश्विक पहुँच कैसे भारतीय प्रवासी समुदाय विश्व भर में भारत की छवि और संबंधों को सुदृढ़ कर रहा है।
- 29 Jan, 2025
भारतीय प्रवासी, भारतीय मूल के उन व्यक्तियों को संदर्भित करता है जो भारत से बाहर निवास करते हैं। इनमें अनिवासी भारतीय या एनआरआई और भारतीय मूल के व्यक्ति अथवा पीआईओ, दोनों शामिल हैं। अनिवासी भारतीय, का आशय ऐसे भारतीय नागरिक से है जो काम, शिक्षा या अन्य उद्देश्यों के लिये अस्थायी रूप से विदेश में रहता है जबकि भारतीय मूल के व्यक्ति का आशय ऐसे भारत वंशी विदेशी नागरिकों से है, जो पीढ़ियों से विदेश में पैदा हुए या बसे हुए हैं, लेकिन वे भारत के साथ एक सशक्त सांस्कृतिक संबंध बनाए रखते हैं। तीसरी श्रेणी भारत के ऐसे विदेशी नागरिकों की है, जिनमें भारतीय मूल के ऐसे व्यक्ति शामिल हैं, जिनके पास विदेशी नागरिकता तो है, किंतु उन्हें भारत सरकार द्वारा एक विशेष ओसीआई कार्ड के माध्यम से विशेषाधिकार दिये गए हैं।
अगर संख्या की बात करें तो विदेश मंत्रालय के अनुसार, नवंबर 2024 तक, प्रवासी भारतीयों की कुल जनसंख्या 35,421,987 थी। सबसे बड़ी भारतीय प्रवासी आबादी वाले शीर्ष तीन देश संयुक्त राज्य अमेरिका (5.4 मिलियन), संयुक्त अरब अमीरात (3.6 मिलियन) और मलेशिया (2.9 मिलियन) हैं। भारत का यह प्रवासी समुदाय दुनिया के दो सौ से ज़्यादा देशों में फैला हुआ है। अंकों के हिसाब से यह अब दुनिया का सबसे बड़ा प्रवासी समुदाय है। यह समुदाय सिर्फ उन लोगों का समूह नहीं है जो देश छोड़कर चले गए हैं अपितु विस्तृत नज़रिये से इसे एक ऐसी शक्ति के रूप में देखा जाना चाहिये जो न केवल भारत के, अपितु दुनिया के भविष्य को भी आकार दे रहा है। अमेरिका की सिलिकॉन वैली की दिग्गज टेक कंपनियों में, ब्रिटेन में नीति-निर्माताओं में, मध्य पूर्व में चिकित्सा क्षेत्र, ऑस्ट्रेलिया में छात्रों का बड़ी संख्या में, भारतीय प्रवासी समुदाय का होना अब केवल प्रवास की एक घटना भर नहीं है अपितु इसमें देशों के सहयोग, नवाचार, वैश्वीकरण और पारस्परिक विकास की शाखाएँ भी देखी जा सकती हैं।
प्रवासी समुदाय की कहानी19वीं सदी की शुरुआत के दौरान प्रारंभ हुई थी। यह प्रवास व्यापार, औपनिवेशिक नीतियों और बेहतर अवसरों की खोज से प्रेरित था। पूर्वी भारत के कई भारतीयों को मॉरीशस, फिज़ी और कैरिबियन जैसे ब्रिटिश उपनिवेशों में गिरमिटिया मज़दूरों के रूप में ले जाया गया। कई लोग रेलवे स्थापित करने के लिये पूर्वी अफ्रीका गए या व्यापार के लिये दक्षिण पूर्व एशिया में बस गए। प्रवासन के इस स्वरूप में 20वीं सदी के उत्तरार्द्ध में परिवर्तन देखने को मिला। आर्थिक उदारीकरण और वैश्वीकरण के कारण कुशल भारतीय पेशेवर संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम एवं अन्य पश्चिमी देशों में चले गए। मध्यपूर्व एशिया के देशों में तेल की खोज ने बड़े पैमाने पर भारतीयों को वहाँ कामकाज के लिये आकर्षित किया। सिंगापुर जैसी पूर्वी देशों की बढ़ती अर्थव्यवस्थओं के कारण वहाँ भी भारतीयों को जाने का अवसर मिला। कुल मिलाकर भारतीय प्रवासी समुदायों के प्रवासन की कहानियाँ प्रेरक हैं और उनमें से प्रत्येक की अपनी अनूठी यात्रा है, किंतु वे सब साझा सांस्कृतिक मूल्यों एवं अपने पूर्वजों की भूमि से जुड़ाव की गहरी भावना के कारण आज भी भारत के साथ बंधे हुए हैं। इन प्रवासी भारतीयों की सामूहिक शक्ति का भारत के विकास और वैश्विक स्थिति पर गहरा प्रभाव पड़ा है।
एक वैश्विक शक्ति के रूप में प्रवासी भारतीयों ने विभिन्न क्षेत्रों में उल्लेखनीय योगदान दिया है। प्रौद्योगिकी और नवाचार के क्षेत्र में भारतीयों की श्रेष्ठता को आसानी से देखा जा सकता है, इसका प्रमाण है कि वैश्विक अग्रणी आईटी कंपनियाँ, जैसे अल्फाबेट और माइक्रोसॉफ्ट, भारतीय मूल के इंजीनियरों के नेतृत्व में हैं। ये उदाहरण कंप्यूटर क्षेत्र में भारतीय प्रतिभा के वर्चस्व को स्पष्ट रूप से दर्शाते हैं। गूगल की मूल कंपनी अल्फाबेट के सीईओ सुंदर पिचाई और माइक्रोसॉफ्ट के सीईओ सत्या नडेला से हम सब परिचित हैं। स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र की बात करें तो भारतीय डॉक्टर, नर्स और स्वास्थ्य कार्यकर्त्ता संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, खाड़ी के तथा अफ्रीकी देशों के चिकित्सा कार्यबल का एक खास हिस्सा बन कर उभरे हैं। वित्तीय परिसंचालन के क्षेत्र में देखें तो विश्व बैंक समूह के अध्यक्ष अजय बंगा हैं। विज्ञान के क्षेत्र में भारतीय मूल के वैज्ञानिक और नोबेल पुरस्कार रामकृष्णन वेंकटरमन हैं। सर्वाधिक चर्चित क्षेत्र तो राजनीति और शासन के हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका की उप-राष्ट्रपति रहीं कमला हैरिस, यूनाइटेड किंगडम के प्रधानमंत्री रहे ऋषि सुनक जैसे उच्च पदस्थ भारतीय मूल के लोग अपने प्रवासी देश की नीतियों को आकार तथा द्विपक्षीय संबंधों को बढ़ावा दे रहे हैं। संक्षेप में वे उद्यमशील प्रतिभाओं के सबसे बड़े समूह में से एक हैं फिर भी, प्रवासी भारतीयों की कहानियाँ केवल व्यक्तिगत उपलब्धियों के साथ समाप्त नहीं होती, उनका दायरा इससे कहीं आगे का है।
भारत के भविष्य को आकार देने में प्रवासी समुदाय अति महत्त्वपूर्ण बनकर उभरा है और इसमें सर्वाधिक भूमिका इन प्रवासियों के भारत में रह रहे परिवार, मित्र या रिश्तेदारों को धन हस्तांतरण या धनप्रेषण की है। वर्ष 2024 में, भारत को 129.1 बिलियन डॉलर का चौंका देने वाला धन प्रेषण प्राप्त हुआ। यह किसी भी देश को एक वर्ष में मिला सर्वाधिक धन है और यदि इसे प्रतिशत में देखें यह वैश्विक धन प्रेषण का 14.3 फीसदी था। इससे भारत दुनिया में धनप्रेषण का शीर्ष प्राप्तकर्त्ता देश बन गया है, जिसका श्रेय प्रवासी भारतीयों को जाता है। निश्चित ही यह एक उल्लेखनीय उपलब्धि है और इस क्षेत्र में भारत के बढ़ते प्रभुत्व को रेखांकित करती है। आज धन प्रेषण की भारत के सकल घरेलू उत्पाद में हिस्सेदारी 3.3 प्रतिशत हो गई है। प्रवासियों के भारत में रह रहे परिवारों को सहायता प्रदान करने के अतिरिक्त इस विशाल धनराशि का इस्तेमाल स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं में उपभोग, व्यय और निवेश में होता है। भारतीय उद्यमों को वैश्विक बाज़ारों से जोड़कर प्रवासी भारतीय देश के व्यापार परिदृश्य को समृद्ध बना रहे हैं। वे वंचित क्षेत्रों के विकास में सहयोग देकर देश को विकसित अर्थव्यवस्था बनने के लक्ष्य की ओर अग्रसर भी करते हैं। भारत को भेजा जाने वाले धन लंबे समय से देश की अर्थव्यवस्था की आधारशिला रहा है और यह घरेलू आय, आर्थिक स्थिरता तथा समग्र विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान देता है। प्रवासी भारतीयों का यह वित्तीय हस्तांतरण, न केवल उन्हें प्राप्त करने वाले परिवारों के लिये अपितु देश के व्यापक आर्थिक परिदृश्य के लिये भी महत्त्वपूर्ण है।
भारतीय प्रवासी, वैश्विक शासकीय ढाँचे को प्रभावित करने और भारत के विश्व की प्रमुख शक्तियों के साथ द्विपक्षीय संबंधों को प्रगाढ़ बनाने में विशेष भूमिका निभाते हैं। अमेरिका और ब्रिटेन में भारतीय मूल के विधि निर्माता एवं कामकाजी समुदाय व्यापार, रक्षा एवं प्रौद्योगिकी में सहयोग को बढ़ावा देते हैं। उदाहरण के लिये, भारतीय मूल के अधिकारियों ने भारत-ब्रिटेन मुक्त व्यापार समझौते के बारे में हुई चर्चाओं में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। यह रणनीतिक साझेदारी को बढ़ाने में उनकी भूमिका को दर्शाता है। सांस्कृतिक राजदूतों के रूप में कार्य करते हुए, प्रवासी भारतीय अपने अपने देशों में भारतीय परंपराओं, कला और विरासत को बढ़ावा देकर भारत की सॉफ्ट पावर को मज़बूत करते हैं। प्रवासी भारतीयों के कारण त्योहार, योग, बॉलीवुड और व्यंजनों ने अपार लोकप्रियता प्राप्त की है, जिससे भारत की वैश्विक स्वीकृति बढ़ी है। कई अमेरिकी राज्यों में दिवाली को अवकाश घोषित करने जैसी पहल विदेशों में भारतीय संस्कृति के सफल एकीकरण को उजागर करती है।
प्रवासी भारतीय का बड़ा योगदान भारतीय समाज को अपनी विशेषज्ञता प्रदान करने में भी है। जब वे भारत लौट कर आते हैं, तो वे अपनी विशेषज्ञता साथ लेकर आते हैं। इससे यहाँ पर नवाचार को बढ़ावा मिलता है, खास तौर पर आईटी और स्वास्थ्य सेवा जैसे क्षेत्रों में। इसके अतिरिक्त भारतीय मूल के परोपकारी लोग भारत में शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और ग्रामीण विकास के क्षेत्रों में भी अपनी विशेषज्ञता से समृद्ध बनाते हैं। उदारहण के लिये, कई प्रवासी भारतीयों ने देश में आधुनिक तरीकों से खेती करने को अपना समर्थन देकर कृषि के विकास में योगदान दिया है।
हालाँकि प्रवासी भारतीयों को अपने प्रवास के देशों में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। विशेष रूप से खाड़ी देशों में, भारतीय कामगारों को अस्थिर तेल कीमतों और बदलते श्रम कानूनों के कारण नौकरी की असुरक्षा झेलनी पड़ती है, जिसके परिणामस्वरूप वे वित्तीय अस्थिरता तथा अनिश्चित भविष्य जैसी समस्याओं से जूझते हैं। अनेक प्रवासी, विशेषकर कम-कुशल नौकरियों में कार्यरत, अपनी पूरी क्षमता का उपयोग नहीं कर पाते, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें सीमित रोज़गार अवसरों और आय असमानता की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। उन्हें उस देश की सामाजिक और सांस्कृतिक चुनौतियों का भी सामना करना पड़ता है। दूसरी और तीसरी पीढ़ी के भारतीयों को अपनी सांस्कृतिक पहचान तथा विरासत को संरक्षित करते हुए मेज़बान संस्कृतियों के साथ एकीकरण को संतुलन बनाने में कठिनाईयों को भी समझना पड़ता है। इसके अलावा नस्लवाद और ज़ेनोफोबिया के उदाहरण कई मेज़बान देशों में गहन चिंता का विषय बने हुए हैं। राजनीतिक और कानूनी मुद्दे भी प्रवासियों के लिये तनाव का कारण बनते हैं। अमेरिका और यूके जैसे देशों की सख्त आव्रजन नीतियाँ चुनौतियाँ उत्पन्न करती हैं, जिससे उनके बसने एवं विकास के अवसर सीमित हो जाते हैं। इसके अतिरिक्त वैवाहिक और संपत्ति विवाद अक्सर प्रवासी भारतीयों के जीवन को जटिल बनाते हैं, जिसके लिये राजनयिक एवं कानूनी हस्तक्षेप की आवश्यकता होती है। इन समस्याओं को देखते हुए भारत सरकार ने कई तरह की योजनाएँ चलाईं हैं। लेकिन कई प्रवासी सदस्य उन सरकारी योजनाओं से अनभिज्ञ होते हैं जिनका उद्देश्य उनकी ही दिक्कतों को कम करना है। इसका हश्र यह होता है कि इन पहलों का कम उपयोग होता है। इसके अतिरिक्त जटिल प्रक्रियाएँ, लालफीताशाही प्रवासी-केंद्रित कार्यक्रमों में प्रभावी भागीदारी को बाधित करती हैं।
यहाँ प्रश्न यह उठता है कि प्रवासी भारतीयों की अपार क्षमता का दोहन करने के लिये आगे का रास्ता कैसा होना चाहिये। अगर हम भविष्य की ओर देखें तो भारतीय प्रवासियों का भारत के साथ संबंध बहुत आशाजनक प्रतीत होता है। इस दिशा में प्रवासी भारतीय दिवस जैसी पहल और प्रवासी परिषदें विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग के लिये मंच प्रदान करती हैं। ये मंच प्रवासी समुदाय और भारत के बीच ज्ञान के आदान-प्रदान, मार्गदर्शन तथा निवेश के अवसरों को सुविधाजनक बनाते हैं। दूसरी और तीसरी पीढ़ी के प्रवासी सदस्य नए दृष्टिकोण तथा नवीन विचार लेकर आते हैं। उनकी भागीदारी को प्रोत्साहित करने से परिवर्तनकारी परियोजनाओं को बढ़ावा मिल सकता है। प्रवासी समुदाय स्वच्छ ऊर्जा परियोजनाओं से लेकर पर्यावरण अनुकूल प्रौद्योगिकियों तक, भारत के स्थिरता लक्ष्यों को आगे बढ़ाने में अहम भूमिका निभा सकते हैं। यह साझा जड़ों, आपसी विकास और उज्ज्वल भविष्य की दृष्टि की कहानी है। जैसे-जैसे दुनिया आपस में जुड़ती जा रही है, वैसे-वैसे भारतीय प्रवासी भारत और वैश्विक समुदाय के बीच सेतु का काम कर रहे हैं। उनका योगदान, चाहे आर्थिक निवेश के माध्यम से हो, सांस्कृतिक कूटनीति के माध्यम से या सामाजिक प्रभाव पहल के माध्यम से हो, विश्व मंच पर भारत की छवि को आकार दे रहा है। प्रवासी भारतीय अभी भी खान-पान की आदतों, रीति-रिवाज़ों, सिनेमा, भारतीय पौराणिक एवं मिथक चरित्रों, धार्मिक स्थलों के माध्यम से भारत के साथ मज़बूत सांस्कृतिक और सामाजिक संबंध बनाए हुए हैं। इसके अतिरिक्त, वे भारत के साथ आर्थिक रूप से जुड़ने के इच्छुक भी रहते हैं। इसी कारण से वे एक नए भारत की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
प्रवासी भारतीयों की एक प्रमुख ताकत उनका वैश्विक नेटवर्क है इसलिये भारत सरकार ने देश के विकास के लिये इसका समुचित दोहन करने में उच्च स्तर की रुचि दिखाई है। भारत के बारे में नई सकारात्मकता यह है कि यहाँ मज़बूत आर्थिक बुनियादी ढाँचा निर्माण का काम तेज़ गति से हो रहा है तथा उच्चतर स्तर पर त्वरित शासकीय कार्यों ने एक पहचान अर्जित की है। किंतु साथ ही यह भी समझना होगा कि प्रवासी भारतीय एक समरूप इकाई नहीं है। उनके लक्ष्य और उद्देश्य कई प्रकार के अन्य कारकों से भी प्रभावित होते हैं। उनके कौशल एवं वित्तीय क्षमताएँ अलग-अलग हैं, उनके अनुभव के वर्ष भी भिन्न होते हैं इसलिये उनको संबोधन करने का हमारा तरीका संवेदनशील होना चाहिये। हमें किसी भी प्रकार के वांछनीय या अवांछनीय हस्तक्षेप को पहचानना आना चाहिये। हमें यह भी समझना होगा कि वे हमसे किस तरह का संरूपण एवं संरेखण चाहते हैं। कुल मिला कर यह कहा जा सकता है कि प्रवासी भारतीयों के कारण भारत की दुनिया में पहुँच सशक्त प्रकार से विकसित हो रही है। भारतीय प्रवासी समुदाय विश्वभर में भारत की छवि और संबंधों को सुदृढ़ करने में अपनी अत्यंत प्रभावशली भूमिका को बेहतर ढंग से निभा रहा है।