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खेल-खेल‌ में: पेरिस ओलंपिक्स 2024

ओलंपिक में स्वर्ण पदक या कोई भी पदक जीत पाना कितना कठिन कार्य है, इसका अंदाज़ा आप इस बात से लगा सकते हैं कि दुनिया के सर्वश्रेष्ठ पुरुष टेनिस खिलाड़ी सर्बिया के नोवाक जोकोविच ओलंपिक में इस ओलंपिक से पहले केवल एक कांस्य पदक ही जीत सके थे। वर्ष 2021 में जब पिछले ओलंपिक खेल आयोजित हुए तो‌ उन्होंने तब तक खेले गए तीनों ग्रैंड स्लैम जीत लिये थे, परंतु टोक्यो ओलंपिक में कोई पदक जीत पाने में वह असफल रहे। यह बात इसका भी उदाहरण है कि यदि ओलंपिक में कोई देश पदक जीतता है तो वह कितना अद्वितीय व अद्भुत अवसर होता है।

प्रत्येक चार वर्ष में एक बार आने वाला यह अवसर पुनः आ गया है। ‌फ्रांस की राजधानी पेरिस‌‌ में 33वें ओलंपिक खेलों का आग़ाज़ हो चुका है। पेरिस ओलंपिक 2024 का आयोजन 26 जुलाई, 2024 से 11 अगस्त, 2024 के मध्य किया जाएगा। आधिकारिक जानकारी के अनुसार 200 से अधिक राष्ट्रीय ओलंपिक समितियों से संबद्ध खिलाड़ी इन खेलों में प्रतिस्पर्द्धा करेंगे।

खिलाड़ियों के लिये ओलंपिक के महत्त्व की पड़ताल करने से‌ पूर्व इन खेलों के इतिहास को जान लेना आवश्यक होगा। दरअसल ओलंपिक खेलों की शुरुआत ‌776 BCE से ही हो चुकी थी, जब प्राचीन यूनान के ओलंपिया शहर में इनका आयोजन किया गया। हालाँकि कुछ सदियों तक इनके आयोजन के बाद द्वितीय शताब्दी ईसा पूर्व में यूनान रोम के अधीन हो गया और इनका आयोजन रुक गया। इस दौर में आयोजित ओलंपिक्स को 'प्राचीन ओलंपिक्स' की संज्ञा दी जाती है। इसी से प्रेरणा लेते हुए 19वीं सदी के अंत में आधुनिक ओलंपिक खेलों की शुरुआत हुई। 1896 में ग्रीस की ही राजधानी एथेंस में प्रथम आधुनिक ओलंपिक खेलों का आयोजन किया गया। तब से अब तक साधारणतया हर चौथे वर्ष इन खेलों का आयोजन किया जाता है। अपवादस्वरूप केवल 1916, 1940 व 1944 में विश्व युद्धों के कारण ओलंपिक खेल आयोजित नहीं हुए। इसके अतिरिक्त 2020 के जुलाई-अगस्त महीनों में आयोजित किये जाने थे। हालाँकि कोरोना महामारी के चलते इन्हें एक वर्ष के लिये स्थगित किया गया व 2021 में ओलंपिक खेल आयोजित किये गए।

इस बिंदु पर यह विश्लेषण करना अवश्यंभावी है कि ओलंपिक खेलों का इसमें प्रतिभागियों के लिये कितना महत्त्व है और ऐसा क्यों है? ओलंपिक का‌ महत्त्व कितना है इसका अंदाज़ा हम खिलाड़ियों द्वारा इसको दी जाने वाली प्राथमिकता से ही लगा सकते हैं। ओलंपिक में जो भी खेल शामिल हैं, उसके सबसे प्रसिद्ध व महान खिलाड़ी इन खेलों में प्राथमिकता से अपने देश का प्रतिनिधित्व करते हैं। प्रसिद्ध अमेरिकी बास्केटबॉल खिलाड़ी माइकल जॉर्डन हों, चाहे अर्जेंटीना के विश्वविजेता फुटबॉलर लियोनेल मैसी, स्पेन के टेनिस खिलाड़ी नडाल हों अथवा स्विट्ज़रलैंड के रॉजर फ़ेडरर, सभी ने अपने-अपने खेलों में व्यक्तिगत स्तर पर असंख्य प्रतियोगिताएँ जीतीं, परंतु एक ओलंपिक मेडल ने उनकी ख्याति में जैसे चार चाँद लगाए वैसा कोई और प्रतियोगिता नहीं कर सकी। इसका सबसे बड़ा कारण इन सभी खिलाड़ियों की खेल की दुनिया में सबसे बड़े मंच पर अपने राष्ट्र का प्रतिनिधित्व कर पाने और उसे विजयी बनाने की इच्छा है। कोई भी खिलाड़ी अपना खेल को यश अर्जित करने व उससे संबंधित सबसे प्रतिष्ठित प्रतियोगिताएँ जीतने के सपने के साथ खेलता है। ओलंपिक खेलों में दुनिया के लगभग सभी देश प्रतिभागिता करते हैं। प्रकारांतर से‌ कहा जाए तो यहाँ सभी खिलाड़ियों की प्रतिस्पर्द्धा पूरी दुनिया के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों से है। ऐसे में सभी को मात देकर पदक जीत पाना खिलाड़ियों की ख्याति को किसी भी संदेह से परे स्थापित कर देता है। इसके अलावा ओलंपिक्स दुनिया की सबसे पुरानी खेल प्रतियोगिता है। उक्त दोनों बातें ओलंपिक खेलों को अत्यंत प्रतिष्ठित बनाती हैं। इसके अतिरिक्त खेलों के सबसे बड़े मंच पर अपने देश का प्रतिनिधित्व करने के माध्यम से प्राप्त होने वाला राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय यश भी ओलंपिक खेलों को खिलाड़ियों के लिये महत्त्वपूर्ण व आकर्षक बनाता है। अनेक ऐसे खेल हैं जो ओलंपिक्स के अलावा भी अंतर्राष्ट्रीय व स्थानीय स्तरों पर खेले जाते हैं परंतु ओलंपिक्स के दौरान वे पूरी दुनिया की नज़र में होते हैं और यहाँ अच्छा प्रदर्शन करना खिलाड़ियों को विश्वविख्यात बना देता है। उदाहरण के लिये- भारत के नीरज चोपड़ा और अमेरिका के माइकल फेल्प्स भाला फेंक व तैराकी (क्रमशः) जैसे कम प्रचलित खेलों के खिलाड़ी हैं परंतु ओलंपिक खेलों में स्वर्ण पदक जीतकर ये दोनों अपने-अपने देशों के लिये राष्ट्रीय गर्व का विषय बन गए। जमैका के धावक उसेन बोल्ट भी ऐसा ही एक उदाहरण हैं।

रोचक बात है कि खिलाड़ियों के लिये ओलंपिक खेलों का इतना महत्त्व होने व ऐतिहासिक रूप से प्रतिष्ठित होने के बावजूद ओलंपिक खेलों की मेज़बानी करने के इच्छुक देशों व शहरों की संख्या तेज़ी से घट रही है। इसका सबसे बड़ा कारण इनके आयोजन का बेहद खर्चीला होना है। विविध अनुमानों के अनुसार एक बार ओलंपिक्स के आयोजन में किसी भी शहर के लिये कई अरब डॉलर का खर्चा होता है। इसके अलावा इनका आयोजन शहर की अवसंरचना में भी आमूलचूल परिवर्तन की मांग करता है, जिससे स्थानीय लोग इनके अपने शहर में आयोजन का विरोध करते हैं। अनेक पश्चिमी देशों के शहरों ने अलग-अलग समय पर स्थानीय लोगों के मध्य वहाँ ओलंपिक्स पर आयोजन पर राय जाननी चाही तो लोगों ने लगभग एकमत से इनकार कर दिया। स्थानीय लोगों के विरोध की यह चुनौती उत्तरोत्तर बढ़ती जा रही है। ऐसे में यह संकट गहराता जा रहा है कि या तो इन खेलों का आयोजन कुछ शहरों तक सीमित रह जाएगा या सीमित रूप से लोकतांत्रिक देशों में ही किया जा सकेगा।

आयोजन-संबंधी चिंताओं के बावजूद खिलाड़ियों के लिये ओलंपिक्स सबसे महत्त्वपूर्ण प्रतियोगिताओं में से एक अभी भी बने हुए हैं। विभिन्न देशों के अनेक महान खिलाड़ी पुनः अपने देश का इस सदियों पुराने मंच पर प्रतिनिधित्व करने के लिये कमर कस चुके हैं, तो वहीं दूसरी ओर अनेक उदीयमान खिलाड़ी भी पेरिस में अपने कौशल की छाप छोड़कर वैश्विक ख्याति अर्जित करने को तैयार हैं। इस दौड़ में भारतीय खिलाड़ी भी पीछे नहीं हैं।

भारत के हालिया ओलंपिक प्रदर्शन की बात की जाए तो टोक्यो में 2021 में संपन्न हुए पिछले ओलंपिक खेलों (32वें) में भारतीय दल‌ ने देश की‌ झोली में एक स्वर्ण, दो रजत व चार कांस्य पदकों सहित कुल सात पदक डाले। इससे भी बड़ी बात यह थी कि यह सातों पदक छह अलग-अलग खेलों में जीते गए। 7 अगस्त, 2021 ओलंपिक में भारतीय चुनौती का अंतिम दिन था और धीरे-धीरे यह भारतीय खेलों के इतिहास का सबसे सुनहरा दिन बन गया। इस दिन अलसुबह ही अदिति अशोक ने महिला गोल्फ फाइनल में देश के लिए पदक की आशा को जीवित रखा और कई घंटों तक तालिका में दूसरे या तीसरे स्था‌न पर रहने के बाद अंतिम समय में चौथे स्थान पर जाकर पदक‌ से चूक गईं। हालाँकि भारतीय खेलों के इतिहास में चौथे स्थान का भी बहुत महत्त्व है। फ्लाइंग सिख मिल्खा सिंह व पीटी उषा जैसे दिग्गज भी ओलंपिक खेलों में चतुर्थ स्थान पर रह चुके हैं। अदिति के बाद बजरंग पूनिया ने कांस्य के रूप में देश को‌ कुश्ती में दूसरा पदक दिलाया तो सारा देश ख़ुशी से झूम उठा। कुश्ती के मुकाबले के कुछ ही देर बाद भाला फेंक प्रतियोगिता का फाइनल आयोजित किया गया। इसमें भारत के नीरज चोपड़ा ने क्वालीफाई किया था और भारत को एथलेटिक्स में पहला पदक दिलाने की आशा उनसे थी। इस आशा पर बखूबी खरे उतरते हुए उन्होंने देश को एथलेटिक्स में पहला और व्यक्तिगत खेलों में अभिनव बिंद्रा के बाद दूसरा स्वर्ण पदक दिलाया।

टोक्यो ओलंपिक्स की सुनहरी‌ यादों के साथ भारतीय दल वर्ष 2024 में पेरिस पहुँचा। पेरिस ओलंपिक्स भारत के लिए उत्साह और मायूसी की मिले-जुली भावनाओं के साथ बीता। इस बार भारत‌ के 117 खिलाड़ी (70 पुरुष, 47 महिलाएँ), 16 खेलों की 69 स्पर्धाओं में भाग लेते हुए पेरिस पहुँचे हैं। 26 जुलाई से 11 अगस्त तक चलने वाले पेरिस 2024 ओलंपिक में कुल मिलाकर, भारत ने छह पदक जीते, जिसमें एक रजत और पांच कांस्य शामिल रहे। मनु भाकर ने पेरिस 2024 ओलंपिक में भारत के लिए पहला पदक (कांस्य) जीता। इस तरह से ओलंपिक शूटिंग पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला बनीं। सरबजोत सिंह के साथ मिश्रित टीम 10 मीटर एयर पिस्टल में कांस्य पदक जीतने के बाद ही उन्होंने ओलंपिक के एक ही संस्करण में दो पदक जीतने वाली पहली भारतीय बनने का गौरव भी हासिल किया। इसी बीच स्वप्निल कुसाले ने निशानेबाजी में तीसरा पदक जीतकर इसे ओलंपिक के किसी एक संस्करण में किसी खेल में भारत की सबसे बड़ी उपलब्धि बना दिया। भारतीय पुरुष हॉकी टीम ने भी पेरिस में कांस्य पदक के साथ अपनी टोक्यो 2020 की सफलता की बराबरी की, जबकि भाला फेंक में रजत पदक जीतने के बाद नीरज चोपड़ा सबसे सफल व्यक्तिगत ओलंपियन बन गए। जबकि अमन सहरावत कुश्ती में कांस्य पदक जीतकर भारत के सबसे कम उम्र के ओलंपिक पदक विजेता बने। हालांकि भारत छह संभावित पदकों से चूक गया। इनमें से अधिकांश पदक मामूली चूक से हाथ से फिसल गये, क्योंकि एथलीट स्पर्धाओं में चौथे स्थान पर रहे। इसमें लक्ष्य सेन, मीराबाई चानू और मनु भाकर जैसे बड़े नाम शामिल थे। ऐतिहासिक फाइनल से पहले वज़न के कुछ ग्राम अधिक हो जाने के चलते विनेश फोगाट को अयोग्य करार दिये जाने से भारतीय मायूस हुए।

  चार्वी दवे  

(लेखिका चार्वी दवे मूलत: राजस्थान की हैं। उन्होंने मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर से स्नातक और सिंबायोसिस पुणे से एचआर (मानव संसाधन) में परास्नातक की उपाधि प्राप्त की है। वर्तमान में वे स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। साहित्य में विशेष रुचि होने के चलते ये लेखन का कार्य करती रही हैं और लेखन में करियर बनाना चाहती हैं। संगीत में इनकी विशेष रुचि है।)


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