नोएडा शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 9 दिसंबर से शुरू:   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

दृष्टि आईएएस ब्लॉग

जलवायु परिवर्तन का भारतीय शहरों पर प्रभाव

आपने कुछ दिनों पहले देखा होगा कि कैसे दिल्ली शहर के बीचोंबीच गाड़ियां तैर रही थीं, यमुना खतरे के निशान से बहुत ऊपर बह रही थी और इसके तट पर अप्राकृतिक रूप से बसे लोग अपने घरों को खाली कर रहे थे। दिल्ली की लगभग गलियों में पानी घुस आया था, घरों के भीतर भी पानी की आमद हो चुकी थी और सार्वजनिक स्थान जैसे पार्क, सामुदायिक भवन आदि में अनेक दिन तक पानी भरा हुआ था। यही ठहरा हुआ पानी जल जनित बीमारियों को भी आमंत्रित कर रहा था। क्या आपने इस बात पर विचार किया है कि आखिर 1978 के बाद दिल्ली में इतनी भयावह बाढ़ क्यों आई?

इसका उत्तर सहज जरूर है लेकिन उसके निहितार्थ बेहद गूढ़ हैं। जी हाँ! ये जलवायु परिवर्तन का नतीजा है। तो क्या इसने सिर्फ दिल्ली शहर को अपनी जद में लिया है। जी नहीं! भारत के लगभग सभी बड़े महानगर और शहर कहीं न कहीं जलवायु परिवर्तन की जद में रहे हैं। हाल ही में दिल्ली में आई बाढ़ का जुड़ाव हिमाचल प्रदेश में व्यास नदी के ऊपर बादल फटने की घटना से भी जुड़ता है। दरअसल बादल फटने के कारण व्यास नदी पर स्थित पुल ढह गया। इसके साथ ही वहाँ स्थित मकान भी ढहने लगे। गाडियाँ ऐसे तैर रही थीं मानो किसी बहावपूर्ण जल स्रोत में नाव खेई जा रही हो। यही बाढ़ का पानी हिमाचल प्रदेश से हरियाणा होते हुए दिल्ली तक आया और इसने यहाँ भयंकर तबाही मचाई।

दरअसल हथिनी कुंड बैराज से छोड़ा गया पानी बेहद कम समय में ही दिल्ली शहर में फैल गया। तो आखिर इतनी जल्दी बाढ़ का पानी दिल्ली शहर में फैला कैसे? इसका जवाब है- दिल्ली स्थित बाढ़ क्षेत्र का अतिक्रमण। जल विशेषज्ञों के मुताबिक, दिल्ली में बाढ़ संकट का मुख्य कारण बाढ़ क्षेत्र में अतिक्रमण करना है। अतिक्रमण से बाढ़ के मैदान पर ठोस अपशिष्ट का एकत्रित होना प्राकृतिक प्रवाह को बाधित करता है। नदी के मैदानी इलाकों में अतिक्रमण से शहरी इलाके भी प्रभावित होते हैं। विभिन्न मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, अतिक्रमण से हथिनी कुंड बैराज से छोड़े गए पानी को दिल्ली तक पहुंचने में कम समय लगा। पहले नदियों में 5 से 10 किमी चौड़े बाढ़ के मैदान होते थे, जिसमें पानी दूर तक फैल जाता था।

इसके साथ ही दिल्ली में यमुना का जलस्तर बढ़ने के पीछे की मुख्य वजह जंगल, घास के मैदान और आर्द्रभूमि की कमी को बताया जा रहा है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, सेंटर फॉर एनवायरमेंट मैनेजमेंट ऑफ डिग्रेडेड इकोसिस्टम्स के निदेशक सीआर बीबू बताते हैं कि पहले पानी रोकने के लिए घास के मैदान और आर्द्रभूमि खूब होते थे। ऊपरी इलाकों में पानी को रोकने की क्षमता कम हो गई है। ऐसे में निचले इलाकों में पानी तेजी से फैलता है।नदियों के किनारे फ्लाईओवर, बस स्टॉप और कबाड़खाने सामने आए हैं। ये सब कारण समग्र रूप से जलवायु परिवर्तन को उत्प्रेरित करते है।

आइये अब समझने का प्रयास करते हैं कि आखिर मानसून की शुरूआत में ही उत्तर भारत में इतनी अधिक वर्षा का होना एक सामान्य घटना है या फिर गंभीर जलवायु परिवर्तन की चेतावनी? इसका जवाब मौसम ब्यूरो के महानिदेशक एम.महापात्रा की एक टिप्पणी देती है। उनके अनुसार, दिल्ली में आई बाढ़ का मुख्य कारण जलवायु परिवर्तन है। दरअसल जलवायु परिवर्तन के कारण उत्तर भारत के कुछ स्थानों पर बादल फटने की घटनाओं के साथ ही तेज वर्षा भी हुई। सर्दी के मौसम में सक्रिय रहने वाले पश्चिमी विक्षोभ का असर इस बार वर्षा ऋतु तक भी रहा। पश्चिमी विक्षोभ और मानसून के टकराने के कारण ही सामान्य से काफी अधिक वर्षा हुई। जिसने भारत के उत्तरी और उत्तर पश्चिमी इलाकों को बहुत परेशान किया। जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और हरियाणा में रिकार्डतोड़ बारिश हुई।

पश्चिमी विक्षोभ के कारण भारतीय उपमहाद्वीप के इलाकों में जाड़े के दिनों में तूफान सी स्थिति का निर्माण होता है। वायुमंडल की ऊँचाई तक उपोष्ण कटिबंधीय जेट स्ट्रीम के प्रभाव के कारण भूमध्य सागर, अंध महासागर और कैस्पियन सागर से हवाएँ नमी लाकर भारत के उत्तर-पश्चिम इलाकों, पाकिस्तान और नेपाल में अचानक से जोरदार वर्षण की स्थिति उत्पन्न करती है। वर्षण की इस परिघटना में जोरदार बूंदों की बारिश से लेकर ओलावृष्टि तक होती है। हाल के दिनों में हिमाचल प्रदेश और कश्मीर के ऊपर भी पश्चिमी विक्षोभ अटक गया है। जिसका परिणाम मूसलाधार वर्षा के रूप में सामने आ रहा है।

करीब दस वर्ष पहले केदारनाथ धाम के ऊपर भी ऐसे ही पश्चिमी विक्षोभ और मानसून में टकराहट की स्थिति उत्पन्न हुई थी। इससे महातबाही हुई थी। विभिन्न विश्वस्त सूत्रों के मुताबिक इस घटना में 5000 से अधिक लोगों की जानें गई थी और तकरीबन 5 लाख लोग विस्थापित हुए थे। वही हालिया हिमाचल प्रदेश में बादल फटने की घटना सहित दिल्ली में आई बाढ़ के कारण हुए नुकसान की गणना करेंट ये आंकड़े खतरे की घण्टी का संकेत हैं। एसबीआई की एक रिसर्च रिपोर्ट इकोरैप के अनुसार बाढ़ के कारण देश को 10,000 से 15,000 करोड़ रुपये का आर्थिक नुकसान होने का अनुमान है। रिपोर्ट में कहा गया है कि बाढ़ और बिपरजॉय तूफान जैसी प्राकृतिक आपदाओं के कारण जानमाल का नुकसान देश के लिए चिंता की बात है।

आइये अब ये समझते है कि सदिर्यों के मौसम में सक्रिय रहने वाला पश्चिमी विक्षोभ वर्षा के दिनों में क्यों सक्रिय है?

जलवायु परिवर्तन के कारण यूरोप और भूमध्य सागरीय क्षेत्र में तापमान गर्मियों में भी सामान्य से नीचे रहा परिणामस्वरूप भूमध्यसागरीय जेट स्ट्रीम वर्ष भर सक्रिय रहा। भारतीय उपमहाद्वीप में मौसम सामान्य होने से हिंदमहासागरीय मानसून भी उत्तर भारत में पहुंच गया। परिणाम स्वरूप पश्चिमी विक्षोभ और मानसून में टकराव हुआ और अतिवृष्टि की परिस्थिति पैदा हुई।

पर्यावरण पर शोध करने वाली संस्था आई फॉरेस्ट के सीईओ चंद्र भूषण के मुताबिक मानसून में तेज बारिश का आना कोई असामान्य घटना नहीं है। पहले भी कम समय मे बहुत ज्यादा बारिश हुई है। हालिया दिनों में आई बाढ़ की घटना इसलिए भी असामान्य है क्योंकि इस बार मानसून काफी देरी से आया। बल्कि भारतीय मौसम विभाग की भविष्यवाणी से भी देरी से मानसून आया। जून के पहले 20 दिनों में तो औसत से काफी कम वर्षा हुई। भारत के पश्चिमी और दक्षिणी इलाकों में तो औसत से 60 फीसदी कम बारिश हुई। इसके बाद मानसून में अचानक से तेजी आई और इतनी ज्यादा वर्षा हुई कि इस बार वर्षा अधिशेष की बात की जा रही है।

जलवायु परिवर्तन की इस भयावहता को मौसम ब्यूरो के महानिदेशक एम.महापात्रा इस तरह बताते हैं कि भारी बारिश और इसके बाद अचानक से आई बाढ़ मानसून पर जलवायु परिवर्तन के गंभीर प्रभाव को बताते हैं। उनका कहना कि यदि अब भी हम पर्यावरण के प्रति संवेदनशील न हुए तो ऐसी भीषण आपदाओं को बार-बार झेलना पड़ेगा। जलवायु वैज्ञानिक रॉक्सी मैथ्यू कोल कहते है कि बदलती जलवायु ने पहाड़ी इलाकों खासकर हिमालय की तलहटी पर बसे क्षेत्रों को बारिश के प्रति अत्यधिक संवेदनशील बना दिया है। अब हमें अपनी कार्यप्रणाली को पर्यावरण के सुसंगत बनाने पर ध्यान देना होगा। हमें अपने विकास को इस तरह रचनात्मक रूप देना होगा कि यह हरित संस्कृति के अनुकूल हो।

  संकर्षण शुक्ला  

संकर्षण शुक्ला उत्तर प्रदेश के रायबरेली जिले से हैं। इन्होने स्नातक की पढ़ाई अपने गृह जनपद से ही की है। इसके बाद बीबीएयू लखनऊ से जनसंचार एवं पत्रकारिता में परास्नातक किया है। आजकल वे सिविल सर्विसेज की तैयारी करने के साथ ही विभिन्न वेबसाइटों के लिए ब्लॉग और पत्र-पत्रिकाओं में किताब की समीक्षा लिखते हैं।

-->
close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2
× Snow