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विज्ञापनों का उपभोक्ताओं पर प्रभाव

वर्तमान समय में विज्ञापन बाजार की दुनिया का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुका है। एक आंकड़े के अनुसार औसत व्यक्ति प्रतिदिन 280 से 310 विज्ञापन देखता है। विज्ञापन लोगों को सूचना, उत्पादों आदि के बारे में जागरूक करने का एक शानदार तरीका है। लेकिन वर्तमान समय में प्रसारित विज्ञापन समाज के लिए समस्या का कारण भी हो गया है। सभी ने उन विज्ञापनों को देखा है जहां विज्ञापनदाता उपभोक्ता को यह विश्वास दिलाने की कोशिश करते हैं कि एक उत्पाद आपके जीवन को पांच गुना बेहतर बना देगा और जब तक वे उत्पाद नहीं खरीद लेते तब तक उनका जीवन बेहतर नहीं होगा। विज्ञापनदाता का इरादा आपके दिमाग में घुसने की कोशिश करना और आपके विचारों और निर्णयों को प्रभावित करना है। कार, बीमा, दवा, पेय और राजनीतिक विज्ञापन जैसे विज्ञापन अक्सर उपभोक्ता को प्रभावित करने की कोशिश करते हैं। विज्ञापन अपने मजबूत प्रभाव के कारण समाज के लिए हानिकारक है। विज्ञापन हमें यह महसूस कराते हैं कि हम जितने अच्छे हैं वास्तव में उतने अच्छे नहीं हैं। अपना सामान बेचने के लिए विज्ञापन पहले आपको ऐसा महसूस कराते हैं कि आप इस प्रोडक्ट बिना अधूरे हैं।

अगर संक्षेप में कहें, विज्ञापन आपकी खुशी का वादा करते हैं, बशर्ते कि आप बदले में पैसा खर्च करें। इसका परिणाम होता है गैर जरूरी चीजों का उपभोग करना और अनावश्यक कचरे के उत्पादन का समर्थन करना जो हमारे ग्रह को प्रदूषित कर रहा है। बाजार में अधिक से अधिक अपनी लोकप्रियता बढ़ाने, अपनी साख बनाने, अपने उत्पाद को अन्य उत्पादों की तुलना में बेहतर साबित करने तथा अधिक से अधिक समय तक मार्केट में बने रहने के लिए विज्ञापन का प्रयोग एक सशक्त हथियार के रूप में होता है। वास्तव में विज्ञापन ही वह माध्यम है जिसके द्वारा पाठक अथवा दर्शक के मन को प्रभावित करते हुए उसके दिल में अपने उत्पाद के प्रति सकारात्मक भाव उत्पन्न करने के सभी कंपनियों द्वारा हर मुमकिन कोशिश की जाती है। विज्ञापनों से हमारे समाज और संस्कृति को लक्षित किया जाता है। चूँकि विज्ञापन का समाज व संस्कृति पर भी गहरा प्रभाव पड़ता है। संचार के सभी माध्यमों में वह चाहे प्रिंट हो या इलेक्ट्रॉनिक, विज्ञापन एक अभिन्न अंग बन चुका है। विज्ञापनों ने समाज व संस्कृति को विभिन्न तरह से प्रभावित किया है। इसने, समाज और संस्कृति पर नकारात्मक और सकारात्मक दोनों तरह से प्रभावित किया है।

विज्ञापन के सकारात्मक प्रभाव

  • विज्ञापन ग्राहकों को बाजार या मौजूदा उत्पाद में नया क्या है, इसके बारे में जागरूक बनाता है क्योंकि यदि उत्पादों का विज्ञापन नहीं किया जाता है तो बड़े स्तर पर ग्राहकों को पता नहीं चलेगा कि बाजार में क्या हो रहा है।
  • विज्ञापन ग्राहकों को उनके लिए सर्वोत्तम उत्पाद खोजने में भी मदद करता है। जब उन्हें उत्पादों की श्रेणी के बारे में पता चलता है, तो वे तुलना करने और उनके लिए सबसे अच्छा क्या खरीदने में सक्षम होते हैं।
  • विज्ञापन उत्पाद के उत्पादकों या विक्रेताओं के लिए भी महत्वपूर्ण है।
  • विज्ञापन किसी उत्पाद की बिक्री बढ़ाने में मदद करता है।
  • विज्ञापन कंपनियों को बाज़ार में अपने प्रतिद्वंद्वियों के बारे में जागरूक करने में मदद करता है और यह बताता है कि वे अपने उत्पाद को कैसे बेहतर बना सकते हैं;
  • विज्ञापन किसी भी कंपनी के लिए एक नया उत्पाद लॉन्च करने या जारी करने की नींव है;
  • विज्ञापन ग्राहक वफादारी बनाने में मदद करता है;
  • किसी उत्पाद की मांग विज्ञापन का परिणाम है।
  • विज्ञापन न केवल ग्राहकों और कंपनियों या उत्पादकों बल्कि बड़े पैमाने पर समाज की भी मदद करता है। विज्ञापन सामाजिक मुद्दों से निपटने और जनता को इन मुद्दों पर शिक्षित करने में मदद करता है।

विज्ञापन के नकारात्मक प्रभाव

  • उपभोक्तावादी संस्कृति को बढ़ावा : विज्ञापन ने उपभोक्तावादी संस्कृति को बढ़ावा दिया है। उपभोक्तावादी संस्कृति एक सिद्धांत पर काम करता है, कि बाजार में सभी वस्तुएं उपभोग करने योग्य हैं बस उन्हें सही तरीके से एक जरूरी वस्तु के रूप में बाजार में स्थापित करने की जरूरत है। उसको खरीदने और बेचने वाले लोग तो मिल ही जाएंगे। विज्ञापन इसी सिद्धांत का अनुसरण करते हुए बाजार में किसी भी वस्तु को प्रभावी रूप से पाठकों, दर्शकों और श्रोताओं के समक्ष वस्तु की जरूरत को बनाने के प्रयासरत रहते हैं। उन्हें यह अहसास दिलाते हैं कि उस वस्तु के बिना उनका जीवन अधूरा है। विज्ञापन मानव के मन मस्तिष्क को बहुत अधिक प्रभावित करता है। विज्ञापन लोगों को लालच, भय और आवश्यकता बताकर वस्तु को खरीदने के लिए प्रेरित करता है। जिससे कई बार लोग बे काम की वस्तु केवल इसलिए खरीद लेते हैं ताकि उनका समाज में प्रभाव अधिक पड़ सके।
  • पश्चिमी सभ्यता का प्रचार : विज्ञापन से जो हमारे समाज और संस्कृति पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है उसमें से एक है पश्चिमी सभ्यता का प्रचार होना। इसका प्रयोग वस्तुओं और सेवाओं को बेचने के लिए, जैसे, अधिक कपड़े की बिक्री के लिए स्पाइडर मैन और सुपरमैन के चित्रों के कपड़े का प्रयोग। ठीक इसी तरह मैगी के विज्ञापन में जल्दी भोजन तैयार करने के लिए 5 मिनट में मैगी तैयार करें।
  • सेक्स और हिंसक व्यवहार को बढ़ावा देता है : विज्ञापन समाज में सेक्स और हिंसक प्रवृत्ति को बढ़ावा देता है। कई वस्तुओं के विज्ञापन में यह दिखाया जाता है कि, एक व्यक्ति किसी वस्तु का उपयोग कर तीन-चार व्यक्तियों को मार रहा है या किसी वस्तु का उपयोग कर उस व्यक्ति से महिलाएं आकर्षित होती हैं। ठीक इसके विपरीत महिलाएं यदि किसी प्रोडक्ट का प्रयोग करते विज्ञापन में अभिनय कर रही हैं तो पुरुष अधिक आकर्षित होने लगते हैं। इस तरह के विज्ञापनों का उद्देश्य केवल वस्तु की बिक्री को बढ़ाना होता है।
  • छोटे उद्योग पर प्रतिकूल प्रभाव : बाजार में लगभग सभी उत्पादों के विज्ञापन होते हैं। एक ही वस्तु को अलग-अलग कंपनियां निर्माण करती हैं। जिसके कारण सभी उत्पादक अपने वस्तु को सर्वश्रेष्ठ बताने के लिए विज्ञापन का प्रयोग करते हैं। जिस उत्पादक का विज्ञापन उपभोक्ता को अधिक संतुष्ट करता है या जिसका प्रचार बहुत अधिक हुआ होता है तो ऐसे में यह ज्यादा संभव है कि उपभोक्ता उसी वस्तु को खरीदता है। परंतु बाजार में मौजूद छोटे उद्योग अपने उत्पाद का विज्ञापन नहीं कर पाते। जिसका कारण है विज्ञापन पर अधिक लागत खर्च, ऐसे में वह अपनी उपस्थिति को बेच नहीं पाते या उस मात्रा में नहीं भेज पाते जिस मात्रा में विज्ञापन करने वाला उत्पादक अपने माल को बेच रहा होता है। विज्ञापन ने लोगों के मस्तिष्क में एक धारणा बनाई है जिसका विज्ञापन अधिक हो वह 'ब्रांडेड' होता है और जिसका विज्ञापन नहीं होता है वह 'लोकल और खराब' होता है। लोगों की इसी धारणा की वजह से छोटे उद्योगों द्वारा निर्मित वस्तुएं उपभोक्ता ज्यादातर नहीं खरीदते हैं।
  • विश्व बाजार का सिद्धांत : आज विज्ञापन हर क्षेत्र में उपलब्ध हैं। विज्ञापन के कारण विश्व बाजार का सिद्धांत सामने उभरकर आया है। वर्तमान समय में विज्ञापन का महत्व दिन प्रतिदिन और बढ़ता जा रहा है। विज्ञापन का पूरा कारोबार "जो दिखता है वही बिकता है" की तर्ज पर चल रहा है। आज के समय में तो ऐसा हो गया है कि विज्ञापन के माध्यम से मांग पैदा की जा रही है।

  सचिन समर  

सचिन समर ने बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी वाराणसी से 'हिंदी पत्रकारिता' में स्नातकोत्तर किया है। वर्तमान में भारतीय जन संचार संस्थान नई दिल्ली में 'विज्ञापन एवं जनसंपर्क' पाठ्यक्रम में अध्ययनरत है साथ ही स्वतंत्र पत्रकारिता एवं लेखन कर रहे हैं।

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