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प्रतिष्ठित पर्यटक स्थल: काज़ीरंगा

काज़ीरंगा राष्ट्रीय उद्यान असम में गुवाहाटी से 194 किमी. की दूरी पर स्थित है। यह राष्ट्रीय उद्यान विश्व धरोहर स्थल के रूप में जाना जाता है और यह भारत के सबसे अच्छे वन्यजीव अभयारण्यों में से एक है। प्रसिद्ध एक सींग वाला गैंडा इस वन्यजीव अभयारण्य में सबसे महत्त्वपूर्ण संरक्षित जीव प्रजाति है। विश्व के दो तिहाई गैंडे काज़ीरंगा में पाए जाते हैं। काज़ीरंगा को वर्ष 2006 में बाघ अभयारण्य भी नामित किया गया था।

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काज़ीरंगा का इतिहास

काज़ीरंगा की स्थापना वर्ष 1905 में हुई थी। आरंभ में इस वन्यजीव अभयारण्य का कुल क्षेत्रफल लगभग 232 वर्ग किमी था। तीन वर्षों के बाद ब्रह्मपुत्र नदी के तट के साथ इसके लिये रास्ता बनाते हुए वन्यजीव अभयारण्य के संपूर्ण क्षेत्र को 152 वर्ग किमी तक बढ़ा दिया गया। मैरी कर्ज़न की अनुशंसा पर वर्ष 1908 में काज़ीरंगा को आरक्षित वन घोषित किया गया। यह उद्यान पूर्वी हिमालय के किनारे पर अवस्थित है जिसके सोनितपुर, नगांव और गोलाघाट ज़िले के रूप में तीन ‘हॉटस्पॉट’ हैं। वर्ष 1916 में इसे एक खेल अभयारण्य बनाया गया जिसे काज़ीरंगा खेल अभयारण्य नाम दिया गया। वर्ष 1938 में इस क्षेत्र में शिकार पर प्रतिबंध लगा दिया गया और केवल आगंतुकों को उद्यान में प्रवेश करने की अनुमति दी गई।

बाद में वर्ष 1954 में असम सरकार ने एक विधेयक पारित किया जिसे ‘असम गैंडा विधेयक’ (Assam Rhinoceros Bill) के रूप में जाना जाता है। इसे क्षेत्र में गैंडों के अवैध शिकार पर नियंत्रण के लिये लाया गया था। IUCN घोषणा के अनुसार इस संवेदनशील प्रजाति का संरक्षण एक अनिवार्य कार्रवाई है। 14 वर्ष बाद वर्ष 1968 में राज्य सरकार ने ‘असम राष्ट्रीय उद्यान अधिनियम 1968’ नामक एक और अधिनियम पारित किया। इस अधिनियम के पारित होने के साथ काज़ीरंगा एक निर्दिष्ट राष्ट्रीय उद्यान बन गया। इसके उपरांत वर्ष 1985 में काज़ीरंगा को यूनेस्को द्वारा ‘विश्व धरोहर स्थल’ घोषित किया गया।

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वर्ष 2017 में भारत सरकार के प्रेस सूचना ब्यूरो द्वारा प्रकाशित लेख के अनुसार काज़ीरंगा राष्ट्रीय उद्यान पाँच बड़े वन्यजीवों के लिये लोकप्रिय है, जिनमें शामिल हैं:

  • गैंडे, जिनकी कुल संख्या 2401 है,
    • हाल के एक सर्वेक्षण के अनुसार वर्ष 2022 में यह संख्या बढ़कर 2613 हो गई है।
  • बाघ, जिनकी कुल संख्या 111 है,
  • हाथियों की कुल संख्या 1165 है,
  • एशियाई जंगली भैंसे,
  • पूर्वी दलदली हिरण, जिनकी संख्या 1,148 है।

यही कारण है कि इस राष्ट्रीय उद्यान को देश में वन्यजीवों के लिये सबसे अच्छे स्थलों में से एक के रूप में जाना जाता है।

काज़ीरंगा का भूगोल और मुख्य आकर्षण

राष्ट्रीय उद्यान की पूरी लंबाई लगभग 40 किमी और चौड़ाई 13 किमी है। काज़ीरंगा लगभग 55 प्रजातियों का घर है। इनमें भारतीय जंगली सूअर, फिशिंग कैट, कैप्ड लंगूर, भारतीय तेंदुआ, हॉग हिरण, रीछ, दलदली हिरण, चीनी पैंगोलिन, सियार, भारतीय पैंगोलिन, बंगाल लोमड़ी, किंग कोबरा, बंगाल कोबरा, रॉक पायथन आदि शामिल हैं। चूँकि काज़ीरंगा में प्रवासी और स्थानिक पक्षियों की 500 से अधिक प्रजातियाँ पाई जाती हैं, ‘बर्डलाइफ इंटरनेशनल’ ने इसे एक महत्त्वपूर्ण पक्षी क्षेत्र घोषित किया है। काज़ीरंगा में लगभग 26 प्रजातियाँ ऐसी हैं जो लुप्तप्राय श्रेणी से संबंधित है। यहाँ 42 प्रकार के मछली कि प्रजातियाँ, 60 प्रकार के सरीसृप प्रजातियाँ, 24 प्रकार के उभयचर प्रजातियाँ, 440 प्रकार के पादप प्रजातियाँ और 491 प्रकार के तितली कि प्रजातियाँ भी पाई जाती हैं।

काज़ीरंगा का विस्तार ब्रह्मपुत्र नदी के आस-पास है जो इस क्षेत्र कि एक विशाल नदी है। इसके परिणामस्वरूप बहुत-सी झीलें, दलदल, घास भूमि और समतल घास के मैदान इस सुंदर उद्यान के अंग हैं। यहाँ 2220 मिमी वार्षिक वर्षा होती है। जुलाई और अगस्त के बीच मानसून के मौसम के दौरान ब्रह्मपुत्र का जल स्तर बढ़ जाता हैं और इसके परिणामस्वरूप यह बागोरी के पश्चिमी भाग के साथ जलमग्न हो जाता है। बाढ़ के दौरान वन्यजीव कार्बी के वन क्षेत्र की ओर पलायन कर जाते है।

प्रतिष्ठित पर्यटक स्थल: काज़ीरंगा

भारत के केंद्र सरकार द्वारा ‘प्रतिष्ठित पर्यटक स्थल’ (Iconic Tourist Site) कि सूची में 17 अन्य स्थानों के साथ काज़ीरंगा को भी शामिल करने की घोषणा की गई है। केंद्रीय मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल ने बताया है कि इस स्थल का विकास इस तरह किया जाएगा जहाँ कनेक्टिविटी पर विशेष ध्यान दिया जाएगा। कनेक्टिविटी के साथ-साथ राष्ट्रीय उद्यान में आने वाले पर्यटकों के लिये एक शानदार अनुभव के निर्माण पर भी ध्यान दिया जाएगा। इसे एक प्रतिष्ठित पर्यटन स्थल बनाने के उद्देश्य से मंत्रालय ने इस क्षेत्र के विकास पर ध्यान केंद्रित किया है और इसके लिये स्थानीय लोगों से भी मदद मांगी है। कई कंपनियों ने भी क्षेत्र के विकास में निवेश की पेशकश की है। यहाँ कुछ ऐसे स्थान मौजूद हैं जो काज़ीरंगा को एक महत्त्वपूर्ण प्रतिष्ठित पर्यटन स्थल बनाते हैं:

काज़ीरंगा में भ्रमण स्थल

1. पनबरी रिज़र्व फॉरेस्ट

पनबारी रिज़र्व फॉरेस्ट काज़ीरंगा राष्ट्रीय उद्यान के निकट स्थित है। यह आरक्षित वन गोलाघाट ज़िले में स्थित है। यहाँ ग्रेट इंडियन हॉर्नबिल, क्रेस्टेड गोशाक जैसी गैर-स्थानीय प्रजातियाँ भी देखी जा सकती हैं। यह वन 10 वर्ग किमी के क्षेत्र में विस्तृत हैं। उद्यान के निकट स्थित यह वन उसकी सुंदरता में योगदान करता है। इस क्षेत्र में धब्बेदार पिक्यूलेट, पाइड फाल्कोनेट, क्रो बील्ड ड्रोंगो जैसी कई दुर्लभ पक्षी प्रजातियाँ भी पाई जाती हैं।

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2. चाय बागान

ये बागान असम की शान है। असम की चाय दुनिया भर में मशहूर है। काज़ीरंगा राष्ट्रीय उद्यान की यात्रा के दौरान पर्यटकों को पास ही स्थित चाय बागानों के भ्रमण के लिये भी कुछ समय अवश्य निकालना चाहिये। पहाड़ियों में हरी-भरी झाड़ियों का खूबसूरत नज़ारा इसे दर्शनीय स्थल बनाता है। असम अपने अद्भुत चाय बागानों और बड़े पैमाने पर चाय उत्पादन के लिये विश्व स्तर पर जाना जाता है।। काज़ीरंगा के अत्यंत निकट स्थित नुमालीगढ़ चाय बागान इस क्षेत्र के आकर्षण में वृद्धि करता है। काज़ीरंगा से चाय के बागानों का खूबसूरत नज़ारा देखा जा सकता है।

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3. देव पर्वत खंडहर

देव पर्वत खंडहर, जिसे काज़ीरंगा देव पर्वत खंडहर के नाम से भी जाना जाता है, गोलाघाट ज़िले नुमालीगढ़ से 5 किमी की दूरी पर स्थित है।। ये खंडहर राष्ट्रीय उद्यान के निकट ही है। इन खंडहरों को देव पहाड़ या दो पहाड़ के रूप में भी जाना जाता है। यहाँ प्राचीन मंदिर और टूटी मूर्तियों के अवशेष देखे जा सकते हैं। पूरे परिसर में टूटी-बिखरी हुई मूर्तियाँ इस सुंदर मंदिर के इतिहास को दर्शाती हैं। देव पर्वत के खंडहरों पर चढ़ना, विशेष रूप से गर्मियों में, यात्रियों के लिये एक दुरूह कार्य हो सकता है। लेकिन एक बार जब आप खंडहर के शीर्ष पर पहुँच जाते हैं तो यहाँ का नज़ारा आपको मंत्रमुग्ध कर देता है। खंडहर के शीर्ष से नुमालीगढ़ चाय बागान भी देखा जा सकता है। इसके साथ ही, यहाँ से कार्बी एंगलोंग पहाड़ियाँ भी नज़र आती हैं।

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4. काकोचांग जलप्रपात

ये जलप्रपात बोकाखत से 13 किमी दूर स्थित हैं जो असम के गोलाघाट ज़िले में है। ये आकर्षक झरने प्रकृति का सुंदर सृजन हैं और आगंतुकों को मोहित करते हैं। कॉफी और रबर के बागानों के बीच काकोचांग झरने पूरे परिदृश्य को अत्यंत आकर्षक बनाते हैं । यह पर्यटकों के साथ-साथ स्थानीय लोगों के लिये भी एक अत्यंत लोकप्रिय पिकनिक स्थल है। झरने के आसपास बहुत-सी जगहें मौजूद हैं जहाँ आगंतुक पारिवारिक समय का आनंद ले सकते हैं । यहाँ से नुमालीगढ़ के खूबसूरत खंडहर भी देखे जा सकते हैं जो अत्यंत पुरातात्विक महत्त्व रखते हैं।

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5. कल्याणी मंदिर

यह मंदिर गोलाघाट ज़िले में डिपोटा (Dipota) नामक क्षेत्र में स्थित है। डिपोटा क्षेत्र हेलेम रेवेन्यू सर्कल के अंतर्गत आता है। कल्याणी नामक देवी को समर्पित इस यह मंदिर, इसके पीछे की एक छोटी-सी कहानी के लिये जाना जाता है। कहा जाता है कि अरिमत्त नामक एक राजा था जिसने इस मंदिर का निर्माण कराया था और इसे देवी कल्याणी को समर्पित किया था। देवी कल्याणी ‘शक्ति’ का एक रूप हैं और देवी दुर्गा का एक महत्त्वपूर्ण रूप है। मंदिर की वास्तुकला बेहद सरल है, यह असम के एक विशिष्ट नामघर जैसा दिखता है। इस मंदिर में नियमित रूप से श्रद्धालु आते हैं। चूँकि मंदिर काज़ीरंगा राष्ट्रीय उद्यान के पास स्थित है, इसलिये बहुत से आगंतुक इस मंदिर में भी जाना पसंद करते हैं।

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6. माधबदेव थान

यह मंदिर श्री माधवदेव का जन्म स्थान है। वे श्रीमंत शंकरदेव के सबसे विनम्र शिष्य थे। इस मंदिर को ‘लेटेकु पुखुरी’ के नाम से भी जाना जाता हैं जो लखीमपुर ज़िले में बोरबली गाँव के पास स्थित है। श्री माधवदेव का जन्म वर्ष 1489 में हुआ था और उन्हें असम में वैष्णव संस्कृति के एक महत्त्वपूर्ण अंग के रूप में याद किया जाता है। श्रीमंत शंकरदेव की मृत्यु के बाद श्री माधवदेव असम के वैष्णवों के धार्मिक गुरु बने। उन्हें ‘बोरगीत’ देने के लिये भी जाना जाता हैं, जिन्हें आज भी असम में भजनों के रूप में गाया जाता है। मंदिर में श्री माधवदेव के युग की पुस्तकों और पांडुलिपियों का भी एक बड़ा संग्रह हैं जिन्हें पर्यटक देख और पढ़ सकते हैं।

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7. पेटुआ-गोसानी थान

यह भी इस क्षेत्र के प्राचीनतम मंदिरों में से एक है। यह मंदिर देवी काली को समर्पित है जो इसे इतिहास के उन प्राचीन मंदिरों में से एक बनाता है जहाँ आज भी देवी काली की पूजा की जाती है। वे देवी काली की पूजा केसैखैती (Kesaikhaiti) के रूप में करते है। इस मंदिर से जुड़ी एक दिलचस्प कहानी भी है। जब अंग्रेज लखीमपुर के क्षेत्र पर नियंत्रण करने के लिये संघर्ष कर रहे थे, तब उन्होंने इस मंदिर की खोज की। यह भी कहा जाता है कि दाफला जनजाति के लोग, जो वर्तमान में अरुणाचल प्रदेश राज्य में रहते हैं, इस मंदिर में धार्मिक उद्देश्यों से आते थे। हर साल स्थानीय लोग और बाहरी आगंतुक इस मंदिर में आते हैं और देवी काली के प्रति श्रद्धा निवेदित करते हैं।

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8. राधा पुखुरी

राधा पुखुरी और नारायणपुर काज़ीरंगा राष्ट्रीय उद्यान परिसर में स्थित कुछ सुंदर स्थान है जिनका भ्रमण किया जा सकता है। यह सवकुची गाँव में स्थित है। अभी भी इस पोखर का उपयोग असम राज्य के मत्स्य विभाग द्वारा किया जाता है जहाँ वे मछलियों का प्रजनन करात हैं। इस पोखर का निर्माण 1400-1500 ईस्वी के बीच हुआ था। इसे लक्ष्मीनारायण नाम के एक प्रसिद्ध राजा ने बनवाया था और उसने अपनी पत्नी राधा के नाम पर इस पोखर का नाम रखा था। कुछ इतिहासकारों का कहना है कि इस तालाब का निर्माण रानी सरबेश्वरी (सर्वेश्वरी) ने करवाया था। इस पोखर को बहुत लंबे समय तक अधपुखुरी (अधूरे निर्माण के कारण) के नाम से भी जाना जाता था। बाद में इसका नाम बदलकर मूल नाम राधा पुखुरी कर दिया गया। यह स्थान काज़ीरंगा राष्ट्रीय उद्यान से लगभग 34 किमी दूर स्थित है।

9. भटौकुची थान

यह एक छोटा मंदिर है जो लखीमपुर ज़िले में धौलपुर के पास कथनी गाँव में स्थित है। कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण केशवशरण भटौकुचिया अट्टा ने कराया था जिसके नाम पर मंदिर को यह नाम मिला है। प्राचीन ग्रंथ कथागुरुचरित के अनुसार केशबसरन (केशवशरण) का जन्म वर्ष 1605 में हुआ था और मृत्यु वर्ष 1665 में हुई। हर साल बड़ी संख्या में लोग इस मंदिर में आशीर्वाद लेने आते हैं। स्थानीय लोगों के साथ ही यहाँ बड़ी संख्या में बाहर के लोग भी आते हैं। चाय के बागानों और वन के बीच स्थित यह मंदिर पर्यटकों और स्थानीय लोगों के लिये एक आदर्श स्थान है। इस मंदिर की वास्तुकला असम के शिल्प कौशल की झलक देती है।

बाढ़ काज़ीरंगा के लिये एक प्रमुख समस्या रही है जो क्षेत्र, स्थानीय आबादी और वन्यजीवन को प्रभावित करती है। वर्ष 2021 में आई बाढ़ ने लगभग 70 प्रतिशत भूमि को जलमग्न कर दिया था और वन्यजीव उच्च मैदानों की ओर पलायन को बाध्य हुए थे। हालाँकि यह अभी भी इस क्षेत्र में पशुओं और पक्षियों के लिये सबसे प्रमुख भूमि क्षेत्र में से एक है।। प्रतिष्ठित पर्यटन स्थलों की सूची में शामिल होने से निश्चय ही यह राष्ट्रीय उद्यान भविष्य और विकास कर सकेगा।


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