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कैसे स्वतंत्र हुआ था गोवा?

कोंकण तट पर स्थित गोवा एक प्राकृतिक बंदरगाह होने के साथ ही भारत के सर्वाधिक पसंदीदा पर्यटन स्थलों में से एक है। यहाँ पर दर्शनीय समुद्र तट जैसे वेगाटर समुद्र तट, अंजना समुद्र तट के साथ समुद्र तटों की रानी कहा जाने वाला कैलंगयुत समुद्र तट स्थित है। अपनी प्राकृतिक खूबसूरती से इतर गोवा एक और चीज के लिए भी जाना जाता है; यहाँ पर ढेरों कसीनो है। रणनीतिक भौगोलिक अवस्थिति के साथ ही गोवा का एक रोचक अतीत भी है। गोवा का इतिहास तीसरी सदी ईसा पूर्व से शुरू होता है। यहाँ पर मौर्य वंश द्वारा शासन की स्थापना के पश्चात सातवाहन शासकों द्वारा राजकाज चलाया गया। इसके बाद 580 ईसवी से 750 ईसवी तक बादामी शासकों ने शासन संभाला। 1312 ईसवी में गोवा दिल्ली सल्तनत के अधीन आ गया। इसके कुछ समय बाद गोवा पर लगभग 100 वर्षों के लिए विजयनगर राज्य का शासन रहा। विजयनगर के पश्चात यहाँ पर बीजापुर के शासक आदिलशाह ने शासन कार्य शुरू किया।

आदिलशाह ने गोवा वेल्हा को अपनी दूसरी राजधानी बनाया। इसी कालखंड में भारत मे पुर्तगालियों का आगमन हुआ। साम्राज्य विस्तार की प्रक्रिया में पुर्तगालियो ने गोवा को भी अपने अधिकार क्षेत्र में शामिल किया। पुर्तगाली गवर्नर अल्फांसो डी अल्बुकर्क ने वर्ष 1510 में गोवा पर आक्रमण किया। बिना किसी संघर्ष के ही गोवा पर पुर्तगालियों ने कब्जा कर लिया। गोवा पर पुर्तगालियो का ये कब्जा लगभग 450 वर्षों तक रहा।

शेष भारत पर जरूर ब्रिटिश आधिपत्य था लेकिन गोवा पर पुर्तगालियों का ही राज कायम रहा। गोवा पर पुर्तगाली साम्राज्य के कायम होने के लगभग 270 वर्षों बाद इस शासन से आजाद होने की कोशिशें की गईं। गोवा के एक गाँव कैंडोलिम में एक पादरी परिवार ने पुर्तग़ालियों द्वारा चर्च के उच्च पदों पर स्थानीय लोगों पर यूरोपीयों-पुर्तगालियों को तरजीह दिए जाने के विरुद्ध आवाज उठाई। पुर्तगाली प्रशासन जब न माना तो उन्होंने मैसूर के राजा टीपू सुल्तान के साथ मिलकर एक योजना बनाई।

इस योजना के तहत पुर्तगाली सेना के खाने में जहर मिलाकर उन्हें मारना था और ठीक इसी समय टीपू सुल्तान हमला कर देता और गोवा पुर्तगालियों के राज्य से मुक्त हो जाता। खाने में जहर मिलाने का काम एक स्थानीय बेकरी वाले को दिया गया। लेकिन बेकरी वाले ने इस खबर को पुर्तगाली प्रशासन को बता दिया। इसके बाद पुर्तगाली प्रशासन ने अपने विरुद्ध उठने वाली आवाजों को दबाने के लिए इस योजना के 15 षड्यंत्रकारियों को फाँसी पर चढ़ा दिया।

वर्ष 1910 में पुर्तगाल में राजशाही का खात्मा हुआ। अब गोवावासियों में आजादी की एक नई उम्मीद जगी। इसी दरम्यान पुर्तगाल के पहले अखबार ओ हेराल्डो द्वारा वहाँ के शासन का जबरदस्त विरोध किया गया। इसके उपरांत वहाँ के स्थानीय प्रशासन ने वर्ष 1917 में जबरदस्त सख्तियाँ आरोपित कर दी। वर्ष 1930 में इन सख्तियों का दायरा बढ़ाते हुए पुर्तगाली उपनिवेशों में राष्ट्रीय सम्मेलनों और रैलियों पर पाबंदी लगा दी।

1930 के दशक में ही गोवा में राजनीतिक गतिविधियों ने जोर पकड़ा। 1938 में गोवा कांग्रेस की स्थापना की गई। इसके अगले दशक में राममनोहर लोहिया के नेतृत्व में गोवा में आजादी के लिए सत्याग्रह शुरू हुआ। वर्ष 1946 में अनेक सत्याग्रही जेल भी गए। इसी कालखंड में द्वितीय विश्वयुद्ध समाप्त होता है और बदली हुई परिस्थितियों में पुर्तगाल के प्रधानमंत्री एंटोनियो डी ओलिवेरा सालाजार वहाँ पर अधिनायकवादी सत्ता की स्थापना करते है।

द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद पुर्तगाल नाटो का सदस्य बनता है। सालाजार गोवा को भी पुर्तगाल का हिस्सा बताते है; इससे वो गोवा की सुरक्षा के लिए नाटो की सुरक्षा छतरी का इंतज़ाम भी कर लेते है। भारत लगातार पुर्तगाली प्रशासन से गोवा की स्वतंत्रता की बातचीत की कोशिशें करता लेकिन पुर्तगाली प्रशासन कभी भी इस बाबत वार्ता की मेज पर आने को तैयार नहीं होता। इसी दरम्यान गोवा में आजाद गोमांतक दल और गोवा लिबरेशन आर्मी द्वारा सशस्त्र क्रांति की भी कोशिशें की जाती है। वर्ष 1954 में फ्रांसीसी कॉलोनी पुडुचेरी का शांतिपूर्वक विलय कर लिया जाता है। गोवा में भी आजादी की लड़ाई तेज हो जाती है। दक्षिणपंथी और वामपंथी; दोनों ही गुटों द्वारा गोवा की आजादी के लिए कोशिशें की जाती है। जनसंघ के नेता जगन्नाथ राव अपने 3000 लोगों के साथ गोवा में घुसने की कोशिश करते है। इन्हें रोकने के लिए पुर्तगाली प्रशासन द्वारा लाठीचार्ज कर दिया जाता है जिससे अनेक कार्यकर्ता घायल हो जाते है।

पुर्तगाल अंतरराष्ट्रीय बिरादरी में इस मसले को जोरशोर से उठाता है और इस मसले को अपनी आंतरिक संप्रभुता से खिलवाड़ बताता है। इस पर प्रधानमंत्री नेहरू कहते है कि सत्याग्रहियों के पीछे सेना नहीं लगाई जा सकती है। इस संबंध में नेहरू जी के जीवनीकार एस गोपाल द्वारा अपनी पुस्तक 'जवाहर लाल नेहरू- जीवनी' में नेहरू के हवाले से ये लिखा गया है-

"सैन्य कार्रवाई कब और कैसे होगी? ये मैं नहीं कह सकता। लेकिन मुझे बिल्कुल शक नहीं होगा कि ऐसा हो जाए।"

नेहरू जी की यह टिप्पणी इस ओर भी इशारा करती है कि यदि गोवा मुद्दे का समाधान बातचीत से न निकाला जा सका तो भारत सैन्य कार्रवाई के प्रयोग से भी पीछे नहीं हटेगा। इसी कालखंड में अमेरिका द्वारा भी गोवा पर पुर्तगाली दावे के समर्थन किया गया। अमेरिका के राज्य सचिव फॉस्टर डैलास ने गोवा को पुर्तगाल का हिस्सा बताया। इस पर भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू द्वारा टिप्पणी की गयी-

"अमेरिका जितनी मदद देना चाहता है उससे ज्यादा नुकसान उसके इस बयान ने कर दिया।"

वर्ष 1961 में वो घड़ी आ जाती है जब भारत इस मसले का हल सैन्य कार्रवाई के माध्यम से किये जाने को सुनिश्चित करता है। 17 दिसंबर 1961 को भारतीय सेना गोवा में प्रवेश करती है और महज 36 घण्टों में ही गोवा आजाद हो जाता है। 19 दिसम्बर को भारतीय मानचित्र पर गोवा, दमन और दीव नामक एक केंद्र प्रशासित क्षेत्र आकार लेता है। इसके बाद 30 मई 1987 को गोवा को एक राज्य के तौर पर मान्यता दी जाती है।

  संकर्षण शुक्ला  

संकर्षण शुक्ला उत्तर प्रदेश के रायबरेली जिले से हैं। इन्होने स्नातक की पढ़ाई अपने गृह जनपद से ही की है। इसके बाद बीबीएयू लखनऊ से जनसंचार एवं पत्रकारिता में परास्नातक किया है। आजकल वे सिविल सर्विसेज की तैयारी करने के साथ ही विभिन्न वेबसाइटों के लिए ब्लॉग और पत्र-पत्रिकाओं में किताब की समीक्षा लिखते हैं।

  स्रोत  

(1) https://www.tv9hindi.com/state/know-interesting-facts-about-goa-liberation-day-and-tourism-places-1048837.html/amp

(2) https://youtu.be/hwzW5rgQVag

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