प्रसन्नता बाहरी परिस्थितियों पर निर्भर नहीं करती
- 30 Mar, 2023
संसार में समस्त प्राणियों में मनुष्य सृष्टि की अनुपम रचना है। मनुष्य को विवेक उपहार में मिला है। मानव सभी प्राणियों में श्रेष्ठतम प्राणी माना जाता है। मनुष्य सुख शांति और दुखों का स्वयं जिम्मेदार है। मनुष्य ने ज्ञान -विज्ञान के दम पर जीवन को सरल बनाया है,जीवन जीने के तरीक़े बदले हैं। भौतिक सेवाएँ अपने श्रेष्ठतम पर हैं , मनुष्य ने तकनीकी उपकरणों से शारीरिक और मानसिक श्रम को बहुत कम कर लिया है फिर भी सुख, शांति, प्रसन्नता और सुकून की तलाश में पूरी दुनिया में भटक रहा है। वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट – 2022 में 146 देशों की सूची में भारत का 136 वां स्थान है। प्रथम और द्वितीय स्थान फिनलैंड और डेनमार्क का है। भारत जैसे देश जहाँ आध्यात्मिक शक्ति से वशीभूत होकर विश्व भर से लोग शांति की तलाश में खिंचे चले आते हैं उस देश के लिए ये रिपोर्ट चौकाने वाली है। भारत अपने रंगीन संस्कृतिक जिंदादिली के लिए पहचाना जाता है, जिसके ज्ञान का नूर सारे जहाँ को रोशन करता है आज वो खुद को खुद से प्रसन्न रखना क्यों भूल रहा है। मनुष्य ने सुख चैन की तलाश में मुस्कुराहट खो दिया है, अच्छा जीवन जीने के लिए व्यक्ति का खुश रहना बेहद जरूरी है। हमारे शास्त्र कहते हैं हम सब का उद्देश्य एक है दु:खों से निवृत्ति पाना और सुख की प्राप्ति करना; सुख प्रसन्नता में निहित होती है। प्रसन्नता से आनंद की अनुभूति होती है। खुशी एक एहसास है, आंतरिक अनुभव है; ये किसी बाह्य कारकों पर निर्भर नहीं करती है। मनुष्य को अपनी जरूरी वस्तुओं के साथ प्रसन्नता को शारीरिक अंग के रूप में शामिल करना चाहिए। प्रसन्नता का अनुभव मनोवैज्ञानिक क्रिया है। प्रसन्नता के एहसास से मनुष्य में डोपोमाइन हार्मोन स्रावित होते हैं जिससे मनुष्य के मन-मस्तिष्क में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है। प्रसन्नता का सम्बन्ध संस्कार से होना चाहिए न कि लक्ष्य प्राप्ति या कार्यों की पूर्ति से। जिंदगी के लक्ष्य के साथ प्रसन्नता का लक्ष्य भी होना चाहिए। सभी लक्ष्य के मार्ग प्रसन्नता से होकर गुजरते हैं। कार्य और प्रसन्नता का लक्ष्य एक नहीं होना चाहिए। मनोवैज्ञानिक पीटर किंडरमैन कहते हैं कि- ‘’हमारी ख़ुशी का राज़ इस बात में छुपा है कि हम अपने जज़्बातों के पेचीदगियों को समझें, फिर जो बातें हमारे ज़हन में नकारात्मक भाव पैदा करती हैं , उनसे निपटने के तरीक़ों पर काम करें, इस तरह से प्रसन्नता हासिल की जा सकती है।“ हमारी परिस्थितियाँ कैसी भी हों , हमें हर परिस्थियों में प्रसन्न रहना चाहिए । जार्ज बर्नार्ड शॉ कहते हैं कि - ‘जीवन अपने आप को खोजने का नाम नहीं वरन् स्वयं के निर्माण का नाम है।’ इस बात को आज देश को समझना चाहिए कि खुशहाली देश की सबसे बड़ी संपत्ति है, इसे बचाने के लिए सकल घरेलू उत्पाद के स्थान पर सकल राष्ट्रीय प्रसन्नता को अपनाना चाहिए जैसे भूटान की राष्ट्रीय सफलता का पैमाना उसके सकल घरेलू उत्पाद के स्थान पर सकल राष्ट्रीय प्रसन्नता को माना गया है। आज प्रसन्नता का पाठ स्कूलों और कॉलेजों के पाठ्यक्रमों में शामिल करने की जरूरत है।
प्रसन्नता क्यों जरूरी है:
मनुष्य को जीवन जीने के लिए वायु, जल और भोजन की आवश्यकता होती है। स्वास्थ्य, सुखमय और लंबा जीवन जीने के लिए मनुष्य को प्रसन्नता की भी आवश्यकता है। अप्रसन्न व्यक्ति न तो पूरी तरह से स्वस्थ है और न ही मन से स्थिर। अप्रसन्न व्यक्ति घोर निराशावादी होता है, उसे सूर्य के प्रकाश में अंधकार नजर आता है। अप्रसन्न व्यक्ति मानसिक रूप से समाज से जुड़ा हुआ महसूस नहीं कर पाता है। अप्रसन्न व्यक्ति सदैव चिंताग्रस्त ,स्वभाव में आक्रोश, नकारात्मक सोच से घिरा रहता है। प्रसन्नता प्रत्येक वस्तुओं में सकारात्मकता की बोध कराती है। प्रसन्नता से मनुष्य के शरीर में ऑक्सीजन का प्रवाह बढ़ता है। जीवन में प्रसन्नता और सफलता दोनों के लिए सकारात्मक दृष्टिकोण की जरूरत होती है। प्रसन्नता मानसिक शक्ति और शांत सुखमय जीवन की सक्रियता को बढ़ाने में सहायक होती है। प्रोफेसर रुट वीनहोवन का कहना है कि – “एक ख़ुशहाल जिंदगी बिताने के लिए ज़रूरी है कि आप सक्रिय रहें, इसलिए हम यहाँ क्यों हैं और ऐसा क्यों है? ये सोचने की बजाय ख़ुश होना बेहद ज़रूरी है।“ प्रसन्नता से कई बीमारियों का इलाज सम्भव है, मन और मस्तिष्क के विकारी तत्व को दूर करने में यह सहायक है। एक छोटी सी मुस्कान से आपसी रिश्तों में प्रगाढ़ता आती है। प्रसन्न व्यक्ति में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है जिससे कार्य करने की क्षमता अधिक होती है साथ ही मानसिक रूप से समृद्धि भी होता है।
प्रसन्न कैसे रहें :
प्रसन्नता किसी दुकान से खरीदी जाने वाली वस्तु नहीं है, यह केवल अनुभव और हमारे एहसासों पर निर्भर करता है। प्रसन्नता सम्पन्नता पर निर्भर नहीं करता है। प्रत्येक व्यक्ति को भविष्य की चिंता से मुक्त होकर वर्तमान में जीना चाहिए। सर विलियम ऑस्लर कहते हैं’ सिर्फ आज में जियो ‘वर्तमान में अच्छा कार्य करेंगे तो भविष्य बेहतर होगा । बुद्धिमान व्यक्ति के लिए प्रत्येक दिन एक नया जीवन होता है, तो हम अपना समय और खुशी भविष्य की चिंता में क्यों व्यर्थ करें। प्रत्येक व्यक्ति, वस्तु में सकारात्मकता तलाशे, ऐसे व्यक्तियों ,कार्यों से दूर रहे जिसमें नकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह हो, आत्मविश्वास और सोच में हीनभावना जन्म ले। रोमन कवि होरेस ने लिखा है” वही और केवल वही खुश है, जो आज को अपना कह सकता है, जो आत्मविश्वास से कह सकता है, कल तुम्हें जो करना हो कर लेना , मैंने आज तो जी लिया है”। प्रसन्न रहने के लिए योग को अपने जीवन में उतारें, योग आध्यात्मिक अनुशासन है जिसमें हमारे मन ,तन और प्रकृति के बीच एकात्म भाव स्थापित करते हैं। प्रतिस्पर्धा से बचना चाहिए, अपनी क्षमता के अनुरूप कार्य करें । खुद की तुलना दूसरों से न करें, क्योंकि सभी व्यक्तियों में एक जैसी क्षमता, साहस और कार्यशैली नहीं पाई जाती हैं। प्रकृति के करीब रहें, मनपसंद स्थानों पर भ्रमण करें, अपने परिवार के सदस्यों के बीच संवाद स्थापित करें, समस्याओं पर खुल कर बात करें। लालच,ईर्ष्या किसी प्राणी के प्रति न रखें। मनुष्य की सभी प्रकार की इच्छाएँ पूर्ण होने पर भी प्रसन्नचित नहीं हो सकता है क्योंकि प्रसन्नता के बीज मन में प्रस्फुटित होते हैं और मन मस्तिष्क को प्रशिक्षण प्रदान करता है, मस्तिष्क शरीर को संचालित करता है। प्रसन्नता हमारे मस्तिष्क को शांति,साहस, स्वस्थ और आशावादी विचारों से भर देती हैं, क्योंकि मनुष्य का जीवन विचारों से निर्मित होता है।
निष्कर्ष :
किसी भी राष्ट्र की सबसे बड़ी पूँजी उस राष्ट्र के नागरिक होते हैं। जो राष्ट्र जितना प्रसन्न होगा वह उतनी ही तेजी से उन्नति करेगा। आज जरूरत है सभी देशों को बाजारीकरण के होड़ से बाहर निकल कर अपने नागरिकों के लिए एक मंथन करने की, आखिर क्या कारण है कि विज्ञान और तकनीकी की खोजों ने मनुष्य के जीवन को आसान बनाने के साथ खुशी छीन ली है। प्रत्येक व्यक्ति को इस बात को समझना चाहिए कि सबसे बड़ा धन प्रसन्नता में है। एक प्रसन्न राष्ट्र में योग्य प्रशासन, रोजगार, अच्छी शिक्षा, स्वास्थ्य और भ्रष्टाचार से मुक्त एक कल्याणकारी राष्ट्र बनाने की शक्ति समाहित होती है। आत्मनिर्भरता का सपना तभी सच होगा जब सभी लोगों में प्रसन्नता बढ़ेगी। राष्ट्र के नागरिक जब प्रसन्नता से सम्पन्न होंगे तभी राष्ट्र का आर्थिक ,सामाजिक और राजनीतिक विकास संभव हो पायेगा।
अजय प्रताप तिवारीअजय प्रताप तिवारी, यूपी के गोंडा जिले के निवासी हैं। इन्होंने विज्ञान और इतिहास में पढ़ाई करने के बाद देश के प्रतिष्ठित अखबारों और विभिन्न पत्रिकाओं में नियमित रूप से लेखन कार्य किया है। इसके साथ ही इन्हें साहित्य और दर्शन में रुचि है। |