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दृष्टि आईएएस ब्लॉग

गुरु नानक देव

भारत एक नैसर्गिक सांस्कृतिक-भौगोलिक प्राकृतिक राष्ट्र है। यहाँ ज्ञान की वैविध्य सभ्यता अत्यंत प्राचीन है और इस सभ्यता का विस्तार ऋषि मुनियों के द्वारा किया गया हैl भारत की धरा पर ईश्वरीय शक्ति के रूप में समय–समय पर ऐसी विभूतियों ने जन्म लिया है जिनके वचनों तथा जीवन कर्मों के माध्यम से हमारे समाज और वृहत्तर मानवता को अपने युग के श्रेष्ठ मानवीय मूल्यों का ज्ञान हुआ है।

मध्यकाल में ज्ञान की चेतना को जागृत करने वाले रहस्यवादी, मननशील और अपने व्यक्तित्व से दार्शनिक, धर्मसुधारक, समाजसुधारक, एकेश्वरवादी एवं गृहस्थ जीवन के पैरोकार, विश्वबंधुत्व के गुण समेटे हुए मानव कल्याण के नीतियों का प्रतिपादन करने वाले सिखों के प्रथम गुरु नानक देव जी का जन्म कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा के दिन 15 अप्रैल, 1469 को रावी नदी के किनारे स्थित तलवंडी राय भोई गाँव में श्रीमति तृप्ता देवी की पवित्र कोख से हुआ था। जिसे बाद में ननकाना साहिब नाम दिया गया।

इनके पिता कालूराम पटवारी एक सामान्य गृहस्थ जीवन जीने वाले थे, सरकारी कार्य के अलावा कुछ खेती-बाड़ी भी करते थे। नानक जी पढ़े -लिखे तो बहुत सामान्य थे लेकिन उनका आंतरिक ज्ञान छोटी अवस्था से ही प्रकट होने लगा था। गुरु नानक देव कबीर के समक्ष और सिकन्दर लोदी, बाबर, हुमायूँ के समकालीन थे। गुरु नानक बाल्यकाल से बहुत चमत्कारी थे। नानक अपना अधिकांश समय बड़ी बहन नानकी के साथ बिताया करते थे। सोलह साल की उम्र में सुलखनी देवी के साथ इनका विवाह हुआ। नानक जी के दो बेटे थे जिनका नाम श्रीचन्द और श्री लक्ष्मीचन्द था। नानक जी ने ही गुरु ग्रंथ साहिब की आधारशिला रखी। गृहस्थ जीवन दर्शन को अमूर्त रूप देने वाले गुरु नानक देव ने इस सांसारिक जीवन से वर्ष 1539 में करतारपुर, पंजाब में मोक्ष प्राप्त किया। नानक उन पहुँचे हुए संतों में से थे जो केवल सत्य के सम्मुख ही नतमस्तक होते हैंl उन्होंने परमात्मा के वास्तविक तत्त्व को समझ लिया थाl इसी कारण वे किसी बाह्य अंधविश्वास में नहीं पड़ते थे। नानक के जन्म को प्रकाशपर्व या प्रकाश उत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस वर्ष 553वीं जयंती का प्रकाशपर्व 8 नवंबर को मनाया गया।

सिख धर्म की स्थापना :

नानक जी की तत्कालीन राजनीतिक, धार्मिक और सामाजिक स्थितियों पर नज़र डालें तो बहुत सी विसंगतियां थी जो समाज मतभेद डाल रही थी। जिस समय सिख धर्म की स्थापना हुई उस समय धार्मिक संकीर्णता बहुत ज़्यादा थी। नानक जी ने ‘सर्वमहान, सत्य सत्ता’ की पूजा का सिद्धांत प्रतिपादित कियाl सिख का शाब्दिक अर्थ होता है – ‘शिष्य’ अर्थात् सिख ईश्वर के शिष्य हैंl सिख परंपरा के अनुसार, सिख धर्म की स्थापना गुरु नानक (1469-1539) द्वारा की गई थी और बाद में नौ अन्य गुरुओं ने इसका नेतृत्व किया। सिख धर्म के तीन कर्त्तव्य हैं नाम जपना, कीरत करना, वंड छकना। इसके साथ पाँच दोष भी हैं - लोभ, मोह, अहंकार, काम और क्रोधl सिख धर्म सभी जातियों के लिये खुला हुआ था, यह जातियों से मुक्त धर्म हैl कुछ विद्वानों का मत है कि – सिख धर्म, हिंदू और मुस्लिम धर्मों का मिश्रित रूप है, लेकिन सिख धर्म के रहतनामा में खालसा धर्म को शुद्ध धर्म बताया गया है। नानक और सूफी संत शेख फरीद के बीच गाढ़ी मैत्री थी इस बात को नकारा नहीं जा सकता है।

गुरु नानक के सामाजिक सुधार :

नानक देव जी अपने समय के महान समाज-सुधारक थे l नानक देव जी ने समाज में व्याप्त आडंबरों, पाखंडों और कुरीतियों का कड़ा विरोध किया l जबरन थोपे जाने वाले रीति–रिवाजों जैसे सतीप्रथा, बलिप्रथा, मूर्ति–पूजा, पर्दाप्रथा को उन्होंने अस्वीकृत कियाl वे जबरन धर्मांतरण के भी सख्त खिलाफ थे l उनका मानना था कि सभी प्राणी एक समान हैं और कोई छोटा -बड़ा नहीं है, सभी लोगों को अपने अनुरूप जीवन जीना चाहिए । नानक जी ने मनुष्य की एकता पर जोर दिया क्योंकि एकता में बहुत शक्ति होती है। उन्होंने छोटे -बड़े का भेद मिटाने के लिए लंगर की शुरुआत की थी। लंगर शब्द को निराकारी दृष्टिकोण से लिया गया है, लंगर में सभी लोग एक ही स्थान पर बैठकर भोजन करते हैंl लंगर प्रथा पूरी तरह से समानता के सिद्धांत पर आधारित है, जो आज भी समाज के विभाजित खाई को भरती हैं।

गुरु नानक की धर्म यात्राएं :

सत्य की खोज में गुरु नानक ने अपने शिष्यों के साथ देश -विदेश की यात्राएँ की थी। गुरुनानक ने भारत की चारों दिशाओं में सभी प्रमुख स्थानों की यात्राएँ की और अंत में ईरान , अफगानिस्तान, अरब और इराक की यात्रा की थी। नानक के याद में बगदाद में एक मंदिर बनाया गया था और उस मंदिर पर तुर्की भाषा में एक शिलालेख लिखा गया था जो अभी भी मौजूद है। नानक जी की आध्यात्मिक यात्रा का मूल उद्देश्य वर्तमान समय की सामाजिक ,राजनीतिक और धार्मिक परिस्थितियों को समझना था जिसके आधार पर नानक एक नए समाज का निर्माण कर सके। सिख धर्म में नानक देव जी की यात्रा को उदासियाँ कहा जाता है।

कबीर और नानक में समानता :

कबीर के बाद मध्ययुगीन समाज को प्रभावित करने वाले संतों में गुरू नानक देव का नाम अत्यंत महत्वपूर्ण रहा है। कबीर और नानक के विचारों में बहुत समानता देखने को मिली है। कबीर जिन सामाजिक बुराइयों का विरोध करते हैं उन्हीं सब बुराइयों को दूर करने का प्रयास नानक देव भी करते हैं । कबीर बहुदेववाद, अवतारवाद और मूर्ति पूजा को नहीं मानते थे, नानक देव कबीर की भांति ही नहीं मानते थे। नानक देव पूरी तरह से निराकारवादी थे। कबीर ने प्रतीकात्मक भक्ति में लीन रहने के बजाय, मन से निर्गुण परम ब्रह्म की उपासना पर जोर दिए हैं। नानक देव और कबीर दोनों में बहुत समानता देखने को मिलती हैl नानक देव अवतारवाद , बहुदेववाद, मूर्ति पूजा को नहीं मानते थे, पूरी तरह से निराकारवादी थे, कबीर प्रतीकात्मक भक्ति में व्यस्त रहने की बजाय व्यक्ति को मन से निर्गुण परम ब्रह्म की उपासना करने पर जोर देते हैं। कबीर कहते हैं –“पाहन पूजे हरि मिले, तो मैं पूजूँ पहार, याते चाकी भली जो पीस खाए संसार। नानक आचरण की शुद्धता, प्रेम और भक्ति के साथ मोक्ष पर ज़ोर देते हैंl मनुष्य को मध्य मार्ग अपनाने के साथ अपने गृहस्थ कर्तव्यों के साथ आध्यात्मिक जीवन निर्वाहन करने पर ज़ोर देते हैं।

स्त्री के संदर्भ में नानक का चिंतन :

भारतीय समाज में स्त्रियों को सदियों से अपमानित किया गया, हीन भावना से देखा गया और भोग की वस्तु समझा गया हैl अधिकांश भारतीय संतों ने भी नारी की निंदा की है और उसको परमार्थ का विरोधी, नरक का प्रवेश द्वार बताया है। मध्यकाल के घोर स्त्री – निंदक युग में गुरु नानक जी उनके महत्व को समझते हुए कहते है कि –“ सौ किऊँ मंदा आखीऐ जिसे जम्मे राजनl“ उस नारी को बुरा किस लिये कहा जा सकता है जिसने बड़े -बड़े राजाओं, महापुरुषों, महान संतों को जन्म दिया है। नानक की मानें तो किसी राष्ट्र के विकास में पुरुषों का जितना योगदान है, उतना ही योगदान स्त्रियों का भी रहा है। जो सम्मान नानक देव ने स्त्री को दिया है वो शायद ही किसी ने दिया है ।

नानक देव के दस सिद्धांत :

1.ईश्वर एक है
2.सदैव एक ही ईश्वर की उपासना करो
3.जगत का कर्ता सब जगत और सब प्राणी मात्र में मौजूद है
4.सर्वशक्तिमान ईश्वर की भक्ति करने वालों को किसी का भय नहीं रहता
5. ईमानदारी से मेहनत करके उदरपूर्ति करना चाहिये
6.बुरा कार्य करने के बारे में न सोचें और न किसी को सताएँ
7.सदा प्रसन्न रहना चाहिए, ईश्वर से सदा अपने को क्षमाशीलता मांगना चाहिये
8.मेहनत और ईमानदारी से कमाई करके उसमें से ज़रूरतमंद को भी कुछ अंश देना चाहिये
9.सभी स्त्री और पुरूष बराबर हैं
10.भोजन शरीर को जिंदा रखने के लिये जरूरी है, पर लोभ -लालच व संग्रहवृत्ति बुरी है

निष्कर्ष:

आज अव्यवहारिक होते समाज से बचने के के लिए नानक देव जी के विचार एवं चिंतन की जरूरत है। मानव कल्याण, शांति के अग्रदूत नानक के विचारों की बढ़ती प्रासंगिकता को ध्यान में रखते हुए पाकिस्तान और भारत के सार्थक प्रयास से जनकल्याण के लिये करतारपुर कॉरिडोर का पुन:संचालन किया गया हैl हम कितने भी आधुनिक हो जाएं लेकिन जब मार्ग से भटक जाते हैं तो हमे संत, साधक, योगी के विचार ही मूल मार्ग पर लाते हैं। विचार कभी मरते नहीं हैं बल्कि वो पहले से कही ज़्यादा वर्तमान में प्रासंगिक होते हैं ऐसे ही गुरु नानक जी की प्रासंगिकता आज भी उतनी है, जितनी पहले थीl

  अजय प्रताप तिवारी  

अजय प्रताप तिवारी, यूपी के गोंडा जिले के निवासी हैं। इन्होंने विज्ञान और इतिहास में पढ़ाई करने के बाद देश के प्रतिष्ठित अखबारों और विभिन्न पत्रिकाओं में नियमित रूप से लेखन कार्य किया है। इसके साथ ही इन्हें साहित्य और दर्शन में रुचि है।

  स्रोत:  

1.संस्कृति के चार अध्याय- रामधारी सिंह ‘ दिनकर’

2. भारतीय समाज – श्यामाचरण दुबे

3.मध्यकालीन भारत – सतीश चन्द्र

4 .गुरुनानक देव – पं. श्रीराम शर्मा आचार्य

5. भारतीय कला एवं संस्कृति -डॉ. रहीस सिंह

6.गुरु नानक रचनावली – डॉ. रत्न सिंह जग्गी .


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