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गवर्नेंस 4.0 : वैश्विक शासन व्यवस्था में परिवर्तन की आवश्यकता

सामान्यतः ऐसा होता है कि किसी काल खंड में हुए परिवर्तन उससे पहले के समय में हुए कार्यों एवं घटनाओं की प्रतिक्रिया होते हैं। ठीक वैसे ही जैसे न्यूटन का गति विषयक तृतीय नियम है कि प्रत्येक क्रिया के समान एवं विपरीत प्रतिक्रिया होती है। चाहे द्वितीय विश्व युद्ध के बाद संयुक्त राष्ट्र संघ का निर्माण हो या सोवियत संघ के विघटन के बाद नवउदारवादी वैश्वीकरण, प्रत्येक अपने अस्तित्व के पीछे एक कहानी समेटे हुए है। ठीक ऐसी ही स्थिति वर्तमान विश्व में बनी हुई है और हमारी वैश्विक व्यवस्था के सम्मुख वर्तमान परिस्थितियों से निपटने के लिये एक नए मार्ग को तलाशने की आवश्यकता उत्पन्न हो गई है। वर्तमान में विश्व कोविड-19 महामारी की तीसरी लहर का सामना कर रहा है। हो सकता है एक समय के बाद इस महामारी के नकारात्मक प्रभावों में कमी आ जाए या यह पूर्ण रूप से अप्रभावी हो जाए परंतु जलवायु परिवर्तन एवं इस महामारी के कारण उत्पन्न हुई सामाजिक प्रगतिशीलता के क्षरण संबंधी समस्या का कोई समाधान नज़र नहीं आ रहा है। वर्तमान विश्व में संचालित शासन व्यवस्थाओं को भविष्य में ऐसे समावेशी स्वरूप अपनाने की आवश्यकता होगी जिससे भविष्य मे आने वाली पीढ़ियों तथा वर्तमान शासन व्यवस्थाओं के सामने समस्याओं का अंबार न हो।

शासन के विभिन्न मॉडल

शासन एक ऐसी अवधारणा है जिसका संबंध किसी व्यवस्था के संचालन हेतु लिये जाने वाले निर्णयों एवं उन्हें लागू किये जाने की प्रक्रिया से है। जब शासन व्यवस्था को समावेशी बनाते हुए जन कल्याण के हित में निर्णय लिये जाएँ तो ऐसा शासन ‘सुशासन’ (Good Governance) कहलाता है। सुशासन संबंधी यह मॉडल वैश्विक सामाजिक और अर्थव्यवस्था की प्रगति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद से ही विश्व शासन (गवर्नेंस) की भूमिकाओं में परिवर्तन का साक्षी रहा है। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद महाशक्तियों के रूप में ब्रिटेन और फ्राँस ने अपनी स्थिति को खो दिया था एवं इनकी जगह संयुक्त राज्य अमेरिका एवं सोवियत संघ ने ले ली। इस युद्ध के परिणामों से बचाव के लिये शासन 1.0 (गवर्नेंस 1.0) की अवधारणा सामने आई एवं सार्वजनिक और कॉरपोरेट दोनों को ही एक ‘सशक्त नेता’ के नेतृत्व में शासित किये जाने की प्रक्रिया को प्रोत्साहन मिला। शासन 1.0 की यह अवधारणा मूलत: आर्थिक वृद्धि पर आधारित थी। वर्ष 1960 के दशक के उत्तरार्ध में शासन 2.0 की अवधारणा सामने आई। तत्कालीन विश्व पूंजीवाद के प्रति आकर्षित हो रहा था अतः इसके परिणामस्वरूप शासन 2.0 की अवधारणा के तहत ‘शेयरधारक पूंजीवाद’ तथा ‘प्रगतिशील वैश्विक वित्तीयकरण’ जैसे विचारों का बढ़ावा मिला। वर्ष 2008 तक यह स्थिति कुछ परिवर्तनों के साथ बनी रही परंतु वर्ष 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट ने इस मॉडल को झकझोर दिया एवं गवर्नेंस 3.0 के रूप में वैश्विक नेतृत्वकर्ताओं का ध्यान निर्णयन प्रक्रिया के साथ-साथ ‘संकट प्रबंधन’ की समस्या की ओर प्रमुखता से गया। परंतु यह ध्यान सामाजिक समस्याओं के संकट प्रबंधन पर न होकर आर्थिक प्रबंधन पर अधिक था।

गवर्नेंस 4.0 की आवश्यकता

वर्तमान कोविड-19 महामारी शासन 3.0 के दौरान ही उत्पन्न हुई और इस मॉडल के ‘ट्रायल एंड एरर’ दृष्टिकोण से इस महामारी के बेतरतीब प्रबंधन एवं नकारात्मक प्रभाव सामने आए। हाल ही में हुए विश्व आर्थिक मंच के दावोस शिखर सम्मेलन में यह प्रस्ताव पारित किया गया कि वैश्विक शासन व्यवस्था अब अपने पिछले अनुपयुक्त स्वरूपों से शासन 4.0 की ओर अग्रसर हो जो अधिक समावेशन के साथ दीर्घकालिक रणनीतिक धारणा पर केंद्रित हो। इस नए दौर में इस बदलाव की आवश्यकता इसलिये पड़ी क्योंकि चौथी औद्योगिक क्रांति और जलवायु परिवर्तन ने वर्तमान जीवन पर नकारात्मक प्रभाव डाला है और इसका दंश सर्वाधिक सुभेद्य समूहों, गरीब, कमज़ोर, महिलाओं और बच्चों ने झेला है। यह महसूस हुआ है कि संस्थाएँ और नेतृत्वकर्त्ता दोनों अपने उद्देश्यों के प्रति उपयुक्त नहीं हैं और वैश्विक शासन व्यवस्था के लिये ऐसे गवर्नेंस मॉडल की आवश्यकता है, जो व्यापार एवं वित्त जगत को प्राथमिकता देने के स्थान पर समाज एवं प्रकृति की प्रधानता पर ध्यान केंद्रित करे और ऐसी ही उम्मीद शासन 4.0 मॉडल से की जा रही है।

शासन 4.0 मॉडल के तहत अल्पकालिक प्रबंधन के स्थान पर दीर्घकालिक प्रबंधन पर ध्यान दिया जाएगा। इसका अर्थ है महामारी के कारण उत्पन्न हुए सामाजिक, आर्थिक, स्वास्थ्य जैसी समस्याओं के साथ-साथ जैव विविधता की हानि, जलवायु परिवर्तन एवं प्रवास संबंधी चुनौतियों को संबोधित किया जा सकेगा। इस मॉडल के अंतर्गत एक महत्त्वपूर्ण अवधारणा ‘टनल विज़न’ (संकीर्ण दृष्टिकोण) को विस्तृत दृष्टिकोण से प्रतिस्थापित करना है। इस मॉडल के तहत सरकारों को सुनिश्चित करना होगा कि व्यवसाय अब अपने सामाजिक एवं पारिस्थतिकीय प्रभावों की उपेक्षा न कर सकें एवं अपना उत्तरदायित्व सुनिश्चित करें। यह सही है कि वित्त और व्यवसाय सामाजिक व्यवस्था के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं लेकिन यह समझना होगा कि उन्हें समाज और प्रकृति की सेवा करनी चाहिये न कि उपयोग। वर्तमान में कई व्यावसायिक संस्थाएँ एवं नेता शासन के इस नए मॉडल (शासन 4.0) युग का नेतृत्व करने के इच्छुक हैं। ऐसे नेतृत्वकर्त्ताओं को स्वागत किया जाना चाहिये जो अपने संकीर्ण हितों के बाहर मार्गदर्शक के रूप में विश्व को वर्तमान समस्याओं से बाहर निकलने में सहायता करें। यह ध्यान भी दिया जाना चाहिये कि जलवायु परिवर्तन से मुकाबले तथा सामाजिक अन्याय को दूर करने के लिये वर्तमान शासन व्यवस्था विशिष्ट कार्रवाई को समर्थन करे।

वर्तमान वैश्विक परिप्रेक्ष्य में आवश्यक उत्तरदायी एवं अनुक्रियाशील शासन व्यवस्था के मापन का पैमाना इस बिंदु पर निर्धारित किया जाना चाहिये कि उत्तरदायित्वता की यह अवधारणा अंशधारक के स्थान पर हितधारक की विचारधारा से प्रतिस्थापित हो सके क्योंकि अंशधारक लाभ प्रेरित अवधारणा है एवं हितधारक समाज समर्थित अवधारणा है। यह सही है कि ‘हितधारक’ संबंधी अवधारणा अभी अपनी उत्पत्ति के आरंभिक चरण में है, परंतु यह अवधारणा सशक्त होने पर हमें यह तय करने में सक्षम बनाएगी कि नेतृत्वकर्ता अपनी भूमिका और उत्तरदायित्व को तय करने में सक्षम हैं या नहीं। शासन 4.0 मॉडल के तहत यह आवश्यक है कि शासन व्यवस्था पारदर्शी, जवाबदेह और बौद्धिक चेतना से युक्त हो तथा पक्षपात एवं पूर्वाग्रहों से मुक्त हो। यह उम्मीद की जानी चाहिये कि गवर्नेंस 4.0 मॉडल वर्तमान महामारी से उत्पन्न सामाजिक दूरियों के अंतर को कम करेगा एवं समाज को समावेशी विकास के पथ पर प्रशस्त करते हुए अपनी भूमिका को प्रभावशाली रूप से दर्ज कराएगा।

हर्षवर्धन

(लेखक दृष्टि वेब टीम से संबद्ध हैं एवं सम सामयिक मुद्दों से संबंधित विषयों पर स्वतंत्र लेखन करते हैं)

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