गांधी और गोखले
- 28 Sep, 2022 | संकर्षण शुक्ला
वर्ष 1901 की बात है जब भारत की तत्कालीन राजधानी कलकत्ता (आधुनिक कोलकाता) में भारतीय राजनीति के दो शिखर पुरूष भारत के हालातों के बारे में चर्चा कर रहे थे। एक शिक्षक-पत्रकार, दूर देश में भारतीयों के हक की लड़ाई लड़ने वाले वकील को आम भारतीयों की दुर्दशा के बारे में बताकर उससे अपने देश वापस लौटने का आग्रह कर रहा था। इस शिक्षक-पत्रकार का नाम गोपाल कृष्ण गोखले और उस वकील का नाम महात्मा गांधी है। दरसअल इस मुलाकात का लब्बोलुआब ये था कि गोखले, गांधी जी को भारत में कांग्रेस के प्रयासों में शामिल करना चाह रहे थे। हालांकि गांधी और गोखले के मध्य हुई यह पहली मुलाकात न थी बल्कि इससे पूर्व वर्ष 1896 में भी वे मिल चुके थे।
मोहनदास करमचंद गांधी के महात्मा गांधी बनने की प्रक्रिया में जिन कुछेक लोगों का योगदान सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है उनमें गोपालकृष्ण गोखले का नाम सर्वप्रमुख है। इसकी तस्दीक स्वयं महात्मा गांधी भी करते हैं। उन्होंने अपनी आत्मकथा 'सत्य के मेरे प्रयोग' में गोपालकृष्ण गोखले को अपना राजनीतिक गुरु भी स्वीकारा है। इस पुस्तक में वे गोपालकृष्ण गोखले को 'विशाल ह्रदय और शेर की तरह बहादुर' बताते हैं। गांधी, गोखले से पत्र व्यवहार भी करते थे।
गांधी अपने पत्रों में गोखले को प्रिय प्रोफ़ेसर गोखले संबोधन से संबोधित करते थे और उनसे आवश्यक सुझाव भी लेते थे। एक ऐसा ही पत्र उन्होंने तब लिखा था जब दक्षिण अफ्रीका में उन्होंने ‘इंडियन ओपिनियन’ पत्र का दफ्तर खोला था। इस पत्र का एक अंश इस प्रकार है-
"मैं ऐसे अवैतनिक अथवा वैतनिक संवाददाताओं के लिए भी चिंतित हूँ जो अंग्रेजी, गुजराती, हिंदी और तमिल में साप्ताहिक टिप्पणियाँ दें। यदि यह महंगा हो जाता है तो मुझे कदाचित् केवल अंग्रेजी टिप्पणियों से संतुष्ट होना पड़ेगा -उनका अनुवाद तीनों भारतीय भाषाओं में किया जा सकेगा। क्या आप ऐसा या ऐसे कोई संवाददाता सुझा सकेंगे?"
गांधी जी जब दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे थे तो उन्होंने गोखले को दक्षिण अफ्रीका में आकर अपनी इस लड़ाई को मजबूती प्रदान करने का आह्वान भी किया था। वर्ष 1912 में गांधी जी के आमंत्रण पर गोखले दक्षिण अफ्रीका गए और रंगभेद की निन्दा की। वर्ष 1915 में गांधी जी जब भारत वापस आते है तो गोखले उन्हें सलाह देते हैं कि यदि भारत के वास्तविक चरित्र को समझना है तो भारत का भ्रमण करो।
गोखले की सलाह मानते हुए गांधी जी ढेर सारी रेल यात्राएं करते है। यहाँ से उन्हें न सिर्फ आंदोलन करने की दिशा मिलती है बल्कि उन्हें आजादी की लड़ाई में एक मजबूत संगठन की भी जरूरत महसूस होती है जो जनता को एकजुट करता हो। चूँकि गांधी जी जब दक्षिण अफ्रीका से भारत आए थे तो वे एक स्वतंत्रता सेनानी न होकर सोशल एक्टिविस्ट थे। इसलिए उन्हें आज़ादी की लड़ाई के तौर-तरीकों को सीखना बेहद जरूरी था। इस काम मे गोखले और उनकी सीखें गांधी जी की बखूबी मदद करते थे।
गोखले एक शानदार वक्ता थे। वर्ष 1906 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा उन्हें लंदन इस उद्देश्य से भेजा गया कि वो वहाँ रहने वाले भारतीयों को भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की लड़ाई से जोड़ सकें। गोखले ने वहाँ पर शानदार भाषण दिया और इसके अगले दिन वहाँ के प्रमुख अखबार 'द नेशन' में ये खबर छपी-
"गोखले के समकक्ष इंग्लैंड में कोई राजनीतिज्ञ नहीं है।"
गोखले के शिष्य गांधी जी भी अपने प्रभावशाली भाषणों से आम जन को सहज भाव में ही स्वतंत्रता के आंदोलन से जोड़ देते थे। इसके अलावा गोखले की ये भी खूबी थी कि वो अपनी बातों को बेहद तर्कसम्मत तरीके के साथ रखते थे। गांधी जी भी अपनी बातों और कर्म में बेहद तार्किक थे। वो साधन-साध्य संबंधों का भी तर्किक विश्लेषण करते हैं। गांधी जी साधन और साध्य दोनों की पवित्रता में विश्वास करते थे। उनका मत था कि एक अच्छे साध्य को प्राप्त करने के लिए अहिंसा रूपी साधन का प्रयोग जरूर किया जाए।
गोखले राजनीतिक लड़ाई से इतर जीवन भर सामाजिक लड़ाई भी लड़ते रहे। जब अंग्रेजों ने बाल विवाह के विरुद्ध कानून बनाया तो समाज के एक वर्ग ने इसे अपनी सामाजिक संरचना में हस्तक्षेप माना मगर गोखले ने न सिर्फ इसे एक गम्भीर सामाजिक बुराई माना बल्कि इस कानून का खुलकर समर्थन भी किया। गोखले जाति प्रथा को एक बुराई मानते थे। इस संबंध में उनका कहना था-
"निचली जाति के लोगों की स्थिति सामाजिक व्यवस्था पर एक दाग है।"
उनका मानना था कि एक साथ मिलकर रहने से ही समाज की प्रगति सम्भव है। गांधी जी के चिंतन पर भी इन बातों का खास असर हुआ। यही कारण है कि उन्होंने तथाकथित निम्न जातियों को दलित न कहकर हरिजन नाम दिया। हरिजनों के उत्थान के लिए वे आजीवन संघर्षरत रहे। गांधी जी ने अपने रचनात्मक कार्यों के माध्यम से दलितों के उत्थान के लिए कोशिशें की। इसके लिए वर्ष 1932 में उन्होंने 'अखिल भारतीय छुआछूत विरोधी लीग' की भी स्थापना की थी। उनका कहना था कि-
"या तो छुआछूत को जड़ से समाप्त करो या मुझे अपने बीच से हटा दो। यह मेरी अंतरात्मा की पुकार है, चेतना का निर्देश है।"
गोखले के इन विचारों के अतिरिक्त कई विचार ऐसे भी थे जिनसे गांधी जी असहमति रखते थे। मसलन गांधी जी गोखले के बहिष्कार विरोधी विचारों से अपनी असंगति रखते थे। गांधी जी न सिर्फ विदेशी वस्तुओं के बहिष्कारों पर बल देते थे बल्कि स्वदेशी सामान के उपयोगों को बढ़ावा देने के संदर्भ में भी जनजागृति करते थे। गांधी जी के आंदोलन करने का तरीका और संगठन निर्माण का तरीका भी गोखले के विचारों से अलग था। यही कारण है कि गांधी जी ने गोखले के कई बार कहने पर भी उनकी संस्था 'सर्वेंट्स ऑफ इंडिया सोसाइटी' से स्वयं को नहीं जोड़ा।
अगर आंदोलन के क्रियान्वयन के तौर-तरीकों पर बात की जाए तो यहाँ गांधी जी, तिलक के साथ थोड़ी साम्यता रखते हैं। तिलक जिस तरीके से अपने आंदोलनों में लोगों को जोड़ने के लिए हिन्दू धार्मिक प्रतीकों और त्यौहारों का प्रयोग करते थे ठीक उसी तरह गांधी जी भी कार्य करते थे। इसीलिए उन्होंने रामराज्य की अवधारणा दी। हालांकि तिलक खुलकर हिन्दू त्यौहारों शिवाजी महोत्सव और गणेश महोत्सव आदि के माध्यम से लोगों को अपने साथ जोड़ने में विश्वास रखते थे मगर गांधी जी भारत की बहुलतावादी विशेषताओं को ध्यान में रखते हुए सविनय अवज्ञा के सिद्धांतों के आधार पर ही आंदोलनों का संचालन करते थे।
इस प्रकार हम देखते हैं कि गांधी के व्यक्तित्व पर तिलक की भी एक महत्त्वपूर्ण छाप थी। हालांकि गांधी जी अपने विचारों के स्तर पर व तार्किक चिंतन में गोपाल कृष्ण गोखले के अधिक निकट रहे हैं।
संकर्षण शुक्लासंकर्षण शुक्ला उत्तर प्रदेश के रायबरेली जिले से हैं। इन्होने स्नातक की पढ़ाई अपने गृह जनपद से ही की है। इसके बाद बीबीएयू लखनऊ से जनसंचार एवं पत्रकारिता में परास्नातक किया है। आजकल वे सिविल सर्विसेज की तैयारी करने के साथ ही विभिन्न वेबसाइटों के लिए ब्लॉग और पत्र-पत्रिकाओं में किताब की समीक्षा लिखते हैं। |
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स्रोत1. लिंक- https://youtu.be/5RR4tHMdDtM |