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महामारियाँ: जिन्होंने दुनिया को दहला कर रख दिया

कहते हैं कि हादसे कभी चेतावनी देकर नहीं आते। यह बात सही भी है लेकिन कुछ हादसे चेतावनी देकर आते हैं। सालों से आ रही महामारियां इसका प्रत्यक्ष प्रमाण हैं। बाढ़, सूखा, भूकंप, चक्रवात जैसी प्राकृतिक आपदाएं तो फिर भी कुछ क्षेत्रों या स्थानों में तबाही मचाती हैं और एक बार में ही सब कुछ अपने साथ समेटकर ले जाती हैं लेकिन समय-समय पर आने वाली विभिन्न प्रकार की इन महामारियों ने किसी एक स्थान या देश नहीं बल्कि पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले लिया था और कुछ सप्ताह या कुछ महीने नहीं, बल्कि सालों तक लोगों को डर के साये में जीने को मजबूर कर दिया। अब प्रश्न यह उठता है कि आखिर हम मानवता पर कहर ढाने वाली व कई-कई इंसानी बस्तियों और गांवों को जड़ से मिटा देने वाली इन महामारियों के बारे में कितना जानते हैं? अगर आपका जवाब है, बहुत कम या बिल्कुल भी नहीं। तो चिंता न करें, आज हम आपको इन महामारियों के बारे में बताते हैं-

प्लेग:- 14वीं शताब्दी से 19वीं शताब्दी तक फैली इस बीमारी ने यूरोप, एशिया और अफ्रीका को मानों तबाह ही कर दिया था। 14वीं शताब्दी में इसका प्रकोप इतना ज़्यादा था कि इसे ‘ब्लैक डेथ’ का नाम दिया गया, जिसके कारण यूरोप में 5 करोड़ से ज़्यादा लोग काल के मुंह में समा गए थे। वहीं 1898 से 1918 तक, अकेले भारत में इस महामारी के चलते करीब एक करोड़ लोगों की जीवनलीला समाप्त हो गई थी।

इन आंकड़ों को देखने के बाद मन में यह सवाल उठ सकता है कि आखिर इतने लोगों की जिंदगी को लील जाने वाली यह बीमारी कहां से और कैसे फैली थी? तो आपको बता दें कि यह बीमारी फ्रांस के मार्सिले शहर से फैली थी जिसके कारण इसे ‘ग्रेट प्लेग ऑफ मार्सिले’ कहा गया। वहीं, इसके फैलने का कारण जानने के लिये जब शोधकर्ताओं ने शोध शुरू किया तो पाया कि ये संक्रामक बीमारी ‘यर्सिनिया पेस्टिस’ नामक बैक्टीरिया से होती है, जो आमतौर पर छोटे स्तनधारियों और उनके पिस्सू में पाया जाता है। यह बीमारी जानवरों के बीच उनके पिस्सू के माध्यम से फैलती है और चूंकि यह एक जूनोटिक बैक्टीरिया है, इसलिए यह जानवरों से मनुष्यों में भी फैल सकती है। संक्रमित पिस्सू के काटने से, संक्रमित पदार्थों के सीधे संपर्क से या साँस के ज़रिए मनुष्य इससे संक्रमित हो सकते हैं। उस दौरान मेडिकल साइंस भी इतनी विकसित नहीं थी जिसके चलते इसका इलाज भी मुश्किल होता था। यद्यपि आज एंटीबायोटिक दवाओं, वैक्सीन और मानक निवारक उपायों के प्रयोग से आसानी से इलाज किया जा सकता है।

कॉलरा (हैजा):- 1820 में फैले हैजा ने जापान, भारत, बैंकाक व खाड़ी के देशों सहित अन्य देशों में जमकर तबाही मचाई थी। इस बीमारी से पीड़ित व्यक्ति में उल्टी और दस्त की समस्या हो जाती है जिससे शरीर में पानी की कमी हो जाती है और समय पर उपचार न मिलने पर व्यक्ति की मौत भी हो जाती है। दूषित पानी, दूषित भोजन का सेवन करने और गंदगी से फैलने वाली इस बीमारी के चलते पूरी दुनिया में लाखों लोगों की जान चली गई थी। हालांकि, वर्तमान में इस बीमारी का उपचार संभव है फिर भी शोधकर्ताओं के अनुमान के मुताबिक हर साल हैजा के 1.3 से 4.0 मिलियन मामले सामने आते हैं, और इसके कारण दुनिया भर में 21,000 से 143,000 मौतें होती हैं, जो कि बेहद चिंताजनक है।

स्पेनिश फ्लू:- आजादी के महानायक महात्मा गांधी की पुत्रवधू व पोते और हिंदी साहित्य के महान कवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला के परिवार की जिंदगी को निगल लेने वाली इस महामारी ने पूरी दुनिया में ऐसा हाहाकार मचाया था कि लोग आज भी उन काले दिनों की दास्तान को सुनकर कांप जाते हैं। 1918 से 1920 के बीच दांडव मचाने वाली यह बीमारी एच1एन1 इन्फ्लूएंजा वायरस से फैली थी। सबसे पहले स्पेन ने इस बीमारी के अस्तित्व को स्वीकार किया इसलिए इसे स्पेनिश फ्लू का नाम दिया गया।

एक अनुमान के मुताबिक इस बीमारी से पूरी दुनिया में करीब 10 से 20 करोड़ लोगों की मौत हुई थी। इससे पूरी दुनिया में इतने लोग मरे थे जितने पहले किसी बीमारी से नहीं मरे थे। 13वीं सदी में फैले ब्यूबोनिक प्लेग से यूरोप की 25 फीसदी आबादी ज़रूर खत्म हो गई थी मगर स्पेनिश फ्लू से मरने वालों की संख्या उससे भी ज़्यादा थी। स्पेनिश फ्लू से पीड़ित व्यक्ति को असहनीय खांसी हो जाती थी और उसकी नाक और कभी-कभी कान और मुंह से खून बहने लगता था। उसके पूरे शरीर में भयंकर दर्द होता था। मरीज की खाल का रंग पहले नीला फिर बैंगनी और बाद में काला पड़ जाता था। भारत में हालात इसलिए और खराब हो गए थे क्योंकि उसी समय भारत के इतिहास का सबसे भयानक सूखा पड़ा था। हालांकि मार्च-1920 आते-आते इस बीमारी पर नियंत्रण पा लिया गया था।

चेचक (स्मालपॉक्स):- विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, चेचक की बीमारी करीब 3000 सालों तक इंसानों के लिये मुसीबत बनी रही और इसकी वजह से सिर्फ 20वीं सदी में ही करीब 30 करोड़ से अधिक लोगों की मौत हो गई थी। वैरियोला वायरस की वजह से फैलने वाली इस बीमारी के खिलाफ लड़ाई का ऐतिहासिक पल उस समय आया जब डब्ल्यूएचओ ने दिसंबर 1979 में इसके अंत की पुष्टि की। वहीं, भारत की बात करें तो भारत में साल 1962 में ‘राष्ट्रीय चेचक उन्मूलन कार्यक्रम’ (NSEP) की शुरुआत की गई, जिसका लक्ष्य तीन सालों में पूरी आबादी को चेचक के टीके लगाना था। साल 1977 को भारत को ‘चेचक मुक्त’ घोषित किया गया। सोचने वाली बात यह है कि चेचक जैसी महामारी से पूरी तरह छुटकारा पाने में आज़ाद भारत को तीन दशक से भी अधिक का समय लग गया।

एचआईवी:- भय, कलंक और अज्ञानता। ये तीन शब्द हैं जो 1980 के दशक में दुनिया भर में फैली एचआईवी महामारी को परिभाषित करते हैं। उस दौरान कोई प्रभावी उपचार न होने के कारण इस बीमारी से हज़ारों लोगों की जान चली गई थी। एचआईवी का इतिहास जानवरों से जुड़ा हुआ है। 19वीं सदी में सबसे पहले अफ्रीका के खास प्रजाति के बंदरों में एड्स का वायरस मिला था। माना जाता है कि बंदरों से यह रोग इंसानों में फैला है। एचआईवी संक्रमण के बाद शरीर में एक ऐसी स्थिति बन जाती है कि इससे संक्रमित व्यक्ति में मामूली बीमारियों का इलाज भी दूभर हो जाता है और मरीज मृत्यु की ओर खिंचा चला जाता है। आज भी यह खतरनाक बीमारी दुनियाभर के करोड़ों लोगों के शरीर में पल रही है। जानकर हैरानी होगी कि एड्स जैसी महामारी की वजह से अफ्रीका के तो गांव के गांव ही नष्ट हो चुके हैं।

कोरोना वायरस:- 2020 में आई कोरोना महामारी ने भारत सहित पूरी दुनिया में कैसी तबाही मचाई थी, ये किसी से छिपा नहीं है। इस बीमारी से पीड़ित व्यक्ति को बुखार, जुकाम, खांसी, सांस लेने में दिक्कत, स्वाद व गंध को महसूस करने में परेशानी जैसी समस्याएं हो जाती थीं। चिंताजनक बात यह है कि दुनियाभर के वैज्ञानिक अभी तक तय नहीं कर पाए हैं कि ये किससे फैली थी। कुछ वैज्ञानिकों का कहना है कि ये चमगादड़ से फैली थी तो कुछ चीन की लैब में तैयार हुआ वायरस मानते हैं। लाखों लोगों की जान लेने वाली इस महामारी को फैलने से रोकने के लिये बड़ी संख्या में लोगों को क्वारंटाइन किया गया, साथ ही एक स्थान पर लोगों की भीड़ इकट्ठा न हो इसके लिये ‘लॉकडाउन’ भी लगाया गया। इसके अलावा, बड़े पैमाने पर जागरुकता अभियान चलाकर लोगों को कोरोना की वैक्सीन लगाई गई। हालांकि वैक्सीन तैयार होने के चलते वर्तमान में इस पर काफी हद तक नियंत्रण पा लिया गया है फिर भी लोगों में कोरोना की लहर के वापस लौटने को लेकर दहशत बनी रहती है।

स्वाइन फ्लू:- 2009 में फैले स्वाइन फ्लू ने भी मानव जाति को बुरी तरह से प्रभावित किया था। तेजी से फैलने वाले इस फ्लू की गंभीरता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इसकी चपेट में आने से पूरी दुनिया में करीब 2,84,400 लोगों की जान चली गई थी। ये महामारी H1N1 इन्फ्लूएंजा ए वायरस के कारण हुई थी। जिस भी व्यक्ति को ये बीमारी होती थी उसमें बुखार, मांसपेशियों में दर्द, ठंड लगना, खांसी, गले में खराश, बहती या बंद नाक और सांस लेने में परेशानी जैसे लक्षण नज़र आते थे। इसके अलावा, कई लोगों को इसकी वजह से पेट में दर्द, डायरिया, भूख न लगने, नींद न आने और उल्टियां आने की समस्या भी होती थी। इतना ही नहीं, इसके गंभीर संक्रमण की वजह से शरीर के कई अंग काम करना तक बंद कर देते थे जिसकी वजह से मौत भी हो जाती थी। राहत की बात यह थी कि, अधिकांश लोगों में हल्के लक्षण होते थे लेकिन छोटे बच्चों, वृद्ध लोगों, गर्भवती महिलाओं और कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली वाले लोगों को इससे अधिक खतरा होता था।

अब बात करें इसके नाम की तो ये आमतौर पर सुअरों में पाया जाता है जिसके चलते इसे स्वाइन फ्लू कहा गया। लेकिन बाद में ये पाया गया कि ये इंसान से इंसान के बीच भी फैलता है। इसके शुरुआती मामले मैक्सिको में पाए गए थे और तब से अब तक लगभग सौ देशों में ये अपने पैर पसार चुका है। कई देशों में इससे बचाव के लिये टीके भी लगाए जाते हैं। हालांकि, शुरुआती अवस्था में इससे पीड़ित मरीजों का उपचार टैमीफ्लू और रेलेन्जा नामक वायरसरोधी दवा से किया जा सकता है। साथ ही डॉक्टर, मरीज़ों को आराम करने, भरपूर पानी पीने और शरीर को गर्म रखने की सलाह देते हैं। ये समय के साथ ठीक होने वाली बीमारी है लेकिन अगर व्यक्ति को दमा या निमोनिया जैसी बीमारियां हो तो जटिलता और बढ़ सकती है।

किसी बीमारी को कब महामारी घोषित किया जाता है?

अंत में यह भी जान लेते हैं कि आखिर किसी बीमारी को कब माहामारी घोषित किया जाता है। आमतौर पर जब कोई बीमारी किसी एक देश या सीमा तक सीमित न रहकर दुनिया के कई देशों में बड़े पैमाने पर फैलने लगती है तो उसको महामारी यानी ‘पैंडेमिक’ घोषित किया जाता है। किसी बीमारी को महामारी घोषित करना है या नहीं, ये फैसला विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डबल्यूएचओ करता है। वहीं, जब किसी बीमारी को पूरी तरह से खत्म करने की संभावन खत्म हो जाती है, और लोगों को हमेशा संक्रमण के बीच ही जीना होता है तो उसे एंडेमिक कहते हैं।

जब किसी बीमारी को महामारी घोषित कर दिया जाता है तो ये सरकार के लिये एक अलर्ट की तरह रहता है और संपूर्ण स्वास्थ्य महकमे को उस बीमारी से निपटने के लिये विशेष तैयारी करनी पड़ती है। वहीं महामारी के प्रसार की बात की जाए तो पहले के मुकाबले आज के समय में लोगों का एक स्थान से दूसरे स्थान पर आना-जाना बढ़ा है जिससे वायरस के फैलने का खतरा और भी बढ़ जाता है।

सार रूप में समझें तो इन महामारियों से बड़े पैमाने पर मानवीय क्षति तो हुई ही, साथ ही देशों की आर्थिक तरक्की भी कई साल पीछे पहुंच गई। उदाहरण के तौर पर हाल ही में आई कोरोना महामारी को ही लें तो लॉकडाउन के चलते उत्पादन व खपत में भारी गिरावट, बेरोजगारी में वृद्धि, परिवहन, सुविधाओं और औद्योगिक क्षेत्रों में भारी गिरावट, स्कूलों के बंद होने से शैक्षिक क्षेत्र में आई कमी इत्यादि के चलते भारतीय अर्थव्यवस्था को बहुत संकट का सामना करना पड़ा। इसने भारत ही नहीं बल्कि दुनियाभर की अर्थव्यवस्थाओं को प्रभावित किया। ऐसे में वर्तमान में फैल रहे मंकीपॉक्स के लिये भी सरकारों को पहले से तैयार रहना होगा। स्वास्थ्य पर बजट को बढ़ाने के साथ-साथ, मेडिकल साइंस में हो रही नई-नई खोजों का लाभ उठाकर इन महामारियों से आसानी से निपटा जा सकता है।

  शालिनी बाजपेयी  

(शालिनी बाजपेयी यूपी के रायबरेली जिले से हैं। इन्होंने IIMC, नई दिल्ली से हिंदी पत्रकारिता में पीजी डिप्लोमा करने के बाद जनसंचार एवं पत्रकारिता में एम.ए. किया। वर्तमान में ये हिंदी साहित्य की पढ़ाई के साथ-साथ विभिन्न मंचों के लिए लेखन कार्य कर रही हैं। )

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