डॉ. कलाम: साधारण इंसान का असाधारण व्यक्तित्व
- 27 Jul, 2020 | नेहा चौधरी
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बहुत दिनों की बात है, झारखंड के सबसे पिछड़े ज़िले के एक स्कूल में नवीं क्लास की एक बच्ची की कॉपी के पहले पन्ने पर लिखा था -
"इंतज़ार करने वाले को उतना ही मिलता है जितना संघर्ष करने वाले छोड़ जाते हैं।
-डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम।"
उसकी टीचर ने कॉपी हाथ में उठाया और पूछा,
- क्या कलाम सर तुम्हे पसंद हैं?"
- हाँ।
- क्यों?
- क्योंकि वो बड़े सपने देखने के लिए कहते हैं।
आज उन्हीं डॉ. ए. पी. जे.अब्दुल कलाम की पुण्यतिथि है और आज मैं केवल यह नहीं याद करूँगी कि वो 'मिसाइल मैन' थे, 'अग्नि पुरुष' थे। आज मैं सिर्फ यह नहीं लिखूँगी कि उन्होंने कितनी मुश्किल से कभी सीपियों को चुनकर तो कभी अखबार बेचकर अपनी पढ़ाई जारी रखी। मैं केवल यह याद नहीं करूँगी कि वो भारत के राष्ट्रपति थे क्योंकि ये सब उनकी महान यात्रा के बस कुछ पड़ाव थे।
लेकिन आज मैं यह याद करूँगी कि एक बार कलाम रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) की टीम में थे। उनकी टीम ने एक इमारत की सुरक्षा के लिये जब उसकी चहारदीवारी पर काँच के टूटे टुकड़े लगाने का प्रस्ताव रखा तो अब्दुल कलाम ने उस प्रस्ताव को यह कहते हुए ठुकरा दिया कि इससे पक्षियों के घायल होने का खतरा बना रहेगा। ऐसे थे हमारे कलाम।
हमने कहानियों में पढ़ा है कि चंद्रगुप्त मौर्य के गुरू और प्रधानमंत्री चाणक्य एक झोपड़ी में रहते थे। एक दिन एक मेहमान उनसे मिलने पहुँचा। चाणक्य जिस दीपक की रोशनी में बैठे कुछ लिख रहे थे, मेहमान के पहुँचने पर उन्होंने वह दीपक बुझा दिया और दूसरा दीपक जलाकर मेहमान से बातचीत करने लगे। मेहमान ने आश्चर्य जताते हुए जब इसका कारण पूछा तो चाणक्य ने बताया कि पहले वाले दीपक में राज्य के खर्चे से तेल डाला गया था। उसकी रोशनी में वे राज्य का काम कर रहे थे जबकि, मेहमान उनके निजी थे इसलिये उन्होंने दूसरा दीपक जला लिया, जिसमें उनके खर्चे से खरीदा गया तेल डाला गया था। संदेश यह था कि शासक को सरकारी और निजी खर्च में अंतर न सिर्फ समझना चाहिए बल्कि करना भी चाहिए।
यह किस्सा कितना सच है कितना नहीं, कहना मुश्किल है। लेकिन एक बार कलाम के कुछ रिश्तेदार उनसे मिलने राष्ट्रपति भवन आए। स्टेशन से सब को राष्ट्रपति भवन लाया गया। जहाँ उनके कुछ दिन ठहरने का कार्यक्रम था। उनके आने-जाने और रहने-खाने का सारा खर्च कलाम ने अपने खर्चों से दिया। संबंधित अधिकारियों को साफ निर्देश था कि इन मेहमानों के लिये राष्ट्रपति भवन की गाडिय़ाँ इस्तेमाल नहीं की जाएँगी। यह भी कि रिश्तेदारों के राष्ट्रपति भवन में रहने और खाने-पीने के सारे खर्च का ब्यौरा अलग से रखा जाएगा एवं इसका भुगतान राष्ट्रपति के नहीं बल्कि कलाम के निजी खाते से होगा। ये हमारे कलाम थे। आज के दौर में जब जनसेवकों का एक बड़ा वर्ग राजा-महाराजाओं जैसा व्यवहार करता दिखाई देता है, कलाम ने सादगी, मितव्ययिता और ईमानदारी की कई अनुकरणीय मिसालें बनाई हैं जो प्रेरणा के साथ-साथ आज के राज-नेताओं के लिये आईना भी है।
कलाम वर्ष 1962 में ‘भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन’ से जुड़े। उन्हें प्रोज़ेक्ट डायरेक्टर के रूप में भारत का पहला स्वदेशी उपग्रह (SLV lll) प्रक्षेपास्त्र बनाने का श्रेय हासिल है। अब्दुल कलाम भारत के मिसाइल कार्यक्रम के जनक माने जाते हैं।
उन्होंने 20 साल तक भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) में काम किया और करीब इतने ही साल तक रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) में भी कार्य किया। वे 10 साल तक डीआरडीओ के अध्यक्ष रहे साथ ही, उन्होंने रक्षामंत्री के वैज्ञानिक सलाहकार की भूमिका भी निभाई। इन्होंने 'अग्नि' एवं 'पृथ्वी' जैसी मिसाइल को स्वदेशी तकनीक से बनाया था। वर्ष 1997 में कलाम को भारत का सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार 'भारत रत्न' प्राप्त हुआ।
उन्होंने 1998 में भारत के पोखरण-ll परमाणु परीक्षण में एक महत्वपूर्ण संगठनात्मक, तकनीकी और राजनीतिक भूमिका निभाई थी।
18 जुलाई, 2002 को कलाम भारत के 11वें राष्ट्रपति के रूप में निर्वाचित हुए। इन्हें भारतीय जनता पार्टी समर्थित एनडीए ने अपना उम्मीदवार बनाया था। 25 जुलाई, 2002 को उन्होंने संसद भवन के अशोक कक्ष में राष्ट्रपति पद की शपथ ली थी। 25 जुलाई 2007 को उनका कार्यकाल समाप्त हो गया था। अपना कार्यकाल पूरा करके कलाम जब राष्ट्रपति भवन से जा रहे थे तो उनसे विदाई संदेश देने के लिये कहा गया। उनका कहना था, "विदाई कैसी, मैं अब भी एक अरब देशवासियों के साथ हूँ।"
भारत का सर्वोच्च पद तो उनकी ताज में एक और हीरा मात्र था। वो तो असल में एक शिक्षक थे और अब भी हैं। ऐसे शिक्षक, जो बच्चों से हमेशा बड़े सपने देखने के लिये कहते हैं। ऐसे शिक्षक, जिन्होंने सिखाया कि जीवन में चाहें जैसी भी परिस्थिति क्यों न हो पर जब आप अपने सपने को पूरा करने की ठान लेते हैं तो उन्हें पूरा करके ही रहते हैं। ऐसे शिक्षक,जो 27 जुलाई, 2015 को आईआईएम शिलांग में 'रहने योग्य ग्रह' पर व्याख्यान देते हुए इस फानी दुनिया को छोड़ गए।
लेकिन उस बच्ची की तरह, जो झारखंड के ऐसे ज़िले से आती है जिसकी शिक्षा दर सबसे कम है और आज दिल्ली की गलियों में खोई है, न केवल इस देश बल्कि, पृथ्वी पर सभी देशों के लोगों के दिलों में डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम की वो आवाज़ गूँजती है कि "इंतज़ार करने वाले को उतना ही मिलता है जितना संघर्ष करने वाले छोड़ जाते हैं।" आज वो लड़की अपने कलाम सर से वादा करती है कि ना सिर्फ वो अपने सपने पूरे करेगी बल्कि अगली पीढ़ी की बच्चों को भी बड़े सपने देखने में मदद करेगी। आज वो कहना चाहती है कि कलाम सर आप इस पृथ्वी से आसमान में गए सबसे उज्ज्वल तारों में से एक हैं जो पृथ्वी पर, भारत में हम सब लोगों को ध्रुवतारे की तरह दिशा दिखाते रहेंगे।
...और हाँ विदा तो अब भी हमसब नहीं कह सकते आपको क्योंकि, विदाई कैसी! आप अब भी एक अरब देशवासियों के साथ हैं और हमेशा रहेंगे।
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[नेहा चौधरी] |