नोएडा शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 9 दिसंबर से शुरू:   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

दृष्टि आईएएस ब्लॉग

डॉ एस वी राधाकृष्णन- एक महान शिक्षक और कुशल राजनेता

यह वर्ष 1921 की बात है जब मैसूर के महाराजा कॉलेज के भव्य सभागार के बाहर फूलों से सजी-धजी एक बग्घी खड़ी हुई थी। इस बग्घी के चारों ओर छात्रों का विशाल हुजूम उमड़ा हुआ था। इस बग्घी को खींचने के लिए घोड़े नहीं जुड़े हुए थे बल्कि इसे छात्रों को ही खींचना था। अब उन शख्स की बात करते हैं जिन्हें इस बग्घी की सवारी करनी थी... ये शख्स थे डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन। छात्रों के प्रिय शिक्षक राधाकृष्णन का कोलकाता यूनिवर्सिटी में तबादला हो गया था इसलिए छात्र उन्हें इतनी भावपूर्ण-स्नेहिल बधाई दे रहे थे।

Radhkrishnan

भारत के प्रथम उपराष्ट्रपति और दूसरे राष्ट्रपति डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन अपनी राजनीतिक शख्सियत से इतर एक महान शिक्षक भी थे इसीलिए इनके जन्मदिवस यानी 5 सितंबर को प्रतिवर्ष राष्ट्रीय शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। 5 सितंबर को ही शिक्षक दिवस क्यों मनाया जाता है?... इसके पीछे भी एक दिलचस्प किस्सा है-

"यह बात वर्ष 1962 की है जब डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन भारत के दूसरे राष्ट्रपति के रूप में निर्वाचित हो गए थे और उनका निवास दिल्ली स्थित राष्ट्रपति भवन बन चुका था। इसी दरम्यान उनके जन्मतिथि की तारीख यानी 5 सितंबर आने को होती है। इससे कुछ दिन पहले उनके कुछ दोस्त और छात्र उनसे उनका जन्मदिन मनाने का निवेदन करते है। इस पर वो कहते हैं कि यदि उनके जन्मदिन को वार्षिक शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाए तो ये उनके लिए बेहद सौभाग्य की बात होगी। उनके चाहने वालों ने ठीक ऐसा ही किया... तबसे वार्षिक तौर पर 5 सितंबर को शिक्षक दिवस मनाने की शुरूआत हुई। बाद में इस दिन को राष्ट्रीय शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।"

तत्कालीन मद्रास प्रेसिडेंसी के तिरुतानी नामक स्थान पर एक भूमि नाप-जोख कर्मचारी के घर में जन्में राधाकृष्णन शुरुआत में विज्ञान विषय के साथ अपनी पढ़ाई करने के इच्छुक थे, मगर नियति ने तो उनके लिए कुछ और ही सोच रखा था। बारहवीं की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद राधाकृष्णन अपने एक रिश्तेदार से मिलने के लिए मद्रास गए हुए थे। वहाँ उन्होंने वेदांत दर्शन पर एक पुस्तक देखी और स्वभाव से पढ़ाकू किस्म के राधाकृष्णन उस पुस्तक को पूरा पढ़ गए।

राधाकृष्णन के दिल-ओ-दिमाग पर इस पुस्तक का गहरा असर हुआ। विज्ञान विषय के साथ अपनी उच्च शिक्षा को पूरी करने की हसरत पाले राधाकृष्णन ने अब अपना इरादा बदल लिया था। अब वो दर्शनशास्त्र विषय के साथ अपनी आगे की पढ़ाई करना चाहते थे। इस तरह दर्शनशास्त्र को उन्होंने नहीं बल्कि दर्शनशास्त्र ने उन्हें चुना।

Radhkrishnan

स्नातक की पढ़ाई के लिए राधाकृष्णन ने मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज में दाखिला लिया। इस दौरान उन्होंने वेदांत दर्शन का विशद अध्ययन किया और भारतीय दर्शन को सामयिक परिप्रेक्ष्य में समझने की कोशिश की। दर्शनशास्त्र में ही परास्नातक करने के बाद वो मद्रास के प्रेसिडेंसी कॉलेज में सहायक प्रोफेसर के रूप में नियुक्त हुए। वर्ष 1918 में उनका तबादला मैसूर के महाराजा कॉलेज में पढ़ाने के लिए हुआ। इसी बीच उन्होंने दर्शन पर दो किताबें भी लिखी- द फिलॉसफी ऑफ रबींद्र नाथ टैगोर (The Philosophy Of Rabindranath Tagore), द रेन ऑफ रिलीजिन इन कंटेमपोरेरी फिलॉसफी (The reign of religion in contemporary philosophy)।

Radhkrishnan

वर्ष 1921 में महाराजा कॉलेज (मैसूर) से उनका तबादला कोलकाता यूनिवर्सिटी में पढ़ाने के लिए हुआ। शिक्षण कार्य से इतर राधाकृष्णन विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय शिक्षण संस्थानों में भारतीय दर्शन पर व्याख्यान भी देते थे। राधाकृष्णन ने अद्वैत वेदांत की सामयिक समझ के साथ पुनर्व्याख्या की। इससे अद्वैत वेदांत का सरलीकरण हुआ और ये भारत के बाहर के लोगों को भी समझ आया। सितंबर 1926 में अमेरिका की हॉवर्ड यूनिवर्सिटी में 'अंतर्राष्ट्रीय दर्शनशास्त्र कांग्रेस' का आयोजन हुआ। इस आयोजन में राधाकृष्णन को भी भाषण देना था। राधाकृष्णन ने जब यहाँ पश्चिमी शैली में भारतीय दर्शन कि व्याख्या की तो पूरा सभागार उनकी समझ का कायल हो उठा। अगले दिन वहाँ के अखबारों की सुर्खियाँ में, उनका ये व्याख्यान ही था। कुछ विद्वानों और पत्रकारों ने तो यहाँ तक कहा कि विवेकानंद के बाद राधाकृष्णन ही दूसरे ऐसे व्यक्ति हैं जिन्होंने भारतीय दर्शन को इतनी बोधगम्यता के साथ समझाया है।

इसी कालखंड में राधाकृष्णन ने दर्शनशास्त्र पर एक कालजयी पुस्तक लिखी- द हिन्दू व्यू ऑफ लाइफ (The hindu view of life)। वर्ष 1929 में उन्हें ऑक्सफ़ोर्ड के मैनचेस्टर कॉलेज में व्याख्यान देने के लिए आमंत्रित किया गया। यहाँ उन्होंने 'एन आइडियलिस्ट व्यू ऑफ लाइफ' नामक व्याख्यान दिया। बाद में इसी व्याख्यान की विषयवस्तु को आधार बनाकर इसी नाम से उनकी एक पुस्तक भी प्रकाशित हुई। जून 1931 में ब्रिटेन के राजा किंग जार्ज पंचम द्वारा उन्हें नाईटहुड की उपाधि से भी सम्मानित किया।

इसी दौरान वर्ष 1931 में उनके शैक्षणिक जीवन में एक अहम पड़ाव आता है जब आंध्र विश्वविद्यालय में वाइस चांसलर के पद पर उनकी नियुक्ति होती है। एक विश्वविद्यालय प्रशासक के तौर पर राधाकृष्णन शानदार काम करते है। उनकी इसी मेधा और अनुभव को सम्मान देते हुए मदन मोहन मालवीय उन्हें बनारस हिंदू विश्वविद्यालय का वाइस चांसलर बनने के लिए आमंत्रित करते है। राधाकृष्णन इस आमंत्रण को सहजतापूर्वक स्वीकारते हुए बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर का पदभार ग्रहण कर लेते हैं।

शैक्षणिक जीवन से इतर राधाकृष्णन ने एक समग्र राजनीतिक जीवन भी जिया है। भारत की आजादी से पूर्व 1940 के दशक में जब संविधान के शुरुआती मसौदे पर काम करने के लिए सप्रू कमेटी का गठन किया गया तो इस कमेटी के सदस्य के तौर पर राधाकृष्णन भी नामित किये गए। इस कमेटी का एक अन्य काम हिन्दू-मुस्लिम के बीच लगातार बढ़ रहे साम्प्रदायिक तनाव को कम कम करने की दिशा में कुछ समाधान सुझाना था। वर्ष 1946 में गठित संविधान सभा के एक सदस्य के रूप में भी उनका निर्वाचन हुआ था। इसके दो साल बाद 1948 में गठित किये गए यूनेस्को के एग्जीक्यूटिव बोर्ड में भी उन्हें चैयरमैन चुना गया जहाँ पर वो भारतीय प्रतिनिधि मंडल का नेतृत्व प्रदान कर रहे थे।

Radhkrishnan

इसी दरम्यान भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू उनसे सोवियत संघ में बतौर राजूदत काम करने के लिए कहते है। नेहरू की बात मानते हुए वे संविधान सभा से इस्तीफा देकर मॉस्को रवाना हो जाते है। चूँकि उस दौर में विश्व दो ध्रुवों- सोवियत संघ और संयुक्त राज्य अमेरिका में बंट चुका था और नेहरू गुटनिरपेक्षता के पक्षधर थे। ऐसे में सोवियत संघ को साधने के लिए नेहरू को एक योग्य सिपहसालार की जरूरत थी। 12 जुलाई 1949 को राधाकृष्णन बतौर राजदूत अपनी सेवा प्रारंभ करते है मगर सोवियत संघ के प्रशासक स्टालिन से उनकी मुलाकात संभव नहीं हो पाती, करीब 6 महीने बीतने के बाद 14 जनवरी 1950 को स्टालिन से उनकी मुलाकात होती है।

सोवियत संघ के राष्ट्रपति के आधिकारिक निवास क्रेमलिन में रात 9 बजे स्टालिन से उनकी मुलाकात होती है। शुरूआती अभिवादन होने के बाद ही राधाकृष्णन स्टालिन से पूछ बैठते हैं-

"आपसे मिलना इतना मुश्किल क्यों है?"

इस पर स्टालिन का जवाब आता है-

"क्या, वाकई मुझसे मिलना इतना मुश्किल है?...देखिए हम-आप मिल तो रहे हैं।"

इसके बाद 5 मिनट की मियाद वाली मुलाकात करीब 3 घंटो तक चलती हैं। बाद में इस मुलाकात के अनुभवों को अपने सहयोगियों से साझा करते हुए राधाकृष्णन ने एक बार कहा भी था कि तुम लोग स्टालिन को सख्त मिजाज का बताते हो मगर मैंने तो उनसे मुलाकात के दौरान बातों ही बातों में उनके बाल भी सहलाए और उन्होंने अपनी भौंह तक न उठाई।

वर्ष 1952 में राधाकृष्णन भारत के उपराष्ट्रपति के रूप में निर्वाचित होते है। उपराष्ट्रपति के तौर पर अपने दूसरे कार्यकाल में वो चीन की यात्रा पर जाते हैं। चूँकि उस दौर में भी चीन के साथ भारत का सीमा विवाद भारत-चीन के आपसी रिश्तों के तनाव की प्रमुख वजह हुआ करता था। ऐसे में भारत के उपराष्ट्रपति की ये यात्रा अतंर्राष्ट्रीय संबंधों के लिहाज से बेहद महत्त्वपूर्ण थी। करीब रात आठ बजे चीनी प्रीमियर के आधिकारिक निवास चुंगनान हाई में भारत के उपराष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन और चीनी प्रीमियर माओत्से तुंग की मुलाकात होती है।

इसी मुलाकात के दौरान राधाकृष्णन ने चीनी प्रीमियर के गाल थपथपा दिए। इसके बाद माओत्से तुंग के चेहरे के भाव को पढ़ते हुए उन्होंने कहा-

"चिंता न करें प्रीमियर साहब... मैंने स्टालिन और पोप के साथ भी ऐसा ही व्यवहार किया था।"

एक महान शिक्षक और कुशल राजनेता सर्वपल्ली राधाकृष्णन वर्ष 1962 में भारत के दूसरे राष्ट्रपति भी बनते हैं। उनके राष्ट्रपति काल में ही भारत के दो प्रधानमंत्रियों (जवाहर लाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री) की मृत्यु हुई और भारत ने दो भीषण युद्ध (वर्ष 1962 का भारत-चीन युद्ध, वर्ष 1965 का भारत-पाकिस्तान युद्ध) की विभीषिका भी झेली।

वर्ष 1967 में राष्ट्रपति के तौर पर अपने कार्यकाल की समाप्ति के बाद उन्होंने राजनीतिक जीवन से थोड़ी दूरी बना ली थी। हालांकि अब भी वो सामाजिक कार्यों में संलग्न थे। इसी उद्देश्य के लिए उन्होंने हेल्प एज इंडिया नामक संगठन भी बनाया जो वृद्धजनों की देखभाल करता था। एक श्रेष्ठ शिक्षक और कुशाग्र राजनीतिज्ञ सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने चेन्नई, तमिलनाडु में 17 अप्रैल 1975 को अंतिम सांस ली। भारत के राष्ट्रपति के तौर पर अपनी सेवा देने के साथ ही एक महान दर्शनशास्त्री के तौर राधाकृष्णन हमेशा याद किये जाते रहेंगे। इस संदर्भ में अमेरिकी शिक्षक पॉल आर्ट्यू शिलिप का एक कथन उल्लेखनीय है कि राधाकृष्णन 'पूर्व और पश्चिम के बीच एक जीवित सेतु' हैं।

संकर्षण शुक्ला

संकर्षण शुक्ला उत्तर प्रदेश के रायबरेली जिले से हैं। इन्होने स्नातक की पढ़ाई अपने गृह जनपद से ही की है। इसके बाद बीबीएयू लखनऊ से जनसंचार एवं पत्रकारिता में परास्नातक किया है। आजकल वे सिविल सर्विसेज की तैयारी करने के साथ ही विभिन्न वेबसाइटों के लिए ब्लॉग और पत्र-पत्रिकाओं में किताब की समीक्षा लिखते हैं।

-->
close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2
× Snow