डॉ. मनमोहन सिंह: राजनीति में शालीनता का उदाहरण
- 15 Jan, 2025
डॉ. मनमोहन सिंह भारतीय राजनीति और समाज में एक ऐसे व्यक्तित्व के रूप में माने जाते हैं, जिन्होंने सादगी, विद्वता तथा सेवा के उच्चतम आदर्श प्रस्तुत किये। उनका जीवन और उनके कार्य आज भी प्रेरणा का स्रोत बने हुए हैं। वह न केवल एक उत्कृष्ट अर्थशास्त्री थे, बल्कि एक ऐसे राजनेता भी थे जिन्होंने राजनीति में गरिमा, शालीनता और ईमानदारी को प्राथमिकता दी। देश को उनका नेतृत्व उस दौर में प्राप्त हुआ, जब भारतीय अर्थव्यवस्था गहरे संकट में थी। वर्ष 1991 में आर्थिक सुधारों की शुरुआत करके, डॉ. मनमोहन सिंह ने भारत को वैश्विक आर्थिक मानचित्र पर अग्रसर किया। उनकी नीतियाँ और निर्णय न केवल तत्कालीन समस्याओं के समाधान में प्रभावी रहे, बल्कि उन्होंने देश के दीर्घकालिक विकास की नींव भी रखी। उनकी राजनीति का मूल आधार नीतिगत आदर्श और जनता की सेवा था। वह सत्ता के दिखावे से दूर रहते हुए अपने कार्यों से पहचाने गए। उनकी सरलता और शालीनता ने उन्हें राजनीति में एक अलग पहचान दिलाई।
हाल ही में उनके निधन से देश ने एक महान अर्थशास्त्री और नेता को खो दिया। उनका जीवन यह संदेश देता है कि नेतृत्व में गरिमा, आदर्श और संयम बनाए रखते हुए भी महत्त्वपूर्ण तथा परिवर्तनकारी कार्य किये जा सकते हैं।
परिचय और प्रारंभिक जीवन
डॉ. मनमोहन सिंह का जन्म 26 सितंबर 1932 को अविभाजित भारत के पंजाब प्रांत के गाह गाँव (अब पाकिस्तान में) में हुआ। भारत विभाजन के समय उनका परिवार विस्थापित होकर भारत आया। यह दौर उनके लिये और उनके परिवार के लिये गहरे संघर्ष का समय था। हालाँकि इन परिस्थितियों ने उनके मनोबल को कमज़ोर नहीं किया, बल्कि उन्हें और अधिक दृढ़ एवं मेहनती बनाया।
डॉ. मनमोहन सिंह बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि और ज्ञान के प्रति गहरी लगन रखने वाले छात्र थे। उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा पंजाब के स्थानीय स्कूलों में प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ से अर्थशास्त्र में स्नातक और स्नातकोत्तर की डिग्री प्राप्त की। आगे की शिक्षा के लिये उन्होंने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया, जहाँ से अर्थशास्त्र में डिग्री प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से भारत की निर्यात नीति के विषय पर शोध किया, जो भारतीय अर्थव्यवस्था की समझ में उनकी गहरी अंतर्दृष्टि का प्रमाण था। उनकी शिक्षा एवं शोध के दौरान ही उनके विचारों और नीतिगत दृष्टिकोण की नींव पड़ी।
डॉ. मनमोहन सिंह का कॅरियर शिक्षा क्षेत्र से प्रारंभ हुआ। उन्होंने पहले पंजाब विश्वविद्यालय और बाद में दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में प्राध्यापक के रूप में सेवाएँ दीं। उनकी शिक्षा और मार्गदर्शन ने कई छात्रों को प्रेरित किया, जिन्होंने आगे चलकर भारतीय अर्थशास्त्र में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। उनकी योग्यता और दूरदर्शिता के कारण उन्हें भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर के पद पर नियुक्त किया गया। यह पद भारतीय अर्थव्यवस्था के लिये उनके योगदान को एक नई दिशा देने का माध्यम बना। इसके बाद उन्होंने योजना आयोग में उपाध्यक्ष के रूप में कार्य किया, जहाँ उन्होंने भारतीय अर्थव्यवस्था के दीर्घकालिक विकास की योजना के निर्माण में अहम भूमिका निभाई। डॉ. मनमोहन सिंह का प्रारंभिक जीवन और उनका कॅरियर यह दर्शाता है कि किस प्रकार एक साधारण पृष्ठभूमि का व्यक्ति भी अपनी शिक्षा, मेहनत एवं समर्पण से असाधारण ऊँचाइयों को छू सकता है।
योगदान और उपलब्धियाँ
डॉ. मनमोहन सिंह का जीवन और कार्य भारतीय राजनीति एवं आर्थिक विकास की कथा में अद्वितीय अध्याय का योग करते हैं। उनके योगदान और उपलब्धियाँ न केवल भारत के आर्थिक सुधारों में स्पष्ट रूप से दिखाई देती हैं, बल्कि उनके प्रधानमंत्री कार्यकाल के दौरान जनकल्याणकारी नीतियों एवं भारत की वैश्विक पहचान को सुदृढ़ करने में भी परिलक्षित होती हैं। उनका नेतृत्व साहस, नीतिगत दृष्टिकोण और दूरदर्शिता का अद्वितीय उदाहरण है।
आर्थिक सुधारों की शुरुआत (1991 के योगदान)
डॉ. मनमोहन सिंह के जीवन का सबसे महत्त्वपूर्ण अध्याय वर्ष 1991 में लिखा गया, जब उन्होंने वित्त मंत्री के रूप में देश की आर्थिक बागडोर सँभाली। भारत उस समय गंभीर आर्थिक संकट से जूझ रहा था, जब विदेशी मुद्रा भंडार समाप्ति के कगार पर था और आर्थिक दिवालियापन का खतरा स्पष्ट रूप से सामने था। ऐसे चुनौतीपूर्ण समय में, डॉ. मनमोहन सिंह ने तत्कालीन प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव के नेतृत्व में साहसिक आर्थिक सुधारों को लागू करने की पहल की। उन्होंने उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण की नीतियाँ लागू कीं, जिसने भारतीय अर्थव्यवस्था को एक बंद अर्थव्यवस्था से एक प्रतिस्पर्द्धी वैश्विक अर्थव्यवस्था में परिणत कर दिया।
- आयात-निर्यात में सुधार: उन्होंने आयात-निर्यात की पाबंदियाँ घटाई और व्यापार को अधिक सरल एवं प्रभावी बनाया। इससे न केवल भारतीय उद्योगों को वैश्विक बाज़ार में प्रवेश मिला, बल्कि देश के विदेशी मुद्रा भंडार में भी उल्लेखनीय वृद्धि हुई।
- औद्योगिक सुधार: उन्होंने उद्योगों को लाइसेंस राज से मुक्त करते हुए निवेश के लिये नए अवसर प्रदान किये। विदेशी निवेश को प्रोत्साहन दिया गया और नई औद्योगिक नीतियाँ अपनाई गईं, जिन्होंने भारत को एक वैश्विक आर्थिक शक्ति के रूप में उभरने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- मुद्रा और वित्तीय नीतियों में सुधार: डॉ. मनमोहन सिंह ने भारतीय रिज़र्व बैंक और वित्तीय संस्थाओं के पुनर्गठन की प्रक्रिया शुरू की। इससे भारतीय बैंकिंग प्रणाली को मज़बूत आधार मिला और आर्थिक स्थिरता में सुधार हुआ।
प्रधानमंत्री के रूप में योगदान (2004-2014)
डॉ. मनमोहन सिंह ने वर्ष 2004 से 2014 तक प्रधानमंत्री के रूप में देश की सेवा की। उनका कार्यकाल आर्थिक और सामाजिक सुधारों के लिये भारतीय लोकतंत्र में ऐतिहासिक महत्त्व रखता है।
- महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम (MGNREGA): यह योजना ग्रामीण भारत में रोज़गार गारंटी प्रदान करने वाली सबसे बड़ी योजना के रूप में समादृत है। इसने न केवल ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोज़गारी कम की, बल्कि स्थानीय बुनियादी ढाँचे के विकास में भी मदद की।
- भारत-अमेरिका परमाणु समझौता: उनके नेतृत्व में ही वर्ष 2008 में भारत और अमेरिका के बीच असैन्य परमाणु समझौता हुआ। इस समझौते ने भारत की ऊर्जा आवश्यकताओं की पूर्ति में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया और वैश्विक स्तर पर भारत की स्थिति को सुदृढ़ किया।
- शिक्षा संबंधी सुधार: शिक्षा का अधिकार अधिनियम (RTE) उनकी सरकार की एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि थी। यह अधिनियम बच्चों को निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार प्रदान करता है। इसके साथ ही, उनके कार्यकाल में उच्च शिक्षा के क्षेत्र में भी कई सुधार किये गए।
- स्वास्थ्य मिशन: राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM) के माध्यम से ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं को सुदृढ़ किया गया। इसने विशेष रूप से मातृ और शिशु स्वास्थ्य में सुधार लाने में अहम भूमिका निभाई।
- आर्थिक विकास: डॉ. सिंह के प्रधानमंत्री कार्यकाल में भारतीय अर्थव्यवस्था ने 8-9% की वार्षिक वृद्धि दर प्राप्त की। इसे भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास के स्वर्णिम युग के रूप में चिह्नित किया गया।
वैश्विक छवि और कूटनीतिक सफलता
डॉ. मनमोहन सिंह का व्यक्तित्व और उनकी नीतियाँ भारत को वैश्विक मंच पर सशक्त बनाने में सहायक सिद्ध हुईं। उन्होंने भारत को न केवल एक आर्थिक शक्ति के रूप में प्रस्तुत किया, बल्कि एक विश्वसनीय साझेदार के रूप में भी स्थापित किया।
- G-20 और ब्रिक्स में नेतृत्व: उनके नेतृत्व में भारत ने G-20 और ब्रिक्स जैसे वैश्विक संगठनों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। इन मंचों पर उन्होंने विकासशील देशों के अधिकारों की रक्षा के लिये प्रबल आवाज़ उठाई।
- जलवायु परिवर्तन: उन्होंने भारत को जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर एक ज़िम्मेदार राष्ट्र के रूप में स्थापित किया और वैश्विक मंच पर भारत की नीतियों को प्रभावी ढंग से प्रस्तुत किया।
- पड़ोसी देशों के साथ संबंध: पाकिस्तान और चीन जैसे पड़ोसी देशों के साथ संवाद एवं शांति की दिशा में उनके प्रयास सराहनीय रहे। उनकी कूटनीति शालीनता और दीर्घकालिक दृष्टिकोण पर आधारित थी।
डॉ. मनमोहन सिंह: राजनीति में शालीनता का उदाहरण
डॉ. मनमोहन सिंह का जीवन भारतीय राजनीति में शालीनता, गरिमा और नैतिकता का एक विलक्षण उदाहरण है। एक विद्वान अर्थशास्त्री, दूरदर्शी राजनेता और एक विनम्र व्यक्ति के रूप में उनका सार्वजनिक जीवन आदर्श नेतृत्व एवं नीति-निर्माण का प्रमाण है। उन्होंने न केवल भारतीय राजनीति को नई ऊँचाई दी, बल्कि यह दृष्टांत भी प्रस्तुत किया कि सत्ता का प्रबंधन सादगी, ईमानदारी और मूल्यों के साथ भी किया जा सकता है।
- व्यक्तिगत आचरण और सादगी: डॉ. मनमोहन सिंह का जीवन सादगी और ईमानदारी का प्रतीक था। एक ऐसे समय में जब राजनीति को अक्सर धन और शक्ति के प्रदर्शन के साथ जोड़ा जाता है, डॉ. सिंह ने अपनी निस्वार्थता एवं सादगी से एक अलग पहचान बनाई। प्रधानमंत्री जैसे उच्च पद पर रहते हुए भी उन्होंने कभी सत्ता का दुरुपयोग नहीं किया। उनका जीवन निजी स्वार्थों से परे और देश की सेवा में समर्पित रहा। उनका रहन-सहन बेहद साधारण था और वह प्रायः अपने व्यक्तिगत खर्च के लिये सरकारी संसाधनों पर निर्भर नहीं रहते थे। उनकी पत्नी गुरशरण कौर अपने शांत स्वभाव और गरिमापूर्ण व्यक्तित्व के लिये भी व्यापक रूप से सम्मानित रही हैं।
- विपक्ष के साथ संबंधों में शालीनता: डॉ. सिंह के राजनीतिक जीवन का एक और महत्त्वपूर्ण पहलू विपक्ष के साथ उनके सौहार्दपूर्ण संबंध थे। उन्होंने यह सिद्ध किया कि राजनीति में असहमति को व्यक्तिगत शत्रुता में बदलना आवश्यक नहीं है। भाजपा जैसे विपक्षी दलों के नेता भी उनकी ईमानदारी और गरिमा के प्रशंसक थे। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने एक बार सार्वजनिक रूप से उनकी प्रशंसा करते हुए उन्हें सच्चा देशभक्त कहा था। विपक्ष के साथ उनकी बातचीत में कटुता की बजाय सौम्यता और समाधान की भावना निहित होती थी।
- आलोचनाओं का शांतिपूर्ण उत्तर: यद्यपि डॉ. सिंह का प्रधानमंत्री कार्यकाल विवादों से मुक्त नहीं रहा। 2G घोटाला, कोयला घोटाला और अन्य मुद्दों को लेकर उनकी सरकार की कटु आलोचना हुई। इसके बावजूद उन्होंने संयम बनाए रखा और कभी कटुता या उत्तेजना के साथ प्रतिक्रिया नहीं दी। उनकी यह विशेषता उनके व्यक्तित्व की गहराई को दर्शाती है। उन्होंने हमेशा अपने कार्यों और नीतियों के माध्यम से आलोचनाओं का उत्तर दिया। उनके आलोचकों ने उन्हें ‘मूक प्रधानमंत्री’ कहकर कटाक्ष किया, लेकिन फिर भी उनका शांत आचरण उनके समर्थकों के लिये प्रेरणा बना रहा।
- राजनीति में मूल्यों और आदर्शों का महत्त्व: डॉ. सिंह का मानना था कि राजनीति का उद्देश्य केवल सत्ता पाना नहीं, बल्कि समाज और राष्ट्र के विकास के लिये कार्य करना है। उनके निर्णय और नीतियाँ इसी दृष्टिकोण को प्रतिबिंबित करती थीं। उन्होंने अपने सार्वजनिक जीवन में यह सुनिश्चित किया कि किसी भी निर्णय में नैतिकता और दीर्घकालिक प्रभाव का ध्यान रखा जाए। उनके भाषणों में उनकी वैचारिक स्पष्टता और गहरी समझ स्पष्ट रूप से झलकती थी। उनकी राजनीति न केवल भारत के अंदर, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी गरिमा, शालीनता और नेतृत्व की परिचायक रही।
- संकट के समय नेतृत्व: वर्ष 2008 का वैश्विक आर्थिक संकट डॉ. सिंह के नेतृत्व का एक और महत्त्वपूर्ण अध्याय है। उस समय, जब कई देशों की अर्थव्यवस्थाएँ लड़खड़ा रही थीं, डॉ. सिंह ने भारतीय अर्थव्यवस्था को स्थिर बनाए रखने के लिये सुदृढ़ नीतियों को लागू किया। उन्होंने वित्तीय नीतियों में सुधार किया, बैंकों को मज़बूत किया और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को प्राथमिकता दी। उनके प्रयासों के परिणामस्वरूप भारत उस संकट से अपेक्षाकृत कम प्रभावित हुआ। यह उनकी आर्थिक दूरदर्शिता और दृढ़ निर्णय क्षमता का प्रमाण है।
- जनता के प्रति जवाबदेही और संवेदनशीलता: वह हमेशा जनता के प्रति जवाबदेह रहे। उनका मानना था कि सरकार का हर निर्णय जनता के जीवन को बेहतर बनाने के लिये होना चाहिये। उन्होंने नीतिगत निर्णय लेते समय सामाजिक और आर्थिक संवेदनशीलता को प्राथमिकता दी। उनके कार्यकाल में शुरू की गई योजनाएँ, जैसे मनरेगा, शिक्षा का अधिकार अधिनियम और राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, उनके इसी दृष्टिकोण का परिणाम थीं। इन योजनाओं ने न केवल लाखों लोगों के जीवन को बेहतर बनाया, बल्कि सरकार की जनता के प्रति प्रतिबद्धता को भी सुदृढ़ किया।
- संसदीय व्यवहार और भाषणों की गरिमा: डॉ. मनमोहन सिंह के भाषण उनकी विद्वता और राजनीतिक गरिमा के प्रतीक थे। उनका वक्तव्य हमेशा तथ्यों और तर्कों पर आधारित होता था। उन्होंने कभी व्यक्तिगत आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति नहीं की। उनके भाषणों में संयम, गहराई और नीति-निर्माण की झलक होती थी। उन्होंने संसद में कई बार अपने भाषणों के माध्यम से विपक्ष को आश्वस्त किया और नीतिगत विवादों को सुलझाया। अपने संसदीय आचरण के लिये वह अलग-अलग दौर में विपक्ष और सत्ता पक्ष दोनों द्वारा सराहे गए।
डॉ. मनमोहन सिंह का जीवन और राजनीतिक सफर भारतीय राजनीति के लिये एक प्रेरणा है। उन्होंने न केवल अर्थव्यवस्था को नई दिशा दी, बल्कि राजनीति में नैतिकता और शालीनता के उच्च मानक स्थापित किये। उनका जीवन यह संदेश देता है कि राजनीति केवल सत्ता और विवादों का मंच नहीं, बल्कि सेवा और आदर्शों का पथ है। डॉ. मनमोहन सिंह जैसे नेताओं की उपस्थिति समाज एवं राजनीति को नई दिशा देती है और यह सिद्ध करती है कि सादगी एवं शालीनता के साथ भी प्रभावी नेतृत्व किया जा सकता है। उनके जीवन से हमें सिखने को मिलता है कि संयम, नीतिगत स्पष्टता और जनता के प्रति प्रतिबद्धता ही सच्चे नेतृत्व की पहचान है।