खुशियों और सौगातों का त्योहार है दीपावली
- 03 Nov, 2021 | शंभूनाथ शुक्ल
भारत में गर्मी एक परेशान कर देने वाला मौसम है इसीलिए भारत में वर्षा की धूमधाम से अगवानी की जाती है। भारत की समस्त ऋतुओं में वर्षा को रानी माना गया है। वर्षा के समाप्त होते ही शरद का आगमन होता है जो भारत में आने वाले लोगों के लिए सबसे मुफीद मौसम है। इसीलिए अक्टूबर से फरवरी तक भारत पर्यटकों को सबसे अधिक लुभाता है। इसी शरद की अगवानी का त्योहार है दीवाली। दीयों और रोशनी का त्योहार, खुशियों और उल्लास का पर्व, मेलों-ठेलों का पर्व और वह भी कोई एक या दो दिन का नहीं पूरे पांच रोज का। दीपावली का त्योहार धनतेरस से शुरू होता है और भैया दूज तक लगातार पांच दिन तक चलता है। पूरे देश में यह त्योहार समान रूप से मनाया जाता है और हिंदू, सिख, जैन तथा बौद्ध आदि सभी इसे मनाते हैं। यही कारण है कि दुनिया के अधिकांश देशों में इस दिन हिंदुओं को सरकारी तौर पर दीपावली की छुट्टी मिलती है। नेपाल, श्रीलंका, भूटान, बर्मा, मारीशस, गयाना, थाईलैंड में तो खैर इस दिन राजकीय अवकाश रहता है और आवश्यक सेवाओं को छोड़कर सारे कामकाज बंद रहते हैं। लेकिन अमेरिका, आस्ट्रेलिया और ब्रिटेन में इस दिन हिंदुओं को छुट्टी मिलती है। साल 2003 से तो हर साल दीपावली के रोज अमेरिका के व्हाइट हाउस को भी रोशनी से सजाने की परंपरा चली आ रही है।
हालांकि भारत में भी अन्य त्योहारों की तरह इसे मनाए जाने की परंपरा अलग-अलग है। मसलन कोई इसे लक्ष्मी के आगमन का त्योहार बताते हैं तो किसी के लिए इसी रोज भगवान श्री राम लंका विजय कर अयोध्या वापस लौटे थे तो कोई मान्यता कहती है कि पांडव इसी रोज अपना 12 साल का बनवास तथा एक साल का अज्ञातवास काट कर आए थे। इसके विपरीत दक्षिण भारत में इसे नरकासुर विजय के रूप में मनाते हैं। मान्यता के अनुसार द्वारिका नरेश श्री कृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा के साथ इस दिन नरकासुर का वध किया था। तमिलनाडु में यह भी मान्यता है कि इसी दिन विष्णु ने वामनावतार के समय असुर राजा बलि से सबकुछ दान में ले लिया था। इसीलिए वहां इसे बलि पड़वा भी कहते हैं। लेकिन गुजरात, महाराष्ट्र तथा राजस्थान के मारवाड़ इलाके में दीपावली से उनका पंचांग शुरू होता है। इसे गुड़ी पड़वा की मान्यता है। बंगाल व पूर्वी भारत में इसे काली पूजा कहा जाता है जो देवी दुर्गा के मायके सिधारने के बीस दिन बाद आता है। कई अन्य जगहों पर इसे तांत्रिकों का त्योहार मानते हैं और माना जाता है कि तंत्र विद्याएं इसी दिन जागृत होती हैं। जैनियों के अनुसार दीपावली के दिन ही उनके 24 वें तीर्थंकर महावीर स्वामी को निर्वाण मिला था। आर्य समाजी के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती ने दीपावली के दिन ही प्राण त्यागे थे।
लेकिन रोशनी के इस त्योहार का जितना धार्मिक महत्व है उतना ही अधिक यह उल्लास का भी पर्व है। इस दिन पूरे देश में जितनी खरीदारी होती है उतनी शायद किसी भी त्योहार में नहीं। गरीब से गरीब आदमी भी दीपावली में बर्तन से लेकर कपड़े, गहने, घर व गाड़ी सब खरीद लेना चाहते हैं। इसीलिए व्यापारी इसे त्योहारी सीजन भी कहते हैं। जो अश्विन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा यानी नवरात्रि से शुरू होकर कार्तिक आमावस्या दीपावली से कार्तिक पूर्णिमा यानी गुरु नानक देव के जन्म दिन तक चला करता है। आप पाएंगे कि अधिकतर छूट या डील दूकानदार इसी सीजन में चलाते हैं। सारे नये काम और शादी विवाह का मौसम भी यही है। जितनी गाड़ियाँ इस त्योहारी सीजन में बिकती हैं उतनी पूरे साल नहीं बिक पातीं। हालांकि चैत्र नवरात्रि का एक सीजन मार्च के अंतिम सप्ताह से लेकर अप्रैल के पहले हफ्ते तक भी चलता है लेकिन गर्मी के कारण बाजार उस सीजन में लगभग सूना ही जाता है। इसीलिए भी दीपावली का महत्व अधिक है।
दरअसल भारत एक कृषिप्रधान देश रहा है इसलिए शुरू से ही यहां फसलों के लिहाज से ही त्योहार मनाए जाते रहे हैं। उष्ण कटिबंधीय देश होने के कारण यहां मुख्यतौर पर दो ही फसलें खास होती रही हैं रबी और खरीफ। रबी मार्च से कटनी शुरू होती है और खरीफ सितंबर मध्य से। चूंकि यहां धान मुख्य फसल है और धान ही खरीफ का आधार है इसलिए किसान के पास पैसा धान की फसल आने के बाद ही आता है। धान अब तक कट चुका होता है और किसान के पास खर्च करने को पैसा आ जाता है। किसान को भी महाजन पैसा तब ही देता है जब धान वो घर पर ले आता है। यह धान का पर्व है इसे धन-धान्य का पर्व भी इसीलिए कहते हैं। दीपावली में लाई व खील खास तौर पर देवी लक्ष्मी को अर्पित की जाती है। पूरे भारत में इसे खूब धूमधाम से मनाते हैं। एक तरफ तो धान की फसल घर आती है दूसरी तरफ दलहन की, मालूम हो कि उड़द, मसूर व मूंग जैसी दलहन की फसलों के कटने का समय भी यही है। जबकि रबी की फसल में गेहूं, चना, सरसों व अरहर है। यही कारण है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हरियाणा व पंजाब में बैशाखी का पर्व भी इतने ही उल्लास के साथ मनाया जाता है। जब किसान के पास पैसा आएगा तब ही वह उल्लासित हो पाएगा। त्योहार इसी लिहाज से मनाए जाते रहे हैं। पूरे भारत की अर्थ व्यवस्था भी त्योहारी सीजन के आधार पर ही चलती रही है। आज भले ही अर्थ व्यवस्था में तकनीक और कल कारखाने महत्वपूर्ण हो गए हैं लेकिन अभी भी रीढ़ कृषि ही है। यूं भी भारत में निर्यात ज्यादातर कृषि उपजों का ही होता है इसलिए उपभोक्ता भी कृषि उपज के घटने-बढ़ने के आधार पर ही खरीदारी कर पाता है।
आप देखिए कि हर साल मानसून के पहले कारों के व्यापारी रोना रोते हैं कि भारत में कार की बिक्री घटी लेकिन दीपावली के बाद जो आंकड़े आते हैं उनसे पता चलता है कि कार की बिक्री पिछले साल की तुलना में दो फीसदी बढ़ी। जाहिर है यह सारा खेल कृषि उपजों का है। चैत्र अप्रैल नवरात्रि का आधार अगर गन्ना है तो अश्विन नवरात्रि का आधार है धान। गन्ना दीपावली के कुछ पहले से कटना शुरू होता है और होली अंत तक चला करता है। यानी गन्ने की फसल का असली मजा दीपावली से होली के बीच का है। यही हमारे यहां आने वाले धन का आधार है। यहां तक कि शहरी कमकर वर्गों को भी $कृषि उपज के आधार पर ही वेतन मानक तय होता है। चाहे वह केंद्रीय कर्मचारियों को मिलने वाला बोनस हो अथवा उनके वेतन संस्तुतियां। यही वेतनवृद्धि और बोनस उनकी खरीदारी का जरिया बनता है। पूरे साल लोग इंतजार करते हैं कि कब बोनस मिले और वे अतिरिक्त खरीदारी करें। दीपावली इस खरीदारी का बहाना बन जाती है।
यह दीपावली का त्योहार धनतेरस से शुरू होता है। मान्यता है कि इस दिन कुछ खरीदारी जरूर करनी चाहिए। धनतेरस के दिन बर्तन से लेकर वाहन एवं सोने की खरीद के लिए शुभ माना जाता है। धनतेरस के दिन देर रात तक लोग खरीदारी करते हैं। इसी तरह अगले दिन छोटी दीवाली अर्थात नरकचौदस मनाते हैं। धार्मिक मान्यता है कि इसी दिन श्रीकृष्ण ने नरकासुर का वध किया था। इस दिन लोगबाग अपने घर को साफ करते हैं। हर कोने से गंदगी निकाली जाती है। संभव हो तो इस दिन घर की सफाई व रंगाई का काम भी कर लिया जाए। इस दिन रात के समय बाथरूम व घर के बाहर एक-दो दीया रखकर रोशनी की जाती है और कहा जाता है कि घर के अंदर के सभी अपशकुन दूर हों। तीसरा दिन दीपावली का है। इस दिन सुबह से ही गहमा-गहमी रहती है। खाता पूजन से लेकर इस दिन पैसा नहीं खर्च करने का दिन है। आमतौर पर दीपावली के रोज खरीदारी से बचा जाता है। शाम को शुभ मुहूर्त में गणेश लक्ष्मी की पूजा अर्चना की जाती है और उन्हें फल फूल, मिठाई तथा खील का भोग लगाया जाता है। चीनी से बने हुए खिलौने भी गणेश लक्ष्मी के विग्रह पर चढ़ाए जाते हैं और पूजन के बाद पूरे घर में दीए जलाकर रखने और रोशनी करने का नियम है। माना जाता है कि इस दिन रात के किसी समय लक्ष्मी जी का घर में आगमन हो सकता है इसलिए उनकी अगवानी के लिए घर में पर्याप्त रोशनी की जाए। चूंकि पटाखे छुड़ाने का रिवाज भी है इसलिए लोग बाग दीवाली पूजन के बाद पटाखे छुड़ाते हैं। और अक्सर इतने पटाखे छुड़ाए जाते हैं कि सिर्फ एक ही दिन में हवा में प्रदूषण खतरनाक स्तर तक बढ़ जाता है। इससे जो लोग अस्थमा के मरीज होते हैं उन्हें काफी परेशानी होती है। इसके साथ ही एक और बीमारी या लत इस त्योहार के एक काले पक्ष को उजागर करती है वह है जुआ खेलना। दीपावली को जुआ खेलना लोग एक रसम समझते हैं लेकिन जुआ खेलकर वे कितनी रकम हार जाते हैं कि हँसी व उल्लास का यह पर्व मातम में बदल जाता है।
दीपावली के अगले रोज का पर्व है गोवर्धन या अन्नकूट पूजा। मान्यता है कि इस दिन विष्णु ने इंद्र की पूजा खत्म कराई थी और अपनी पूजा शुरू कराई थी इसलिए यह दीपावली के अगले रोज मनाया जाने वाला पर्व है। इसके बाद तीसरे दिन भैया दूज का पर्व मनाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन मथुरा में यम ने यमी से टीका लगवाया था। यमी यान यमुना नदी जो यम की छोटी बहन है। इसीलिए यम द्वितीया यानी भाई दूज पर्व को मनाया जाता है। इसमें बहनें अपने-अपने भाइयों को टीका लगाती हैं। और बदले में भाई बहन की रक्षा की कसम लेता है। धनतेरस से भाई दूज तक चलने वाला यह पर्व इसी के साथ समाप्त हो जाता है। पर इस पर्व की खासियत इस दौरान की जाने वाली खरीदारी है इसीलिए यह पर्व खुशियों का तथा व्यापारियों के लिए व्यापार बढ़ाने का पर्व है। पूरे व्यापारी समाज की सारी आस इसी पर्व पर टिकी होती है। चाहे वह दिल्ली हो या मुंबई अथवा कोलकाता, चेन्नई या बंगलूर सब जगह के व्यापारी दीपावली के त्योहारी सीजन का इंतजार किया करते हैं। रियल इस्टेट से लेकर गाड़ी व गहनों आदि की बिक्री इसी एक सीजन में सबसे अधिक होती है।
किसी भी समाज के सारे नियम कायदे व त्योहार किसी न किसी तरह से उसकी अर्थ व्यवस्था की रीढ़ होते हैं। जैसे कि मुस्लिम समाज ईद पर और ईसाई समाज क्रिसमस के मौके पर खूब खरीदारी करता है ठीक उसी तरह हिंदू, जैन, सिख व बौद्ध समाज साल भर इस त्योहार का इंतजार करते हैं। सालों से चली आ रही भारतीय कृषि अर्थ व्यवस्था की धुरी है यह त्योहार। योजना आयोग ने अपने एक सर्वे में बताया था कि भारत के कुल योजना व्यय का आधार दीपावली पर आने वाला पैसा है। भारतीय उपभोक्ता का असली बाजार दरअसल दीपावली है। बाकी सारे त्योहारों का धार्मिक महत्व है पर दीपावली का एक व्यावसायिक महत्व है। क्या यह अजीब नहीं है कि पिछले साल ही अकेले दीवाली में दस हजार करोड़ की तो मिठाई बिकी तथा हजार करोड़ से ऊपर की कारें। सोना और चांदी की बिक्री भी इसी सीजन में सबसे ज्यादा होती है और कपड़ों की भी। इस मौके पर उपहार और भेंटें देने के कारण भी तमाम सारे गिफ्ट आइटमों की बिक्री भी बढ़ जाती है। यानी अकेले दीपावली का बाजार अपने देश में करीब एक लाख करोड़ का है। ऐसा त्योहार क्यों न हर एक के लिए खुशियां और सौगात लेकर आए। दीपावली की यह रौनक और यह उत्साह बना रहना चाहिए।
शंभूनाथ शुक्ल (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ) |