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दृष्टि आईएएस ब्लॉग

डिजिटल हाउस अरेस्ट

दिन प्रतिदिन बढ़ते मोबाईल और टेक्नोलाजी के इस्तेमाल ने साइबर क्राइम्स को भी बढ़ावा दिया है। आज साइबर क्रिमिनल क्राइम के नए नए तरीके इजाद कर रहे हैं। जिसमें डिजिटल हाउस अरेस्ट एक नया टर्म जुड़ गया है, जिससे जुड़े कैसेज लगातार सामने आ रहे हैं। भारतीय रिजर्व बैंक ने अपनी एक रिपोर्ट में ये बताया है कि वित्त वर्ष 2023 में करीब 30,000 करोड़ रूपये से ज्यादा के बैंक फ्रॉड रजिस्टर किये गए।

क्या है डिजिटल हाउस अरेस्ट?

डिजिटल हाउस अरेस्ट साइबर अपराध का एक नया तरीका है। इसमें अपराधी उस व्यक्ति (महिला/पुरुष) को पुलिस अधिकारी, जांच अधिकारी, साइबर क्राइम डिपार्टमेंट, एयरपोर्ट अथॉरिटी इत्यादि समेत अलग-अलग पदों पर खुद को बताकर, डराकर-धमाकर, आरोप लगाकर धौंस जमता है, जैसे- तुम्हारे खिलाफ़ एफ़आईआर दर्ज़ हुई है या तुम्हारे खिलाफ़ महिला ने शिकायत दर्ज़ की है या एयरपोर्ट पर प्रतिबंधित पदार्थों (गांजा, अफीम, ड्रग इत्यादि) मिला है और इसमें पर्ची में तुम्हारा नाम मिला है या फिर तुम्हारी मोबाइल में पोर्न वीडियोज देखे गये हैं…इत्यादि, इत्यादि। या फिर इसी तरह के किसी अन्य अन्य आरोप अथवा परिस्थितियों की सूचना जिससे व्यक्ति लोकलज्जा, मुकदमों के डर, गिरफ़्तारी इत्यादि से डर और सहम जाए और पैसे देकर मामले को रफ़ा-दफ़ा करने की सोच लेता है। कई बार साइबर अपराधी जांच के नाम पर पीड़ित के मोबाइल या लैपटॉप पर एक ऐप इंस्टॉल करवाते हैं! वीडियो कॉल के जरिए जांच के नाम पर पीड़ित के दिमाग में अरेस्ट होने का डर बैठाया जाता है। मोबाइल रखवा लिया जाता है या फिर घर से बाहर निकलने भी नहीं दिया जाता है। उसे व्यक्ति को किसी से संपर्क भी नहीं करने दिया जाता है। जालसाजों का यह मकसद होता है कि व्यक्ति किसी से मदद ना ले पाए। क्योंकि उन्हें डर होता है कि संपर्क कर पाएगा ठगी की कोशिश असफल हो जाएगी।

अभी तक हुई पुलिस जांच से ये पता चला है कि इस प्रकार की ठगी में बदमाश जिन खातों में रकम ट्रांसफर करते हैं वो ज्यादातर श्रमिकों और बेरोजगारों के होते हैं। ठगी की रकम रखने वाले खाते पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु समेत अन्य जगहों के व्यक्तियों के पाए गए हैं। कॉलिंग के लिए विदेशी नेटवर्क का यूज किया गया है। इस प्रकार की रकम क्रिप्टो करेंसी और गिफ्ट कार्ड में ट्रांसफर करके तुरंत बाहर भेज दी जाती है। ज्यादातर मामलों में पुलिस केवल उन्हें ही अरेस्ट कर पाती है जिनके खातों में ठगी की रकम ट्रांसफर की जाती है, मुख्य आरोपी बचने में कामयाब हो जाते हैं।

किसको बनाते हैं निशाना?

इस प्रकार के अपराध के लिए ज्यादातर उन लोगों को साइबर अपराधी अपना शिकार बनाते हैं जो थोड़ा भोले-भाले या फिर कम जागरुक मालूम पड़ते हैं। किशोरावस्था में मोबाइल फोन पर सक्रिय लोग भी नज़र में रहते हैं। इसके अलावा महिलाओं व लड़कियों को भी (पोर्नोग्राफी देखने या सर्च करने, किसी पुरुष से बात करने इत्यादि जैसे लोकलज्जा वाले आरोपों से) डरा-धमकाकर शिकार बनाया जाता है। आजकल ज्यादातर लोग स्मार्टफोन और लैपटॉप जैसे गैजेट्स का इस्तेमाल करते हैं किंतु साइबर सिक्योरिटी के बारे में बहुत ज्यादा जागरुक नहीं हैं, ऑनलाइन बैंकिंग का इस्तेमाल लोगों की तादाद में लेकिन लेकिन उन्हें सुरक्षित तरीके से डिजिटल ट्रांजेक्शन करना नहीं आता है। ऐसे लोगों को निशाना बनाना और उनसे भी ठगी करना अपराधियों के लिये आसान हो जाता है।

अब तक आये केसेज के कुछ उदाहरण

हाल ही में नोयडा में रहने वाली एक महिला ने हाउस अरेस्ट होने की घटना को साझा करते हुए बताया कि उसके पास एक कॉल आया जिसमें एक व्यक्ति अपने आप को इंटरनेशनल कूरियर कम्पनी का कर्मचारी बता रहा था उसने महिला पर आरोप लगाया कि उसके नाम से भेजे गए के पार्सल में ड्रग्स मिला है। फिर उन्हें धमकी दी गयी कि वो उसकी शिकायत मुंबई साइबर क्राइम ब्रांच में करेंगे। इसके बाद उस महिला के पास वीडियो कॉल आया जिसका बैकग्राउंड पुलिस स्टेशन जैसा था। पुलिस अफसर बनकर बात कर रहे व्यक्ति उन्हें रात भर सोने नहीं दिया और अलग अलग एकाउंट्स में 5.20 लाख रूपये जमा करवा लिए।

एक अन्य मामले में एक महिला चिकित्सक को एक अंजान नंबर से कॉल आई,फोन करने वाले ने खुद को ट्राई से बताया और उन पर एक अश्लील वीडियो भेजने और धनशोधन के मामले में फंसने का डर बनाया। 14 जुलाई को डिजिटल अरेस्ट करके उनकी बेटी का अपहरण करने और जिंदगी बर्बाद करने की धमकी देकर 59 लाख 54 हजार रूपये ऐंठे। स्काइप कॉल के जरिये दो दिन तक ठग उनको डराते रहे। उनसे बार बार पैसे ट्रांसफर करवाते रहे जिससे उन्हें ठगी की आशंका हुई और उन्होंने साइबर क्राइम माँ थाने में शिकायत दर्ज कराई।

पिछले साल दिसंबर में डिजिटल अरेस्ट का पहला मामला प्रकाश में आया था। इस साल 2024 में शुरुआत के चार महीनों में ही देशभर में डिजिटल अरेस्ट के 4599 केसेज आ चुके हैं। इस प्रकार हाउस अरेस्ट से अब तक 120 करोड़ रूपये से भी अधिक की ठगी हो चुकी है।

कैसे बचें इस प्रकार के अपराधों से?

कई बार जानकारी के अभाव में पासवर्ड टाइप करते समय लोग मोबाइल के कीपैड का प्रयोग करते हैं जिससे पासवर्ड मोबाईल मेमोरी में सेव हो जाते हैं इसलिए ऑनलाइन बैंकिंग के समय वेबसाइट पर मौजूद वर्चुल कीपैड का यूज करना चाहिए।

कई बार हम ये गलती भी करते हैं कि हर वेबसाइट पर एक ही सरल सा पासवर्ड रखते हैं या इतना आसान पासवर्ड रखते हैं जो कि लोग आसानी से अनुमान लगा सकते हैं जैसे कि डेट ऑफ़ बर्थ, मोबाइल नंबर जिससे साइबर अपराधियों को आपका डेटा हासिल करने में कोई कठिनाई नहीं होती।इसलिए जरूरी है कि आप समय समय पर अपने मोबाईल, लैपटॉप और नेट बैंकिंग आदि के पासवर्ड चेंज करते रहें और ऐसे कठिन पासवर्ड रखें जिनका अनुमान लगाना कठिन हों।खुद किसी डायरी में लिख कर उन्हें सेव रखें जिससे आप पासवर्ड्स न भूलें।जिससे आपकी डिवाइस को आसानी से हैक ना किया जा सके।

किसी अंजान नम्बर से आने वाली कॉल्स (खासतौर से वीडियोकॉल) या इंटरनेट कॉलिंग से आने वाली कॉल्स को रिसीव करने से बचें।

अगर कोई अंजान व्यक्ति आपको व्हाट्सएप पर किसी अंजन ग्रुप में जोड़ता है तो तुरंत उससे कारण पूछे और किसी भी अंजान ग्रुप में एड न हों।

इसी तरह फेसबुक पर कोई आपको लालच देकर किसी पेज को लाइक करने को कहे या किसी अनजान ग्रुप को ज्वाइन करने के लिए कहे तो ऐसा करने से बचना चाहिए।

यूट्यूब पर किसी वीडियो में दिए गए नंबर्स पर कॉल नहीं करना चाहिए।

कई बार वीडियो लाइक करने पैसे दिए जाने का लालच दिया जाता है और फिर अकाउंट डिटेल्स लेकर ठगी की जाती है। पैसा कमाने के लिये इस तरह के शॉर्टकट तरीकों से बचना चाहिए। इस तरह के कैसेज में देखा जाता है कि अपराधी पहले कुछ रकम भेज कर व्यक्ति को अपने विश्वास में ले लेते हैँ। बाद में और ज्यादा रकम भेजने के लिये ओटीपी मांगते हैँ और फिर पूरा अकाउंट खाली कर देते हैं।

अगर कोई अनजान व्यक्ति फोन करके आपका नाम का पार्सल मिलने और उसमें ड्रग होने की बात कहता है तो बिना डरे तुरंत पुलिस को संपर्क करना चाहिए। इसी तरह यदि कोई आपको कॉल करके आपके आधार कार्ड या वोटर आईडी के गलत इस्तेमाल करने का आरोप लगाये तो उसकी शिकायत तुरंत पुलिस को करनी चाहिए।

सोशल मीडिया साइट्स ईमेल और जहां ये ऑप्शन मिलता हैं, वहाँ टू-फैक्टर-ऑथेंटिकेशन जरूर ऑन रखें।

अगर कोई कॉल करके आपसे आपकी बैंक डिटेल्स या पिन आदि साझा करने के लिये बोले तो तुरंत उसकी पहचान वैरिफाई करें क्योंकि कोई भी सरकारी एजेंसी या बैक कभी भी इस तरह से कॉल करके डिटेल्स नहीं मांगते हैं।

यदि कोई वीडियो कॉल करके आपके परिचित की शक्ल या सोशल मीडिया अकाउंट से पैसे मांगे तो सबसे पहले उस व्यक्ति से कन्फर्म करें क्योंकि आजकल डिजिटल फेस स्वैपिंग के दौर में आपके दोस्त या करीबी की शक्ल को दिखाकर पैसे मांगते हैं। कई बार उनकी आवाज का भी इस्तेमाल किया जाता है।बिना पहचान वैरिफाई किये कोई ट्रांजेक्शन न करें।

कहां करें शिकायत?

इस प्रकार के अपराध की शिकायत आप 1930 पर कर सकते हैं।

www.cybercrime.gov.in पर भी आप मदद मांग सकते हैं।

सोशल मीडिया साइट ऐक्स(×) पर @cyberdost के माध्यम से शिकायत कर सकते हैं।

सरकार ने इस प्रकार की घटनाओं पर लगाम लगाने के लिए संचार साथी वेबसाइट में चक्षु पोर्टल लॉन्च किया है।

इसके अलावा आप अपने नजदीकी पुलिस स्टेशन या साइबर पुलिस स्टेशन में जाकर भी इस प्रकार की घटना की शिकायत दर्ज करा सकते हैं।

क्या है सजा?

ईमेल स्पूफिंग या फ्रॉड जिसमें किसी दूसरे शख्स के ई-मेल पते का इस्तेमाल करते हुए गलत मकसद से दूसरों को ई-मेल भेजा जाता है। हैकिंग, फिशिंग, स्पैम और वायरस-स्पाईवेयर फैलाने के लिए इस तरह के फ्रॉड का इस्तेमाल ज्यादा होता है। इनका मकसद ई-मेल पाने वाले को धोखा देकर उसकी गोपनीय जानकारियां हासिल कर लेना होता है। ऐसी जानकारियों में बैंक खाता नंबर, क्रेडिट कार्ड नंबर, ई-कॉमर्स साइट का पासवर्ड वगैरह आ सकते हैं। इस प्रकार के अपराध के लिए आईटी कानून 2000 की धारा 77 बी, आईटी (संशोधन) कानून 2008 की धारा 66 डी, आईपीसी की धारा 417, 419, 420 और 465 के तहत तीन साल तक की जेल और जुर्माने का प्रावधान है।

आइडेंटिटी थेफ़्ट से संबंधित अपराध जिसमें अपराधी किसी दूसरे शख्स की पहचान से जुड़े डेटा, गुप्त सूचनाओं का इस्तेमाल करता है। दूसरों के क्रेडिट कार्ड नंबर, पासपोर्ट नंबर, आधार नंबर, डिजिटल आईडी कार्ड, ई-कॉमर्स ट्रांजक्शन पासवर्ड, इलेक्ट्रॉनिक सिग्नेचर वगैरह का इस्तेमाल करते हुए शॉपिंग, ऑनलाइन ट्रांजेक्शन कर लेते हैं। जब आप कोई और शख्स होने का आभास देते हुए कोई अपराध करते हैं या उसकी पहचान का दुरूपयोग करते हैं, तो वह आइडेंटिटी थेफ्ट के दायरे में आता है। इस तरह के अपराध के लिए आईटी (संशोधन) एक्ट 2008 की धारा 43, 66 (सी, आईपीसी की धारा 419)के तहत तीन साल तक की जेल और/या एक लाख तक जुर्माना लगाया जा सकता है।

  शालिनी श्रीवास्तव  

(लेखिका शालिनी श्रीवास्तव बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर केंद्रीय विश्वविद्यालय के जनसंचार एवं पत्रकारिता विभाग में शोध छात्रा हैं। इन्होंने जनसंचार एवं पत्रकारिता में मास्टर डिग्री एवं एमफिल किया है। इसके अलावा शालिनी श्रीवास्तव ने आकाशवाणी लखनऊ में ‘युवावाणी कार्यक्रम’ में कम्पीयर के रूप में कार्य किया है। शालिनी विभिन्न समाचार पत्रों के लिये आर्टिकल लेखन के साथ-साथ डिजिटल पोर्टल्स पर भी समाचार एवं फीचर लेखन का कार्य करती रही हैं। शालिनी हैपेटाइटिस के प्रति जागरूकता हेतु डॉक्यूमेंट्री फिल्म "होप फॉर हेप सी" का निर्देशन भी कर चुकी हैं।)


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