बेल्जियम दूतावास: भारतीय वास्तुकला का अनुपम उदाहरण
- 06 Jan, 2021 | विवेक शुक्ला
आप कभी राष्ट्रीय राजधानी के डिप्लोमैटिक एरिया चाणक्यपुरी जाएँ तो वहाँ आपको एक से बढ़कर एक सुंदर और अनुपम दूतावासों-उच्चायोगों की इमारतें दिखेंगी। जिस कल्पनाशीलता से इन्हें तैयार किया गया है, वो अभिभूत करती हैं। इन सबके डिज़ाइन देखकर लगता है कि इनके वास्तुकारों ने इन्हें बड़े मन और परिश्रम से तैयार किया होगा। और अगर बात बेल्जियम दूतावास की हो तो यह इमारत अपने आप में सबसे अलग और अद्वितीय है।
चाणक्यपुरी के शांतिपथ में 1980 में बनकर तैयार हुई थी बेल्जियम दूतावास की इमारत। इस तरह इसने 4 दशकों का सफर पूरा कर लिया है। इसमें कई गुंबद हैं। इसमें ईंटों के ऊपर सीमेंट का लेप नहीं है। यह शायद दिल्ली के महत्त्वपूर्ण दफ्तरों की पहली ऐसी इमारत थी,जिसमें ईंटों को ढँका नहीं गया था। वैसे इससे पहले सुजान सिंह पार्क,जो आवासीय इमारत है, को भी सीमेंट के लेप से ढँका नहीं गया था। वह 1940 के दशक में बनी थी। बेल्जियम दूतावास का डिज़ाइन मूलत: एक चित्रकार और मूर्तिकार सतीश गुजराल ने तैयार किया था। इस कृति ने उन्हें आर्किटेक्चर के संसार में एक विशेष जगह दिलवा दी। यह इमारत आधुनिक भारतीय वास्तुकला का शिखर मानी जाती है। पर सतीश गुजराल का मूल रुझान अंत तक चित्रकारी ही रहा । वे इमारतों के नए डिज़ाइन तैयार करने के प्रोजेक्ट प्राय:नहीं लेते थे।
आपको बेल्जियम दूतावास की इमारत बाक़ी से इस लिहाज़ से भी भिन्न लगेगी कि यह प्लॉट के बीच में नहीं बनी है। बेल्जियम दूतावास के प्लॉट को आप अर्ध-त्रिकोणीय कह सकते हैं। सतीश गुजराल ने इसके कोनों में दूतावास की मुख्य इमारत, राजदूत आवास और यहाँ के कर्मियों के आवास के डिज़ाइन बनाए। उन्होंने इधर की लैंड स्केपिंग करते हुए कई जगहों पर छोटे-छोटे टीले बनाए। कहते हैं कि बेल्जियम और स्वीडन दूतावास साथ-साथ बन रहे थे। तब स्वीडन दूतावास के प्लॉट से खुदाई के दौरान ढेर सारी मिट्टी बाहर फेंकी जाने लगी। उसी मिट्टी से सतीश जी ने टीले बनाए। शुरू में सतीश जी के डिज़ाइन में मीनमेख भी निकाला गया। कहने वालों ने कहा कि इसमें भारतीयता झलकती है, जबकि इसमें बेलिज्यम के जीवन की खुशबू बिखरनी चाहिये थी। आखिर यह बेल्जियम दूतावास की इमारत जो थी! पर बेल्जियम सरकार ने ही उन आपत्तियों को खारिज कर दिया । उनका तर्क था कि चूँकि यह इमारत भारत में स्थित है, इसलिये इसमें भारतीयता के तत्त्व ज़रूरी हैं।
पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. इंद्र कुमार गुजराल के अनुज सतीश गुजराल मानते थे कि वे एक कलाधर्मी हैं। वे चित्रकारी करें या मूर्ति बनाएँ या फिर किसी इमारत का डिज़ाइन तैयार करें, वे सब कुछ अपने मन से करते हैं। उन्हें जो सही लगता है, वह उनके काम में अभिव्यक्त होता है। दरअसल, कोई भी इमारत सिर्फ मिट्टी, गारे, ईंट, सीमेंट वगैरह से नहीं बनती। वह वास्तुकला के पूरे व्यक्तित्व की अभिव्यक्ति भी होती है। चूँकि सतीश गुजराल चोटी के चित्रकार थे, इसलिये उन्होंने इसे हटकर तो बनाया ही, साथ ही वे कमाल के प्रयोगधर्मी भी थे। इसलिये उन्होंने बेल्जियम दूतावास के भीतर एक बड़ा-सा गलियारा दिया और मुख्य भवन में एक भव्य हॉल के लिये स्पेस निकाला। आप कह सकते हैं कि यह इमारत मूर्तिकला के अंदाज़ में बनी है। वे इसकी खिड़कियों और दरवाजों को सामान्य इमारतों से अधिक बड़ा स्पेस देते हैं। इसलिये इधर दिन में सूरज की पर्याप्त रोशनी आती है। रात में अंदर की रोशनी से बाहर का माहौल भी गुलज़ार रहता है। ये कतई बाक़ी दूतावासों की तरह नहीं है। यहाँ आकर लगता है मानो आप किसी संग्रहालय में हों ना कि दफ्तर में। इधर एक पॉजिटिव फीलिंग आती है। इन्हीं सब वजहों से बेल्जियम दूतावास को इंटरनेशनल फोरम ऑफ आर्किटेक्चर ने 20वीं सदी की एक हज़ार श्रेष्ठतम इमारतों में से एक माना था। यह देख हैरानी भी होती है कि जब राजधानी की श्रेष्ठ इमारतों की चर्चा होती है तो इसकी अनदेखी कर दी जाती है। यह सही नहीं है। सतीश गुजराल राजधानी को एक बेहद खूबसूरत इमारत देकर कृतज्ञ कर गए। यह भारतीय वास्तुकला का मील का पत्थर है।
सतीश गुजराल ने बेल्जियम दूतावास के निर्माण के दौरान राजधानी की शुष्क जलवायु को ज़ेहन में रखते हुए लैंड स्केपिंग पर बहुत ध्यान दिया। आपको इसके चप्पे-चप्पे पर हरियाली मिलेगी। ज़ाहिर है, गर्मी के मौसम में हरियाली निश्चित रूप से राहत देती है। दूसरी तरफ, वे बेल्जियम दूतावास का पश्चिमी भाग लगभग बंद सा रखते हैं। क्योंकि माना जाता है कि गर्मियों के दिनों में सूरज दिन में 12 से 3 बजे के बीच लगभग पश्चिम की दिशा पर होता है। उनका ये कदम बेल्जियम दूतावास को उस सूरज की रोशनी से बचाता है, जो गर्मियों में आग उगलता है। इधर आपको कई जगहों पर जल कुंड मिलते हैं। ये भी सारे माहौल को शीतलता प्रदान करते हैं। समझ नहीं आता कि हमारे शहरों में धड़ाधड़ बन रहे कंक्रीट के जंगलों में जल कुंड के लिये स्पेस क्यों नहीं निकाला जाता। सतीश गुजराल की वास्तुकला अपने आप में आधुनिकता और परम्परा का संगम मानी जा सकती है। उन्होंने इधर हरियाली और फूलों के लिये पर्याप्त जगह निकाली। यहाँ के फूलों से उठने वाली महक रोज़ की आपाधापी से मुकाबला करने के लिये ज़रूरी उर्जा देती है।
सतीश गुजराल ने अगर कुछ और भी इमारतों का डिज़ाइन बनाया होता तो सच में बहुत अच्छा होता। उन्होंने गिनती की ही इमारतें डिज़ाइन की हैं। वे तो अपनी कूची के साथ चित्रकारी करने में ही अधिक ध्यान देते थे।
[विवेक शुक्ला] |