'आयुष्मान' भव:
- 19 Sep, 2024 | संजीव कौशिक
हाल हीं में, भारत सरकार ने अपनी सबसे महत्त्वपूर्ण सरकारी योजनाओं में से एक आयुष्मान भारत जन आरोग्य योजना (AB PM-JAY) को 70 वर्ष से अधिक अवस्था के सभी बुजुर्गो के लिए विस्तृत किया है। सरकार के इस कदम की लगभग सभी तबकों द्वारा प्रशंसा की गई है। विशेषज्ञों का कहना है कि अधिकांश सीनियर सिटीजंस क्रोनिक बीमारियों से पीड़ित हैं, और इस अवस्था में धन की कमी से उनकी सुभेद्यता अधिकतम होती है। ऐसी स्थिति में सरकार की इस योजना से उन्हें सामाजिक सुरक्षा का एक नया घेरा प्राप्त होगा।
उपर्युक्त योजना स्वास्थ्य के क्षेत्र में एक ज़रूरी सुधार है लेकिन सरकार का यह प्रयास, भारतीय स्वास्थ्य क्षेत्रक के वृहद परिदृश्य की ओर हमारा ध्यान आकृष्ट करता है जो आज विकट स्थिति में है। इस ब्लॉग में हम भारत के स्वास्थ्य क्षेत्रक में व्याप्त समस्याओं को समझने के साथ हीं उनके संभावित समाधानों पर भी चर्चा करेंगे।
स्वास्थ्य क्षेत्रक की समस्याएं-
1. सरकारी व्यय की कमी-
आर्थिक सर्वेक्षण 2022-23 के अनुसार, वित्त वर्ष 2022 में भारत सरकार तथा राज्य सरकारों द्वारा संयुक्त रूप से GDP का मात्र 2.2% हीं स्वास्थ्य पर व्यय किया गया जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन इसे कम-से-कम 5% तक बढ़ाने की सिफारिश करता है।
2. स्वास्थ्य अवसंरचना की बदहाल स्थिति-
नाइट फ्रैंक की रिपोर्ट कहती है कि भारत में अभी पेशेंट-टू-बेड रेशियो 1.3/1000 है तथा इसे बढ़ाकर 3/1000 किए जाने के लिए 24 लाख बेड्स के सृजन की आवश्यकता है।
3. अनियंत्रित तथा अनियमित निजी अस्पताल-
देश के दो-तिहाई अस्पताल निजी क्षेत्रक के अंतर्गत आते हैं लेकिन इनके द्वारा चार्ज की गई फीस के संबंध में सरकारी कैंपिंग न होने के कारण ये आम आदमी की पहुंच से बाहर हो चुके हैं। दूसरे, अग्नि तथा भूकंप रोधी सुविधाओं के अभाव में दुर्घटनाओं का घटना आम बात हो चुकी है।
4. उच्च आउट-ऑफ-पॉकेट-एक्सपेंडिचर-
2019-20 में स्वास्थ्य के मद में आउट-ऑफ-पॉकेट-एक्सपेंडिचर 47% था अर्थात स्वास्थ्य पर खर्च किए गए ₹100 में से ₹47 उधार लेकर किए गए थे।
5. डॉक्टरों की कमी-
स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मानवीय ने लोकसभा में कहा कि भारत में डॉक्टर-टू-पेशेंट रेशियो 1:834 है पर इसमें एलोपैथिक और आयुष दोनों हीं चिकित्सक शामिल हैं। 140 करोड़ की जनसंख्या वाले देश में सिर्फ़ 13 लाख एलोपैथिक चिकित्सक हैं जो कार्य के बोझ से दबे हुए हैं।
6. डॉक्टरों के वितरण में शहरी-
ग्रामीण विषमता- ग्रामीण क्षेत्रों में देश की दो-तिहाई आबादी निवास करती है लेकिन यहां कुल चिकित्सकों में से केवल 27% तथा स्वास्थ्य वर्कर्स में से 33% कार्यरत हैं। रुरल हेल्थ स्टैटिसटिक्स, 2021 के अनुसार प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में डॉक्टरों की क्रमशः 7% और 57% कमी है।
7. झोलाछाप डॉक्टरों की बढ़ती संख्या-
विश्व स्वास्थ्य संगठन और भारतीय मेडिकल एसोसिएशन का कहना है कि देश में लगभग 10 लाख झोलाछाप डॉक्टर प्रैक्टिस कर रहे हैं जिनमें से 6 लाख एलोपैथिक चिकित्सा करते हैं। कुछ दिन पहले, बिहार के सारण ज़िले में यूट्यूब वीडियो देख कर ऑपरेशन करने के क्रम में 15 वर्षीय किशोर की मृत्यु ने इस मुद्दे को और तूल दिया है।
8. सरकार का स्वास्थ्य बीमा पर अधिक ध्यान देना-
स्वास्थ्य अवसंरचना का निर्माण करने की जगह, आयुष्मान भारत योजना के तहत स्वास्थ्य बीमा का विस्तार करना तात्कालिक राहत तो दे सकता है पर लंबे समय के लिए इसका सहारा लेना उचित नहीं है। इस योजना के अंतर्गत एक तरफ़ सरकार को बीमे के प्रीमियम का 15% प्राइवेट कंपनियों को देना पड़ता है तो दूसरी तरफ़ सरकारी अस्पतालों में जब पहले से हीं मुफ़्त स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध है तो उनके द्वारा दी गई ट्रीटमेंट को बीमे के अंदर कवर करना उचित नहीं है।
9. दवाईयों तथा चिकित्सा उपकरणों के अनुसंधान और विकास पर कम खर्च-
भारत पूरी दुनिया में, दवाओं के निर्यात में वॉल्यूम और वैल्यू के आधार पर क्रमशः तीसरे और चौदहवें स्थान पर है और विश्व की लगभग 60% वैक्सीन भारत में निर्मित होती है। लेकिन दवाईयों, वैक्सीन्स और चिकित्सा उपकरणों के अनुसंधान और विकास पर कम खर्च होने की वजह से नई बीमारियों के इलाज में बाधा आ रही है और इलाज प्रक्रिया महंगी बनी हुई है।
10. लाइफ स्टाइल जनित बीमारियों में वृद्धि-
डायबिटीज़, ब्ल्डप्रेशर, मोटापा, कार्डियो वैस्कुलर डिजिज़ेस आदि आजकल आम बीमारियां बन चुकी हैं। लेकिन न तो इनके बारे में पर्याप्त जागरुकता है न हीं इनसे निपटने के लिए कोई ठोस रोड मैप बनाया गया है।
कैसे होगा स्वस्थ भारत का सपना पूरा?
1. स्वास्थ्य बजट में वृद्धि- सरकार द्वारा सकल घरेलू उत्पाद का न्यूनतम 6% स्वास्थ्य पर खर्च किया जाना चाहिए।
2. स्वास्थ्य अवसंरचना का निर्माण- थाईलैंड मॉडल पर भीदेश के सभी ग्राम पंचायतों में आयुष्मान आरोग्य मंदिर(प्राइमरी हेल्थ सेंटर) की स्थापना, सभी ब्लॉकों में ब्लॉक स्तरीय अस्पताल, ज़िला मुख्यालय में डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल, और हर राज्य की राजधानी में AIIMS का निर्माण ज़रुरी है।
3. स्वास्थ्य का अधिकार- राजस्थान की तरह पूरे देश में स्वास्थ्य का अधिकार प्रदान किया जाना चाहिए ताकि इलाज के बीच धन की कमी बाधा न बने।
4. निजी अस्पतालों का विनियमन- अस्पताल निर्माण के समय नक्शे की जांच, कार्यरत अस्पतालों का औचक निरीक्षण, जांच तथा इलाज की फीस को एक समान और MRP की तरह एक तय सीमा के भीतर रखना आवश्यक है।
5. डॉक्टरों की संख्या में वृद्धि- सभी जनपदों में राजस्थान और उत्तर प्रदेश की तर्ज पर "वन डिस्ट्रिक्ट-वन मेडिकल कॉलेज" का निर्माण किया जाना चाहिए। देश में MBBS तथा BDS की सरकारी सीटों को वर्तमान के क्रमशः 70,000 और 3,500 से बढ़ाकर क्रमशः 1,50,000 और 10,000 करना चाहिए।
6. ग्रामीण क्षेत्रों में चिकित्सकों की संख्या में वृद्धि- सरकारी कॉलेजों के MBBS छात्रों पर सर्विस बॉण्ड का क्रियान्वयन और इन क्षेत्रों में कार्यरत डॉक्टरों के वेतन और सुविधा में बढ़ोतरी होनी चाहिए।
7. अवैध डाक्टरों पर रोक- झोलाछाप डॉक्टरों (Quacks) पर क़ानूनी रोक लागू किया जाना चाहिए। इनके इलाज से क्षति होने पर क्षतिपूर्ति का प्रावधान और ग्रामीण क्षेत्रों में इस संबंध में जानकारी का प्रसार ज़रुरी है।
8. सस्ते प्रीमियम वाला एकीकृत बीमा- भारत में हेल्थ इंश्योरेंस पेनिट्रेशन चीन(0.78%), ऑस्ट्रेलिया(0.93%) के मुकाबले सिर्फ़ 0.35% है। इसे बढ़ाने के लिए आसान प्रीमियम वाला ऐसी बीमा योजना बनाई जानी चाहिए जो सर्वसुलभ हो।
9. दवाओं और चिकित्सा उपकरणों के R&D पर अधिक खर्च, हर राज्य में प्लग-एंड-प्ले मॉडल पर एक मेडिकल पार्क की स्थापना करना चाहिए।
10. फिट इंडिया कैंपेन का सार्वभौमिकीकरण- लाइफ स्टाइल जनित रुग्णताओं को कम करने के लिए मोबिलिटी आधारित कार्यपद्धतियों और जीवन को अपनाना समय की मांग है।
एक चीनी कहावत है कि अगर हम किसी भूखे को एक मछली देंगें तो उसका पेट एक दिन के लिए भरेगा लेकिन अगर हम उसे मछली पकड़ना सिखा देंगे तो वो कभी भूखा नहीं मरेगा। वोट बैंक के लालच में पड़कर आज राजनीति दल जिस "फ्री बी" कल्चर को प्रोत्साहन दे रहे हैं उससे दीर्घावधि में न तो जनता को कोई लाभ है, न हीं सरकारी कोष लंबे समय तक यह बोझ उठाने में सक्षम है। ऐसे में, सरकारों का स्वास्थ्य पर उच्च निवेश करना और जनता को "स्वास्थ्य का अधिकार" देना वास्तविक मानव विकास की दिशा में सकारात्मक प्रयास साबित होगा।
संजीव कौशिक(लेखक संजीव कौशिक टेलीविजन दुनिया के जाने-माने विश्लेषक और डिबेटर हैं। वरिष्ठ पत्रकार संजीव सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक समेत विभिन्न राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय विषयों पर तर्कपूर्ण मुखरता से अपनी बात रखने के लिए जाने जाते हैं।) |