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क्या छोटे लक्ष्य अपराध हैं?

सजीव हों या निर्जीव, सभी के अस्तित्व का कुछ-न-कुछ औचित्य होता है। मनुष्य के संदर्भ में विशेष यह है कि मानसिक उद्विकास ने मनुष्य के जीवन में औचित्य के अतिरिक्त एक अन्य तत्त्व ‘लक्ष्य’ का समावेश किया। जीवन में लक्ष्य की उपस्थिति मनुष्य को अन्य सजीवों से अलग करती है। वस्तुत: सभी मनुष्य अपनी परिस्थितियों का उत्पाद होते हैं और यह माना जाता है कि परिस्थितियों की विविधता ही सभी मनुष्यों के लक्ष्यों में भी विविधता लाती हैं। ऐसे में छोटे लक्ष्य अपराध हैं या नहीं, इससे सहमत या असहमत होने से पहले ज़रूरी है कि लक्ष्यों के छोटे या बड़े होने का मर्म समझा जाए। यहाँ एक विचारणीय प्रश्न यह उठता है कि अगर सभी व्यक्तियों के लक्ष्यों के निर्धारण में उनकी परिस्थितियों का योगदान सर्वाधिक होता है तो किसी भी लक्ष्य को छोटा या बड़ा मानने का आधार क्या होना चाहिये?

मसलन एक स्वस्थ, सुशिक्षित और सर्वसाधन संपन्न व्यक्ति के लिये बड़ी-से-बड़ी ऊँचाई तक पहुँचने का लक्ष्य क्या किसी अशिक्षित बाल मज़दूर के राजगीर (मिस्त्री) बन जाने के लक्ष्य से बड़ा हो सकता है?

ऐसे प्रश्नों का तर्कपूर्ण उत्तर लक्ष्य निर्धारकों के लक्ष्य और उनको प्राप्त सुविधाओं की तुलना के बाद ही मिल सकता है। साथ ही किसी व्यक्ति पर किये गए निवेश और उस व्यक्ति द्वारा बदले में लक्ष्य किये गए प्रतिफल की तुलना भी विवेकपूर्ण निष्कर्ष मुहैया करा देगी। पर बात यहीं खत्म नहीं हो जाती और तर्क की इस कसौटी को अगर वांछित उत्तर का अंतिम स्रोत माना जाए तो देश के शिक्षण संस्थानों में सरकारी खर्चे पर पढ़ने वाले वे तमाम छात्र जो निजी महत्त्वाकांक्षाओं के चलते विदेशों में बस जाते हैं और देश में प्राप्त कौशल द्वारा विदेशों में कार्यरत रहकर व्यक्तिगत संपन्नता और मशहूर होने के बड़े लक्ष्य बनाते हैं, कहीं-न-कहीं देश के प्रति अपनी जवाबदेही से बच जाएंगे। यद्यपि प्रथम दृष्ट्या इनके लक्ष्य बड़े हैं, पर लक्ष्य बड़े होने के बावजूद वे राष्ट्र द्वारा खुद पर किये गए निवेश का राष्ट्र को पूरा प्रतिफल नहीं देते। स्पष्ट है कि लक्ष्यों का आकार ही नहीं, लक्ष्यों के उद्देश्य भी महत्त्वपूर्ण होते हैं। विशेष बात यह है कि लक्ष्य का उद्देश्य दरअसल लक्ष्य का ही एक अवयव है जो उसकी गुणवत्ता, तत्पश्चात् उसके आकार को भी प्रभावित करता है। वस्तुत: आदमी के लक्ष्य ही उसके व्यक्तित्व का निर्धारण भी करते हैं और इस बात की बेहतर समझ के लिये मेरी समझ से हिटलर एक बेहतरीन उदाहरण है। कमज़ोर पृष्ठभूमि से होने के बावजूद एक तरफ जहाँ अपने राष्ट्र का सम्मान वापस लाने का उसका लक्ष्य उसको बहुत बड़ा बनाता है, वहीं दूसरी तरफ जर्मनी को यहूदियों से मुक्त करने के लक्ष्य ने उसको छोटा बना दिया।

वस्तुत: किसी राष्ट्र का खोया सम्मान वापस पाने का लक्ष्य हो, चाहे किसी देश से किसी धर्म विशेष के लोगों के समूल सफाए का लक्ष्य; लक्ष्य प्राप्ति में लगने वाली ऊर्जा की दृष्टि से दोनों ही लक्ष्य पर्याप्तत: बड़े हैं, पर बात फिर उसी एक बिंदु पर फँस जाती है, और वह बिंदु है लक्ष्य निर्धारण का उद्देश्य तथा इसी बिंदु पर अपने घर में चिड़िया के घोंसले में मौजूद अण्डों की बिल्ली से सुरक्षा करने का लक्ष्य निर्धारित करने वाला बच्चा, पूरे देश से यहूदियों के सफाए का लक्ष्य बनाने वाले हिटलर से बड़ा हो जाता है। ऐसे में अंतिम उद्देश्य के संपूर्ण मूल्यांकन के बगैर किसी भी लक्ष्य को उसके पूर्ण स्वरूप में अंतिम रूप से छोटा या बड़ा घोषित कर देना दरअसल उतना आसान काम नहीं है जितना प्रथम दृष्ट्या प्रतीत होता है। हाँ, तुलना की संभावना तब ज़रूर बनती है जब समान निवेश के बाद समान उद्देश्य से किये जाने वाले कार्यों का कर्त्ता अपने लक्ष्य घोषित कर दे। पर यह काम भी इतना आसान नहीं है और प्राय: निर्धारित किये जाने वाले लक्ष्य, लक्ष्य निर्धारक पर किये गए निवेश के अतिरिक्त अन्य अदृश्य कारकों, जैसे- लक्ष्य निर्धारक की विचार प्रक्रिया, उसकी महत्त्वाकांक्षा इत्यादि पर भी निर्भर करते हैं।

बात करते हैं छोटे लक्ष्यों की। मुझे व्यक्तिगत स्तर पर इन दोनों शब्दों ‘छोटे’ और ‘लक्ष्य’ का संयोग हमेशा से ही विरोधाभासपूर्ण लगता रहा है। दरअसल किसी भी लक्ष्य का निर्धारण करना ही अपने आप में एक बड़ा काम है, क्योंकि यह व्यक्ति की संकल्प शक्ति का सूचक है और लक्ष्य के बारे में सबसे ज़रूरी चीज़ है कि वह होना चाहिये।

विशेष बात यह है कि लक्ष्यों की विविधता के कारण उनको प्रभावित करने वाले कारकों में भी पर्याप्त विविधता पाई जाती है जिसके चलते किसी लक्ष्य को निश्चित रूप से छोटा कह पाना और तत्पश्चात् उसे अपराध या तुच्छ घोषित करना तार्किक दृष्टिकोण से सुरक्षित नहीं है। उदाहरण के लिये जीवनभर लाठी लेकर किसी फलदायी वृक्ष की सुरक्षा करने का लक्ष्य किन पैमानों पर किसी पेपर मिल मालिक के करोड़ों रुपए कमाने और अर्थव्यवस्था की वृद्धि सुनिश्चित करने के लक्ष्य से छोटा हो सकता है, जबकि पेपर मिल चलते रहने के लिये प्रतिदिन 40 पेड़ों की लकड़ी कच्चे माल के रूप में प्रयुक्त होती है और यह पृथ्वी वृक्षों की कम होती संख्या के कारण दिन-ब-दिन गर्म होती जा रही है?

ऐसे में किसी भी लक्ष्य को छोटा कहना दरअसल उस लक्ष्य निर्धारण के तहत किये जाने वाले संकल्प और कार्य को छोटा कहना है तथा इस तथ्य से हम सभी भली-भाँति परिचित हैं कि हर काम की अपनी महत्ता होती है। किसी गृहणी द्वारा घर की सफाई का लक्ष्य किसी भी प्रकार से गृहस्वामी द्वारा घर की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लक्ष्य से छोटा नहीं कहा जा सकता है। घर की सुरक्षा में दी गई ढील संभव है संपत्ति का नुकसान करा दे, पर घर की सफाई न होने पर घर में संक्रामक बीमारियाँ फैलने का खतरा लगातार बना रहेगा।

रही बात छोटे लक्ष्यों के अपराध होने या न होने की, तो बड़े उद्देश्यों की दिशा में कदम बढ़ाने वाले दूरदर्शी लोग प्राय: शुरुआती चरणों में अपने लिये नज़दीकी और सहज लक्ष्यों का निर्धारण करते हैं। पर यह उनकी रणनीति का हिस्सा होता है, न कि उनकी अक्षमता का प्रमाण और असफल होने पर भी जो बात ऐसे लोगों के समर्थन में रहती है उसके मुताबिक जीवन की त्रासदी यह नहीं है कि आप अपने लक्ष्य तक पहुँच नहीं पाए, त्रासदी तो यह है कि आपके पास कोई लक्ष्य ही नहीं था। वस्तुत: इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि तमाम लोग ऐसे भी हैं जो महत्त्वाकांक्षा की कमी, मूलभूत संसाधनों की पर्याप्त उपलब्धता और अपने आलसी स्वभाव के कारण जीवन में लक्ष्यों का निर्धारण ही नहीं करपाते और जीवन गुज़ार देते हैं। ऐसे लोगों की उत्पादन में भागीदारी को देखते हुए इनके व्यक्तिगत जीवन को निश्चित रूप से समाज के लिये अनुपयोगी कहा जा सकता है, पर इस तरह का निष्क्रिय जीवन जीने वाले भी तब तक अपराधी नहीं कहे जा सकते, जब तक निर्णयकर्त्ता वैचारिक अतिवाद से प्रेरित न हो। वस्तुत: सभी अपना जीवन तब तक अपने अनुसार जीने के लिये स्वतंत्र हैं जब तक वे अन्य व्यक्तियों के जीवन और स्वतंत्रता में दखलंदाज़ी न करें तथा कानून व्यवस्था का पालन करें। ऐसे में लक्ष्यों का निर्धारण करना अथवा न करना उनके निजी निर्णय हैं।

[हिमांशु सिंह]

Himanshu Singh

हिमांशु दृष्टि समूह के संपादक मंडल के सदस्य हैं। हिन्दी साहित्य के विद्यार्थी हैं और समसामयिक मुद्दों के साथ-साथ विविध विषयों पर स्वतंत्र लेखन करते हैं।

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