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दृष्टि आईएएस ब्लॉग

भयमुक्त डगर ही आसान जीवन की राह

जीवन में भय किसने नहीं देखा। परीक्षा में फेल होने का भय, मृत्यु का भय, अपनों के चले जाने का भय, असफलता का भय, हिंसा का भय, संपत्ति के नष्ट हो जाने का भय, अपमान का भय, असफल होने पर “क्या कहेंगे लोग” का भय। कई बार हमारे इस भय या डर के कारण हमारी बुद्धि चकरा जाती है, और हम चाहते हुए भी परिस्थिति के अनुसार उचित निर्णय नहीं कर पाते और अंत में जिस बात का डर होता है हम स्वयं उसे सच कर देते हैं। हम जीवन भर भय से लड़ते रहते हैं किंतु भय से मुक्त होने का कोई उपाय नहीं ढूंढते। किंतु क्या हमने कभी इत्मिनान से बैठकर डर के विषय में विचार किया है। कभी सोचा है कि डर वास्तव में क्या है? जिस बात का हमें डर होता है क्या वास्तव में वही डर का कारण होता है? तो आपको बता दें कि डर मात्र एक विचार है इसके अतिरिक्त उसकी कोई सत्ता नहीं है। जिस क्षण हमें ज्ञान हो जाता है कि भविष्य पर हमारा अंकुश नहीं किंतु अपने मन पर अवश्य अंकुश है उसी क्षण हम भय को पराजित करके निर्भय बन सकते हैं।

ज़िंदगी में कुछ चीज़ें अगर आप समझ लेते हैं (न सिर्फ़ समझ लेते हैं बल्कि उन्हें आत्मसात कर लेते हैं) तो इस बात की बहुत हद तक संभावना है कि आपकी ज़िंदगी की ज़्यादातर समस्याएं, डर, दबाव, तनाव, अनावश्यक मानसिक व बौद्धिक ऊर्जा की खपत इत्यादि दूर हो जाएंगी। और उस ऊर्जा का उपयोग आप सकारात्मक उद्देश्यों में कर पाएंगे।

  • जीवन के किसी भी आयाम में डरिए मत। जितना ही आप डरेंगे, उतना ही यह जीवन, समय, समाज, लोग, परिवेश, परिस्थियां, भूत, भविष्य, पूर्वाग्रह इत्यादि आपको डराएंगे। कई बार डर मनुष्य के अवचेतन मन में इतनी गहराई में होता है कि व्यक्ति को ख़ुद भी मालूम नहीं होता कि उसके भीतर कितनी मात्रा में भय भरा है। हर ऊर्जा अपनी जैसी ऊर्जा को ही आकर्षित व सक्रिय करती है। आप जिस भाव या मनोदशा में जीवन जियेंगे, आप हर व्यक्ति के भीतर उसी तरह की ऊर्जा को प्रवाहित करेंगे। आपकी वाइब्रेशन्स आपसे संबंधित सभी लोगों में उसी तरह की वाइब्रेशन्स को सक्रिय करेंगी। अगर आप जीवनपथ पर तमाम सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक अज्ञात भयों से डरकर चलेंगे तो फिर उस डर की वज़ह से न तो आप किसी के आत्मीय हो पाएंगे और न समाज व परिवेश ही आपको लेकर आत्मीय हो पाएगा। हमेशा ध्यान रखें, लोग भी आपको तभी प्रेम करेंगे, जब आपमें पाॅजिटिव वाइब्रेशन्स होंगी। जब उन्हें आपसे सुरक्षाबोध, अटूट विश्वास, सहजता व सकारात्मक अनुभूति मिलेगी।
  • अनगिनत अज्ञात भयों से भरा हुआ व्यक्ति जीवन के किसी भी आयाम में कभी खुलकर प्रेम नहीं कर सकता। उसका व्यक्तित्व संकुचित होकर रह जाता है। दरअसल कोई भी व्यक्ति/जीव प्रेम में सुरक्षा का बोध मांगता है। प्रेम अपने पूरक से जीवन में एक सॉफ्ट काॅर्नर मांगता है। जैसे कोई बच्चा बचपन में मां की गोद तलाशता है, जहां वह सुकून ढूंढ सके; जहां उसके जीवन के सारे दुख, तनाव व समस्याएं मिट जाएं। जबकि डरा हुआ व्यक्ति खुद ही असुरक्षाबोध से भरा होता है। उसके व्यक्तित्व में सहजता आ ही नहीं सकती। वह तमाम आडंबरों से भरा रहेगा और कोई उसे लेकर सहज नहीं हो पाएगा।
  • किसी भी चीज़ को लेकर भयग्रस्त या दमित होने की बज़ाय पहले यह सोचें कि उसमें बुरी से बुरी स्थिति क्या हो सकती है। और आप क्यों दमित हो रहे हैं! ऐसी कौन सी परिस्थिति आ सकती है, जिससे आप जीत नहीं सकते! और फिर खुद को सीधे उस सबसे विपरीत परिस्थिति को ही जीत लेने के लिए तैयार कर लीजिए। इसके लिए ख़ुद को निखारते रहें, तराशते रहें और खुद से कहें-

गुजर जायेगा
मुश्किल बहुत है
मगर वक्त ही तो है
गुजर जायेगा
जिंदा रहने का ये जो ज़ज्बा है
फिर उभर आयेगा
गुजर जायेगा….

  • किसी के जीवन में बुरी से बुरी चीज़ जो हो सकती है, वह है मृत्यु। मौत (खुद के या किसी प्रियजन के खोने का डर) तो किसी के वश में नहीं है। किसी के भी साथ अनहोनी हो सकती है। फिर, अकेले आपको ही कैसा डर! जब तक जीवन है, सम्राट की तरह आत्मविश्वास के साथ जियें। और आत्मविश्वास बनाए रखने के लिए ज़रूरी है कि हमेशा पढ़ते रहिए; सीखते रहिए।
  • इसके अलावा, आज के समय में लोगों के मन में सबसे बड़ा भय अकेले रह जाने का है। तो विश्वास रखिए जो आपका है, जीवनपथ पर वह आपका हाथ कभी नहीं छोड़ेगा। और जो आपका नहीं है, आप उसका हाथ पकड़कर ज़बरन लंबी दूरी तय नहीं कर सकते। ये मान लीजिए कि यह प्रकृति का खूबसूरत नियम ही है कि जो कुछ भी आपका है, जिसे विधाता ने आपके लिए ही पूरक बनाकर निर्मित किया है, वह जीवनपथ पर आपके पास ज़रूर आएगा। वैसे ही, जैसे कोई बच्चा अपनी मां की गोदी की तरफ घूम-फिरकर पहुंच जाता है। और आप भी उधर ही जाएंगे। विज्ञान भी मानता है कि इसी सेंट्रीपिटल और सेंट्रीफिग्वल फोर्सेज़ (आकर्षण-प्रतिकर्षण) की रहस्यमयी वजहों से दुनिया का अस्तित्व है। और दूसरी तरफ, जो आपका नहीं है, उसे आप लाख पुचकारते रहिए, लाख संभालते रहिए, उसके लिए असहज होते रहिए, वह आपसे दूर होता ही जाएगा। यह परिवार, समाज, रिश्तों...सभी जगहों पर लागू होता है। इसलिए, जीवनपथ पर इस तरह के सभी अज्ञात भयों से मुक्त ही रहिए।
  • इस बात से प्रभावित या विचलित मत हों कि कितने लोग आपकी तारीफ़ कर रहे हैं या कौन आलोचना कर रहा है या फिर कौन पीठ पीछे मेरी निंदा कर रहा है, मेरे खिलाफ़ माहौल बना रहा है। बस आप अपनी जगह ठीक रहिए। दुरुस्त रहिए। अपनी ज़िंदगी में ख़ुद से संतुष्ट रहिए। ध्यान रहे, जो आपके हैं, वो आपके ही रहेंगे। पीठ पीछे भी और सामने भी‌। अच्छी और बुरी, दोनों स्थितियों में। और जो आपके नहीं हैं वो परिस्थितियां बदलते ही तत्क्षण बदल जाएंगे। उनके लिए आप कितना भी कुछ कर देंगे, वो मौका मिलते ही माहौल बनाने में लग जाएंगे। इसलिए ऐसी चीज़ों में भी ऊर्जा खर्च करने से बचिए। उस ऊर्जा का प्रयोग सही लक्ष्यों की ओर लगाइए। ऐसी परिस्थिति से निपटने के लिये हरिवंशराय बच्चन की इन पंक्तियों को आत्मसात कर आगे बढिएगा-

सूरज-सा तेज नहीं मुझमे,
दीपक सा जलता देखोगे
अपनी हद रौशन करने से,
तुम मुझको कब तक रोकोगे…

  • खाटी सच्चे बनिए। एकदम खाटी। जो हैं, वो हैं। और वही दिखिए। एड़ियों पर खड़े होकर उचककर चलना छोड़ दीजिए। इससे आपकी एड़ियों का दर्द व मानसिक तनाव दोनों कम होंगे। साथ ही, आपको कभी झूठ बोलने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। और आप सहज व सरल दिखने के साथ-साथ आत्मविश्वासी भी रहेंगे। फिर यह मायने नहीं रखता कि लोग क्या सोचेंगे! उस भीड़ को किनारे करके चलिए, जो आडंबर मात्र से प्रभावित होती है। सोचिए, जो भीड़ आडंबर से प्रभावित होती है, वह कितनी सस्ती होगी! और उस सस्ती भीड़ को प्रभावित करने के लिए अपनी मौलिकता व ज़िंदगी के सुकून को क्यों खोना।
  • दूसरों से सलाह लेना बंद करिए। आपके जीवन की परिस्थितियों से आपसे बेहतर कोई नहीं निपट सकता। आप ज़्यादा बेहतर स्थितियों को समझेंगे। बुद्ध कहते हैं, तुम्हारे सिवाय 'कोई भी' तुम्हारा दुख दूर नहीं कर सकता। क्योंकि तुम्हारे सिवाय किसी को भी तुम्हारे दुख की मूल जड़ का पता ही नहीं है। दूसरे किसी को आप अपनी समस्याएं बताएंगे भी तो वह जितना समझ पाएगा, जितना अनुवाद कर पाएगा, उसके ही मुताबिक आधा-अधूरा समाधान भी बताएगा। वो समाधान ज़रूरी नहीं कि सबके लिये उचित हो। एक ही दवा से सबका उपचार करना संभव नहीं है।
  • खुद को समय के साथ अपडेट करते रहें। नया सीखते रहें और आगे बढ़ते रहें। आपको नहीं मालूम, कब स्थानीय से लेकर वैश्विक परिस्थितियां करवट बदल लें और आप किस स्तर तक उभर आएं! उदाहरण के तौर पर देखें तो आपने अपने आस-पास ही कई लोगों को देखा होगा जिन्हें कोई जानता भी नहीं था, कोरोना काल के बाद बदले परिदृश्य और डिजिटलाइज़ेशन के नये दौर ने उन्हें अच्छी पहचान दिला दी! कितने यूट्यूबर्स तो मात्र 2 साल में इतने पैसा व शोहरत कमा लिए, जितना और कोई जीवनभर में भी न कमा सके!
  • तारीफ़ करना सीखिए। जो रचनात्मक हो; अपने क्षेत्र में बेहतरीन सृजन कर रहा हो, जो बिना किसी को नुकसान पहुंचाए आगे बढ़ रहा हो, उसकी तारीफ़ करिए। भले ही वह आपका अंध-आलोचक हो। लेकिन आपकी आलोचना या प्रशंसा में वज़न व सच्चाई होनी चाहिए।
  • कभी भी बहुत आगे तक की न सोचें। आमतौर पर 5 साल का लक्ष्य लेकर बढ़िये या फिर अधिकतम 7 वर्ष। उससे ज़्यादा का नहीं। क्योंकि चीज़ें बहुत तेज़ी से बदलती हैं। 7 साल बाद वैश्विक परिदृश्य कैसा होगा, यह तकनीकी दुनिया कैसी होगी, जिंदगी आपको कौन-सी ऊंचाई देगी, आप प्रमोट होकर कहां पहुंचेंगे, आपकी सामाजिक, राजनीतिक स्थिति कैसी होगी, आप नहीं जानते। उस समय आपके आज का रोड मैप प्रासंगिक रहेगा भी या नहीं, कहा नहीं जा सकता। हो सकता है, आप इतनी आगे की तरक्की कर चुके हों कि आपके आज के विचार व रोड मैप ही तब छोटे लगने लगें!

इसलिए ज़्यादा आगे की मत सोचें। और हां, इस प्रक्रिया में उलझकर ज़िंदगी को जीना मत भूल जाएं। ज़िंदगी जीने के लिए अलग से उम्र नहीं मिलेगी। एक बार जो उम्र गुज़र जाएगी, वो दोबारा रिफिल नहीं हो पाएगी। इसलिए, हर उम्र को पूरे मनोयोग से जीते चलें। जीवन के हर आयाम को खुलकर जीयें। पूर्ण उल्लास के साथ जियें। क्योंकि कहा गया है, "असली आनंद तो सफ़र का है, वरना मंजिल में क्या ही रखा है।" और अगर ऐसा न होता तो तथाकथित ऊंची-ऊंची उपलब्धियां हासिल कर-करके भी ढेरों लोग हर साल ज़िंदगी के झंझावातों से हारकर ज़िंदगी को बाय-बाय न कहते। जब भी लगे हौसला टूट रहा है तो इन पंक्तियों को याद करना-

पत्थर की बंदिश से भी क्या बहती नदियां रुकती हैं
हालातों की धमकी से क्या अपनी नजरें झुकती हैं
किस्मत से हर पन्ने पर किस्मत लिखवाना पड़ता है
जिसमें मशाल सा जज्बा हो वो दीप जलाना पड़ता है
वापस आना पड़ता है, फिर वापस आना पड़ता है…।

  शालिनी बाजपेयी  

(शालिनी बाजपेयी यूपी के रायबरेली जिले से हैं। इन्होंने IIMC, नई दिल्ली से हिंदी पत्रकारिता में पीजी डिप्लोमा करने के बाद जनसंचार एवं पत्रकारिता में एम.ए. किया। वर्तमान में ये हिंदी साहित्य की पढ़ाई के साथ-साथ लेखन कार्य कर रही हैं।)


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