गर्भावस्था में ध्यान रखने योग्य बातें
- 12 Jun, 2024 | शालिनी श्रीवास्तव
गर्भावस्था यानी प्रेग्नेंसी, एक स्त्री के जीवन का एक अनूठा एवं कभी न भूलने वाला दौर होता है। इसके साथ ही मां बनने के पहले प्रेग्नेंसी के नौ महीनों के दौरान कुछ विशेष सावधानियाँ रखना भी बेहद जरूरी है। ताकि होने वाला बच्चा और मां पूर्ण रूप से स्वस्थ हों। इस दौरान निम्न मुख्य बातों का विशेष ध्यान रखना आवश्यक है, हम उन्हीं पर चर्चा करने जा रहे हैं -
खान पान -
प्रेग्नेंसी में खान पान पौष्टिक और आसानी से पचने योग्य होना चाहिए। जिससे बच्चे को पोषण मिले और गैस और कब्ज की समस्या भी न हो। इसके लिए मां को डेयरी पदार्थ जैसे दूध दही पनीर खाना चाहिये जिससे बच्चे को कैल्शियम कर अन्य विटामिन्स प्राप्त होते हैं। साथ ही हरी पत्तेदार सब्जियां,सूखे मेवे फल आदि का सेवन करना चाहिए। इसके साथ ही अधिक से अधिक पानी पीना चाहिए जिससे डिहाइड्रेशन की समस्या न हो इसके लिए नारियल पानी , ताजा फलों का जूस आदि भी पिया जा सकता है।
गर्भावस्था में उल्टी होना और गैस बिल्कुल आम समस्या है इसलिए कभी भी एक साथ बहुत ज्यादा खाना न खाकर थोड़ा थोड़ा करके खाना चाहिए। इस दौरान मॉर्निंग सिकनेस जैसी समस्या को दूर करने के लिए नाश्ता जरूर करना चाहिए नाश्ते में चीनी रहित साबुत अनाज, दलिया, ओट्स या फल भी खा सकती हैं।
प्रेग्नेंसी में कई लोग आपसे कहेंगे कि आपको दो लोगों के लिए खाने की जरूरत है एक अपने लिए और एक बच्चे के लिए लेकिन आपको इस दौरान अपने शरीर के अनुसार ही खाना है जितना आप आसानी से पचा सके जिससे कब्ज और गैस से बचा जा सके।
सक्रिय रहना है जरूरी-
इस दौरान अधिक भूख लगे और खाना आसानी से पचे इसके लिए आपका सक्रिय रहना भी बहुत जरूरी है इसलिए कोशिश करनी चाहिए कि खाना खाने के बाद थोड़ी वॉक जरूर करें और आराम के साथ साथ अपने शरीर को सक्रिय भी रखें।
व्यायाम -
प्रेग्नेंसी के दौरान हल्का व्यायाम करना मां और बच्चे दोनों के लिए लाभदायक होता है। इस दौरान व्यायाम बहुत धीरे धीरे और सावधानी पूर्वक करना चाहिए। अनुलोम विलोम, तैराकी, दीवार में हाथ टिकाकर पुशअप, फिटनेस बॉल के साथ स्कॉट, सीढ़ी चढ़ना जैसे व्यायाम अपने शरीर एवं डॉक्टर्स के परामर्श को ध्यान में रखकर करना चाहिए। यदि आप कभी भी व्यायाम नहीं करती थी तो अचानक इसे शुरू न करे और अगर करें भी तो डॉक्टर के परामर्श के बाद ही करें। ऐसे व्यायाम जिनमें गिरने का जोखिम हो, जैसे घुड़सवारी, डाउनहिल स्कीइंग, आइस हॉकी, जिमनास्टिक और साइकिल चलाना, उन्हें केवल सावधानी से ही करना चाहिए। गिरने से आपके शिशु को नुकसान पहुँचने का जोखिम रहता है।
मैडिटेशन -
प्रेग्नेंसी के दौरान मेडिटेशन या ध्यान से गर्भ में पल रहे शिशु को पर्याप्त ऑक्सीजन मिलती है तथा माँ और बच्चा शांत और स्वस्थ महसूस करते हैं इससे मानसिक स्वास्थ्य पर भी अच्छा प्रभाव पड़ता है।
मानसिक स्वास्थ्य -
प्रेग्नेंसी के दौरान मां को अपने मानसिक स्वास्थ्य का भी ध्यान रखना आवश्यक है। इस दौरान होने वाली मां को कई प्रकार के शारीरिक बदलावों से गुजरना पड़ता है और कई सारे हार्मोनल बदलाव भी हो रहे होते हैं जिसकी वजह से मूड स्विंग होना आम बात है। जिसमें कभी अचानक बहुत तेज रोना आना , गुस्सा आना या अचानक हंसी आना आदि होने लगता है। इस दौरान अपने मानसिक स्वास्थ्य को ठीक रखने के लिए अपने दोस्तों से करीबियों से और अपने जीवनसाथी के साथ अच्छा समय बिताये उनके साथ अपनी चिंताओं के समाधान ढूँढे और खुश रहें। मां के खुश रहने से गर्भ में पल रहा बच्चा भी ख़ुशी वाले हारमोन के कारण अच्छा महसूस करता है और मां के गुस्से और रोने का प्रभाव भी बच्चे पर पड़ता है। इस दौरान होने वाली अत्यधिक चिंता को प्री नेटल एंजायटी कहा जाता है इसलिए इस दौरान हल्का संगीत सुनकर, अपनी पसंद के काम कर या अच्छी किताबों को पढ़कर भी खुश रहा जा सकता है।
मनोरंजन -
साथ ही लिमिट में टीवी या ओटीटी प्लेटफॉर्म कोई अच्छी सी पारिवारिक या कॉमेडी फिल्म भी दे सकते हैं लेकिन इस दौरान लगातार एक ही पॉजीशन में न बैठे न एक ही दिन में कोई सीरिज बिंज वॉच करें जिससे आपके स्वास्थ्य को नुकसान पहुँचे।
हॉबीज़ और क्रिएटिविटी को दे समय -
मातृत्व के इन पलों को और खुशनुमा बनाने के लिये आप को अगर रूचि हो तो कोई अच्छी सी पेंटिंग बनाएँ या संगीत लिखें या कुछ क्राफ्ट वर्क भी कर सकती हैं या कोई इंस्ट्रूमेंट बजाने का शौक हो तो कर सकती हैं जिससे आपका मानसिक स्वास्थ्य अच्छा रहेगा।
यादे सजोने के लिये फोटोशूट और बेबीमून -
ये आपके जीवन का सबसे यादगार और खुशनुमा समय होगा इसलिए इस समय को जितनी खूबसूरती से बिता सके वैसे ये समय बिताना चाहिए। याद रखिये कि ये वक़्त लौट कर फिर शायद ही आये इसलिए अपने लाइफ पार्टनर के साथ किसी सुरक्षित जगह पर वेकेशन पर भी जा सकते हैं जिसे बेबीमून भी कहा जाता है। इस समय की बेहतरीन यादों को सजोने के लिए फोटोशूट भी करा सकते हैं या स्वयं कुछ फोटोस क्लिक करके अपने इन खूबसूरत पलों को हमेशा के लिये सहेज सकते हैं।
गर्भ संस्कार -
॥ संस्कार्यस्य गुणाधानेन वा स्याद्योषाप नयनेन वा ॥
-ब्रह्मसूत्र भाष्य
ब्रह्मसूत्र भाष्य में उल्लेखित इस श्लोक के अनुसार संस्कार का अर्थ है किसी व्यक्ति में गुणों का विकास करना। वृहद् स्तर पर संस्कार किसी संस्कृति और अध्यात्म से मिलने वाले वो पदचिन्ह हैं जिन पर चलकर मनुष्य अपने जीवन और व्यक्तित्व को श्रेष्ठ बना सकता है।
गर्भ संस्कार सनातन संस्कृति का एक मुख्य संस्कार है क्योंकि जैसा कि महाभारत में वर्णित है कि अभिमन्यु गर्भ में ही चक्रव्यूह को तोड़ने की शिक्षा प्राप्त कर लेते हैं। इसी प्रकार हम भी अपने होने वाले बच्चे में अच्छे गुणों और संस्कारों को बचपन से ही विकसित कर सकते हैं। इसके लिए हमें अच्छे मंत्रो एवं भजनों को सुनना और मां स्वयं गाकर अपने गर्भस्थ शिशु को सूना सकती है। जिससे गर्भस्थ शिशु शांत और खुश महसूस करता है। साथ ही मां और पिता दोनों ही होने वाले बच्चे इस प्रकार से बात करें जैसे कि बच्चा उनके सामने ही हो उसे अच्छी अच्छी कहानियाँ और बातें सिखाएं जैसे गुण वो बच्चे में विकसित करना चाहते हैं।
क्या नहीं करना चाहिए -
क्या नहीं खाना पीना चाहिए?
प्रेग्नेंसी के दौरान क्या नहीं करना चाहिए इस बारे में जानकारी होना भी जरूरी है। जैसे कि प्रेग्नेंसी के दौराण फलों का सेवन करने की सलाह दी जाती है लेकिन पपीता, अनानास नहीं खाना चाहिए इससे मिसकैरेज होने का खतरा होता है। कैफीन युक्त पदार्थ जैसे कॉफी , चॉकलेट ,चाय का 200 मिलीग्राम से ज्यादा नहीं करना चाहिए। एलोवेरा जूस प्रेग्नेंसी में नहीं पीना चाहिए साथ ही अगर आपको प्रेग्नेंसी के दौरान होने वाली जेस्टेशनल डायबिटीज है तो कॉर्न भी नहीं खाना चाहिए। अल्कोहल और स्मोकिंग , कोल्ड ड्रिंक्स से प्रेग्नेंसी के दौरान बिल्कुल दूर रहना चाहिए। साथ ही डॉक्टर के प्रिस्क्रिप्शन के बिना किसी भी दवा को लेने से भी परहेज करना चाहिये।
उठने बैठने और सोने में सावधानी -
प्रेग्नेंसी के दौरान बहुत ज्यादा देर तक एक ही पोजीशन में नहीं बैठना चाहिए न ही झटके से उठकर खड़े होना चाहिए। धीरे से सहारा लेकर उठना बैठना चाहिए। प्रेग्नेंसी में बायीं करवट करके सोना चाहिए पीठ के बल सोने से बच्चे तक खून सही से नहीं पहुंच पाता है जिससे बच्चे को तकलीफ हो सकती है। इस दौरान आरामदायक रूप से लेटने के लिए अपने पैरों के बीच में और पीठ के नीचे तकिया रख सकते हैं। इसके अलावा झुककर नहीं बैठना चाहिए हमेशा पीठ सीधी करके बैठना चाहिए।
डिजिटल वैल बीईग -
प्रेग्नेंसी के दौरान बहुत ज्यादा लैपटॉप मोबाइल का प्रयोग भी नहीं करना चाहिए जिससे हानिकारक रेडिएशन का प्रभाव बच्चे के स्वास्थ्य पर बुरा असर डाल सकता है इसके लिए आजकल फोन में उपलब्ध डिजिटल वेल्बीइंग ऑप्शन का इस्तेमाल कर सकते हैं जिससे आप अधिक देर तक मोबाइल चलाएंगे तो मोबाइल खुद ही आपको आगाह कर देगा।
बच्चे के मूवमेंट का ध्यान -
प्रेग्नेंसी के दूसरी तिमाही में बच्चे का मूवमेंट पता चलने लगता है तो इसका भी विशेष ध्यान रखना चाहिए यदि अचानक से बच्चे का मूवमेंट कम हो जाये या बंद हों जाये या हमेशा से बहुत अलग तरह से मूवमेन्ट हो तो तुरंत डॉक्टर को दिखाना चाहिए जिससे डॉक्टर तुरंत बच्चे की दिल की धड़कन या जरूरत पड़ने पर अल्ट्रासॉउन्ड कराके देख सकते हैं।इसी तरह दर्द ब्ब्लीडिंग या स्पोटिंग होने पर भी तुरंत अपनी गायनेकोलाजिस्ट को दिखाना चाहिए।इसके अलावा वजन का नाप भी करते रहना चाहिए और हमेशा डॉक्टर के बुलाने पर समय से दिखाना। जरूरी वैक्सीनेशन और अल्ट्रासॉउन्ड निर्धारित समय पर कराने का भी ध्यान रखना चाहिए।
निष्कर्ष-
निष्कर्ष रूप में ये कहा जा सकता है कि प्रेग्नेंसी एक स्त्री के जीवन का अनूठा और यादगार दौर है और शारीरिक तौर पर थोड़ा कठिन भी इसलिए इस दौरान महिलाओं को अपने स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखना चाहिए। विभिन्न सरकारी योजनाओं के तहत महिलाओं को इस दौरान पोषक भोजन एवं जरूरी जानकारी भी दी जाती है, आशा बहनों एवं आंगनबाड़ी के माध्यम से इनका भी लाभ लिया जा सकता है।