लखनऊ शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 23 दिसंबर से शुरू :   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

Be Mains Ready

  • 14 Dec 2021 सामान्य अध्ययन पेपर 1 पर्यावरण

    संरक्षण कृषि (कंज़र्वेशन एग्रीकल्चर) क्या है? भारत में संरक्षण कृषि की क्षमताओं और संभावनाओं पर चर्चा कीजिये। (150 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • संरक्षण कृषि को संक्षिप्त में समझाइये।
    • भारत में इसकी क्षमताओं और भविष्य की संभावनाओं का उल्लेख कीजिये।
    • पारंपरिक व सामान्य तौर पर प्रचलित कृषि से इसकी तुलना कीजिये।
    • आँकड़ों के साथ अपने तर्कों की पुष्टि करते हुए निष्कर्ष लिखिये।

    वर्ष 2010 से 2050 के बीच दक्षिण एशियाई क्षेत्रों की आबादी में 2.4 बिलियन की वृद्धि की संभावना के साथ अनाज की मांग में भी लगभग 43 प्रतिशत की वृद्धि होने की उम्मीद है। भारतीय कृषि वैज्ञानिकों द्वारा किये गए एक अध्ययन के अनुसार, संरक्षण कृषि के प्रयोग से न केवल फसल की उत्पादकता व आय में वृद्धि होगी तथा प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग में कमी आएगी बल्कि जलवायु परिवर्तन के भी लाभ प्राप्त होंगे।

    संरक्षण कृषि एक कृषि प्रणाली है, जिसके अंतर्गत:

    • फसल अपनी सुरक्षा हेतु मृदा का एक स्थायी आवरण बनाए रखती है।
    • मृदा की जुताई से बचा जा सकता है।
    • विभिन्न प्रजातियों के पौधों की खेती,
    • मृदा की स्थिति में सुधार
    • भूमि के क्षरण को कम करने तथा
    • जल और पोषक तत्त्वों के उपयोग की दक्षता में वृद्धि शामिल है।

    भारत में पिछले कई वर्षों में शून्य जुताई (जीरो टीलेज) और संरक्षण कृषि को अपनाने से लगभग 1.5 मिलियन हेक्टेयर कृषि भूमि का विस्तार हुआ है।

    संरक्षण कृषि अपनाने से फसल की गहनता; गन्ना, दालों, सब्जियों आदि की रिले कृषि; गेहूँ और मक्का के साथ अंत:फसल आधारित गहनता और विविधता हेतु आवश्यक विविधिकृत मार्ग भी प्रशस्त होता है। संरक्षण कृषि आधारित संसाधन संरक्षण प्रौद्योगिकियाँ निम्न और उच्च क्षमता वाले वातावरण दोनों में फसल, पशुधन, भूमि और जल प्रबंधन अनुसंधान को एकीकृत करने में सहायता करती हैं।

    कई राज्यों के कृषि विश्वविद्यालयों, भारतीय कृषि एवं अनुसंधान परिषद (ICAR) के संस्थानों तथा भारत के गंगा के मैदान के लिये धान-गेहूँ कंसोर्टियम के संयुक्त प्रयासों के माध्यम से संरक्षण कृषि के विकास और प्रसार के प्रयास किये जा रहे हैं।

    शून्य जुताई आधारित गेहूँ का उपयोग और प्रसार भारत के उत्तर-पश्चिमी भागों में सफल रहा, क्योंकि-

    • उत्पादन की लागत में प्रति हेक्टेयर 2000 रुपए से 3000 रुपए की कमी तथा उत्पादन और उत्पादकता में 4 से 10 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई।
    • मृदा की गुणवत्ता, जैसे- भौतिक, रासायनिक और जैविक स्थिति आदि में वृद्धि।
    • यह दीर्घकाल में कार्बनिक मृदा के निर्माण में कार्बन प्रच्छादन और ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन तथा जलवायु परिवर्तन से संबंधित बदलावों के लिये उत्पादन प्रणाली में अधिक लचीलापन लाने के लिये व्यावहारिक रणनीति प्रदान करती है।
    • खरपतवारों जैसे- गेहूँ में गेहूँसा (phalaris minor) के प्रसार में कमी।
    • मृदा की जल और पोषक तत्त्वों को ग्रहण करने की क्षमता में वृद्धि।
    • फसल अवशेषों को जलाने में आने वाली कमी से पोषक तत्त्वों की हानि और पर्यावरण प्रदूषण में कमी आती है, जिससे स्वास्थ्य संबंधी गंभीर खतरे कम हो जाते हैं।

    यह फसल के गहनीकरण और विविधिकरण के अवसर अपलब्ध कराती है।

    संरक्षण कृषि संसाधनों की गिरावट तथा कृषि की लागत को कम करते हुए कृषि दक्षता में वृद्धि करने, प्रतिस्पर्धा को बढ़ाने और कृषि को धारणीय बनाने का अवसर प्रदान करती है। अत: ‘संसाधनों का संरक्षण-उत्पादकता में वृद्धि’ संरक्षण कृषि का नया उद्देश्य होना चाहिये।

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2