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19 Nov 2021
सामान्य अध्ययन पेपर 2
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
प्रश्न :अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना की वापसी ने तालिबान के उदय, भू-राजनीति में निरंतर परिवर्तन और इस तरह क्षेत्र में अस्थिरता को जन्म दिया है। इस मुद्दे से निपटने के लिये भारत के समक्ष उपलब्ध विकल्पों पर चर्चा कीजिये। (250 शब्द)
उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण
- परिचय में अफगानिस्तान से अमेरिका की वापसी से संबंधित घटनाक्रम का वर्णन कीजिये।
- चर्चा कीजिये कि अमेरिका की वापसी ने तालिबान के उदय, भू-राजनीतिक प्रवाह और क्षेत्र में अस्थिरता को जन्म दिया है?
- वर्तमान स्थिति में भारत के समक्ष उपलब्ध विकल्पों की चर्चा कीजिये।
- उपयुक्त निष्कर्ष लिखिये।
परिचय
अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की तेज़ी से वापसी ने पूरे देश में तालिबान की गतिशीलता को बढ़ा दिया है। अमेरिका ने पुष्टि की है कि उसके 90% सैनिकों की वापसी हो चुकी है और तालिबान ने दावा किया है कि अफगानिस्तान के 85% क्षेत्र पर उसका नियंत्रण है।
इन घटनाक्रमों ने अफगानिस्तान को क्षेत्रीय शक्तियों के दरबार में ला खड़ा किया है, जिस पर अब अमेरिकी सैनिकों की वापसी के कारण उपजे सैन्य शून्य की स्थिति को प्रबंधित करने का बोझ है।
अफगानिस्तान के क्षेत्रीय समाधान का विचार हमेशा से ही राजनीतिक आकर्षण रहा है। लेकिन अलग-अलग क्षेत्रीय रणनीतिक दृष्टिकोण अफगानिस्तान पर एक स्थायी आम सहमति की संभावनाओं को सीमित करते हैं।
अमेरिका की वापसी और क्षेत्रीय शक्तियाँ
- तालिबान: तालिबान अपने आप में एक प्रमुख चर बना हुआ है। यदि तालिबान सभी अफगानों के हितों को समायोजित नहीं करता है तो यह केवल अफगानिस्तान में गृह युद्ध के अगले दौर के लिये मंच तैयार करेगा।
- तालिबान यह भी संकेत दे रहा है कि वह किसी और के लिये प्रॉक्सी नहीं बनेगा तथा स्वतंत्र नीतियों का पालन करेगा।
- चीन: अफगानिस्तान से अमेरिका की वापसी वर्तमान में चीन के इस दृढ़ विश्वास को पुष्ट करती है कि अमेरिका टर्मिनल गिरावट में है।
- ऐसे समय में जब चीन अंतर्राष्ट्रीय शासन के पश्चिमी मॉडल के विकल्प की पेशकश कर रहा है तो अमेरिका की वापसी को चीन में एक महान वैचारिक जीत के रूप में देखा जाता है।
- हालाँकि चीन के लिये शिनजियांग अलगाववादी समूहों को संभावित तालिबान समर्थन एक प्रमुख चिंता का विषय है।
- भारत: तालिबान से निपटने के लिये भारत के पास तीन महत्त्वपूर्ण क्षेत्र होंगे।
- अफगानिस्तान में अपने निवेश की रक्षा करना, जो अरबों रुपए में चलता है;
- भावी तालिबान शासन को पाकिस्तान का मोहरा बनने से रोकना;
- यह सुनिश्चित करना कि पाकिस्तान समर्थित भारत विरोधी आतंकवादी समूहों को तालिबान का समर्थन न मिले।
- अन्य: कोई भी क्षेत्रीय देश तालिबान के तहत अफगानिस्तान को फिर से अंतर्राष्ट्रीय आतंक की नर्सरी बनते नहीं देखना चाहता।
- ईरान तालिबान के सुन्नी चरमपंथ और शिया एवं फारसी भाषायी अल्पसंख्यकों से निपटने में उसके दमनकारी रिकॉर्ड को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकता।
- पाकिस्तान डूरंड रेखा के पूर्व में संघर्ष के फैलने और तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) जैसे शत्रुतापूर्ण समूहों के अफगानिस्तान में शरण लेने के खतरे को लेकर चिंतित है।
भारत का दृष्टिकोण
- अमेरिकी सेना की मौजूदगी से सुरक्षित अफगानिस्तान में लंबे समय से चली आ रही शांति का युग समाप्त हो गया है।
- इसका मतलब होगा कि अफगानिस्तान के अंदर काम करने की भारत की क्षमता पर नई बाधाओं का का उत्पन्न होना।
- तीन संरचनात्मक स्थितियाँ भारत की अफगान नीति को आकार देती रहेंगी।
- एक अफगानिस्तान तक भारत की प्रत्यक्ष भौतिक पहुँच का अभाव। यह भारत के प्रभावी क्षेत्रीय साझेदारों के महत्त्व को रेखांकित करता है।
- पाकिस्तान, अफगानिस्तान में किसी भी सरकार को अस्थिर करने की क्षमता रखता है लेकिन उसके पास अफगानिस्तान में एक स्थिर और वैध व्यवस्था बनाने की शक्ति नहीं है।
- अफगानिस्तान और पाकिस्तान के हितों के बीच अंतर्विरोध चिरस्थायी है।
- पाकिस्तान अफगानिस्तान को एक रक्षक के रूप में बदलना पसंद करता है लेकिन अफगान अपनी स्वतंत्रता को बहुत महत्त्व देता है। तालिबान सहित सभी अफगान संप्रभु, पाकिस्तान को संतुलित करने के लिये भागीदारों की तलाश करेंगे।
- भारत को तालिबान सहित विभिन्न अफगान समूहों के साथ अपने जुड़ाव को तीव्र करने और बदलते अफगानिस्तान में अपने हितों को सुरक्षित करने के लिये प्रभावी क्षेत्रीय साझेदार खोजने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
निष्कर्ष
- अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों के बाहर निकलने से इस क्षेत्र में तालिबान का उदय, भू-राजनीतिक प्रवाह में परिवर्तन जैसी अस्थिरता पैदा हो गई है।
- चूँकि ये कारक भारत को इस क्षेत्र में एक कठिन भू-राजनीतिक स्थिति में धकेल देंगे, इसलिये अफगानिस्तान में बदलती गतिशीलता से निपटने के लिये स्मार्ट स्टेटक्राफ्ट की आवश्यकता है।
- यदि भारत सक्रिय और धैर्यवान बना रहा तो नए अफगान में उसे अपनी भू राजनीतिक स्थिति मज़बूत करने के कई अवसर मिल सकते हैं।