गन्ना और चीनी उत्पादन भारत की अर्थव्यवस्था, व्यापार और आजीविका में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। गन्ना उद्योग द्वारा सामना की जा रही चुनौतियों और उनके समाधान के उपायों को बताइये। (150 शब्द)
27 Nov 2021 | सामान्य अध्ययन पेपर 3 | अर्थव्यवस्था
दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- संक्षिप्त परिचय दीजिये।
- भारत में चीनी उद्योग के महत्त्व पर चर्चा कीजिये।
- भारत में चीनी उद्योग की समस्याओं का विश्लेषण कीजिये।
- संकट को कम करने के उपाय भी सुझाइये।
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भारत दुनिया में चीनी का सबसे बड़ा उपभोक्ता है। चीनी उद्योग देश के सबसे महत्त्वपूर्ण कृषि आधारित उद्योगों में से एक है जो लगभग 5 करोड़ किसानों, उनके परिवार के सदस्यों और 5 लाख श्रमिकों, जो चीनी मिलों से जुड़े हैं कि आजीविका को सीधे प्रभावित करता है। देश में लगभग 340 लाख मीट्रिक टन चीनी की पेराई क्षमता और लगभग `80,000 करोड़ के वार्षिक कारोबार के साथ 700 से अधिक स्थापित चीनी के कारखाने हैं।
- चीनी उद्योग का महत्त्व:
- मल्टीपल लिंकेज: चीनी उद्योग एक श्रम-गहन उद्योग है जो गन्ना उगाने से लेकर चीनी और शराब उत्पादन तक की एक पूरी मूल्य- शृंखला है।
- रोज़गार का स्रोत: 50 मिलियन किसानों और उनके परिवारों के लिये चीनी उद्योग आजीविका का एक स्रोत है। यह न केवल पूरे देश में चीनी मिलों और संबद्ध उद्योगों में 5 लाख से अधिक कुशल मज़दूरों बल्कि अर्द्ध-कुशल श्रमिकों को भी प्रत्यक्ष रोज़गार प्रदान करता है।
- जैव ईंधन: जून 2018 में, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय ने अपनी ‘‘जैव ईंधन पर राष्ट्रीय नीति-2018’’ प्रकाशित की, जिसमें उसने 2030 तक एथेनॉल के लिये 20% सम्मिश्रण दर का लक्ष्य रखा। एथेनॉल मिश्रित ईंधन कच्चे तेल के आयात को कम करने में मदद कर सकता है।
- चीनी उद्योग की समस्याएँ:
- अनिश्चित उत्पादन निर्गत: गन्ने को कई अन्य खाद्य और नकदी फसलों, जैसे- कपास, तिलहन, चावल इत्यादि से प्रतिस्पर्द्धा करनी पड़ती है। इससे मिलों को गन्ने की आपूर्ति प्रभावित होती है और चीनी का उत्पादन भी साल-दर-साल बदलता रहता है जिससे कीमतों में उतार-चढ़ाव होता है। कम कीमतों के कारण अतिरिक्त उत्पादन के समय में चीनी मिलों को नुकसान उठाना पड़ता है।
- उत्पादन की उच्च लागत: गन्ने की उच्च लागत, अकुशल तकनीक, उत्पादन की अनौपचारिक प्रक्रिया और भारी उत्पाद शुल्क के कारण विनिर्माण की लागत बढ़ जाती है। भारत में चीनी की उत्पादन लागत दुनिया में सबसे अधिक है।
- गन्ने की कम उपज: दुनिया के कुछ प्रमुख गन्ना उत्पादक देशों की तुलना में भारत में प्रति हेक्टेयर उपज बेहद कम है। उदाहरण के लिये, जावा में 90 टन प्रति हेक्टेयर और हवाई में 121 टन प्रति हेक्टेयर की तुलना में भारत की उपज केवल 64.5 टन/ हेक्टेयर है।
- सरकार की नीति और नियंत्रण: सरकार मांग-आपूर्ति के अंतराल को संतुलित करने के लिये निर्यात नीति, चीनी मिलों पर स्टॉक सीमा लगाना, मौसम विज्ञान नियम में बदलाव आदि जैसे विभिन्न नीतिगत हस्तक्षेपों के माध्यम से चीनी की कीमतों को नियंत्रित करती रही है। लेकिन इन नियंत्रणों के परिणामस्वरूप चीनी की कीमतों में कमी आई है, चीनी मिलों पर बकाया राशि बढ़ रही है और गन्ना किसानों को भुगतान किया जाना शेष है।
- समस्याओं को कम करने के उपाय:
- गन्ना किसानों की बकाया राशि की समस्या को समाप्त करने और चीनी उद्योग को आर्थिक रूप से स्वस्थ रखने के लिये, गन्ना मूल्य को चीनी की कीमतों के साथ जोड़ा जाना चाहिये। किसानों को एफआरपी से नीचे मूल्य प्राप्त करने से बचाने के लिये मूल्य स्थिरीकरण कोष के साथ राजस्व साझाकरण सूत्र (आरएसएफ) पेश किये जाने की आवश्यकता है।
- पानी के संरक्षण की तत्काल आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए, किसानों को उपयुक्त प्रोत्साहन प्रदान करते हुए, गन्ने की खेती के तहत कुछ क्षेत्र को कम पानी उपयोग करने वाली फसलों से प्रतिस्थापित किया जाना चाहिये।
- चीनी की कीमतों में ठहराव या कमी के कारण, मिलों की तरलता स्थिति चिंता का प्रमुख कारण बनी हुई है। इस समस्या के समाधान के लिये सरकार को समय-समय पर विभिन्न तरलता समर्थन उपायों की घोषणा करनी पड़ती है। यदि ऐसी परिस्थितियाँ बार-बार सामने आती हैं तो इसके दीर्घकालिक समाधान के लिये (मिलों को तरलता सहायता प्रदान करने के लिये) एक समुचित कोष बनाए जाने की आवश्यकता है।
- गन्ने और चीनी दोनों की कीमतों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करने का प्रयास किया जाना चाहिये। साथ ही, मुक्त बाज़ार नियंत्रकों को गन्ने और इसके अंतिम उत्पादों के लिये मांग-आपूर्ति समीकरण तय करने का अधिकार दिया जाना चाहिये।
गन्ना उद्योग का भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था, विकास और रोज़गार पर सीधा प्रभाव डालता है। अत: रंगराजन समिति की सिफारिशों को पूरी तरह से अपनाने की आवश्यकता है, विशेष रूप से चीनी और उप-उत्पादों से वसूली के लिये गन्ने को एफआरपी से जोड़ने की।