प्रश्न. खाद्य उत्पादन में आत्मनिर्भर होने के बावजूद भी वैश्विक भुखमरी सूचकांक (Global Hunger Index) में भारत का स्थान लगातार नीचे क्यों है?
17 Nov 2021 | सामान्य अध्ययन पेपर 2 | सामाजिक न्याय
दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- वैश्विक भुखमरी सूचकांक (ग्लोबल हंगर इंडेक्स) को परिभाषित कीजिये।
- वैश्विक भुखमरी सूचकांक में भारत की निम्न रैंक के विभिन्न कारकों को रेखांकित कीजिये।
- कुछ उपाय सुझाते हुए निष्कर्ष दीजिये।
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भारत उन गिने-चुने विकासशील देशों में शामिल है जिन्होंने अनाज उत्पादन में आत्मनिर्भरता हासिल की है। बावजूद इसके भारत में भुखमरी एक बड़ा मुद्दा बना हुआ है। वैश्विक भुखमरी सूचकांक पाँच साल से कम आयु के कमज़ोर और अविकसित बच्चों, शिशु मृत्यु दर, कुपोषित जनसंख्या का हिस्सा जैसे पैरामीटरों पर आधारित है। कई मोर्चों पर इतनी प्रगति करने और दुनिया में जीडीपी वृद्धि की उच्च दर को हासिल करने के बावजूद भी भारत में लाखों बच्चों का कुपोषित होना कुछ इस तरह है जिसका वर्णन नहीं किया सकता है। यह हमारे देश में आय की असमानता एवं भूख मिटाने के लिये निर्देशित नीतियों के खराब कार्यान्वयन की सीमा को भी दर्शाता है।
कारक
- भारत में कृषि-उत्पादों की बर्बादी एक ऐसी उभरती चुनौती है जो भुखमरी और कुपोषण को समाप्त करने के हमारे प्रयासों को कमज़ोर करती है। संयुक्त राष्ट्र संगठन के अनुसार, भारत में उत्पादित खाद्यान्न का 40 फीसदी बर्बाद हो जाता है जो लगभग 92000 करोड़ प्रतिवर्ष है और यह 194 मिलियन भारतीयों को कुपोषित करता है।
- हमारे देश में हरित क्रांति की सफलताओं के बावजूद अन्य कई समस्याएँ उत्पन्न हुईं। यह क्रांति पंजाब और हरियाणा में सफल हुई, जबकि अन्य राज्यों ने प्रभावशाली परिणाम नहीं दिखाए। इसने फसल उत्पादन विविधता से समझौता कर मुख्य रूप से गेहूँ और चावल के उत्पादन को बढ़ावा दिया, जिसने बाद में ‘‘न्यूट्रिशन हंगर’’/हिडन हंगर (“Nutrition Hunger”/ Hidden Hunger) जैसी समस्या को जन्म दिया। ‘‘न्यूट्रिशन हंगर’’/हिडन हंगर कुछ सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की कमी को दर्शाता है।
- सुरक्षित पेयजल की समस्या एवं अस्वास्थ्यकर वातावरण में रहने वाले बच्चे पानी से होने वाली बीमारियों और दस्त से पीड़ित होते हैं, जिससे बच्चों का वज़न कम हो जाता है और बाद में उनका विकास अवरुद्ध हो जाता है। वास्तव में स्वास्थ्य सेवा, स्वच्छता की खराब गुणवता एवं कुपोषण के इन्हीं कारणों से शिशु मृत्यु दर 4.8 प्रतिशत है।
- चाइल्ड वेस्टिंग (अर्थात् अपनी ऊँचाई के अनुपात में कम वज़न वाले बच्चों ) के मामले में भारत की स्थिति निम्न है। चाइल्ड वेस्टिंग की समस्या से जूझने वाले 5 साल से कम उम्र के बच्चों का प्रतिशत 2010 के 16.5 प्रतिशत से बढ़कर वर्तमान में 20.8 प्रतिशत हो गया है। चाइल्ड वेस्टिंग तीव्र कुपोषण का सूचक है और इस पैरामीटर पर भारत की स्थिति अन्य सभी देशों में सबसे बदतर है।
- विशेषज्ञों ने निम्न रैंकिंग के लिये पीडीएस और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम-2013 की खराब कार्यान्वयन प्रक्रियाओं, प्रभावी निगरानी की कमी, कुपोषण से निपटने के मौन दृष्टिकोण एवं बड़े राज्यों के निराशाजनक प्रदर्शन को भी दोषी ठहराया है।
इस संकट से निपटने के लिये एक बहु-आयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है:
- सबसे पहले, खासकर छोटे और सीमांत किसानों द्वारा दालों और मोटे अनाज जैसे अधिक विविधता वाली फसलों को उगाया जाना चाहिये। इसके साथ-साथ छोटी और सीमांत जोतों पर नए सिरे से ध्यान केंद्रित किया जाना आवश्यक है।
- दूसरा, सरकार समाज के कमज़ोर वर्गों के लिये पके हुए पौष्टिक भोजन की आपूर्ति करने के प्रावधान बना सकती है। इसे आंगनवाड़ी और स्कूलों में बच्चों, माताओं और छात्रों के लिये मध्याह्न भोजन के माध्यम से स्वस्थ आहार के मौजूदा प्रावधानों के अतिरिक्त किया जा सकता है।
- तीसरा, रोज़गार और मज़दूरी बढ़ाने के लिये मनरेगा जैसे ग्रामीण रोज़गार योजनाओं को बढ़ावा दिया जाना चाहिये। इस योजना के तहत काम करने वाले कई संगठनों और व्यक्तियों ने सुझाव दिया है कि गारंटीकृत कार्य-दिवसों की संख्या को बढ़ाकर 200 दिन किया जाए और राज्यों की न्यूनतम कृषि मज़दूरी के अनुरूप पारिश्रमिक दी जाए।
- चौथा, तकनीकी प्रक्रियाओं को सरल बनाकर और आधार से संबंधित खामियों को दूर करके पीडीएस के तहत खाद्यान्नों की पहुँच को सुव्यवस्थित करने की आवश्यकता है।
इस प्रकार केंद्र सरकार को यह भी सुनिश्चित करना चाहिये कि ‘एक देश एक राशन कार्ड’ योजना समुचित तैयारी, जैसे कि दुकानों को पर्याप्त अनाज आवंटित कर, पहचान प्रक्रिया दुरुस्त कर और अनाज चाहने वाले व्यक्तियों को राशनकार्ड जारी करने, के साथ कार्यान्वित की जाए।