प्रश्न.1 ऐसा माना जाता है कि निष्क्रिय सार्वजनिक संपत्तियों के मुद्रीकरण से आवश्यक पूंजी प्राप्त होगी और इससे अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिये नए बुनियादी ढाँचे के निर्माण में मदद मिलेगी। हाल ही में शुरू की गई राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन के आलोक में इस कथन पर चर्चा कीजिये। (250 शब्द)
प्रश्न. 2 'रोगाणुरोधी प्रतिरोध (Antimicrobial Resistance) आधुनिक चिकित्सा की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है।' चर्चा कीजिये। साथ ही इस समस्या से निपटने के लिये कुछ उपाय भी सुझाइये। (250 शब्द)।
प्रश्न.3 अगर भारत अपनी ऊर्जा यात्रा में प्राकृतिक गैस को "अगला पड़ाव" बनाता है तो भारत के पास स्वच्छ ऊर्जा प्रणाली के गंतव्य तक पहुँचने का एक बेहतर अवसर होगा। चर्चा कीजिये। (250 शब्द)
प्रश्न. 4 किस प्रकार अवैध प्रवास भारत के लिये प्रमुख आंतरिक सुरक्षा चुनौतियों में से एक है। इस मुद्दे से निपटने के लिये मौजूदा कानूनी ढाँचे पर भी चर्चा कीजिये। (150 शब्द)।
प्रश्न.5 हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र अपनी पारिस्थितिकी में होने वाले नुकसान के चलते अपरिवर्तनीय गिरावट के चरण में प्रवेश कर सकता है। इस क्षेत्र में बार-बार होने वाली आपदाओं के आलोक में उपरोक्त कथन पर चर्चा कीजिये। (250 शब्द)
प्रश्न.6 कॉर्पोरेट गवर्नेंस क्या है? भारत में कॉर्पोरेट प्रशासन से संबंधित क्या नैतिक मुद्दे हैं? भारत में कॉर्पोरेट गवर्नेंस में सुधार हेतु उपाय सुझाइये। (250 शब्द)
प्रश्न. 7 प्रासंगिक उदाहरणों के साथ निम्नलिखित का परीक्षण कीजिये:
(क) एक कार्रवाई कानूनी रूप से गलत हो सकती है लेकिन नैतिक रूप से सही और इसके विपरीत।
(ख) किन परिस्थितियों में किसी व्यक्ति को उसके कार्यों के बावजूद अनैतिक के रूप में नहीं देखा जा सकता, जो कि अनैतिक या अवैध प्रतीत होता है।
प्रश्न. 8 निम्नलिखित शब्दों को परिभाषित कीजिये: (150 शब्द)
1. परोपकारिता
2. विनम्रता
3. सत्ता और नैतिकता
प्रश्न. 9 भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ाई में स्वतंत्र मीडिया (सोशल मीडिया सहित) की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है। टिप्पणी कीजिये। (150 शब्द)
प्रश्न.10 आप एक ज़िलाधिकारी के रूप में पदस्थ हैं। आपको अपने अधिकार क्षेत्र के एक गाँव की स्थिति के बारे में पता चलता है जहाँ की जनसंख्या रक्ताल्पता (एनीमिया) से पीड़ित है। एक परियोजना के तहत गाँव वालों को फोर्टिफाइड (पोषक तत्त्वों से युक्त) चावल उपलब्ध कराने की पहल की गई ताकि उन्हें पोषण प्रदान किया जा सके। किंतु गाँव वाले इस गलत धारणा के चलते कि ये चावल प्लास्टिक के हैं, इनका उपभोग करने से मना कर देते हैं। वहीं दूसरी तरफ ग्रामवासी वामपंथी विचारधारा से भी प्रभावित हैं और आपको यह भी पता चलता है कि नक्सलवादी ग्रामीणों की इस आम धारणा का प्रयोग अपने फायदे के लिये कर रहे हैं जिससे सरकार को जनता तक पहुँचना अधिक मुश्किल हो रहा है। एक अन्य वैकल्पिक पहल के रूप में लोगों को आयरन की गोलियाँ उपलब्ध कराई गई लेकिन इसने भी ग्रामीणों के बीच एक अन्य गलतफहमी पैदा कर दी कि इन गोलियों के सेवन से गर्भस्थ शिशुओं के वजन में वृद्धि हो जाती है जो गर्भवती महिलाओं में प्रसव संबंधी जटिलताओं में वृद्धि का कारण बनती है। इस प्रकार यह पहल भी विफल साबित हुई।
(a) उपर्युक्त केस स्टडी में निहित विभिन्न मुद्दे कौन-से हैं?
(b) नक्सलियों द्वारा प्रसारित गलत सूचनाओं के परिप्रेक्ष्य में आप जन सामान्य की धारणाओं को कैसे बदलेंगे? (250 शब्द)
दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
उत्तर-1:
हल करने का दृष्टिकोण
- राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन (एनएमपी) के बारे में और इसके लॉन्च के औचित्य के बारे में संक्षेप में लिखते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- एनएमपी के लाभों की विवेचना कीजिये।
- एनएमपी से संबंधित चुनौतियों पर चर्चा कीजिये।
- आगे की राह बताइये।
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परिचय
नीति आयोग द्वारा तैयार किये गए राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन का उद्देश्य राष्ट्रीय अवसंरचना में "विकास, कमीशन, मुद्रीकरण और निवेश" के एक सुदृढ़ चक्र का निर्माण करना है।
इसका लक्ष्य निजी क्षेत्र को संलग्न कर ब्राउनफील्ड परियोजनाओं में संभावनाओं को साकार करना, उन्हें राजस्व अधिकार हस्तांतरित करना (हालाँकि परियोजनाओं में स्वामित्व का हस्तांतरण नहीं) और इस प्रकार प्राप्त पूँजी को देश भर में बुनियादी अवसंरचनाओं के निर्माण के लिये उपयोग करना है।
NMP के पक्ष में तर्क:
- भारत को और अधिक बुनियादी अवसंरचनाओं की आवश्यकता है परंतु सार्वजनिक क्षेत्र के पास उसके विकास के लिये आवश्यक संसाधनों का अभाव है। इस परिदृश्य में दो संभावित प्रतिक्रियाएँ हो सकती हैं:
- नये बुनियादी अवसंरचना के निर्माण के लिये एक संविदात्मक ढाँचे के साथ (कि उसे क्या कार्य करना है) निजी क्षेत्र को संलग्न करने और फिर उसके द्वारा अपने स्वयं के संसाधन जुटाने पर विचार किया जा सकता है।
- यह समझना कि निर्माण चरण में अधिक जोखिम होते हैं और इसलिये सार्वजनिक क्षेत्र द्वारा परिसंपत्ति का निर्माण करना और फिर इसे निजी खिलाड़ियों को बेचना (या यदि एकमुश्त बिक्री नहीं की जाती है तो निजी क्षेत्र को इसका प्रबंधन सौंपना) बेहतर विकल्प हो सकता है।
NMP के लाभ:
- संसाधन वृद्धि का सृजन: NMP सरकार को इच्छुक निजी पार्टियों के माध्यम से पूँजी तक पहुँच प्राप्त करने में मदद करेगा।
- ये निवेशक मुद्रीकृत परिसंपत्तियों का रखरखाव एवं परिचालन करेंगे और नकदी प्रवाह उत्पन्न करेंगे, जबकि इसके साथ ही बुनियादी अवसंरचना क्षेत्र में प्रौद्योगिकीय एवं मानव संसाधन क्षमता का भी निर्माण करेंगे।
- संपत्ति का स्वामित्व सरकार द्वारा प्रबंधित: मौजूदा ब्राउनफील्ड, गैर-जोखिमयुक्त संपत्ति, जो चार वर्षीय मुद्रीकरण पाइपलाइन का अंग है, नई ग्रीनफील्ड परिसंपत्तियों के लिये निष्पादन क्षमता के सृजन में मदद करेगी।
- सरकार संपत्ति के परिचालन और रखरखाव के अधिकारों का मुद्रीकरण कर रही है न कि उसके स्वामित्व का।
- उचित मूल्य हिस्सेदारी: अनुबंधों को इस तरह से डिज़ाइन किया जाएगा कि सरकार को मुद्रीकरण से उचित वर्तमान मूल्य प्राप्त हो, जबकि निजी पार्टियों को पर्याप्त परिचालन लचीलापन और नियामक दृश्यता प्राप्त होगी।
- इसके अलावा, चूँकि अनुबंध की शर्तें 25 वर्ष या उससे अधिक अवधि की हो सकती हैं, बोली लगाने में प्रकट रुचि से पता चलता है कि निवेशक दीर्घकालिक नियामक स्थिरता और निश्चितता के प्रति आश्वस्त हैं।
- बेहतर लक्षित: NMP करदाताओं के लिये कोई नई वित्तीय देनदारी प्रस्तुत नहीं करता है यह वास्तव में एक बेहतर लक्षित "उपयोगकर्त्ता भुगतान" संरचना का प्रतिनिधित्व करता है।
- उदाहरण के लिये, यदि दिल्ली में एक स्टेडियम का मुद्रीकरण नहीं किया जाता है तो पूरे देश के करदाता इसके रखरखाव के लिये भुगतान करेंगे। लेकिन एक मुद्रीकृत स्टेडियम के लिये भुगतान केवल दिल्ली में इसकी सुविधाओं का उपयोग करने वालों द्वारा किया जाएगा। यह परिचालन राजस्व उत्पन्न करने का एक बेहतर तरीका है।
संबंधित चुनौतियाँ:
- उपयुक्त मूल्य को साकार करना: मुद्रीकरण पाइपलाइन की पहली और प्रमुखतम आलोचना यह है कि परिसंपत्तियों से पर्याप्त मूल्य को साकार किया जा सकेगा या नहीं।
- बोलीदाताओं की पर्याप्त भागीदारी सुनिश्चित करना: परिसंपत्ति मुद्रीकरण से क्रोनी कैपिटलिज्म को बढ़ावा नहीं मिलेगा—यह सुनिश्चित करने का एकमात्र तरीका यह है कि बोली की शर्तों को ऐसा बनाया जाए कि यह किसी छोटे, विशिष्ट या पूर्व-निर्धारित लोगों के समूह तक सीमित न हो।
- निष्पादन जोखिम: इतने वृहत कार्यक्रम में निश्चय ही निष्पादन जोखिम भी शामिल होगा। यद्यपि यही कारण है कि NMP ‘वन-साइज़-फिट्स-ऑल’ का दृष्टिकोण नहीं अपना रहा है।
- करदाताओं द्वारा भुगतान: एक विचारणीय विषय यह है कि चूँकि करदाताओं ने इन सार्वजनिक संपत्तियों के लिये पहले ही भुगतान कर रखा है, तो इनका उपयोग करने के लिये वे पुनः निजी पार्टी को भुगतान क्यों करें।
- उप-इष्टतम संविदात्मक प्रवर्तन: इस तरह की योजना की सफलता के लिये एक उप-इष्टतम संविदात्मक और न्यायिक ढाँचे को लेकर व्याप्त संदेह के कारण भी इसकी आलोचना की जा रही है।
आगे की राह:
- संसाधन बढ़ाने के अन्य तरीके: एक विकास वित्त संस्था (Development Finance Institution- DFI) की स्थापना और केंद्रीय एवं राज्य बजट में अवसंरचना निवेश की हिस्सेदारी को बढ़ाने जैसे संसाधन वृद्धि के अन्य तरीके अपनाए जा सकते हैं।
- विवाद समाधान तंत्र: न्यायिक प्रक्रियाओं को सशक्त करने पर अधिक बल नहीं दिया जा सकता। कुशल और प्रभावी विवाद समाधान तंत्र स्वाभाविक रूप से और स्वचालित रूप से NMP के डिज़ाइन और निष्पादन में शामिल होना चाहिये।
- सार्वजनिक-निजी भागीदारी को सुव्यवस्थित करना: हाल के अनुभव बताते हैं कि सार्वजनिक-निजी भागीदारी (public-private partnerships- PPP) में अब पारदर्शी नीलामी, जोखिमों और अदायगी की स्पष्ट समझ तथा किसी भी एवं सभी इच्छुक पार्टियों के लिये एक खुला क्षेत्र शामिल है।
- पारदर्शी बोली: पारदर्शी बोली NMP परियोजना के सबसे महत्त्वपूर्ण भागों में से एक है। इस प्रकार, पारदर्शिता बनाए रखना परिसंपत्ति मूल्य को उपयुक्त रूप से साकार कर सकने के लिये महत्त्वपूर्ण है।
उत्तर-2:
हल करने का दृष्टिकोण
- रोगाणुरोधी प्रतिरोध का क्या अर्थ है? संक्षेप में बताइये।
- चर्चा कीजिये कि यह किस प्रकार आधुनिक चिकित्सा की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है।
- रोगाणुरोधी प्रतिरोध के मुद्दों से निपटने के लिये कुछ उपाय सुझाइये।
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परिचय
रोगाणुरोधी प्रतिरोध (Antimicrobial Resistance-AMR) का तात्पर्य किसी भी सूक्ष्मजीव (बैक्टीरिया, वायरस, कवक, परजीवी आदि) द्वारा एंटीमाइक्रोबियल दवाओं (जैसे एंटीबायोटिक्स, एंटीफंगल, एंटीवायरल, एंटीमाइरियल और एंटीहेलमिंटिक्स) जिनका उपयोग संक्रमण के इलाज के लिये किया जाता है, के खिलाफ प्रतिरोध हासिल कर लेने से है।
परिणामस्वरूप मानक उपचार अप्रभावी हो जाते हैं, संक्रमण जारी रहता है और दूसरों में फैल सकता है।
रोगाणुरोधी प्रतिरोध विकसित करने वाले सूक्ष्मजीवों को कभी-कभी "सुपरबग्स" के रूप में जाना जाता है।
प्रारूप
रोगाणुरोधी प्रतिरोध से संबंधित चिंताएँ
- संक्रमण की रोकथाम और उपचार के लिये खतरा- अंग प्रत्यारोपण, कैंसर कीमोथेरेपी, मधुमेह प्रबंधन और प्रमुख सर्जरी (उदाहरण के लिये सिजेरियन सेक्शन या हिप रिप्लेसमेंट) जैसी चिकित्सा प्रक्रियाएँ बहुत जोखिम भरी हो जाती हैं।
- अस्पतालों में लंबे समय तक रहने, अतिरिक्त परीक्षण और अधिक महँगी दवाओं के उपयोग से स्वास्थ्य देखभाल की लागत बढ़ जाती है।
- यह सहस्राब्दी विकास लक्ष्यों के लाभों और सतत् विकास लक्ष्यों (एसडीजी) की उपलब्धि को खतरे में डाल रहा है।
- पिछले तीन दशकों में एंटीबायोटिक दवाओं के किसी भी नए वर्ग ने बाज़ार में प्रवेश नहीं किया है, मुख्य रूप से उनके विकास और उत्पादन के लिये अपर्याप्त प्रोत्साहन के कारण।
- तत्काल कार्रवाई के अभाव में हम एंटीबायोटिक विनाश की ओर बढ़ रहे हैं, एंटीबायोटिक के बिना भविष्य, जिसमें सूक्ष्म जीव उपचार के विरुद्ध पूरी तरह से प्रतिरोधी हो जाते हैं, सामान्य संक्रमण और मामूली चोटें भी मानव की मृत्यु का कारण बन सकती हैं।
आगे की राह
- चूँकि रोगाणु नई रोगाणुरोधक प्रतिरोधी क्षमता विकसित करते रहेंगे, अत: नियमित आधार पर नए प्रतिरोधी उपभेदों (Strain) का पता लगाने और उनका मुकाबला करने के लिये निरंतर निवेश और वैश्विक समन्वय की आवश्यकता है।
- एंटीबायोटिक दवाओं के अनुचित प्रोत्साहन को कम करने के लिये उपभोक्ताओं को शिक्षित करने के साथ प्रदाताओं के लिये उपचार संबंधी दिशा-निर्देश जारी करने की भी आवश्यकता है।
- इन विविध चुनौतियों से निपटने के लिये नए रोगाणुरोधी को विकसित करने के अलावा कई अन्य क्षेत्रों में कार्रवाई की आवश्यकता है। संक्रमण-नियंत्रण उपायों द्वारा एंटीबायोटिक के उपयोग को सीमित को सीमित किया जा सकता है।
- वित्तीय अनुमोदन जैसे उपाय उचित नैदानिक उपयोग को (Clinical Use) प्रोत्साहित करेंगे। साथ ही रोगाणुरोधी की आवश्यकता वाले लोगों तक इसकी पहुँच को सुनिश्चित करना भी महत्त्वपूर्ण है क्योंकि संक्रमण की स्थिति में उपचार योग्य दवाओं के अभाव में दुनिया भर में 7 मिलियन लोग प्रतिवर्ष मर जाते हैं।
- इसके अलावा रोगाणुओं में प्रतिरोध के प्रसार को ट्रैक करने व समझने के क्रम में इन जीवाणुओं की पहचान के लिये निगरानी उपायों के लिये अस्पतालों के साथ-साथ पशुओं, अपशिष्ट जल एवं कृषि व खेत-खलिहान को भी शामिल करने की आवश्यकता है।
निष्कर्ष
दुनिया को तत्काल एंटीबायोटिक दवाओं को निर्धारित करने और उपयोग करने के तरीके को बदलने की ज़रूरत है। भले ही नई दवाएँ विकसित हो जाएँ, व्यवहार में बदलाव के बिना, एंटीबायोटिक प्रतिरोध एक बड़ा खतरा बना रहेगा।
व्यवहार में बदलाव के साथ ही इसमें टीकाकरण, हाथ धोने, सुरक्षित संभोग और उचित खाद्य स्वच्छता के माध्यम से संक्रमण के प्रसार को कम करने के उपाय भी शामिल होने चाहिये।
उत्तर-3:
हल करने का दृष्टिकोण
- परिचय में प्राकृतिक गैस के उपयोग के बारे में लिखते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- भारत के ऊर्जा मिश्रण में प्राकृतिक गैस के उपयोग के महत्त्व पर चर्चा कीजिये।
- प्राकृतिक गैस को मुख्य ईंधन के रूप में अपनाने में आने वाली चुनौतियों की चर्चा कीजिये।
- चुनौतियों से निपटने के लिए कुछ उपाय सुझाइये।
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परिचय
भारत में कई कॉर्पोरेट और पर्यावरण गैर सरकारी संगठन वर्तमान में "शुद्ध शून्य कार्बन उत्सर्जन" की अवधारणा और इसे प्राप्त करने के लिए उपयुक्त लक्ष्य वर्ष पर विचार कर रहे हैं।
इस लक्ष्य की प्राप्ति के संदर्भ में वैश्विक सर्वसम्मति प्राप्त करने हेतु किये जा रहे प्रयासों के क्रम में भारत को सबसे पहले अपने जीवाश्म ईंधन बास्केट को "हरित ईंधन बास्केट" के रूप में परिवर्तित करना होगा। ऊर्जा उपयोग में प्राकृतिक गैस की हिस्सेदारी को बढ़ाकर यह कार्य किया जा सकता है।
यद्यपि प्राकृतिक गैस अर्थव्यवस्था में प्राकृतिक गैस मूल्य शृंखला के सभी क्षेत्रों- उत्पादन (घरेलू एवं अंतर्राष्ट्रीय) से बाज़ारों (वर्तमान एवं उभरते हुए) तक परिवहन (पाइपलाइन एवं एलएनजी) और वाणिज्यिक (मूल्य निर्धारण, कराधान) तथा विनियामक मुद्दों के संदर्भ में नीतिगत सुधार किये जाने की आवश्यकता है।
प्राकृतिक गैस: एक बेहतर विकल्प के रूप में
- वैविध्यपूर्ण और प्रचुरता: प्राकृतिक गैस के कई उपयोग हैं और यह सभी जीवाश्म ईंधनों में "सबसे नया " है। इसके अलावा, यह भारतीय उपमहाद्वीप में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है।
- सरल संक्रमण ऊर्जा विकल्प: प्राकृतिक गैस का उपयोग एक व्यवहार्य संभावना है क्योंकि यह कोयला खदानों को बंद करने पर विपरीत परिस्थितियाँ उत्पन्न नहीं होने देगी।
- इसके अलावा, उद्योगों को अपनी प्रणाली के पुनः स्थापन में भारी निवेश करने की आवश्यकता नहीं होगी।
- इसके अलावा, यह सरकार द्वारा पर्यावरण को प्रदूषित किये बिना सभी को सुरक्षित और सस्ती ऊर्जा उपलब्ध कराने के उद्देश्य को पूरा करने में मदद करेगी।
- जीवाश्म ईंधन का अतिरिक्त उपयोग: ऊर्जा बास्केट में जीवाश्म ईंधन की औसत वैश्विक हिस्सेदारी 84% है जो भारत के लिये और भी अधिक है।
- अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) के अनुसार, भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल उपभोक्ता है।
- कोयले और तेल पर निर्भरता को कम किये जाने की आवश्यकता है तथा इसके लिये कोयले और तेल के स्थान पर प्राकृतिक गैस को अधिक-से-अधिक उपयोग में लाना होगा।
प्राकृतिक गैस क्षेत्र से जुड़ी चुनौतियाँ
- मूल्य निर्धारण संबंधी विकृतियाँ: प्राकृतिक गैस के मूल्य का निर्धारण कई अलग-अलग सूत्रों पर आधारित होता है।
- सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों और निजी कंपनियों द्वारा घरेलू क्षेत्रों से उत्पादित गैस के मूल्यों में अंतर पाया जाता है।
- इसी तरह, गहरे पानी के अपतटीय क्षेत्रों तथा उच्च तापमान वाले क्षेत्रों के तहत में किये गए उत्पादन के आधार पर भी मूल्यों में अंतर पाया जाता है।
- यह प्रतिस्पर्द्धी मूल्य निर्धारण में समस्याएँ पैदा करता है।
- प्रतिगामी कराधान प्रणाली: यह एक व्यापक संरचना है जिसके चलते गैस के एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में प्रवाहित होने पर कर की दरों में वृद्धि होती है।
- इसका तात्पर्य यह है कि गैस के स्रोत से दूर स्थित ग्राहक, स्रोत के निकट वाले ग्राहक की तुलना में अधिक कीमत चुकाते हैं। परिणामस्वरूप माँग में कमी होती है।
- इसके अलावा, गैस क्षेत्र GST के दायरे में भी नहीं आता है।
- हितों के टकराव की स्थिति: वर्तमान में गैस अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (GAIL) गैस के उत्पादन, परिवहन और विपणन में संलग्न है।
- इसके परिणामस्वरूप GAIL अपने प्रतिद्वंद्वियों को बाज़ार तक पहुँच से वंचित करने के लिये गैस पाइपलाइनों के संदर्भ में अपने स्वामित्व का लाभ उठा सकता है।
- अधिकांश देशों ने परिवहन से अपस्ट्रीम (उत्पादन/आयात) और डाउनस्ट्रीम (विपणन) हितों को अलग कर इस संघर्ष की स्थिति का निपटान कर लिया है।
- केंद्र और राज्यों का मुद्दा: भूमि अधिग्रहण, पाइपलाइन मार्ग तथा रॉयल्टी भुगतान जैसे मुद्दों पर केंद्र और राज्यों के बीच विवादों के कारण राष्ट्रीय पाइपलाइन ग्रिड का निर्माण प्रभावित हो रहा है।
- केंद्र तथा राज्यों के बीच व्याप्त मतभेदों के कारण आयात सुविधाओं के निर्माण तथा गैस बाज़ारों के सृजन में भी देरी हुई है।
आगे की राह
- मूल्य निर्धारण के विनियमन में ढील: घरेलू स्तर पर उत्पादित गैस के लिये मूल्य निर्धारण के विनियमन में ढील, गैस अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के संदर्भ में बाज़ार सुधारों को सुनिश्चित करने का एक प्रमुख पहलू हो सकती है।
- यह कदम घरेलू गैस की कीमतों के निर्धारण तथा विपणन में स्वतंत्रता प्रदान करेगा, जिससे घरेलू उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा तथा निवेशकों के लिये निवेश करना अधिक व्यवहार्य हो जाएगा।
- इसके अलावा, बाज़ार-आधारित और किफायती मूल्य निर्धारण से औद्योगिक विकास एवंआर्थिक प्रतिस्पर्द्धा को भी बढ़ावा मिलेगा।
- अवसंरचना विकास: इन बाज़ारों को बुनियादी ढाँचे तक खुली पहुँच, सिस्टम ऑपरेटर, विच्छिन्न विपणन और परिवहन कार्य, बाज़ार-अनुकूल परिवहन तक पहुँच तथा टैरिफ़ के अलावा मज़बूत पाइपलाइन अवसंरचना जैसे कारकों से बहुत लाभ हुआ है।
- साथ ही केंद्र और राज्य सरकारों के बीच बेहतर समन्वय हेतु संस्थागत तंत्र स्थापित किया जाना चाहिये।
- मुक्त गैस बाज़ार: प्राकृतिक गैस हेतु मूल्य बेंचमार्क सुनिश्चित करने से यह मूल्य शृंखला में प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देगा और डाउनस्ट्रीम बुनियादी ढाँचे के साथ इसके अन्वेषण एवं उत्पादन में निवेश को प्रोत्साहित करेगा।
- इसके अलावा इसे GST ढाँचे के अंतर्गत शामिल करना और अति महत्त्वपूर्ण विनियामक ढाँचे का विकास जैसे कारक भी समग्र गैस बाज़ार वृद्धि एवं विकास में प्रमुख भूमिका निभाएँगे।
निष्कर्ष
यदि भारत वृद्धिशील रूप से आगे बढ़ता है तो इसके पास स्वच्छ ऊर्जा प्रणाली के गंतव्य तक पहुँचने का एक बेहतर अवसर है। इसके लिये भारत को अपनी ऊर्जा यात्रा में प्राकृतिक गैस को "अगला पड़ाव" बनाने की आवश्यकता है।
उत्तर-4:
हल करने का दृष्टिकोण
- भारत में अवैध प्रवासियों के बारे में बताते हुए शुरुआत कीजिये।
- अवैध प्रवास एक आंतरिक सुरक्षा चुनौती कैसे है, बताइये।
- अवैध प्रवास के मुद्दों से निपटने के लिये मौजूदा कानूनी ढाँचे पर चर्चा कीजिये।
- आगे की राह सुझाइये।
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परिचय
भारत में अवैध प्रवासी एक विदेशी है जिसने या तो वैध दस्तावेजों के बिना भारत में प्रवेश किया है या जिसके पास शुरू में एक वैध दस्तावेज था, लेकिन 2003 में संशोधित नागरिकता अधिनियम के सामान्य प्रावधानों के अनुसार, अनुमत समय से अधिक समय तक उपयोग के चलते वह अवैध हो गया हो।
ऐसे व्यक्ति पंजीकरण या देशीयकरण द्वारा नागरिकता के लिए पात्र नहीं हैं। उन्हें 2-8 वर्ष की कैद और जुर्माना भी हो सकता है।
प्रारूप
आंतरिक सुरक्षा चुनौती के रूप में अवैध प्रवास
- राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये खतरा:
- भारत में रोहिंग्याओं के अवैध अप्रवास का जारी रहना और उनका भारत में लगातार रहना, राष्ट्रीय सुरक्षा पर गंभीर प्रभाव डालता है तथा सुरक्षा के लिये गंभीर खतरा पैदा करता है।
- हितों का टकराव:
- यह उन क्षेत्रों में स्थानीय आबादी के हितों को प्रभावित करता है जो बड़े पैमाने पर अप्रवासियों के अवैध रुप से प्रवेश का सामना करते हैं।
- राजनैतिक अस्थिरता:
- यह राजनीतिक अस्थिरता को भी बढ़ाता है जब नेता राजनीतिक सत्ता हथियाने के लिये अभिजात वर्ग द्वारा प्रवासियों के खिलाफ देश के नागरिकों की धारणा को लामबंद करना शुरू करते हैं।
- उग्रवाद का उदय:
- अवैध प्रवासियों के रूप में माने जाने वाले मुस्लिमों के खिलाफ लगातार होने वाले हमलों ने कट्टरपंथ का मार्ग प्रशस्त किया है।
- मानव तस्करी:
- हाल के दशकों में सीमाओं पर महिलाओं और मानव तस्करी की घटनाओं में काफी वृद्धि देखी गई है।
- कानून व्यवस्था में गड़बड़ी:
- अवैध और राष्ट्रविरोधी गतिविधियों में लिप्त अवैध प्रवासियों द्वारा देश की कानून व्यवस्था और अखंडता को कमज़ोर किया जाता है।
मौजूदा कानूनी ढाँचा:
- पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) अधिनियम, 1920:
- इस अधिनियम ने सरकार को भारत में प्रवेश करने वाले व्यक्तियों को अपने पास पासपोर्ट रखने के लिये नियम बनाने का अधिकार दिया।
- इसने सरकार को बिना पासपोर्ट के प्रवेश करने वाले किसी भी व्यक्ति को भारत से हटाने की शक्ति भी प्रदान की।
- विदेशी अधिनियम, 1946:
- इसने विदेशी अधिनियम, 1940 की जगह सभी विदेशियों से निपटने हेतु व्यापक अधिकार प्रदान किये।
- इस अधिनियम ने सरकार को बल प्रयोग सहित अवैध प्रवासियों को रोकने के लिये आवश्यक कदम उठाने का अधिकार दिया।
- 'बर्डन ऑफ प्रूफ' की अवधारणा व्यक्ति के पास है, न कि इस अधिनियम द्वारा दिये गए अधिकारियों के पास जो अभी भी सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में लागू है। इस अवधारणा को सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ ने बरकरार रखा है।
- इस अधिनियम ने सरकार को ट्रिब्यूनल स्थापित करने का अधिकार दिया, जिसमें सिविल कोर्ट के समान अधिकार होंगे।
- फॉरेनर्स (ट्रिब्यूनल) ऑर्डर, 1964 में हालिया संशोधन (2019) ने सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के ज़िला मजिस्ट्रेटों को यह तय करने के लिये ट्रिब्यूनल स्थापित करने का अधिकार दिया कि भारत में अवैध रूप से रहने वाला व्यक्ति विदेशी है या नहीं।
- विदेशियों का पंजीकरण अधिनियम, 1939:
- FRRO के तहत पंजीकरण एक अनिवार्य आवश्यकता है जिसके तहत सभी विदेशी नागरिकों (ओवरसीज़ सिटीज़न ऑफ इंडिया को छोड़कर) को भारत आने के 14 दिनों के भीतर एक लंबी अवधि के वीज़ा (180 दिनों से अधिक) पर भारत आने हेतु पंजीकरण अधिकारी के समक्ष खुद को पंजीकृत करना आवश्यक है।
- भारत आने वाले पाकिस्तानी नागरिकों को ठहरने की अवधि की परवाह किये बिना आगमन के 24 घंटों के भीतर पंजीकरण कराना आवश्यक है।
- नागरिकता अधिनियम, 1955:
- यह भारतीय नागरिकता का अधिग्रहण और निर्धारण संबंधी प्रक्रिया निर्धारित करता है।
- इसके अलावा संविधान ने भारत के प्रवासी नागरिकों, अनिवासी भारतीयों और भारतीय मूल के व्यक्तियों के लिये नागरिकता संबंधी अधिकार प्रदान किये हैं।
निष्कर्ष
वर्ष 1951 के शरणार्थी कन्वेंशन और वर्ष 1967 के प्रोटोकॉल का हस्ताक्षरकर्त्ता नहीं होने के बावजूद भारत दुनिया में सबसे अधिक शरणार्थी वाले देशों में एक है।
हालाँकि यदि भारत में शरणार्थियों के संबंध में घरेलू कानून होता, तो यह पड़ोस में किसी भी दमनकारी सरकार को उनकी आबादी को सताने और उन्हें भारत की ओर आने से रोक सकता था।
उत्तर-5:
हल करने का दृष्टिकोण
- क्षेत्र में लगातार हो रही आपदाओं के कुछ उदाहरण देते हुए परिचय दीजिये।
- हिमालयी पारिस्थितिकी के लिये उत्पन्न खतरे/नुकसान की चर्चा कीजिये।
- पारिस्थितिकी को बचाने और बार-बार होने वाली प्राकृतिक आपदाओं की घटना को कम करने के लिये उठाए जाने वाले कुछ कदमों का उल्लेख कीजिये।
- निष्कर्ष लिखिये।
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परिचय
हिमालय का परिदृश्य भूस्खलन और भूकंप के लिये अतिसंवेदनशील है। हिमालय का निर्माण भारतीय और यूरेशियाई प्लेटों के टकराने से हुआ है। भारतीय प्लेट के उत्तर दिशा की ओर गति के कारण चट्टानों पर लगातार दबाव बना रहता है, जिससे वे कमज़ोर हो जाती हैं और भूस्खलन एवं भूकंप की संभावना बढ़ जाती है।
इस परिदृश्य के साथ खड़ी ढलानों, ऊबड़-खाबड़ स्थलाकृति, उच्च भूकंपीय भेद्यता और वर्षा का मेल इस क्षेत्र को विश्व के सबसे अधिक आपदा प्रवण क्षेत्रों में से एक बनाता है।
हिमाचल प्रदेश के किन्नौर ज़िले में दक्षिण-पश्चिम मानसून से होने वाली भारी बारिश के कारण कई भूस्खलनों के दौरान पर्यटकों के वाहन पर पत्थर गिरने से नौ पर्यटकों की मौत हो गई और तीन अन्य घायल हो गए।
हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा ज़िले में भारी बारिश के कारण अचानक आई बाढ़ में तीन लोग, इमारतें और वाहन बह गए।
फरवरी 2021 में चमोली में भीषण बाढ़ से उत्तराखंड भी प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित हुआ है, जिसमें 80 से अधिक लोग मारे गए थे
प्रारूप
हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र आधुनिक समाज के विकासात्मक प्रतिमानों के परिणामस्वरूप होने होने वाले परिवर्तनों के प्रभावों और परिणामों के प्रति अतिसंवेदनशील है।
हिमालयी पारिस्थितिकी के लिये खतरा
- असंवहनीय दोहन: राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर वृहत् सड़क विस्तार परियोजना (चार धाम राजमार्ग) से लेकर सोपानी पनबिजली परियोजनाओं के निर्माण तक और कस्बों के अनियोजित विस्तार से लेकर असंवहनीय पर्यटन तक, भारतीय राज्यों ने क्षेत्र की संवेदनशील पारिस्थितिकी के संबंध में मौजूद चेतावनियों की अनदेखी की है।
- इस तरह के दृष्टिकोण ने प्रदूषण, वनों की कटाई और जल एवं अपशिष्ट प्रबंधन संकट को भी जन्म दिया है।
- विकास गतिविधियों के खतरे: वृहत् पनबिजली परियोजनाएँ (जो "हरित" ऊर्जा का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं और जीवाश्म ईंधन से प्राप्त ऊर्जा को स्वच्छ ऊर्जा से प्रतिस्थापित करती हैं) पारिस्थितिकी के कई पहलुओं को परिवर्तित कर सकती हैं और इसे बादल फटने, अचानक बाढ़ आने, भूस्खलन और भूकंप जैसी चरम घटनाओं के प्रभावों के प्रति संवेदनशील बनाती हैं।
- पहाड़ी क्षेत्रों में विकास का असंगत मॉडल आपदा को स्वयं आमंत्रित करना है, जहाँ जंगलों के विनाश और नदियों पर बाँध निर्माण जैसी कार्रवाइयों के साथ वृहत् जलविद्युत परियोजनाओं तथा बड़े पैमाने पर निर्माण गतिविधियों को आगे बढ़ाया जा रहा है।
- हिमालयी पारिस्थितिकी पर ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव:
- भंगुर स्थलाकृति और जलवायु-संवेदनशील योजना के प्रति पूर्ण उपेक्षा के भाव के कारण पारिस्थितिकी के लिये खतरा कई गुना बढ़ गया है।
- ग्लेशियर पिघल रहे हैं, जिसके परिणामस्वरूप जलराशि में अचानक हो रही वृद्धि बाढ़ का कारण बन रही है और यह स्थानीय समाज को प्रभावित करती है।
- जंगल में आग की बढ़ती घटनाओं के लिये भी हिमालयी क्षेत्र में होने वाले ग्लोबल वार्मिंग को प्रमुख कारण के रूप में देखा जा रहा है।
- वनों का कृषि भूमि में रूपांतरण और लकड़ी, चारा एवं ईंधन की लकड़ी के लिये वनों का दोहन इस क्षेत्र की जैव विविधता के समक्ष कुछ प्रमुख खतरे हैं।
पारिस्थितिकी को बचाने और बार-बार होने वाली प्राकृतिक आपदाओं की घटना को कम करने के लिये निम्नलिखित कदम उठाए जा सकते हैं:
- पूर्व चेतावनी प्रणाली: आपदा की भविष्यवाणी करने और स्थानीय आबादी एवं पर्यटकों को सचेत करने के लिये पूर्व चेतावनी एवं बेहतर मौसम पूर्वानुमान प्रणाली का होना आवश्यक है।
- क्षेत्रीय सहयोग: हिमालयी देशों के बीच एक सीमा-पारीय गठबंधन की आवश्यकता है ताकि पहाड़ों के बारे में ज्ञान साझा किया जा सके और वहाँ की पारिस्थितिकी का संरक्षण किया जा सके।
- क्षेत्र विशिष्ट सतत् योजना: सबसे महत्त्वपूर्ण यह है कि क्षेत्र की वर्तमान स्थिति की समीक्षा की जाए और एक सतत्/संवहनीय योजना तैयार की जाए जो इस संवेदनशील क्षेत्र की विशिष्ट आवश्यकताओं तथा जलवायु संकट के प्रभाव का ध्यान रखती हो।
- पर्यावरणीय पर्यटन या इको-टूरिज़्म को बढ़ावा देना: वाणिज्यिक पर्यटन के प्रतिकूल प्रभावों पर संवाद शुरू करना चाहिये और इको-टूरिज़्म को बढ़ावा देना चाहिये।
- सतत् विकास: सरकार को सतत् विकास पर केंद्रित होना चाहिये, न कि केवल उस विकास पर जो पारिस्थितिकी के विरुद्ध प्रेरित है।
- किसी भी परियोजना को लागू करने से पहले विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (DPR), पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA) और सामाजिक प्रभाव आकलन (SIA) को आवश्यक बनाया जाना चाहिये।
निष्कर्ष
लोगों और समुदायों को होने वाली हानि की वास्तविक भरपाई करना असंभव है; साथ ही प्राचीन वनों के विनाश की भरपाई लचर वनीकरण कार्यक्रमों से नहीं की जा सकती। राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर वृहत् सड़क विस्तार परियोजना से लेकर सोपानी पनबिजली परियोजनाओं के निर्माण तक और कस्बों के अनियोजित विस्तार से लेकर असंवहनीय पर्यटन तक, भारतीय राज्यों ने क्षेत्र की संवेदनशील पारिस्थितिकी के संबंध में मौजूद चेतावनियों की अनदेखी की है। समय की माँग है कि सरकार मानव जीवन सहित प्राकृतिक संपदा को संरक्षित करने में सहायता हेतु एक भिन्न दृष्टिकोण का पालन करे।
उत्तर-6:
दृष्टिकोण:
- कॉर्पोरेट प्रशासन का वर्णन कीजिये।
- भारत में कॉर्पोरेट प्रशासन से संबंधित नैतिक मुद्दों को सूचीबद्ध कीजिये।
- भारत में कॉर्पोरेट प्रशासन में सुधार के लिये उपाय सुझाइये।
- कॉर्पोरेट प्रशासन के महत्त्व को रेखांकित करते हुए निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
कॉर्पोरेट प्रशासन में अनिवार्य रूप से एक कंपनी के कई हितधारकों जैसे-शेयरधारकों, वरिष्ठ प्रबंधन अधिकारियों, ग्राहकों, अपूर्त्तिकर्त्ताओं , फाइनेंसरों, सरकार और समुदाय के हितों को संतुलित करना शामिल है।
प्रारूप:
भारत में कॉर्पोरेट प्रशासन से जुड़े नैतिकता से संबंधित मुद्दे:
- हितों का टकराव: प्रबंधकों द्वारा शेयरधारकों की परवाह किये बिना स्वयं को समृद्ध बनाने की चुनौती। उदाहरण के लिये आईसीआईसीआई बैंक की पूर्व प्रमुख चंदा कोचर का मामला जिसमें उन्होंने अपने पति को लाभ पहुँचाने के उद्देश्य से वीडियोकॉन कंपनी के लिये ऋण को स्वीकृति प्रदान की।
- कमज़ोर प्रबंधन बोर्ड: अनुभव और पृष्ठभूमि की विविधता की कमी बोर्डों के लिये कमज़ोर कारक का प्रतिनिधित्व करती है। बोर्ड सदस्यों में शेयरधारकों के शामिल होने के कारण बोर्ड की कार्यप्रणाली पर प्रश्न किये जाते हैं। IL & FS के मामले में किसी भी बोर्ड सदस्य द्वारा एक भी आपत्ति दर्ज़ नही की गई थी।
- स्वामित्व और प्रबंधन का पृथक्करण: परिवार संचालित कंपनियों के मामले में स्वामित्व और प्रबंधन का पृथक्करण भारत की कुछ शीर्ष कंपनियों सहित अधिकांश कंपनियों के समक्ष एक महत्त्वपूर्ण चुनौती बनी हुई है।
- स्वतंत्र निदेशक: स्वतंत्र निदेशकों द्वारा अक्सर पक्षपातपूर्ण तरीके से निर्णय लिये जाते हैं जो प्रमोटरों के अनैतिक कार्यों की जाँच करने में सक्षम नहीं होते हैं।
- कार्यकारी मुआवज़ा: कार्यकारी क्षतिपूर्ति एक विवादास्पद मुद्दा है, खासकर उस वक्त जब यह शेयरधारक की जवाबदेही से संबंधित होता है। कार्यकारी मुआवज़े को हितधारकों की जांँच के परीक्षण के संदर्भ में देखा जाना चाहिये।
भारत में कॉर्पोरेट प्रशासन में सुधार हेतु सुझाव
- उदय कोटक पैनल की सिफारिशों को लागू करना, जैसे:
- सूचीबद्ध संस्थाओं के बोर्ड में न्यूनतम 6 निदेशक शामिल होने चाहिये जिसमे कम- से-कम 1 स्वतंत्र महिला निदेशक का शामिल होना अनिवार्य है।
- स्वतंत्र निदेशकों की नियुक्ति में पारदर्शिता के साथ बोर्ड में उनकी अधिक सक्रिय भूमिका हो।
- ऑडिट कमेटी को 100 करोड़ रुपये से अधिक के ऋण पर ऋण/सलाह/ निवेश के उपयोग की समीक्षा करनी चाहिये।
- बोर्ड में विविधता का होना: किसी भी बोर्ड में विविधता का होना एक सकारात्मक बात है, इस संदर्भ में सभी लिंग, जातीयता, कौशल और अनुभव का उपयोग किया जा सकता है।
- जोखिम प्रबंधन हेतु मज़बूत नीतियांँ: बेहतर निर्णय लेने के लिये प्रभावी और मज़बूत ज़ोखिम प्रबंधन नीतियों को अपनाया जाना चाहिये क्योंकि यह सभी निगमों के सामने आने वाले जोखिम-व्यापार के प्रति गहरी अंतर्दृष्टि विकसित करता है।
- प्रभावी शासन अवसंरचना: नैतिक व्यवहार को निर्देशित करने वाली नीतियांँ और प्रक्रियाएंँ किसी भी संगठनात्मक व्यवहार का आधार होनी चाहिये इसके लिये बोर्ड और प्रबंधन के बीच ज़िम्मेदारी का विभाजन सुनिश्चित किया जाना चाहिये।
- बोर्ड के प्रदर्शन का मूल्यांकन: बोर्ड को अपने कार्यों के मूल्यांकन के दौरान उज़ागर कमज़ोरियों को ध्यान में रखते हुए, अपनी शासन प्रक्रियाओं को विस्तारित करने पर विचार करना चाहिये।
- संचार: बोर्ड के साथ शेयरधारक के संपर्क को स्थापित करना संचार की प्रमुख कुंजी है। इसमें व्यक्ति का संपर्क शेयरधारक से होना आवश्यक है जिसके साथ शेयरधारक किसी भी मुद्दे पर चर्चा कर सकने में सक्षम हो।
निष्कर्ष:
भारत जैसी बढ़ती अर्थव्यवस्था में घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय स्रोतों से निवेश आकर्षित करने के लिये कॉर्पोरेट प्रशासन महत्त्वपूर्ण है।
उत्तर-7:
हल करने का दृष्टिकोण
- नैतिकता और कानून के बीच उदाहरणों के साथ अंतर स्पष्ट कीजिये। बताइये कि लोकसेवकों के लिये कानूनों की नैतिक व्याख्या क्यों महत्त्वपूर्ण है।
- दूसरे भाग में प्रासंगिक उदाहरण देते हुए किसी भी कार्रवाई की नैतिक जाँच की शर्तों की व्याख्या कीजिये।
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A: यह ज़रूरी नहीं है कि सभी कानून हमेशा नैतिक ही हों। कानून से अभिप्राय है राज्य द्वारा अनुमत। उदाहरण के लिये, मृत्युदंड, गर्भपात आदि। इसलिये नैतिकता और कानून हमेशा समान नहीं होते हैं।
- ऐसी कार्रवाई जो कानूनी नज़रिए से गलत किन्तु नैतिक दृष्टि से सही है। उदाहरण के लिये,
- 20वीं सदी के भारत में समाज सुधारकों ने नागरिकों से आग्रह किया कि वे जिन कानूनों को अनैतिक या अन्यायपूर्ण मानते हैं, उनका विरोध करें। शांतिपूर्ण नागरिक अवज्ञा राजनीतिक दृष्टिकोण को व्यक्त करने का एक नैतिक तरीका था।
- गर्भपात को कानूनी रूप से गलत माना जा सकता है किन्तु किसी बलात्कार पीड़िता के लिये इसे नैतिक आधार पर अनुमति दी जा सकती है।
- इसी प्रकार कुछ कार्रवाइयाँ नैतिक रूप से गलत किन्तु कानून की दृष्टि में सही हो सकती हैं। जैसे कि,
- पहले अमेरिका में दास व्यापार कानूनी था, लेकिन यह एक अनैतिक कार्य है।
- जबकि स्लम बस्तियों को हटाना कानूनी रूप से सही है किन्तु आवास और आश्रय का मानव अधिकार पहले आता है तथा उचित वैकल्पिक व्यवस्था किये बिना ऐसा करना अनैतिक है।
- हमारे जैसे मिश्रित-सुसंस्कृत समाज में लोकसेवकों को अपने कर्त्तव्यों का प्रभावी ढंग से निर्वहन करने और आम आदमी की भलाई के लिये कानूनी तथा नैतिक दोनों कारकों से युक्त एक संतुलित रुख अपनाने की आवश्यकता है।
- एक नौकरशाह का कर्त्तव्य गत्यात्मक (डायनैमिक) है, जिसे कानूनों की व्याख्या की आवश्यकता पड़ती रहती है। अतः नैतिक संवेदनशीलता को विकसित करने की आवश्यकता है जो किसी स्थिति के उन मुख्य पहलुओं की पहचान कर सके जिसमें सार्वजनिक समाज का 'भला' या 'बुरा' शामिल है।
B: एक व्यक्ति अलग-अलग स्थितियों में अलग- अलग तरीके से व्यवहार कर सकता है। हालाँकि किसी भी कार्रवाई की नैतिक रूप से जाँच तभी की जा सकती है, जब वह कुछ शर्तों का पालन करे, जैसे-
- यदि यह स्वतंत्र इच्छा से किया जाता है: यदि किसी व्यक्ति के पास कई विकल्प हैं और उसे उन विकल्पों में से किसी एक को चुनने की स्वतंत्रता है, तो ही हम किसी कार्रवाई के विषय में नैतिक आधार पर बहस कर सकते हैं। उदाहरण के लिये:
- हाथी खेतों में फसलों को नष्ट करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप मानव-पशु संघर्ष होता है। प्रकृति ने हाथियों को इस तरह से कार्य करने के लिये डिज़ाइन किया है। इसलिये हाथी की कार्रवाई को नैतिक अथवा अनैतिक दोनों माना जा सकता है। उसके लिये उसे दंडित नहीं किया जाना चाहिये।
- परिणामों का पूर्वाभास: जब तक हमें किसी कृत्य के परिणाम का पता नहीं होगा तब तक हम स्वतंत्र इच्छा का प्रयोग नैतिक /अनैतिक तरीके से नहीं कर सकते। उदाहरण के लिये:
- वर्ष 2018 में पंजाब ट्रेन दुर्घटना में चालक द्वारा ट्रेन को नहीं रोकने की वज़ह से दशहरा के दौरान रेलवे पटरियों के आसपास खड़े 60 से अधिक लोगों की जान चली थी। इसकी नैतिक रूप से जाँच नहीं की जा सकती थी क्योंकि ट्रेन चालक को हरी झंडी दी गई थी और उसे ट्रैक पर खड़े लोगों की जानकारी नहीं थी
- स्वैच्छिक कार्रवाई: किसी कार्रवाई को केवल तभी नैतिक/अनैतिक कहा जा सकता है जब वह स्वेच्छा से बिना किसी बाहरी दबाव या बल के की गई हो। उदाहरण के लिये:
- किसी मजबूरी में अथवा बलपूर्वक सड़कों पर भीख मांगने वाले बच्चों की कार्रवाई को अनैतिक नहीं माना जाना चाहिये क्योंकि वे स्वेच्छा से ऐसा नहीं कर रहे हैं। हालाँकि भीख मांगने की प्रथा अनैतिक है।
- डर /हिंसा: डर या खुद को चोट पहुँचाने के लिये की गई किसी भी कार्रवाई की नैतिक रूप से जाँच नहीं की जा सकती। यदि कोई आपको मारने/लूटने की कोशिश करता है और आप उसे आत्मरक्षा में मारते /घायल करते हैं, तो आप अपने जीवन के प्रति डर के तहत ऐसा करते हैं। इसलिये यह कानूनी जाँच के अधीन तो है, लेकिन नैतिक जाँच के नहीं।
- आदत/स्वभाव: वह कार्य जो किसी की अपनी आदत के परिणाम के रूप में किया जाता है, नैतिक हो भी सकता है और नहीं भी हो सकता। उदाहरण के लिये:
- बचपन से ही जापानियों को किसी अन्य मनुष्य के प्रति हुई मामूली गलती या असुविधा के लिये भी क्षमा याचना करने का प्रशिक्षण दिया जाता है। किन्तु यदि जापान में काम करने वाला एक अमेरिकी कर्मचारी समान रूप से व्यवहार नहीं करता है तो इसे 'अनैतिक' नहीं कहा जा सकता, क्योंकि इस प्रकार का व्यवहार अमेरिकी आदतों में शामिल नहीं है।
इस प्रकार किसी व्यक्ति के कार्यों के अनैतिक या अवैध होने के बावजूद भी उसे सदैव अनैतिक नहीं माना जा सकता।
उत्तर-8:
हल करने का दृष्टिकोण
- दिये गए पदों को परिभाषित कीजिये।
- शब्दों का अर्थ समझाने के लिये एक या दो उदाहरण दीजिये।
- सार्वजनिक सेवा के साथ शब्द की प्रासंगिकता बताईये।
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परोपकारिता का सिद्धांत
- परोपकारिता या परहितवाद वह सिद्धांत है जिसके अनुसार व्यक्ति को सदैव दूसरों के हितों को अपने स्वयं के हित से ऊपर रखना चाहिये। परोपकारिता को अक्सर नैतिकता के केंद्रस्थ माना जाता है। इसमें व्यक्ति अपनी खुशी को दूसरों की खुशियों में खोजता है और दूसरों के हित में सदैव समर्पित रहता है। उदाहरण के लिये तेलंगाना राज्य के खम्मम ज़िले के एक छोटे से गाँव के दरिपल्ली रमैया वर्षों से अपनी जेब में बीज और साइकिल पर पौधे रखकर ज़िले का लंबा सफर तय करते हैं और जहाँ कहीं भी खाली भूमि दिखती है, वहीं पौधे लगा देते हैं। उन्होंने हज़ारों पेड़ों से अपने इलाके को हरा-भरा कर दिया है। वे ऐसा पूरे समाज व भविष्य की पीढ़ियों के लिये निःस्वार्थ भाव से कर रहे हैं।
- एक तरह से उपयोगितावाद का परिणाम परोपकारिता हो सकता है। उपयोगितावाद ऐसे कृत्यों की सिफारिश करता है जो समाज की भलाई को अधिकतम करते हैं। एक उपयोगितावादी किसी-न-किसी रूप में परोपकारिता का अभ्यास करता है।
विनम्रता
- विनम्रता अच्छे व्यवहार या शिष्टाचार जैसे सद्गुण का व्यावहारिक अनुप्रयोग है। यह सांस्कृतिक रूप से समाज से जुड़ी होती है।
- इसका मतलब है कि हमें खुद को दूसरों की तुलना में ऊँचे पायदान पर नहीं रखना चाहिये, भले ही हम प्रतिभाओं और उपलब्धियों में उनसे कहीं अधिक हों।
- अमीर और शक्तिशाली होने पर भी गरीब तथा कमज़ोर पर श्रेष्ठता की भावना नहीं रखनी चाहिये।
- धार्मिक दृष्टि से मनुष्य को चाहिये कि वह अपनी योग्यता का उपयोग ईश्वर तथा अन्य मनुष्यों के प्रति अपने कर्त्तव्यों का निर्वहन करने में करे। तथ्य यह है कि यदि किसी के पास दूसरों की तुलना में अधिक प्रतिभा और साधन हैं तो यह दर्शाता है कि उनकी दूसरे व्यक्तियों के प्रति अधिक ज़िम्मेदारियाँ हैं।
- हम जो कर सकते थे, उसके संबंध में हमने जो किया है, उसके बारे में सोचना गर्व और अहंकार के सुधार के रूप में कार्य करता है।
- विनम्रता राजनीतिक नेताओं और प्रशासकों को विनम्र तरीके से आम लोगों से संपर्क करने में सक्षम बनाएगी। जब तक लोक सेवक अपने अंदर विनम्रता का गुण विकसित नहीं करेंगे, वे आम लोगों की समस्याओं के प्रति चिंतित नहीं हो पाएंगे।
- लोक सेवकों को लोगों की सेवा को ही अपना कर्त्तव्य समझना चाहिये। उन्हें खुद को शासक या मालिक नहीं मानना चाहिये।
- सार्वजनिक जीवन में व्यक्ति के विनम्र व्यवहार का अत्यधिक महत्त्व है। विनम्रता व्यक्ति को अपने सहकर्मियों (वरिष्ठ, कनिष्ठ एवं समकक्ष) तथा अन्य लोगों के बीच बेहतर सांमजस्यपूर्ण संबंध स्थापित करने में सहायक होती है।
राजनीति और नैतिकता
- 'राजनीतिक' शब्द उन सभी प्रथाओं और संस्थानों को संदर्भित करता है जो सरकार से संबंधित हैं। सत्ता दूसरों से वह करवाने की क्षमता है जो आप चाहते हैं। सत्ता कई रूप ले सकती है, पाशविक बल से लेकर सूक्ष्म अनुनय तक।
- पूर्व राष्ट्रपति मुखर्जी ने कहा है कि नैतिकता के बिना राजनीति, राजनीति नहीं है।
- सत्ता हमेशा भ्रष्टाचार, दुर्व्यवहार और उत्पीड़न की ओर ले जाती है और ऐसे मुद्दों पर लगाम लगाने के लिये नैतिकता की आवश्यकता होती है।
- यह उल्लेखनीय है कि लोकतंत्र संस्थागत व्यवस्थाओं के माध्यम से सत्ता के दुरुपयोग के संभावित खतरों को नियंत्रित करता है। यह आशा की जाती है कि राजनेता प्रबुद्ध होंगे और जनहित में आगे बढ़ेंगे। हालाँकि कुछ लोगों का मानना है कि इस तरह के हृदय परिवर्तन से शक्ति के प्रयोग और नैतिकता के अभ्यास के बीच तनाव दूर हो जाएगा। इसका उत्तर सत्ता के बँटवारे और उस पर अंकुश लगाने में खोजना होगा।
उत्तर-9:
हल करने का दृष्टिकोण
- लोकतंत्र के लिये स्वतंत्र मीडिया के महत्त्व को संक्षेप में बताइये।
- भ्रष्टाचार की रोकथाम, निगरानी और नियंत्रण में इसकी महत्त्वपूर्ण भूमिका का विश्लेषण (गुण और दोषों के साथ) कीजिये।
- उपयुक्त निष्कर्ष लिखिये।
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परिचय
एक स्वतंत्र मीडिया सूचना के प्रसारक और लोगों तथा सरकार के बीच संचार के एक चैनल के रूप में कार्य करता है। नीति प्रक्रिया में इसकी भूमिका काबिले तारीफ है। मीडिया समाज के सामाजिक-सांस्कृतिक और राजनीतिक-आर्थिक पहलुओं से संबंधित जानकारी का खजाना प्रदान करके लोगों को जागरूक करता है।
लोकतंत्र में इसे लोगों को अधिकारों के बारे में शिक्षित करने तथा समाज से संबंधित विभिन्न गंभीर मुद्दों और समस्याओं पर जागरूकता पैदा करने का काम सौंपा गया है। यह समाज के हाशिये के वर्गों को मुख्यधारा में लाने में मदद करता है।
प्रारूप
भ्रष्टाचार की रोकथाम, निगरानी और नियंत्रण में मीडिया की महत्त्वपूर्ण भूमिका:
- भ्रष्टाचार को उजागर करता है: मीडिया जनता को भ्रष्टाचार के बारे में सूचित और शिक्षित कर सकता है; सरकारी, निजी क्षेत्र एवं नागरिक समाज संगठनों में भ्रष्टाचार का पर्दाफाश कर सकता है तथा भ्रष्टाचार के खिलाफ कोतवाली करते हुए आचार संहिता की निगरानी में मदद कर सकता है। मीडिया वाद-विवाद, खोजी पत्रकारिता, आरटीआई, स्टिंग ऑपरेशन, ओपिनियन पोल आयोजित करके भ्रष्टाचार से लड़ता है।
- पारदर्शिता और जवाबदेहिता: मुक्त मीडिया की मदद से सूचना का प्रसार संभव है और सार्वजनिक क्षेत्र में पारदर्शिता हासिल की जा सकती है।
- मीडिया द्वारा खोजी रिपोर्टिंग या भ्रष्टाचार की घटनाओं की रिपोर्टिंग भ्रष्टाचार पर जानकारी का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत हो सकता है। इससे अधिकारियों द्वारा ऐसी रिपोर्टों का तुरंत जवाब देने, सही तथ्यों से अवगत कराने, दोषियों को पकड़ने के लिए कदम उठाने और प्रेस तथा जनता को इस तरह की कार्रवाई की प्रगति के बारे में समय-समय पर सूचित करने की कार्रवाई में तेज़ी आती है।
- भारत की आबादी का एक बड़ा हिस्सा अज्ञानी और पिछड़ा है, यह स्वतंत्र मीडिया ही है जो उन्हें भ्रष्टाचार के बारे में जानकारी प्रदान करता है और उनका पिछड़ापन दूर करता है ताकि वे प्रबुद्ध भारत का हिस्सा बन सकें।
- मीडिया सरकार की महत्त्वपूर्ण नीतियों और कार्यक्रमों पर नज़र रखता है तथा अद्यतन करता है एवं उनके प्रभाव का आलोचनात्मक विश्लेषण करता है, जो एक स्वतंत्र और तटस्थ मीडिया के माध्यम से ही संभव है।
- मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ भी कहा जाता है क्योंकि यह शासन और शासित के बीच एक महत्त्वपूर्ण कड़ी के रूप में कार्य करके सभी स्तरों पर शासन में भागीदारी सुनिश्चित करता है।
- जनसाधारण को सूचना प्रस्तुत करते समय मीडिया से नैतिक मानकों को बनाए रखने की अपेक्षा की जाती है क्योंकि उस्की रिपोर्टिंग का तरीका प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जनता के जीवन को प्रभावित करता है। हालाँकि मीडिया की नैतिकता से जुड़े कुछ मुद्दे हैं जो इस प्रकार हैं-
- सनसनीखेज और तुच्छीकरण ने मीडिया नैतिकता को पीछे छोड़ दिया है।
- कभी-कभी प्रतिस्पर्द्धा के दबाव में आरोपों और सूचनाओं को सार्वजनिक करने से पहले सत्यापित नहीं किया जाता है।
- पत्रकारों को दिये जाने वाले प्रशिक्षण का अभाव चिंता का एक और कारण है, क्योंकि डिग्री के साथ-साथ कौशल भी मीडिया प्रैक्टिशनरों के व्यक्तित्व विकास में योगदान देता है।
- मीडिया संरचना और स्वामित्व में परिवर्तन, मीडिया का व्यावसायीकरण कई कारकों में से एक है जिसके कारण नैतिक मानकों में गिरावट आई है क्योंकि पेड न्यूज़ जैसी अनैतिक प्रथा पर सवाल नहीं उठाया जाता है।
- मीडिया चिंता के मुद्दों के बजाय तुच्छ मुद्दों पर ध्यान केंद्रित कर रहा है।
- समुदायों को विभाजित करना और उनके बीच गलतफहमी पैदा करना तथा तर्कसंगत एवं वैज्ञानिक सोच के प्रचार के बजाय ज्योतिष और अलौकिक जैसे प्रगतिविरोधी प्रोग्रामों का संचालन करना।
- मीडिया संबंधी नैतिकता भी संदिग्ध है, जिसे पेड न्यूज़, राष्ट्रीय सुरक्षा पर संवेदनशील जानकारी का खुलासा, बलात्कार पीड़ितों के व्यक्तिगत विवरण का खुलासा आदि मामलों द्वारा देखा जा सकता है।
निष्कर्ष
मीडिया घरानों को मीडिया नैतिकता का पालन करने की आवश्यकता है।
इस प्रकार महात्मा गांधी के शब्दों में: "पत्रकारिता का एकमात्र उद्देश्य सेवा होना चाहिये। समाचार पत्र प्रेस एक महान शक्ति है; लेकिन जिस तरह पानी की एक अनियंत्रित धारा पूरे देश को डुबा देती है और फसलों को तबाह कर देती है, वैसे ही एक अनियंत्रित कलम अत्यंत विनाश कर सकती है। यदि नियंत्रण बाहर से है, तो यह नियंत्रण के अभाव से अधिक ज़हरीला साबित होता है। यह तभी लाभदायक हो सकता है जब इसे भीतर से प्रयोग किया जाए।"
उत्तर-10:
हल करने का दृष्टिकोण:
- शामिल प्रमुख हितधारकों को सूचीबद्ध कीजिये।
- इस मामले में शामिल विभिन्न मुद्दों का क्रमवार विश्लेषण कीजिए।
- नक्सलियों द्वारा गलत सूचनाओं के प्रसार की पृष्ठभूमि में लोगों की धारणा को बदलने के लिये उचित सुझाव दीजिए।
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प्रस्तुत ‘केस स्टडी’ में विभिन्न हितधारक निम्नलिखित हैं-
1. गाँववाले: रक्ताल्पता (एनीमिया) से पीड़ित व्यक्ति, गर्भवती महिलाएँ एवं नक्सलियों द्वारा गुमराह सामान्य ग्रामीण जनता।
2. नक्सली: नक्सली अपने लाभ के लिये ग्रामीणों के बीच विद्यमान गलत धारणाओं का दुरुपयोग कर रहे हैं और सरकार के लिये जनता तक पहुँचना मुश्किल बना रहे हैं।
3. ज़िला प्रशासन: ज़िला प्रशासन के पास हल करने के लिये विभिन्न समस्याएँ हैं, जिसके चलते वह ग्रामीण समुदाय में व्याप्त भ्रामक सूचनाओं को दूर करने के लिये पर्याप्त ध्यान नहीं दे पा रहा है।
भारत में विकास गतिविधियाँ कई कारकों से नकारात्मक रूप से प्रभावित हैं। इन कारकों में गरीबी, बेरोज़गारी, अशिक्षा व कुपोषण आदि प्रमुख हैं। नक्सलवाद इस तरह की समस्याओं के लिये ईंधन का काम करता है। उपरोक्त ‘केस स्टडी’ नक्सल प्रभावित क्षेत्र में व्याप्त विविध समस्याओं से संबंधित है। इस ‘केस स्टडी में’ ‘फोर्टीफाइड चावल’ व ‘आयरन की गोलियों’ के प्रयोग को लेकर स्थानीय जनता में पैली भ्रामक धारणाओं को दूर करना ज़िला प्रशासन के लिये चुनौतीपूर्ण कार्य बना हुआ है। नक्सलवाद से प्रभावित क्षेत्र होने के कारण ज़िला प्रशासन के लिये ग्रामीणों की सोच में बदलाव का कार्य और भी कठिन साबित हो रहा है।
इस केस स्टडी में शामिल विविध मुद्दे निम्नलिखित हैं-
- फोर्टीफाइड चावल के प्लास्टिक का चावल होने की भ्रामक धारणा: गाँववासी एनीमिया से पीड़ित हैं जिसे दूर करने के लिये उन्हें फोर्टीफाइड चावल के रूप में पूरक पोषाहार उपलब्ध कराया जा रहा है, परंतु उन्होंने इसे प्लास्टिक से बना होने की बात कहकर लेने से इंकार कर दिया है।
- आयरन की गोलियों के प्रयोग से गर्भवती महिलाओं में प्रसव संबंधी जटिलताएँ पैदा करने की भ्रामक धारणा: ग्रामीण जनता में एनीमिया की समस्या को दूर करने के लिये आयरन की गोलियों के रूप में उपलब्ध कराए गए वैकल्पिक समाधान के संदर्भ में यह भ्रामक धारणा बैठ गई है कि ये गोलियाँ गर्भस्थ शिशुओं के वज़न में वृद्धि करती हैं, जिससे जन्म के समय स्वास्थ्य संबंधी जटिलताएँ उत्पन्न हो सकती हैं, अत: ग्रामीणों ने इसे भी अपनाने से इनकार कर दिया है।
- नक्सलियों द्वारा ग्रामीणों में पैली भ्रामक धारणाओं का अपने स्वार्थ के लिये दुरुपयोग करना: वामपंथी विचारधारा और सामाजिक दबाव के माध्यम से नक्सली स्थानीय जनता को गुमराह कर रहे हैं।
- नक्सलियों द्वारा गलत सूचनाएँ फैलाने की पृष्ठभूमि में लोगों की धारणा बदलने का प्रयास:
- ज़िला प्रशासन को ग्रामीण जनता तक सही सूचनाओं को पहुँचाने का हर संभव प्रयास करना चाहिये। फोर्टीफाइड चावल और आयरन की गोलियों के संदर्भ में ग्रामीणों को सही जानकारी देने के लिये निम्न कदम उठाए जा सकते हैं-
- जनजागरूकता अभियान चलाना: इसके लिये संबंधित क्षेत्र में फोर्टीफाइड चावल व आयरन की गोलियों से होने वाले लाभों को बताने के लिये जनजागरूकता कैंपों का आयोजन किया जा सकता है। इस संदर्भ में स्थानीय भाषा में सार्वजनिक रूप से वीडियो लेक्चर देकर अथवा सोशल मीडिया आदि के माध्यम से दिए जा सकते हैं। इस उद्देश्य के लिये नुक्कड़ नाटकों का भी सहारा लिया जा सकता है।
- सामाजिक अनुनयन: सामाजिक अनुनयन को लोगों के विश्वास एवं धारणाओं में बदलाव के एक उपकरण के रूप में प्रयोग करना।
- पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप: लक्षित समुदाय में सरकार की नीतियों का प्रचार-प्रसार करने के लिये गैर-सरकारी संगठनों और विशेषज्ञ निजी संस्थाओं का सहयोग लेना, जैसे-राष्ट्रीय पोषण मिशन के संदर्भ में देखा जा सकता है।
- विद्यार्थियों को प्रशिक्षित करना: क्षेत्र-विशेष के विद्यालयों में विद्यार्थियों को फोर्टीफाइड चावल और आयरन की गोलियों से होने वाले लाभों के बारे में शिक्षा देना ताकि वे अपने स्वयं के परिवारों में फोर्टीफाइड चावल और आयरन की गोलियों के प्रयोग के संदर्भ में व्यवहारिक परिवर्तन ला सकें।
- विश्वास बहाली तंत्र का निर्माण: उपरोक्त संदर्भ में यह माना जा सकता है कि स्थानीय समुदाय और प्रशासन के मध्य विश्वास की कमी है। अत: निरंतर संवाद एवं संपर्क के माध्यम से प्रशासन को विश्वास बहाली के उपाय करने चाहिये।
- प्रशासन को क्षेत्र में नक्सली समस्या के समाधान का प्रयास करना चाहिये: इसके लिये पुलिस बल का आधुनिकीकरण, भूमि चकबंदी कानूनों का न्यायपूर्ण प्रवर्तन एवं नक्सल प्रभावित क्षेत्र में सरकार द्वारा प्रदान की गई धनराशि का अधिकतम लाभ के लिये प्रयोग आदि उपाय अपनाए जा सकते हैं।
- इसके अतिरिक्त स्थानीय समुदाय के उन लोगों को जो फोर्टीफाइड चावल और आयरन की गोलियों के उपभोग के लिये तैयार हो जाते हैं तो कुछ अतिरिक्त खाद्यान्न या मौद्रिक लाभ प्रदान किया जा सकता है। इस प्रकार समस्या का अल्पकालीन समाधान किया जा सकता है।
उपरोक्त उपायों के अलावा स्थानीय पंचायतों, आंगनवाड़ियों, स्वयं सहायता समूहों और आदिवासी नेताओं का सहयोग स्थानीय समुदाय के लोगों को सही दिशा में ले जाने के लिये लिया जा सकता है ताकि वे लंबे समय के लिये ऐसी गलत धारणाओं से मुक्त होकर व्यक्तिगत एवं सामूहिक रूप से अपना विकास करने में स्वयं सक्षम हो सकें।