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  • 17 Nov 2021 सामान्य अध्ययन पेपर 2 सामाजिक न्याय

    प्रश्न. भारत में दिव्यांग व्यक्तियों को किन-किन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है? दिव्यांग व्यक्तियों के कल्याण के लिये सरकार द्वारा किये गए उपायों पर प्रकाश डालिये। (250 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • दिव्यांग व्यक्तियों (Persons With Disabilities–PwDs) के प्रति भेदभाव और उनकी वंचना का संक्षेप में उल्लेख कीजिये।
    • इस समुदाय के सामने विद्यमान विभिन्न चुनौतियों का संक्षेप में वर्णन कीजिये।
    • उनकी सहायता और सहयोग के लिये किये गए सरकारी उपायों का उल्लेख कीजिये।
    • संविधान के आदर्शों और समाज में अपेक्षित व्यवहार परिवर्तन के साथ उत्तर समाप्त कीजिये।

    दिव्यांग भारत के सबसे बड़े अल्पसंख्यक समूहों में से एक हैं जिन्होंने लंबे समय से उपेक्षा, वंचना, अलगाव और बहिर्वेशन का सामना किया है। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में दिव्यांगों की संख्या 268.14 लाख है जो कुल आबादी का 2.21 प्रतिशत है।

    भारत में दिव्यांग व्यक्तियों को असंख्य चुनौतियों का सामना करना पड़ता है जो उन्हें पूर्ण नागरिक, राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और विकासात्मक अधिकारों का उपभोग करने से बाधित करते हैं-

    • स्वतंत्रता की अभाव: दिव्यांग लोगों को स्वयं की देखभाल में कठिनाइयाँ होती हैं, उनमें से कई आर्थिक रूप से अपने परिवार के सदस्यों या रिश्तेदारों पर निर्भर होते हैं जिससे उनकी स्वायत्तता कम होती है।
    • परिवहन: दिव्यांग लोगों को सार्वजनिक परिवहन के उपयोग में कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है जबकि उनमें आने-जाने की शारीरिक क्षमता की कमी होती है और वे परिवहन के निजी साधनों के उपयोग का खर्च वहन नहीं कर पाते।
    • सुगम्यता: सार्वजनिक भवनों, कार्यालयों, स्कूलों और अस्पतालों में भौतिक अवरोध अभी भी मौजूद हैं।
    • संचार और सामाजिक संबंध: दिव्यांगों को सामाजिक संबंधों में कठिनाइयाँ होती हैं और वे आमतौर पर छोटे सामाजिक नेटवर्क से जुड़े होते हैं। ऐसा मुख्य रूप से भेदभाव और भ्रामक धारणाओं के कारण होता है।
    • आत्म-सम्मान: उनकी ‘दिव्यांगता’ को प्राय: उनकी ‘अक्षमता’ के रूप में देखा जाता है तथा सामान्यत: लोग उनकी क्षमताओं के बारे में गलत धारणाएँ रखते हैं। यह अंतत: दिव्यांगों में आत्मसम्मान की कमी का कारण बनता है।

    दिव्यांग व्यक्तियों के समावेशी विकास के लिये योजनाएँ:

    • दिव्यांग व्यक्तियों की सहायता योजना/एडिप योजना (Assistance to Disabled Persons Scheme–ADIP): एडिप योजना का मुख्य उद्देश्य टिकाऊ और वैज्ञानिक रूप से निर्मित मानक सहायक वस्तुओं एवं उपकरणों की खरीद में ज़रूरतमंद दिव्यांग व्यक्तियों की सहायता करना है जो दिव्यांगता के प्रभावों को कम करके उनके शारीरिक, सामाजिक और मनोवैज्ञानिक पुनर्वास को बढ़ावा दे सकते हैं।
    • माध्यमिक स्तर पर नि:शक्तजन समावेशी शिक्षा योजना (Inclusive Education for the Disabled at Secondary Stage–IEDSS): यह योजना सरकारी, स्थानीय निकाय और सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों में कक्षा 9 से कक्षा 12 तक की माध्यमिक शिक्षा पूरी करने के लिये 14 वर्ष या उससे अधिक उम्र के दिव्यांग बच्चों की सहायता करती है।
    • सुगम्य भारत अभियान (Accessible India Campaign): इस अभियान का उद्देश्य सुगम्य भौतिक वातावरण, परिवहन, सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी (ICT) पारिस्थितिकी तंत्र का विकास कर दिव्यांग व्यक्तियों की सार्वभौमिक अभिगम्यता को बेहतर बनाना है। यह अभियान दिव्यांगता के सामाजिक मॉडल के सिद्धांतों पर आधारित है जहाँ माना जाता है कि दिव्यांगता समाज के संगठन के तरीके से उत्पन्न होती है न कि व्यक्ति की सीमाओं और दुर्बलताओं के कारण।
    • दीनदयाल दिव्यांग पुनर्वास योजना (Deendayal Disabled Rehabilitation Scheme–DDRS): दिव्यांग व्यक्तियों के पुनर्वास से संबंधित परियोजनाओं के लिये गैर-सरकारी संगठनों को वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है।
    • दिव्यांग व्यक्ति अधिकार अधिनियम के कार्यान्वयन के लिये योजना (Scheme for Implementation of Rights of Persons with Disabilities Act–SIPDA): यह एक व्यापक योजना है जिसके तहत कौशल विकास और बाधा मुक्त वातावरण के निर्माण के लिये वित्तीय सहायता प्रदान दी जाती है।
    • दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016: दिव्यांगता पर इस ऐतिहासिक अधिनियम ने दिव्यांगता सूची की संख्या को 7 से बढ़ाकर 21 कर दिया। इस अधिनियम ने दिव्यांग लोगों के लिये आरक्षण सीमा में भी वृद्धि की जिसे सरकारी नौकरियों में 3% से बढ़ाकर 4% और उच्च शिक्षा संस्थानों में 3% से बढ़ाकर 5% कर दिया गया है।

    भारत का संविधान भारत के प्रत्येक वैध नागरिक के लिये समान रूप से लागू होता है चाहे वे सामान्य हों या किसी भी तरह से नि:शक्त (शारीरिक या मानसिक रूप से) हों। यह न्याय का अधिकार, अवसर की समानता का अधिकार प्रदान करता है। हमें दिव्यांग व्यक्तियों के कल्याण के लिये एक दान-आधारित या दयापूर्ण दृष्टिकोण से अधिकार-आधारित दृष्टिकोण की ओर रूपांतरण की आवश्यकता है।

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