खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मूल्यवर्द्धन करते हुए किसानों को उपभोक्ताओं से जोड़ता है। चर्चा करें कि भारत में इस क्षेत्र को प्रोत्साहन देने की आवश्यकता क्यों है? सरकार ने इस संबंध में क्या कदम उठाएँ हैं? (250 शब्द)
27 Nov 2021 | सामान्य अध्ययन पेपर 3 | अर्थव्यवस्था
दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- भारत में खाद्य प्रसंस्करण उद्योग की स्थिति पर टिप्पणी कीजिये।
- इसके प्रचार के कारणों की चर्चा करते हुए सम्बंधित चुनौतियों को भी रेखांकित कीजिये।
- इस संदर्भ में सरकार द्वारा उठाए गए कदमों की चर्चा कीजिये।
- निष्कर्ष लिखिये।
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खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र कृषि में लगभग 11 प्रतिशत और विनिर्माण मूल्यवर्द्धन में 9 प्रतिशत का योगदान देता है। इसके साथ ही यह क्षेत्र संगठित क्षेत्र में 12.8 एवं असंगठित क्षेत्र में 13.7 प्रतिशत कार्यबल को रोज़गार देता है। विश्व में कृषि उत्पादों के सबसे बड़े उत्पादकों में से एक होने के बावजूद, भारत वैश्विक खाद्य प्रसंस्करण मूल्य शृंखलाओं (Food processing value chains) में निचले स्थान पर है।
- प्रोत्साहन की आवश्यकता:
- कृषि योग्य भूमि: कृषि योग्य भूमि के संदर्भ में भारत विश्व में दूसरे स्थान पर आता है और देश में कृषि जलवायु क्षेत्रों में विविधता है एवं कृषि उत्पादों की वृहद् क्षेत्र में खेती करने की क्षमता है। इस अनुकूल स्थिति का लाभ विश्व हेतु एक अग्रणी खाद्य आपूर्तिकर्त्ता होने के लिये उठाया जा सकता है।
- व्यस्त जीवनशैली के अनुरूप: जनसांख्यिकीय परिवर्तन, बढ़ती आय और आय वितरण के साथ उच्च गुणवत्ता और सुविधाजनक उत्पादों की ओर बढ़ते कदम वृहद् संभावनाएँ उत्पन्न करते हैं। भोजन पकाने का समय नहीं होने से, व्यस्त उपभोक्ता के लिये आरटीई (रेडी टू इट) और आरटीएच (रेडी टू हीट) खाद्य पदार्थ उपयोग में आते हैं।
- निर्यात को बढ़ावा देने के लिये खाद्य प्रसंस्करण: कृषि निर्यात का भारत की जीडीपी में हिस्सा विश्व के अन्य देशों के सापेक्ष कम (सिर्फ 2 प्रतिशत) है। यह अतिरिक्त उत्पादन का दक्षतापूर्वक उपयोग करने एवं खाद्य अपव्यय को कम करने का अवसर प्रदान करता है।
- श्रमशक्ति और रोज़गार: सस्ते श्रम के साथ-साथ भारत के पास अनुसंधान में कुशल श्रमशक्ति का एक विशाल कोष है। कृषि विकास दर की तुलना में विकास की उच्च दर इसके निम्न मूल, अधिशेष की बढ़ी हुई उपयोज्यता, बदलती जीवनशैली और उच्चतम प्रयोज्य आय का संकेत है।
- निर्यात: भारतीय खाद्य ब्रांड और एफएमसीजी शेयर अब अमेरिका और यूरोप के खुदरा शृंखलाओं में प्राइम शेल्फ-स्पेस ढूंढ रहे हैं। स्वास्थ्य और सुविधाजनक खाद्य पदार्थों के साथ नेस्ले, एचयूएल और आईटीकेयर अपने उत्पाद पोर्टफोलियो में वृद्धि करते हैं एवं रिलायंस और भारती ने भी कृषि उत्पाद और खाद्य खुदरा उद्यमों में प्रवेश किया है।
- प्रत्यक्ष विदेशी निवेश: सीआईआई का अनुमान है कि इन क्षेत्रों में अरबों का निवेश आकर्षित करने की क्षमता है और इससे 9,000,000 व्यक्ति प्रति दिवस का रोज़गार भी पैदा होता है।
भारत में खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में सुधार के लिये भारत सरकार द्वारा की गई कुछ प्रमुख पहलें इस प्रकार हैं:
- खाद्य उत्पादों के विपणन में 100 प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई)।
- 8,000 करोड़ रुपए (केंद्रीय बजट 2017-18) मूल्य का डेयरी प्रोसेसिंग इन्फ्रा फंड स्थापित करना।
- भारत में खाद्य परीक्षण बुनियादी ढाँचे (62 नई मोबाइल परीक्षण प्रयोगशालाओं) को मज़बूत करने के लिये एफएसएसएआई (FSSAI) की उपस्थिति।
- आम आदमी हेतु खाद्य सुरक्षा हासिल करने के लिये आईसीएफएनआर (ICFNR) द्वारा उर्वरक में अनुसंधान के लिये अंतर्राष्ट्रीय सर्वोत्तम मानकों को अपनाना।
- राष्ट्रीय खाद्य प्रसंस्करण मिशन के तहत खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में मानव संसाधन विकास पर बल।
- मॉडल अनुबंध खेती अधिनियम, 2018 किसानों को गुणवत्ता प्रतिबद्धताओं के अधीन मूल्य अस्थिरता से रक्षा प्रदान करता है।
- बुनियादी ढाँचे के अंतर को खत्म करने हेतु प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना शुरू की गई।
खाद्य प्रसंस्करण उद्योग को भारत में एक ‘सूर्योदय उद्योग’ (तेज़ी से बढ़ते हुए) के रूप में पहचाना जा रहा है, जिसमें कृषि अर्थव्यवस्था के उत्थान, बड़े पैमाने पर प्रसंस्कृत खाद्य विनिर्माण और खाद्य शृंखला सुविधाओं के निर्माण की अपार संभावनाएँ हैं, जिससे रोज़गार और निर्यात उपयोजन में वृद्धि हो रही है। कोल्ड-चेन क्षमता, लॉजिस्टिक्स इंफ्रास्ट्रक्चर को बढ़ाना, मार्केटिंग कमोडिटीज के उचित तरीकों को अपनाना, किसान प्रशिक्षण और कार्यबल की कुशलता को बढ़ाना आदि सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिये।