इंदौर शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 11 नवंबर से शुरू   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

Be Mains Ready

  • 06 Dec 2021 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    आपदा जोखिम न्यूनीकरण और आपदा पश्चात् प्रबंधन दोनों ही विषयों में ’पंचायती राज संस्थाओं’ (PRIs) की भूमिका अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। चर्चा कीजिये।

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण

    • पीआरआई प्रणाली के बारे में संक्षिप्त परिचय दीजिये।
    • आपदा प्रबंधन में पंचायती राज संस्थाओं के महत्त्व की विवेचना कीजिये।
    • पंचायती राज संस्थाओं के कामकाज में आने वाली चुनौतियों पर चर्चा कीजिये।
    • आगे की राह बताइये।

    परिचय:

    73वें संविधान संशोधन के माध्यम से देश के आर्थिक विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करने में स्थानीय निकायों को सशक्त करने हेतु उन्हें एक मज़बूत आधार प्रदान किया गया था। इस संशोधन के माध्यम से स्थानीय स्वशासन की संस्थाओं के रूप में पंचायतों की परिकल्पना की गई है।

    इस संदर्भ में आपदा जोखिम न्यूनीकरण और आपदा पश्चात् प्रबंधन दोनों ही विषयों में ’पंचायती राज संस्थाओं’ (PRIs) की भूमिका अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।

    आपदा प्रबंधन में पंचायती राज संस्थाओं का महत्त्व

    • ज़मीनी स्तर पर आपदाओं से निपटना: पंचायतों को शक्ति और उत्तरदायित्वों के हस्तांतरण से प्राकृतिक आपदाओं के मामले में ज़मीनी स्तर पर प्रत्यास्थी और प्रतिबद्ध प्रतिक्रिया पाने में सहायता मिलेगी।
      • राज्य सरकार के साथ तालमेल में कार्यरत प्रभावी और सुदृढ़ पंचायती राज संस्थान पूर्व-चेतावनी प्रणाली के माध्यम से आपदा से निपटने में मदद करेंगे।
    • बेहतर राहत कार्य सुनिश्चित करना: चूँकि स्थानीय निकाय आबादी के अधिक निकट होते हैं, वे राहत कार्य को आगे बढ़ाने की बेहतर स्थिति में हैं, साथ ही वे ही स्थानीय लोगों की आवश्यकताओं से अधिक परिचित होते हैं।
      • यह प्रत्येक आपदा की स्थिति में कार्यान्वयन और धन के उपयोग के मामले में पूर्ण पारदर्शिता सुनिश्चित करेगा।
      • उन पर दिन-प्रतिदिन की नागरिक सेवाओं के परिचालन, प्रभावित लोगों को आश्रय और चिकित्सा सहायता प्रदान करने जैसे विषयों में भी भरोसा किया जा सकता है।
    • जागरूकता का प्रसार करना और सहयोग प्राप्त करना: स्थानीय स्वशासन संस्थानों का लोगों के साथ ज़मीनी स्तर का संपर्क होता है और वे किसी संकट से मुकाबले के लिये लोगों के बीच जागरूकता के प्रसार और उनकी भागीदारी सुनिश्चित करने में प्रभावी रूप से मदद कर सकते हैं।
      • वे बचाव और राहत कार्यों में गैर-सरकारी संगठनों और अन्य एजेंसियों की भागीदारी के लिये भी आदर्श माध्यम का निर्माण करते हैं।

    पंचायती राज संस्थाओं के समक्ष विद्यमान समस्याएँ

    • सांसदों और विधायकों का हस्तक्षेप: पंचायतों के कामकाज में क्षेत्रीय सांसदों और विधायकों का हस्तक्षेप उनके प्रदर्शन पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है।
    • धन की अनुपलब्धता: पंचायतों को पर्याप्त धन प्रदान नहीं किया जाता है और उनसे अधिक महत्त्व राज्य-नियंत्रित सरकारी विभागों को दिया जाता है जो पंचायतों के अधिकार-क्षेत्र में आने वाले कार्यक्रमों के कार्यान्वयन में भी अपना नियंत्रण बनाए हुए हैं।
    • अपूर्ण स्वायत्तता: ज़िला प्रशासन और राज्य सरकारों द्वारा अधिरोपित विभिन्न बाधाओं के कारण प्रायः पंचायतों के पास स्वतंत्र रूप से कार्य कर सकने के लिये प्रणालियों, संसाधनों और क्षमताओं का अभाव होता है।
    • पंचायतों के अधिकार-क्षेत्रों के संबंध में अस्पष्टता: यद्यपि पंचायती राज ग्राम, प्रखंड और ज़िला स्तर की त्रिस्तरीय एकीकृत व्यवस्था है, लेकिन उनके क्षेत्राधिकारों और संलग्नताओं के संबंध में व्याप्त अस्पष्टताओं के परिणामस्वरूप वे काफी हद तक अप्रभावी ही रही हैं।
      • राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 में भी पंचायतों की शक्तियों और उत्तरदायित्वों को पर्याप्त रूप से परिभाषित नहीं किया गया है और इसे संबंधित राज्य सरकारों द्वारा निर्धारित किये जाने के लिये छोड़ दिया गया है।

    आगे की राह

    • आपदा प्रबंधन कार्यक्रमों के लिये कानूनी समर्थन: पंचायत राज अधिनियमों में आपदा प्रबंधन के विषय को शामिल करना और आपदा योजना एवं व्यय को पंचायती राज विकास योजनाओं एवं स्थानीय स्तर की समितियों का अंग बनाना अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
      • यह संसाधनों के नागरिक-केंद्रित मानचित्रण और नियोजन को सुनिश्चित करेगा।
    • संसाधन की उपलब्धता और आत्मनिर्भरता: स्थानीय शासन, स्थानीय नेतृत्त्व और स्थानीय समुदाय को जब सशक्त किया जाता है तो वे किसी भी आपदा पर त्वरित और प्रभावी ढंग से प्रतिक्रिया देने में सक्षम होते हैं।
      • स्थानीय निकायों को सूचना और मार्गदर्शन की आवश्यकता है, साथ ही ऊपर से प्राप्त निर्देशों की प्रतीक्षा किये बिना आत्मविश्वास से कार्य कर सकने के लिये उनके पास संसाधनों, क्षमताओं और प्रणालियों का होना भी आवश्यक है।
    • आपदा प्रबंधन प्रतिमान में परिवर्तन: आपदा प्रबंधन के जोखिम शमन सह राहत-केंद्रित दृष्टिकोण को बदलते हुए इसे सामाजिक न्याय के साथ आर्थिक विकास की एक एकीकृत योजना में परिवर्तित करने की तत्काल आवश्यकता है।
    • सामूहिक भागीदारी: समुदाय के लिये नियमित, स्थान-विशिष्ट आपदा-प्रबंधन कार्यक्रम आयोजित करना और सर्वोत्तम अभ्यासों की साझेदारी के लिये मंचों का निर्माण व्यक्तिगत एवं संस्थागत क्षमताओं को मज़बूत करेगा।
      • व्यक्तिगत सदस्यों को भूमिकाएँ सौंपना और उन्हें आवश्यक कौशल प्रदान करना ऐसे कार्यक्रमों को अधिक सार्थक बना सकता है।
    • लोगों से वित्तीय योगदान प्राप्त करना: सभी ग्राम पंचायतों में सामुदायिक आपदा कोष की स्थापना के माध्यम से समुदाय से वित्तीय योगदान की प्राप्ति को भी प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।

    निष्कर्ष

    दुर्भाग्य से पंचायती राज संस्थान अभी तक पूर्व-तैयारी चरण में या आपदा के दौरान और आपदा के बाद के अभियानों के दौरान प्रमुख भूमिका निभा सकने हेतु पूर्ण सशक्त नहीं बनाए गए हैं।

    पंचायती राज संस्थाओं को आपदाओं के प्रबंधन के लिये एक उचित तंत्र की आवश्यकता है जिसमें एक जोखिम कैलेंडर बनाना, एक ग्राम आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (वीडीएमए) का निर्माण, उचित प्रशिक्षण हेतु बुनियादी ढाँचा शामिल हो।

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2