प्र. अधिकांश अफ्रीकी लोगों को औपनिवेशीकरण से कोई लाभ नहीं हुआ। समझाइये। (150 शब्द)
दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- अफ्रीकी उपनिवेशवाद के अंत की प्रक्रिया का वर्णन कीजिये।
- अफ्रीका में विकास के विरुद्ध सैन्य, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक कारकों का उल्लेख कीजिये।
- अफ्रीका के भविष्य के लिये आशावादी दृष्टिकोण के साथ निष्कर्ष लिखिये।
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जब द्वितीय विश्वयुद्ध समाप्त हुआ, तब भी विश्व का एक बड़ा भाग उपनिवेशीय शासन के अधीन था। अगले दो दशकों में, एशिया और अफ्रीका में अधिकांश उपनिवेश राष्ट्र स्वतंत्र देशों के रूप में उभरे। अफ्रीका में सामाजिक-आर्थिक शोषण के वर्षों के बाद, उपनिवेशवाद के अंत का सानंद स्वागत किया गया, इन देशों ने उपनिवेशवाद के प्रकोप से स्वयं को मुक्त किया।
परंतु स्वतंत्रता के कुछ वर्षों के भीतर ही अफ्रीकी जनता की अभिलाषाएँ एवं आशाएँ समाप्त हो गई; क्योंकि राष्ट्रवादी सरकारें अपनी जनता के कल्याण की गारंटी देने में विफल रहीं।
उपनिवेशवाद के अंत के बाद भी अफ्रीका में समृद्धि क्यों नहीं आई?
- सामाजिक विच्छेद: प्रत्येक देश में कई अलग-अलग जनजातियाँ निवास करती हैं जो स्वतंत्रता के लिये राष्ट्रवादी संघर्ष में एकजुट होती हैं। हालाँकि जैसे ही यूरोपीय औपनिवेशिक शक्तियाँ चली गई वैसे ही उनकी अधीनता पुन: उनसे संबंधित जनजातियों में स्थानांतरित हो गई और इस प्रकार राष्ट्रों के भीतर विच्छेद प्रवृत्ति पैदा हो गई। उदाहरण के लिये, नाइजीरिया, कांगो (जैरे), बुरुंडी और रवांडा में आदिवासी मतभेद इतना गहरा हो गया जिसने गृहयुद्ध को जन्म दिया।
- आर्थिक कमज़ोरी: औपनिवेशिक नीतियों के परिणमस्वरूप अफ्रीकी देशों का औद्योगीकरण नहीं हुआ। स्वतंत्रता के पश्चात् वे सामान्य रूप से निर्यात के लिये केवल एक या दो वस्तुओं पर निर्भर होते थे, उनके उत्पादों की विश्व के मूल्य में गिरावट एक बड़ी आपदा थी। उदाहरण के लिये- उन दिनों नाइजीरिया की राष्ट्रीय आय का 80 प्रतिशत तेल निर्यात होता था।
- राजनीतिक समस्याएँ: अफ्रीकी राजनेताओं के पास यूरोपीय औपनिवेशिक शक्तियों द्वारा छोड़ी गई संसदीय लोकतंत्र की प्रणाली के साथ कार्य करने का अनुभव नहीं था। स्वतंत्रता से पूर्व छापेमार आंदोलनों में भाग लेने वाले अधिकांश अफ्रीकी नेता मार्क्सवादी विचारों से प्रभावित थे, जिसके कारण वे प्रगति के एकमात्र मार्ग के रूप में एकदलीय राज्य की स्थापना करते थे।
- नव उपनिवेशवाद: द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद के दशकों में यूरोपीय शक्तियों ने उपनिवेशों को केवल नाममात्र की राजनीतिक स्वतंत्रता दी तथा नए अफ्रीकी देशों की अर्थव्यवस्थाओं को नियंत्रित करना जारी रखा। स्वतंत्रता के पश्चात् अफ्रीकी देशों के लिये मुख्य राजस्व आधार कच्चे माल का निर्यात जारी रहा; इसके परिणामस्वरूप अफ्रीकी अर्थव्यवस्थाओं का विकास यथोचित नहीं हुआ, जबकि पश्चिमी उद्योग लाभ अर्जित करते रहे।
भ्रष्टाचार, प्राकृतिक आपदाओं, कट्टरपंथी विचारधाराओं के प्रसार आदि के कारण वास्तविक लाभ भी जन सामान्य को प्राप्त नहीं हो पाए।
उपनिवेशवाद के अंत के दशकों बाद डकैती, घुसपैठ, सामूहिक हत्या और क्षीण लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं के कारण समकालीन समय में रवांडा जैसे कई देश अफ्रीका के बेहतर भविष्य की उम्मीद करते हैं। लोगों की सामाजिक-आर्थिक स्थितियों में निरंतर सुधार, आर्थिक वृद्धि, जीवन प्रत्याशा में वृद्धि तथा भविष्य में विकास के अनुमानों के साथ एक नया नारा सामने आया है जो कि ‘भविष्य अफ्रीकी है’ (द फ्यूचर इज अफ्रीकन) की भावना को प्रेरित करता है।