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  • 04 Dec 2021 सामान्य अध्ययन पेपर 4 केस स्टडीज़

    महीनों पहले संसद ने भारतीय अर्थव्यवस्था में क्रांति लाने के उद्देश्य से एक विधेयक पारित किया था। कई प्रतिष्ठित अर्थशास्त्रियों द्वारा इसका आने वाले वर्षों में उच्च आर्थिक विकास के वाहक और एक प्रगतिशील कदम के रूप में स्वागत किया जाता है। दुर्भाग्य से, कुछ संसदीय प्रक्रियाओं को दरकिनार करने और प्रभावित लोगों के लिये सुधारों की संभावनाओं को संप्रेषित करने में राजनीतिक कार्यपालिका की विफलता के कारण, सशंकित नागरिकों ने सुधारों को वापस लेने की मांग करते हुए शांतिपूर्ण विरोध शुरू कर दिया। प्रदर्शनकारियों की व्यापक पैमाने पर भागीदारी और प्रतिबद्धता ने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का ध्यान आकर्षित किया है। हाल ही में, पश्चिमी देशों की कई मशहूर हस्तियों और कार्यकर्त्ताओं ने इस मुद्दे को उठाने के लिये सोशल मीडिया प्लेटफार्मों का सहारा लिया। जिस समन्वित तरीके से सोशल मीडिया पोस्ट उभरे हैं, उससे सरकार को उन अराजक तत्त्वों की भागीदारी पर संदेह हुआ है जो गलत सूचना का प्रचार-प्रसार करने की कोशिश कर रहे हैं। एक जुझारू कदम के तहत, सरकार ने आधिकारिक तौर पर इन सूचनाओं को ‘प्रेरित’ और ‘गलत’ बताया है। दिलचस्प बात यह है कि इस तरह की सूचनाएँ भारतीय हस्तियों के सोशल मीडिया पोस्ट से भी सामने आई, जिन्होंने पुष्टि की कि ये घरेलू मुद्दे हैं और उन्हें दोषपूर्ण प्रचार से मुक्त होना चाहिये। कई लोगों ने इस संभावना को भी इंगित किया है कि ये पोस्ट सरकार के इशारे पर लिखे गए थे।

    a. उपर्युक्त मामले में शामिल नैतिक मुद्दों की पहचान और चर्चा कीजिये।
    b. सरकार द्वारा स्थिति से निपटने के लिये वैकल्पिक उपाय सुझाइये। (250 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • केस स्टडी की समझ को संदर्भित करते हुए शुरुआत कीजिये।
    • ऊपर वर्णित तथ्यों से जुड़े विभिन्न नैतिक मुद्दों पर प्रकाश डालिये।
    • सार्वजनिक रूप से लोकतंत्र के आदर्शों और नैतिक आचरण को शामिल करते हुए मुद्दे से निपटने के लिये नैतिक सुझाव दीजिये।

    सोशल मीडिया, दुनिया भर के लोगों को जोड़ने और ऐसे मामलों पर भी राय व्यक्त करने जो हमें दूर से प्रभावित करते हैं, का एक उत्कृष्ट माध्यम बन गया है। यह इस कारण से है कि लोग, विशेष रूप से लोकतांत्रिक देशों के, अन्य देशों में होने वाली घटनाओं पर स्वतंत्र रूप से टिप्पणी करते हैं।

    भारत जैसे देश के लिये, इसकी सबसे बड़ी ताकत यानी लोकतंत्र इसकी सबसे बड़ी कमज़ोरी भी है। निहित स्वार्थ समूहों द्वारा भारत की लोकतांत्रिक छवि और सद्भावना को कमज़ोर करने के प्रयास किये गए हैं। ऐसे परिदृश्य में, सरकार द्वारा कुछ हद तक धोखे का संदेह इस केस स्टडी में उचित प्रतीत होता है।

    इन सभी कारकों को ध्यान में रखते हुए, कई नैतिक मुद्दे हैं जिनमें सभी हितधारक शामिल हैं:

    • राजनीतिक और नैतिक कर्त्तव्य का विलोपन: आशंकित नागरिकों को बिल के बारे में अपनी मंशा और संभावनाओं को संप्रेषित करने में, राजनीतिक वर्ग स्पष्ट रूप से विफल रहा है। महात्मा गांधी ने बहुत पहले लोक सेवकों को एक मंत्र दिया था कि किसी भी कार्य को शुरू करने से पहले अंतिम व्यक्ति के बारे में सोचें।
    • संवैधानिक परंपराओं और प्रथाओं का उल्लंघन: विधेयक को पारित करने के लिये सरकार ने कुछ संसदीय प्रक्रियाओं की अनदेखी की है। यह संवैधानिक प्रथाओं और लोकतांत्रिक दायित्वों/कर्त्तव्यों से समझौता है। इसके अलावा, एक कानून जो उचित संवैधानिक तंत्र के अधीन नहीं है, ऐसे में कानून के उद्देश्यों को पूरा करने में उसमें वैधता का अभाव दिखाई देता है।
    • व्यक्तिगत ईमानदारी से समझौता: मशहूर हस्तियों और कार्यकर्त्ताओं की ओर से, उक्त अधिनियम के बारे में जाने बिना विरोध प्रदर्शनों का समर्थन करना, व्यक्तिगत ईमानदारी की कमी को दर्शाता है। जो लोग जनता पर प्रभाव डालते हैं, उन्हें सतर्क रहना चाहिये, उनके द्वारा अपनी राय व्यक्त करने में लापरवाह नहीं होना चाहिये। उन्हें भावनात्मक रूप से बुद्धिमान होना चाहिये और सार्वजनिक जीवन में नैतिक आचरण के बारे में पता होना चाहिये।

    समस्या से प्रभावी तरीके से निपटने के उपाय:

    • लोगों की आत्म-अभिव्यक्ति का अधिकार सीमाओं से प्रतिबंधित नहीं है और इंटरनेट के युग में, किसी भी मामले पर घरेलू एवं विदेशी नागरिकों की राय को रोका नहीं जा सकता है।
    • एक जुझारू दृष्टिकोण की बजाय, कूटनीति पर निर्भर नरम उपायों, मीडिया और प्रवासी भारतीयों का उपर्युक्त स्थिति में इस्तेमाल किया जा सकता है। जैसे कि जम्मू-कश्मीर की संवैधानिक स्थिति में परिवर्तन के समय, सरकार ने दुनिया को स्पष्ट तस्वीर पेश करने के लिये ऐसे उपकरणों का उपयोग किया था।
    • भारतीय सार्वजनिक प्रभावकों की भागीदारी ने उपर्युक्त मामले में संदेह पैदा किया है। बजाय इसके, राजनीतिक अधिकारियों को इसका नेतृत्व करना चाहिये क्योंकि इससे दोहरे लाभ होंगे- सबसे पहले, यह अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिकूल राय को लक्षित करेगा। दूसरे, यह लोगों और राजनेताओं के बीच संचार की खाई को भर देगा जो विरोध के लिये ज़िम्मेदार कारणों में से एक है।
    • विदेशों की कानून प्रवर्तन एजेंसियों की मदद से संदेहों की जाँच की जानी चाहिये और अटकलों को सार्वजनिक स्थान से दूर रखा जाना चाहिये, जब तक कि निर्णायक सबूत नहीं निकलते हैं क्योंकि यह लोगों में गलत धारणा पैदा कर सकता है। साथ ही, यह एक ऐसी तस्वीर भी पेश कर सकता है कि विरोध करने वाले लोगों को ताकतवर शक्तियों द्वारा अनावश्यक रूप से डराने का प्रयास किया जा रहा है। इससे विरोधों में शामिल समूहों के प्रति ध्रुवीकरण, राजनीतिक कटुता और नफरत पैदा होगी।

    लोकतंत्र में शासन एवं नीतियाँ नैतिक विचारों से अटूट रूप से जुड़ी हुई हैं, और असंतोष या संघर्ष के मामले में, इस मुद्दे का समाधान भी सभी हितधारकों द्वारा नैतिक आचरण में निहित है। ऐसी स्थितियों की उपस्थिति सरकार और संवैधानिक तंत्र में नागरिकों के विश्वास को मज़बूत करता है।

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