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  • 14 Dec 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्था

    वित्तीय समावेशन में डिजिटल तकनीक के उपयोग ने सामाजिक न्याय की संभावनाओं में क्रांति ला दी है। परीक्षण कीजिये। (250 शब्द)

    उत्तर

    दृष्टिकोण

    • परिचय में वित्तीय समावेशन और सामाजिक न्याय के बारे में संक्षिप्त में बताएये।
    • वित्तीय समावेशन को प्राप्त करने में डिजिटल प्रौद्योगिकी की भूमिका को समझाइये।
    • संबंधित चुनौतियों का उल्लेख कीजिये।
    • उपयुक्त निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय

    • वित्तीय समावेशन को वित्तीय सेवाओं तक समय पर पहुंँच सुनिश्चित करने तथा सस्ती कीमत पर पर्याप्त क्रेडिट की उपलब्धता, जिसकी ज़रूरत कमज़ोर वर्गों और कम आय वाले समूहों को होती हैं, के रूप में परिभाषित किया जा सकता है, जबकि सामाजिक न्याय एक राजनीतिक दार्शनिक अवधारणा है जो विभिन्न सामाजिक आयामों के साथ लोगों के मध्य समानता पर केंद्रित है।
    • आर्थिक संदर्भ में सामाजिक न्याय का प्रयास सामान्यत: गरीब और सीमांत समूहों की आर्थिक स्थिति को ऊंँचा उठाने की कोशिश करता हैं। भारत में वित्तीय समावेशन सामाजिक न्याय प्राप्त करने के लिये विकास प्रक्रिया का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है। समय के साथ वित्तीय समावेशन की स्थिति में काफी सुधार हुआ है। हालाँकि वित्तीय समावेशन अभी भी गरीब-से-गरीब व्यक्ति तक नहीं पहुँचा है।

    प्रारूप

    भारत में वित्तीय समावेशन लाने में डिजिटल प्रौद्योगिकी की भूमिका

    • संचालन में आसानी: डिजिटल तकनीक ने गरीब दैनिक मज़दूरों के लिये वित्तीय समावेशन को आसान बना दिया है। अब उन्हें अपने दैनिक वेतन हेतु लंबी कतारों में खड़े होने की ज़रूरत नहीं है। इसके साथ ही अब लेन-देन एक बटन के क्लिक के साथ ही संभव है जिससे सभी के लिये कार्य करना आसान हो जाएगा।
    • बेहतर प्रशासन और नीति कार्यान्वयन: डिजिटलीकरण और वित्तीय समावेशन द्वारा लाभार्थी सीधे अपने खातों में भत्ते प्राप्त कर सकते हैं जिससे उन बिचौलियों पर अंकुश लगा दिया गया है जो अत्यधिक भ्रष्ट थे।
    • कर आधार में विस्तार : जब से बैंकिंग प्रणाली में डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म का उपयोग बढ़ा है तथा अधिक-से-अधिक लोग कैशलेस लेन-देन कर रहे हैं तब से करों की चोरी पर भी अंकुश लगा है।
    • वित्तीय सेवाओं का एकीकरण
      • डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (DBT) स्कीम के साथ JAM ट्रिनिटी का अभिसरण/संमिलन काफी हद तक सफल रहा है।
      • इसके कारण लक्षित और सटीक भुगतान के संदर्भ में उल्लेखनीय सुधार हुआ है।
      • इसने प्रविष्टियों के दोहराव को समाप्त करने और भुगतान के नकद मोड़ पर निर्भरता को काफी हद तक कम किया है।

    चुनौतियाँ

    • बैंक खातों तक गैर-सार्वभौमिक पहुंँच: बैंक खाते सभी वित्तीय सेवाओं के लिये एक प्रवेश द्वार हैं परंतु विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में लगभग 190 मिलियन वयस्कों के पास बैंक खाता नहीं है और इस मामले में भारत का स्थान विश्व में चीन के बाद दूसरा है।
    • डिजिटल डिवाइस: डिजिटल प्रौद्योगिकी को अपनाने में सबसे आम बाधा जो वित्तीय समावेशन को बढ़ावा दे सकती हैं, वह है उपयुक्त वित्तीय उत्पादों की अनुपलब्धता और डिजिटल सेवाओं का उपयोग करने के लिये हितधारकों के मध्य डिजिटल कौशल की कमी।
    • बुनियादी ढाँचे का मुद्दा: कम आय वाले उपभोक्ता डिजिटल सेवाओं तक पहुँचने के लिये आवश्यक तकनीक का खर्च उठाने में सक्षम नहीं हैं।
    • अनौपचारिक तथा कैश-डोमिनटिड इकाॅनमी: भारत भारी वर्चस्व वाली कैश इकाॅनमी है, जिसके समक्ष डिजिटल भुगतान को अपनाना एक चुनौती है। लेन-देन के नकदी मोड पर उच्च निर्भरता के साथ विशाल अनौपचारिक क्षेत्र का संयोजन डिजिटल वित्तीय समावेशन में एक बाधा बन गया है।

    आगे की राह

    • लीवरिंग JAM ट्रिनिटी: प्रौद्योगिकी का उपयोग घरों और अनौपचारिक व्यवसायों के लिये ऋण-पात्रता के मूल्यांकन को बेहतर बनाने के लिये किया जाना चाहिये। उपयुक्त तकनीक को अपनाने के साथ ही डेटा गोपनीयता बनाए रखने के लिये पर्याप्त सुरक्षा उपायों के साथ क्रेडिट तक आसान पहुंँच सुनिश्चित करने हेतु एक नए डेटा-शेयरिंग फ्रेमवर्क (जन धन और आधार प्लेटफाॅर्मों का उपयोग करके) को समझने की आवश्यकता है।
    • डेटा सुरक्षा व्यवस्था की आवश्यकता: डिजिटलीकरण के अलावा देश में साइबर सुरक्षा और डेटा सुरक्षा व्यवस्था को मज़बूत करने की भी आवश्यकता है।
    • विभेदीकृत बैंकिंग प्रणाली का लाभ: विभिन्न बैंकों जैसे- भुगतान बैंक और छोटे वित्त बैंकों को अनारक्षित क्षेत्रों में भुगतान प्रणाली को बढ़ाने के लिये लाभ दिया जा सकता है।
    • ग्रामीण क्षेत्रों में यूएसएसडी को बढ़ावा: यूएसएसडी चैनल के माध्यम से भुगतान को बढ़ावा दिया जाना चाहिये क्योंकि इसमें गैर-स्मार्टफोन उपयोगकर्त्ताओं की एक बड़ी जनसंख्या शामिल है। भारत में, यूएसएसडी उन ग्रामीण क्षेत्रों में विशेष रूप से उपयोगी साबित हो सकता है जहाँ कुछ हिस्सों में अभी भी इंटरनेट की विश्वसनीय पहुंँच सुनिश्चित नहीं की जा सकती है।

    निष्कर्ष

    भारत में वित्तीय समावेशन की सफलता के लिये एक बहुआयामी दृष्टिकोण होना आवश्यक है जिसके माध्यम से मौजूदा डिजिटल प्लेटफाॅर्मों, बुनियादी ढांँचे, मानव संसाधन और नीतिगत ढांँचे को मज़बूत किया जा सकता है, साथ ही नए तकनीकी नवाचारों को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।इसका उद्देश्य डिजिटल तकनीक की मदद से वित्तीय समावेशन द्वारा गरीबों के लिये आर्थिक विकास के लाभों को बढ़ाना है।

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