‘भाषाई आधार पर राज्य पुनर्गठन के परिणामस्वरूप बहु-सांस्कृतिक संस्कृतियों की समृद्धि के साथ नागरिकता के गौरव का मिश्रण हुआ है।’ परीक्षण कीजिये कि किस प्रकार भाषाई पुनर्गठन ने भारत को अधिक एकजुटता तथा राष्ट्रवाद की भावना को मज़बूती प्रदान की है। (250 शब्द)
04 Nov 2020 | सामान्य अध्ययन पेपर 1 | इतिहास
दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
दृष्टिकोण:
- प्रस्तावना में दिये गए कथन एवं भारत में भाषाई आधार पर राज्यों के पुनर्गठन की संक्षिप्त व्याख्या कीजिये।
- बताइए कि किस प्रकार भाषाई पुनर्गठन ने भारतीय एकता एवं राष्ट्रीयता की भावना को मज़बूती प्रदान की है।
- भाषाई पुनर्गठन से संबंधित कुछ चुनौतियों पर चर्चा कीजिये।
- संक्षिप्त उत्तर के साथ निष्कर्ष दीजिये।
परिचय:
- वर्ष 1947 में जब भारत को आज़ादी मिली उस समय देश में 500 से अधिक स्वतंत्र देशी रियासतें मौजूद थीं, विभिन्न राज्यों के गठन के साथ इन रियासतों का विलय कर दिया गया। उस समय राज्यों का एकीकरण भाषाई या सांस्कृतिक विभाजन के आधार पर न करके राजनीतिक और ऐतिहासिक आधार पर किया गया था, लेकिन यह एक अस्थायी व्यवस्था थी।
- भारतीय नेताओं ने जातीय, सांस्कृतिक, धार्मिक और भाषाई विविधता के इस जटिल स्वरूप को संबोधित करने के लिये संघवाद को केवल एक प्रशासनिक उपकरण के रूप में ही नहीं देखा अपितु उनके द्वारा इसे बहु-सांस्कृतिक पहचान की समृद्धि के साथ 'नागरिकता' के गौरव के साथ संवैधानिक सुरक्षा के रूप में देखा गया।
संरचना:
- राज्य पुनर्गठन आयोग की सिफारिशों के आधार पर वर्ष 1956 में 14 राज्यों और छह केंद्र शासित प्रदेशों के भाषाई पुनर्गठन के आधार पर कार्य को आंशिक रूप से पूरा किया गया, कई अन्य राज्यों के पुनर्गठन कार्य को बाद में पूर्ण किया गया।
- राज्य युक्तिकरण के इस कार्य को व्यापक स्तर पर किया गया जो न केवल शक्ति और अधिकार के नए तरीकों को स्थापित करने के लिये बल्कि सामाजिक, सांस्कृतिक, क्षेत्रीय और भाषाई विविधताओं को राज्य शक्ति के अधिक प्रबंधनीय परिक्षेत्रों में पुनर्व्यवस्थित करने पर आधारित था।
भाषाई आधार पर राज्यों के गठन ने भारत के राजनीतिक मानचित्र को कई प्रकार से तर्कसंगत बनाया है:
- लोकतांत्रिक राजनीति: राज्यों के पुनर्गठन से लोकतांत्रिक राजनीति और नेतृत्व की प्रकृति में बदलाव आया। राजनीति और सत्ता का मार्ग अब एक छोटा अभिजात वर्ग जो अंग्रेज़ी बोलने में सक्षम था के बजाय क्षेत्रीय भाषा बोलने वाले लोगों के लिये भी खुला गया था।
- जातीय-राष्ट्रीय पहचान का गठन: भारत में जातीय-राष्ट्रीय पहचान के गठन के लिये क्षेत्रीय और जनजातीय पहचान के साथ युग्मित भाषा ने सबसे अधिक मज़बूत आधार प्रदान किया।
- स्थानीय लोगों ने अब आम भाषा में संवाद करने में सक्षम होने के कारण बड़ी संख्या में प्रशासन में भाग लिया।
वर्ष 1956 के बाद की घटनाओं से स्पष्ट है कि किसी भाषा के प्रति रुझान राष्ट्र की एकता के लिये पूर्णत पूरक है जैसे:
- भाषाई आधार पर राज्यों को पुनर्गठित करके, राष्ट्रीय नेतृत्व द्वारा उस बड़ी शिकायत को दूर कर दिया गया जिसके कारण देश में विखंडन शीलता की प्रवृत्ति बढ़ सकती थी।
- राज्यों के भाषाई पुनर्गठन ने संघीय ढाँचे को किसी भी प्रकार से प्रतिकूल रूप से प्रभावित नहीं किया या केंद्र को कमज़ोर या पंगु नहीं बनाया, जैसा कि कुछ लोगों द्वारा आशंका व्यक्त की जा रही थी।
- केंद्र सरकार ने अपने पास उतने ही अधिकार रखे जितने पूर्व में थे। योजना और आर्थिक विकास में केंद्र को राज्य का भी सहयोग प्राप्त होता रहा है।
हालाँकि भाषा के आधार पर पुनर्गठित राज्यों ने राष्ट्र के सामने कुछ चुनौतियाँ भी पेश की हैं जैसे:
- प्रांतीयता: इसने क्षेत्रवाद, भाषाई रूढ़िवाद और ‘भूमि पुत्र’ जैसे कई सिद्धांतों की नींव रखी जिनके कई अनपेक्षित परिणाम देखने को मिले।
- विभाज्यता: इसका उपयोग विभाजनकारी उद्देश्यों के संदर्भ में किया जाता है जो विघटनकारी प्रवृत्ति में बदल जाता है, जैसे कि सांप्रदायिकता, जातिवाद और भाषाई या क्षेत्रीय विशिष्टता इत्यादि।
- जातीय-धार्मिक संघर्ष: नौकरियों, शैक्षिक अवसरों, राजनीतिक शक्ति तक पहुँच और बड़े आर्थिक कार्यों में हिस्सेदारी के मुद्दों ने धर्म, क्षेत्र, जाति और भाषाई आधार पर प्रतिद्वंद्विता और संघर्ष को हवा दी है।
- अन्य नए राज्यों की मांग: कई अन्य मुद्दे भी सामने उभरकर आए हैं जो भारत की अखंडता के लिये खतरा है जैसे पिछड़ेपन के आधार पर नए राज्यों की मांग जिनमें मराठवाड़ और सौराष्ट्र, उत्तर-पूर्व में जातीयता आदि शामिल हैं।
निष्कर्ष:
- नव स्वतंत्र भारत के राजनीतिक नेतृत्व के पास महत्वाकांक्षाओं से ग्रसित राज्य के भविष्य की कल्पना करने की दूरदर्शिता विद्यमान थी, समय के साथ-साथ जिसका लाभ देश की राजनीतिक व्यवस्था में परिलक्षित भी हुआ। यह और बात है कि राज्यों के पुनर्गठन ने निश्चित रूप से भाषाई संघर्ष से संबंधित सभी समस्याओं का समाधान नहीं किया।
- विभिन्न राज्यों के मध्य अक्सर भाषाई अल्पसंख्यकों और आर्थिक मुद्दों जैसे पानी के बँटवारे, बिजली एवं अतरिक्त भोजन के आवंटन को लेकर विवाद देखने को मिलते रहते हैं। हालाँकि राज्यों को भाषाई रूप से पुनर्गठित करने के निर्णय ने एक महत्त्वपूर्ण कारक को समाप्त करने जैसा साहसी कार्य किया है, जिसके कारण संभवतः भारत की अखंडता संकट में पड़ सकती थी। अत: यह कहना गलत नहीं होगा कि भाषाई आधार पर राज्यों के पुनर्गठन ने भारतीय एकता को एक मज़बूत आधार प्रदान किया है।