बीते कुछ समय में दक्षिण-पश्चिम मानसून का पैटर्न बदल गया है। हमारे जीवन के विभिन्न पहलुओं पर पड़ने वाले प्रभावों के संदर्भ में इसकी व्याख्या कीजिये। (250 शब्द)
04 Dec 2020 | सामान्य अध्ययन पेपर 1 | भूगोल
दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
दृष्टिकोण:
- मानसून को परिभाषित करते हुए भारतीय संदर्भ में इसके महत्त्व को संक्षेप में समझाएये।
- मानसून में बदलाव के संभावित कारणों की व्याख्या कीजिये।
- बदलते भारतीय मानसून पैटर्न के निहितार्थों पर चर्चा कीजिये।
- उपयुक्त निष्कर्ष दीजिये।
परिचय:
- मानसून शब्द की उत्पत्ति अरबी शब्द मौसिम से हुई है जिसका अर्थ है 'मौसम'।
- मानसून, वर्ष के ठंडे महीनों के दौरान उत्तर-पूर्व से बहने वाली तेज़ हवाओं और गर्मीं के महीनों के समय दक्षिण-पश्चिम से बहने वाली मौसमी हवाओं के उलटफेर को चिह्नित करता है।
- भारतीय मानसून, विश्व की मानसून प्रणालियों में सबसे प्रमुख है। यह मुख्य रूप से भारत और इसके आसपास के जल निकायों/प्रणालियों को प्रभावित करता है।
- भारत में अधिकांश वर्षा संवहनीय प्रकार की होती है जिसकी अवधि जून और सितंबर माह के मध्य है।
संरचना:
भारतीय मानसून का महत्त्व
खाद्य सुरक्षा प्राप्त करने के संदर्भ में भारतीय मानसून की भूमिका अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है।
- भारत की लगभग 64% आबादी अपनी आजीविका के लिये कृषि पर निर्भर है जो दक्षिण-पश्चिम मानसून पर आधारित है।
- देश का लगभग 60% कृषि क्षेत्र सिंचाई सुविधा से वंचित है जिस कारण लाखों किसान सिंचाई हेतु वर्षा जल पर निर्भर हैं।
- मानसून उन 81 जलाशयों में जलापूर्ति करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है जो बिजली उत्पादन, सिंचाई और पीने के पानी की आपूर्ति सुनिश्चित करते हैं।
- मानसून की यह प्रक्रिया भारत को दक्षिण-पूर्व एशियाई क्षेत्र के साथ जोड़ती है।
मानसून की प्रक्रिया/पैटर्न में बदलाव
- भारतीय मानसून को एक निर्धारित मौसमी घटना के रूप में देखा जाता है जिसमें पूर्ववर्ती शताब्दी की तुलना में बहुत अधिक बदलाव नहीं हुआ है।
- दीर्घकालिक रूप से वर्षा का औसत स्तर 10% तक बना हुआ है।
- हालाँकि मानसून की इस प्रक्रिया ने उत्तर-पूर्व में बाढ़ की स्थिति को और दक्षिणी हिस्से में वर्षा की कमी को तीव्र किया है।
- पिछले कुछ वर्षों में वर्षा की चरम सीमा में तीन गुना वृद्धि हुई है जिसका विस्तार पूरे मध्य भारत, गुजरात से लेकर ओडिशा तक हुआ है।
- वर्ष 2002 से प्रति वर्ष मानसून की शुरुआत देरी से हो रही है जिसने मानसून की समयावधि को संकुचित कर भारतीय मानसून की समयावधि को भी प्रतिकूल रूप से प्रभावित किया है।
- मानसून विच्छेदन की अवधि में वृद्धि हुई है, परिणामस्वरूप मानसून की अवधि में सूखे की मात्रा अर्थात वर्षा की कमी में वृद्धि होती है।
- पिछले एक-दो दशकों में वर्षा की तीव्रता, अवधि, आवृत्ति और स्थानिक वितरण में काफी बदलाव देखने को मिला है।
परिवर्तन के संभावित कारण
- वर्षा की घटती मात्रा, वर्षा की स्थानिक परिवर्तनशीलता और चरम सीमा में तीन गुना वृद्धि होना मानसूनी हवाओं का कमज़ोर संचलन तथा बंगाल की खाड़ी से उठने वाले मानसून की क्षीणता है।
- भारतीय उपमहाद्वीप पिछले एक दशक में काफी गर्म हुआ है और मानवजनित कारणों से इसी अवधि के दौरान हिंद महासागर ठंडा हो गया है।
- भूमि और समुद्र के मध्य तापमान में विपरीत परिणाम के कारण भूमि की आर्द्रता में कमी आ सकती है।
- भारत में ब्लैक कार्बन या कालिख जैसे मानवजनित एरोसोल की मात्रा में वृद्धि के कारण बादलों के बनने की प्रक्रिया में कमी आई है जो आसपास की हवा को अवशोषित कर गर्मी बढ़ाकर बादलों के निर्माण की प्रक्रिया को रोकते हैं।
बदलते भारतीय मानसून के निहितार्थ
- देश की मानसून प्रक्रिया में बदलाव के कारण कुओं और नदियों के सूखने के साथ देश में पानी की भारी कमी देखी जा रही है।
- प्रमुख भारतीय जलाशयों में किसी भी समय जल का स्तर सामान्य जल स्तर से 10% कम हो सकता है।
- जल की कमी के कारण कृषि और उद्योग क्षेत्रों में आर्थिक नुकसान हुआ है।
- देश के कई हिस्सों में सूखे एवं बाढ़ चक्र की बारंबारता में वृद्धि हुई है।
- देश में पानी की कमी के कारण अंत-राज्यीय तनाव बढ़ सकता है। कर्नाटक और तमिलनाडु के मध्य कावेरी नदी विवाद, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक और तेलंगाना के मध्य कृष्णा नदी विवाद इसी के उदाहरण हैं।
- मानसून में बदलाव से संक्रामक बीमारियों जैसे-मलेरिया, डेंगू इत्यादि में भी वृद्धि हुई है।
निष्कर्ष:
- भारत की जनसंख्या में निरंतर वृद्धि हो रही है, ऐसी स्थिति में जनसंख्या हेतु भोजन (पानी सहित) सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये वर्षा जल का एक बड़ा हिस्सा जो वर्तमान में अनुपयोगी है, का उपयोग उपयुक्त स्थानों के माध्यम से सिंचाई और बिजली उत्पादन के उद्देश्यों को पूर्ण करने के लिये किया जाना चाहिये।
- विश्वसनीयता और स्थिरता की स्थिति प्राप्त करने के लिये मानसून के पूर्वानुमान की बेहतर जानकारी प्राप्त करने हेतु अधिक संसाधनों के निवेश किये जाने की आवश्यकता है।
- इस प्रकार जलवायु परिवर्तन, ग्लोबल वार्मिंग और बढ़ते प्रदूषण के खतरों को कम करने के लिये सामूहिक कदम उठाए जाने की ज़रूरत है क्योंकि हम सब अपने हित पूर्ति के लिये एक साझे विश्व में साथ रहते हैं।