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  • 01 Dec 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न

    आत्म-सम्मान आंदोलन ने दक्षिण भारत के लोगों के सामाजिक और धार्मिक जीवन में महत्त्व भूमिका निभाई। निम्न जाति की मुक्ति में आत्म सम्मान आंदोलन में निहित उद्देश्यों और सफलता पर चर्चा कीजिये। (250 शब्द)

    उत्तर

    दृष्टिकोण

    • परिचय में निम्न जाति के लोगों की स्थिति और आंदोलन के उद्देश्य या महत्त्व के बारे में बताएँ।
    • आंदोलन के उद्देश्यों को बताएँ।
    • आलोचना के साथ आंदोलन की उपलब्धियाँ बताइये।
    • वर्तमान समाज में इस आंदोलन की प्रासंगिकता बताएँ।

    परिचय:

    • आत्म-सम्मान आंदोलन एक गतिशील सामाजिक आंदोलन था जिसका उद्देश्य समकालीन हिंदू सामाजिक व्यवस्था को जाति, धर्म और ईश्वरीय आस्था के बिना एक नए समग्र एवं तर्कसंगत समाज में परिवर्तित करना था।
    • ई.वी. रामास्वामी नाइकर द्वारा वर्ष 1925 में आत्म-सम्मान आंदोलन की शुरुआत तमिलनाडु में की गई। यह एक समतावादी आंदोलन था जिसने ब्राह्मणवादी आधिपत्य को तोड़ने का कार्य किया। समाज में पिछड़े वर्गों और महिलाओं के लिये समान अधिकारों तथा तेलुगू, तमिल, कन्नड़ और मलयालम आदि द्रविड़ भाषाओं के पुनरुत्थान पर ज़ोर दिया।

    प्रारूप

    प्रमुख उद्देश्य:

    आत्म-सम्मान आंदोलन के उद्देश्यों एवं रूपरेखा को ‘नमथु कुरिक्कोल’ और ‘तिरवितक्कलका लटीयम’ पत्रिकाओं में प्रकाशित किया गया जो इस प्रकार हैं:

    • आंदोलन में समाज को एक ऐसे सामाजिक ढाँचे में परिवर्तित करने का लक्ष्य रखा गया जहाँ एक वर्ग के लोग स्वयं को दूसरों से श्रेष्ठ होने का दावा प्रस्तुत करते हैं और कुछ लोग दूसरों की तुलना में उच्च कुल में जन्म लेने का दावा प्रस्तुत करते हैं।
    • इसका उद्देश्य समुदाय के सभी लोगों को बिना भेदभाव के समान अवसर प्रदान कर कार्य उपलब्ध करना था। इस आंदोलन में पुरुषों के साथ-साथ महिलाओं को भी उनके जीवन में कानून के अनुसार समान स्थिति प्रदान करने का प्रयास किया गया।
    • आंदोलन के माध्यम से अस्पृश्यता को पूरी तरह से समाप्त करने और भाईचारे की भावना के आधार पर एक एकजुट समाज की स्थापना करने पर बल दिया गया।
      • जिसमें सभी लोगों के मध्य स्वाभाविक रूप से मित्रता और सहयोग की भावना होनी चाहिये।
    • अनाथों और विधवाओं के लिये घरों की स्थापना एवं रखरखाव शैक्षणिक संस्थानों का संचालन करना।
    • नए मंदिरों, मठों या वैदिक स्कूलों के निर्माण के लिये लोगों को हतोत्साहित करना। लोगों को अपने नाम में जाति शीर्षक का उपयोग न करने, आम धन का उपयोग शैक्षिक उद्देश्यों तथा बेरोज़गारों के लिये रोज़गार के अवसर प्रदान करने के लिये किये जाने पर ज़ोर दिया गया।

    आत्म-सम्मान आंदोलन ने दक्षिण भारत के लोगों के राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक जीवन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसने तमिल राष्ट्रवाद के संदेश को जन-जन तक पहुंँचाने का कार्य किया।

    • ई.वी. रामास्वामी द्वारा रूढ़िवाद के खिलाफ किये गए प्रचार के कारण ब्राह्मणों की प्रभुसत्ता एवं एकाधिकार का प्रभाव धीरे-धीरे खत्म हो गया। ब्राह्मणों द्वारा किये गए सामाजिक अन्याय के खिलाफ लड़ने के लिये यह आंदोलन आत्म-सम्मान की भावना से परिपूर्ण था तथा सभी के आत्मविश्वास से ऊपर था ।
    • इसने अंतर-जातीय और अंतर-धार्मिक विवाह को बढ़ावा देने एवं ब्राह्मण पुजारियों के बिना विवाहों के कानूनीकरण को बढ़ावा दिया। स्वतंत्रता के बाद तमिलनाडु में एक कानून पारित किया गया तथा यह ब्राह्मण पुजारी के बिना हिंदू विवाह को वैध बनाने वाला पहला राज्य बन गया।
    • नगर परिषदों में हरिजन सदस्यों के लिये अलग-अलग स्थान आवंटित करने की व्यवस्था भी बंद कर दी गई।
    • आंदोलन के समर्थकों की अथक लड़ाई के कारण, होटलों के नेम बोर्ड "ब्राह्मण होटल" से बदलकर "शाकाहारी होटल" कर दिये गए।
    • लोगों द्वारा नाम के साथ अपनी जाति का नाम जोड़ने पर गर्व महसूस किया जाने लगा।

    हालांँकि आंदोलन महिलाओं और साथ ही निम्न जाति को मुक्त करने एवं उन्हें समान अधिकार दिलाने में विफल रहा। यह गरीब और दबे हुए वर्गों की आर्थिक स्थिति को मज़बूत करने में विफल रहा। चूंँकि, आंदोलन तमिलनाडु तक ही सीमित था इसलिये इसका प्रभाव भी बहुत ही सीमित था।

    निष्कर्ष

    आत्म-सम्मान आंदोलन के दौरान कई सवाल उभरकर सामने आए। क्या राजनीतिक स्वतंत्रता सच्ची स्वतंत्रता है? क्या यह एक समान समाज की ओर ले जाएगा? क्या यह महिलाओं की गरिमा के साथ खिलवाड़ करने की अनुमति देगा? दुखद सच यह है कि हमारे पास आज भी इन सवालों के जवाब नहीं हैं। अब यह राष्ट्र के शिक्षित और प्रबुद्ध युवाओं की ज़िम्मेदारी है कि वे सामाजिक बुराइयों को दूर करने और आत्म-सम्मान आंदोलन के आदर्शों को पूरा करने की ज़िम्मेदारी लें।

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