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  • 10 Dec 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 2 सामाजिक न्याय

    जनहित याचिका (PIL) को सार्वजनिक हित में निजी शिकायतों के निराकरण के लिये एक साधन नहीं बनना चाहिये। आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिये। (250 शब्द)

    उत्तर

    दृष्टिकोण

    • जनहित याचिका की संक्षिप्त व्याख्या कीजिये।
    • भारत में इसकी शुरुआत करने के संदर्भ में उल्लेख कीजिये।
    • जनहित याचिका के बढ़ते दुरुपयोग पर चर्चा कीजिये।
    • अपने मूल उद्देश्य को बनाए रखते हुए जनहित याचिका के दुरुपयोग को रोकने के लिये कुछ उपाए सुझाएँ।

    परिचय

    • जनहित याचिका (पीआईएल) की शुरुआत वर्ष 1984 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा की गई थी। यह समाज के उपेक्षित, अलग-थलग और हाशिये पर मौजूद उसतबके की समस्याओं के निवारण के लिये एक महत्त्वपूर्ण तंत्र है, जिसके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन या हनन किया जाता है तथा जिनकी शिकायतों पर ध्यान नहीं जाता तथा उनकी शिकायतों को बिना कारण बताए नज़रअंदाज कर दिया जाता है।

    प्रारूप

    जनहित याचिका के लाभ

    • जनहित याचिका कानूनों को स्पष्ट करने में मदद करती है।
    • जनहित याचिका ने न्यायपालिका की कार्यप्रणाली को सुगम कर दिया है क्योकिं जब न्यायपालिका द्वारा अपने कर्तव्यों का सही तरीके से क्रियान्वयन नहीं किया जाता है तो कार्यपालिका उन कर्तव्यों के प्रति ज़बावदेह होगी।
    • यह कमज़ोर लोगों से संबंधित महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर प्रकाश डालने और उनके अधिकारों की वकालत करने के लिये एक मंच प्रदान करती है।
    • जनहित याचिका सार्वजनिक बहस और मीडिया कवरेज को प्रोत्साहित करने वाले महत्त्वपूर्ण मुद्दों के बारे में जागरूकता बढ़ाने में सहायक है।
    • पीआईएल की शुरुआत देश के गरीब लोगों की मदद के उद्देश्य से की गई थी। लेकिन समय बीतने के साथ यह धीरे-धीरे निजी महत्त्व, राजनीतिक हितों तथा ’प्रचार, हितों से संबंधित मुकदमेबाज़ी में तब्दील हो गई। इस प्रकार इसका झुकाव कॉर्पोरेट लाभ, राजनीतिक लाभ या व्यक्तिगत हित के लिये अधिक देखने को मिलता है।

    जनहित याचिका का दुरुपयोग

    • जनहित याचिका के तहत जनहित से संबंधित कोई भी मुकदमा न्यायालय के समक्ष पेश किया जाता है।
    • लोगों द्वारा जनहित की आड़ में निजी शिकायतों को न्यायालय के समक्ष पेश कर जनहित याचिका का दुरुपयोग किया जाता है तथा सार्वजनिक कारणों को समर्थन देने की बजाय उनका प्रचार किया जाता है।
    • यह भी देखा गया है कि पीआईएल का दुरुपयोग कॉर्पोरेट प्रतिद्वंद्वियों के साथ विवादों के समाधान करने एवं व्यक्तिगत प्रतिशोध के एक साधन के रूप में किया जा रहा है।
    • राजनीतिक दलों द्वारा राजनीतिक लाभ प्राप्त करने के लिये भी याचिका दायर की जाती है।
    • न्यायपालिका द्वारा अपने अधिकार क्षेत्र से बाहार जाकर कार्य करने के कारण उस आलोचना का सामना करना पड़ता है जिस कारण न्यायपालिका अपने आदेशों को प्रभावी ढंग से लागू करने में असमर्थ होती है।

    आगे की राह

    • न्यायालय को आधिकारिक रूप से यह घोषित करने की आवश्यकता है कि वह केवल उन लोगों से संबंधित मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के मामलों में ही हस्तक्षेप करेगा जो गरीबी और संसाधनों की कमी के कारण स्वयं अदालत का रुख करने में सक्षम नहीं है।
    • न्यायालय द्वारा दिये गए निर्णयों में पीआईएल का दुरुपयोग व्यक्तिगत एजेंडे और राजनीतिक लाभ के लिये नहीं किया जाता ।
    • अशोक कुमार बनाम स्टेट ऑफ डब्ल्यू. बी. मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा कुछ शर्तों के साथ जनहित याचिकाओं को दाखिल करने का अधिकार दिया गया।
    • इस प्रकार जनहित याचिका के दुरुपयोग की जांँच करने के लिये न्यायालय द्वारा जारी दिशा-निर्देशों का सख्ती के साथ पालन किया जाना चाहिये।
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