राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) और इसके आस-पास के क्षेत्रों में वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के उद्देश्य से एक नया ‘कमीशन फॉर एयर क्वालिटी मैनेजमेंट’ (CAQM) स्थापित करने की आवश्यकता और मुद्दों पर चर्चा कीजिये। (250 शब्द)
14 Nov 2020 | सामान्य अध्ययन पेपर 2 | राजव्यवस्था
दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
दृष्टिकोण:
- संक्षिप्त रूप से वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग के बारे में बताएँ।
- वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग की स्थापना एवं आवश्यकता पर चर्चा करते हुए इसके महत्त्व के बारे में बताएँ।
- वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग से जुड़े कुछ मुद्दों के बारे में बताएंँ।
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
परिचय:
- वायु प्रदूषण पर्यावरण, सार्वजनिक स्वास्थ्य और आर्थिक आयामों के लिये एक गंभीर समस्या है। उत्तरी भारत में लगभग प्रत्येक वर्ष हवा की गुणवत्ता खतरनाक स्तर तक पहुँच जाती है।
- वायु प्रदूषण को सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिये खतरे के रूप में स्वीकार करते हुए केंद्र सरकार द्वारा एक अध्यादेश लागू किया गया है। इस अध्यादेश के माध्यम से केंद्र द्वारा राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र एवं इसके आसपास के क्षेत्रों के वायु गुणवत्ता प्रबंधन के लिये एक आयोग का गठन किया गया है।
प्रारूप:
नए आयोग के गठन की आवश्यकता:
- वैधानिक निकाय की स्थापना: अभी तक इस प्रकार के मामलों को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा देखा जाता था जिसमे पर्यावरण प्रदूषण (रोकथाम और नियंत्रण) प्राधिकरण द्वारा सार्वजनिक परिवहन ईंधन को सीएनजी मोड में परिवर्तित करने तथा पुराने प्रदूषण फैलाने वाले वाहनों पर प्रदूषण शुल्क लगाने जैसे निर्णय शामिल रहे हैं।
- हालांँकि अपनी वैधानिक शक्तियों का प्रयोग स्वयं न करते हुए केवल सर्वोच्च न्यायालय के सलाहकार निकाय के रूप में कार्य करने के संदर्भ में पर्यावरण प्रदूषण (रोकथाम और नियंत्रण) प्राधिकरण की आलोचना की गई ।
- इस अध्यादेश के माध्यम से केंद्र सरकार एवं संबंधित राज्यों के मध्य समन्वय स्थापित कर प्रक्रिया को विनियमित करने के लिये एक वैधानिक निकाय की स्थापना की जा रही है।
- समेकित दृष्टिकोण: इस अध्यादेश में प्रदूषण की निगरानी, प्रदूषण स्रोतों के उन्मूलन और प्रदूषण नियंत्रण कानूनों के प्रवर्तन के लिये एक समेकित दृष्टिकोण की परिकल्पना की गई है।
- आयोग को उद्योग, बिजली संयंत्र, कृषि, परिवहन, आवासीय और निर्माण सहित बहु-क्षेत्रीय प्रासंगिक योजना के लिये राज्य और केंद्र सरकार के साथ समन्वय स्थापित करने की शक्ति प्राप्त होगी।
- सहभागी लोकतंत्र: आयोग संसद को नियमित रिपोर्ट प्रस्तुत करने के साथ-साथ निर्वाचित प्रतिनिधियों की निगरानी का कार्य भी करेगा।
- यह अध्यादेश ‘आयोग के प्रयासों एवं प्रस्तावों को प्रभावी तरीके से लागू करने की दिशा में लोकतांत्रिक निरीक्षण के उच्चतम स्तर को सुनिश्चित करने में सहायक होगा ।
- एडहॉक /तदर्थ व्यवस्था को हटाना: आयोग केंद्र सरकार के तत्त्वाधान, समग्र पर्यवेक्षण और मार्गदर्शन के तहत कार्य करेगा जिससे इस बात की उम्मीद की जा सकती है कि यह अस्थायी रूप से या अन्यथा संवैधानिक अदालतों के विभिन्न आदेशों द्वारा गठित समितियों, कार्य बलों, आयोगों और अनौपचारिक समूहों की समस्याओं का समाधान होगा। इस कारण केंद्र और राज्य सरकारों को अलग-अलग हितधारकों से समन्वय या तालमेल करने की आवश्यकता नहीं होगी ।
- अधिकार प्राप्त निकाय: नए आयोग के पास संवैधानिक और दंडात्मक प्रावधानों के संदर्भ में अधिक अधिकार एवं शक्तियांँ होंगी।
- प्रदूषण नियंत्रण मानदंडों के उल्लंघन पर उल्लंघनकर्त्ताओं के लिये एक करोड़ रूपए का जुर्माना या पांँच वर्ष की कैद या फिर दोनों का प्रावधान किया जा सकता है।
संबंधित मुद्दे:
- संघीय मुद्दा: यह अध्यादेश आयोग को अधिक शक्ति प्रदान करता है तथा इसका अधिकार क्षेत्र विभिन्न राज्य निकायों के क्षेत्र का अतिक्रमण करता है।
- समन्वयकारी निकाय के रूप में आयोग को अधिनयम के प्रावधानों को लागू करने के लिये राज्यों पर निर्भर होना होगा।
- अध्यादेश द्वारा कई क्षेत्रों जैसे-स्टब बर्निंग (कटाई के बाद फसल को खेत में जलाना) को समाप्त करने, वाहन में कम कार्बन उत्सर्जन तकनीकी को शामिल करने के लिये आर्थिक सहयोग एवं वित्तीय उपायों को शामिल करना होगा।
- विभिन्न राज्यों में अलग-अलग राजनीतिक दल होने से आयोग द्वारा लिये गए निर्णयों पर राजनीतिक गतिरोध उत्पन्न हो सकता है।
- न्यायिक दृष्टिकोण का अभाव: पर्यावरण संरक्षण के मामलों में सर्वोच्च न्यायालय का हस्तक्षेप कार्यपालिका के प्रति गहरे अविश्वास के कारण उपजा है।
- चूंँकि यह अध्यादेश उन सभी समितियों और प्राधिकरणों को भंग करता है जो न्यायिक और प्रशासनिक आदेशों के तहत स्थापित किये गए थे। न्यायपालिका की भूमिका को सीमित करने और क्षेत्र में वायु-गुणवत्ता प्रबंधन के लिये एक अति-केंद्रीकृत ढांँचा विकसित करने की दिशा में इसने एक प्रकार की शंका को उत्पन्न किया है।
- गैर-समावेशी: वायु प्रदूषण स्वास्थ्य को प्रभावित करता है, वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिये लगाए गए प्रतिबंध कृषि मज़दूरों को प्रभावित करते हैं, ग्रामीण क्षेत्रीय विकास के लिये स्टबल बर्निंग से निपटने हेतु प्रोत्साहन की आवश्यकता है।
अव्यावहारिक दंडात्मक उपाय:
इस अध्यादेश में पर्यावरण की क्षतिपूर्ति के लिये 1 करोड़ रुपए का अव्यावहारिक जुर्माना लगाना प्रदूषक भुगतान सिद्धांत के विपरीत है।
निष्कर्ष:
आपातकालीन स्थितियों या मौसमी बदलाव के अलावा वायु गुणवत्ता सुधार से संबंधित अन्य मुद्दों को संबोधित करने के लिये अधिकारियों विशेष रूप से राज्य सरकारों में इच्छाशक्ति की कमी रही है।
इसलिये इस बात में कोई संदेह नहीं है कि अधिकारियों के बीच उचित ताल-मेल एवं समन्वय का होना हवा को साफ करने की एक पूर्व शर्त है जो वायु गुणवत्ता से संबंधित समग्र योजनाओं को लागू करने और किसानों के लिये व्यवहारपरक नीतियों को स्थापित करने में सहायक है ताकि वे स्टबल बर्निंग को छोड़ सकें।