हिंदू राजनीति के प्रति लाला लाजपत राय का दृष्टिकोण बहिष्कृत हिंदू राष्ट्रवादी नहीं अपितु बहुलवादी सार्वजनिक राष्ट्रीय संस्कृति का था। टिप्पणी कीजिये। (150 शब्द )
03 Nov 2020 | सामान्य अध्ययन पेपर 1 | इतिहास
दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
दृष्टिकोण:
- स्पष्ट कीजिये कि लाला लाजपत राय की संवेदनाएँ किस प्रकार हिंदुओं के हितों के पक्ष में थी।
- चर्चा कीजिये कि किस प्रकार लाला लाजपत राय द्वारा बड़े पैमाने पर धर्मनिरपेक्ष और राष्ट्रवादी हितों का अनुसरण किया गया एवं किसी भी बहिष्करण नीति का पालन नहीं किया गया।
परिचय:
- लाला लाजपत राय एक महत्त्वपूर्ण राष्ट्रवादी नेता थे जिन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
संरचना:
हिंदू हितों के प्रति लाला लाजपत राय का झुकाव:
- ये आर्य समाज से बहुत अधिक प्रभावित थे तथा हिंदू सुधार आंदोलन का भी अभिन्न अंग रहे।
- वर्ष 1897 में, इनके द्वारा अकाल पीड़ित लोगों की मदद करने के लिये हिंदू राहत आंदोलन की स्थापना की गई, इस आंदोलन के माध्यम से पीड़ित लोगों को मिशनरियों के चंगुल में जाने से रोका गया।
- वर्ष 1909 में ‘पंजाब हिंदू सभा’ और वर्ष 1920 के मध्य में ‘हिंदू महासभा’ में इनकी भागीदारी इस बात का उदाहरण है कि ये एक मुखर हिंदू राजनीति के समर्थक थे।
- ये द्वी-राष्ट्र सिद्धांत के भी समर्थक थे, उन्होंने ब्रिटिश राज को उखाड़ फेंकने के लिये हिंदुओं और मुसलमानों के एकजुट होने की ज़रूरत पर बल दिया, इनके अनुसार, प्रत्येक भारतीय(हिंदु और मुसलमान) के लिये एक अलग राष्ट्र का निर्माण शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के बड़े उद्देश्य को प्राप्त करने में सार्थक सिद्ध होगा।
हालाँकि हिंदू राजनीति के प्रति इनका दृष्टिकोण बहिष्कृत हिंदू राष्ट्रवाद से बहुत अलग था जो विविधता में एकता की भावना पर आधारित था।
- इनके द्वारा कभी भी भारत के धार्मिक अल्पसंख्यकों को ज़बरन हिंदू संस्कृति में समाहित किये जाने या उन्हें देश से बाहर निकालने का समर्थन नहीं किया गया।
- वर्ष 1915 तक इनके द्वारा हिंदू एवं मुसलमानों को अलग-अलग ‘धार्मिक राष्ट्रीयता’ के रूप में मान्यता दिये जाने के बाद, घोषणा की गई कि ‘धार्मिक राष्ट्रवाद’ एक गलत विचार है, जो एक ‘संकीर्ण संप्रदायवाद’ का प्रतीक है। यह ‘वास्तविक राष्ट्रीय’ कभी नहीं हो सकता है।
- इन्होंने तर्क दिया गया कि भारत का प्राकृतिक भूगोल इसे विश्व के बाकी हिस्सों से प्रथक एक महत्त्वपूर्ण पहचान प्रदान करता है, जो राष्ट्रवाद के रूप में इसके नागरिकों को एकजुट करती है।
- इनके अनुसार, हिंदू और मुसलमान बसंत पंचमी, बैसाखी, दशहरा, दिवाली, मुहर्रम और शब-ए-बारात जैसे त्योहारों और धार्मिक अवसरों में समान रूप से भाग लेते हैं।
- दोनों ही संप्रदायों के लिये मुगल सम्राट अकबर एक मार्ग दर्शक है, जिसकी स्मृति हिंदुओं और मुसलमानों दोनों को समान रूप से प्रेरित करती है।
निष्कर्ष:
- लाला लाजपत राय के हिंदू महासभा में जाने के बावजूद, उनकी भारत की धार्मिक-सांस्कृतिक विविधता के प्रति प्रतिबद्धता कभी कम नहीं हुई। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि किस प्रकार राष्ट्र पर हिंदुओं के हितों के प्रति संवेदनशील राजनीति, धार्मिक-सांस्कृतिक एकरूपता को थोपने की ‘अत्याचारी’ इच्छा से मुक्त हो सकती है।